Hindi Page 1223

ਸਾਜਨ ਮੀਤ ਸਖਾ ਹਰਿ ਮੇਰੈ ਗੁਨ ਗੋੁਪਾਲ ਹਰਿ ਰਾਇਆ ॥
साजन मीत सखा हरि मेरै गुन गोपाल हरि राइआ ॥
ईश्वर ही मेरा सज्जन, मित्र एवं हितैषी है और उसके ही गुण गाता हूँ।

ਬਿਸਰਿ ਨ ਜਾਈ ਨਿਮਖ ਹਿਰਦੈ ਤੇ ਪੂਰੈ ਗੁਰੂ ਮਿਲਾਇਆ ॥੧॥
बिसरि न जाई निमख हिरदै ते पूरै गुरू मिलाइआ ॥१॥
वह पल भर हृदय से भूल न जाए, इसलिए पूर्ण गुरु ने मुझे उससे मिला दिया है॥१॥

ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਰਾਖੇ ਦਾਸ ਅਪਨੇ ਜੀਅ ਜੰਤ ਵਸਿ ਜਾ ਕੈ ॥
करि किरपा राखे दास अपने जीअ जंत वसि जा कै ॥
वह कृपा करके अपने दास की रक्षा करता है, सभी जीव उसी के वश में है।

ਏਕਾ ਲਿਵ ਪੂਰਨ ਪਰਮੇਸੁਰ ਭਉ ਨਹੀ ਨਾਨਕ ਤਾ ਕੈ ॥੨॥੭੩॥੯੬॥
एका लिव पूरन परमेसुर भउ नही नानक ता कै ॥२॥७३॥९६॥
हे नानक ! केवल पूर्ण परमेश्वर में ही लगन लगी हुई है और उसे कोई भय नहीं ॥२॥ ७३ ॥ ६६ ॥

ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥

ਜਾ ਕੈ ਰਾਮ ਕੋ ਬਲੁ ਹੋਇ ॥
जा कै राम को बलु होइ ॥
जिसका बल ईश्वर होता है,

ਸਗਲ ਮਨੋਰਥ ਪੂਰਨ ਤਾਹੂ ਕੇ ਦੂਖੁ ਨ ਬਿਆਪੈ ਕੋਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सगल मनोरथ पूरन ताहू के दूखु न बिआपै कोइ ॥१॥ रहाउ ॥
उसके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं और कोई दुख प्रभावित नहीं करता ॥१॥रहाउ॥।

ਜੋ ਜਨੁ ਭਗਤੁ ਦਾਸੁ ਨਿਜੁ ਪ੍ਰਭ ਕਾ ਸੁਣਿ ਜੀਵਾਂ ਤਿਸੁ ਸੋਇ ॥
जो जनु भगतु दासु निजु प्रभ का सुणि जीवां तिसु सोइ ॥
जो व्यक्ति प्रभु का भक्त एवं दास है, उसकी कीर्ति सुनकर जी रहा हूँ।

ਉਦਮੁ ਕਰਉ ਦਰਸਨੁ ਪੇਖਨ ਕੌ ਕਰਮਿ ਪਰਾਪਤਿ ਹੋਇ ॥੧॥
उदमु करउ दरसनु पेखन कौ करमि परापति होइ ॥१॥
उसके दर्शन का प्रयत्न करता हूँ, पर यह भाग्य से ही प्राप्त होता है।॥१॥

ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਨਿਹਾਰਉ ਦੂਸਰ ਨਾਹੀ ਕੋਇ ॥
गुर परसादी द्रिसटि निहारउ दूसर नाही कोइ ॥
गुरु की कृपा से आँखों से प्रभु को निहारता हूँ, अन्य किसी को नहीं।

ਦਾਨੁ ਦੇਹਿ ਨਾਨਕ ਅਪਨੇ ਕਉ ਚਰਨ ਜੀਵਾਂ ਸੰਤ ਧੋਇ ॥੨॥੭੪॥੯੭॥
दानु देहि नानक अपने कउ चरन जीवां संत धोइ ॥२॥७४॥९७॥
नानक की विनती है कि अपने सेवक को यह दान दो कि संतों के चरण धो कर जीता रहूँ॥२॥ ७४ ॥ ६७ ॥

ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥

ਜੀਵਤੁ ਰਾਮ ਕੇ ਗੁਣ ਗਾਇ ॥
जीवतु राम के गुण गाइ ॥
मैं राम के गुण गा कर जीता हूँ।

ਕਰਹੁ ਕ੍ਰਿਪਾ ਗੋਪਾਲ ਬੀਠੁਲੇ ਬਿਸਰਿ ਨ ਕਬ ਹੀ ਜਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
करहु क्रिपा गोपाल बीठुले बिसरि न कब ही जाइ ॥१॥ रहाउ ॥
हे परमेश्वर ! कृपा करो, कभी भूल मत जाना ॥१॥रहाउ॥।

ਮਨੁ ਤਨੁ ਧਨੁ ਸਭੁ ਤੁਮਰਾ ਸੁਆਮੀ ਆਨ ਨ ਦੂਜੀ ਜਾਇ ॥
मनु तनु धनु सभु तुमरा सुआमी आन न दूजी जाइ ॥
हे स्वामी ! मन, तन, धन सब तुम्हारा दिया हुआ है, तेरे सिवा मैं किसी को नहीं मानता।

ਜਿਉ ਤੂ ਰਾਖਹਿ ਤਿਵ ਹੀ ਰਹਣਾ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਰਾ ਪੈਨੑੈ ਖਾਇ ॥੧॥
जिउ तू राखहि तिव ही रहणा तुम्हरा पैन्है खाइ ॥१॥
जैसे तू रखता है, वैसे ही रहना है और तुम्हारा दिया खाना एवं पहनना है॥१॥

ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਕੈ ਬਲਿ ਬਲਿ ਜਾਈ ਬਹੁੜਿ ਨ ਜਨਮਾ ਧਾਇ ॥
साधसंगति कै बलि बलि जाई बहुड़ि न जनमा धाइ ॥
मैं साधु-पुरुषों पर कुर्बान जाता हूँ, इनकी संगत में आवागमन से मुक्ति हो जाती है।

ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਤੇਰੀ ਸਰਣਾਈ ਜਿਉ ਭਾਵੈ ਤਿਵੈ ਚਲਾਇ ॥੨॥੭੫॥੯੮॥
नानक दास तेरी सरणाई जिउ भावै तिवै चलाइ ॥२॥७५॥९८॥
हे प्रभु ! दास नानक तेरी शरण में है, ज्यों चाहते हो, वैसे ही चलाओ ॥ २ ॥ ७५ ॥ ६८ ॥

ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥

ਮਨ ਰੇ ਨਾਮ ਕੋ ਸੁਖ ਸਾਰ ॥
मन रे नाम को सुख सार ॥
हे मन ! हरि-नाम सर्व सुखों का सार है और

ਆਨ ਕਾਮ ਬਿਕਾਰ ਮਾਇਆ ਸਗਲ ਦੀਸਹਿ ਛਾਰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
आन काम बिकार माइआ सगल दीसहि छार ॥१॥ रहाउ ॥
अन्य कार्य माया के विकार हैं, जो सब धूल नज़र आते हैं।॥१॥रहाउ॥।

ਗ੍ਰਿਹਿ ਅੰਧ ਕੂਪ ਪਤਿਤ ਪ੍ਰਾਣੀ ਨਰਕ ਘੋਰ ਗੁਬਾਰ ॥
ग्रिहि अंध कूप पतित प्राणी नरक घोर गुबार ॥
पतित प्राणी अंधे कुएं में पड़कर घोर नरक के अंधेरे में डूब जाता है।

ਅਨਿਕ ਜੋਨੀ ਭ੍ਰਮਤ ਹਾਰਿਓ ਭ੍ਰਮਤ ਬਾਰੰ ਬਾਰ ॥੧॥
अनिक जोनी भ्रमत हारिओ भ्रमत बारं बार ॥१॥
वह अनेक योनियों में भटकता हुआ पुनः पुनः भटकता है॥१॥

ਪਤਿਤ ਪਾਵਨ ਭਗਤਿ ਬਛਲ ਦੀਨ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰ ॥
पतित पावन भगति बछल दीन किरपा धार ॥
हे परमेश्वर ! तू पतितों को पावन करने वाला है, भक्तवत्सल है, दोनों पर कृपा धारण करने वाला है।

ਕਰ ਜੋੜਿ ਨਾਨਕੁ ਦਾਨੁ ਮਾਂਗੈ ਸਾਧਸੰਗਿ ਉਧਾਰ ॥੨॥੭੬॥੯੯॥
कर जोड़ि नानकु दानु मांगै साधसंगि उधार ॥२॥७६॥९९॥
नानक हाथ जोड़कर कामना करते हैं कि साधुजनों की संगत में हमारा उद्धार करो ॥२॥ ७६ ॥ ६६ ॥

ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥

ਬਿਰਾਜਿਤ ਰਾਮ ਕੋ ਪਰਤਾਪ ॥
बिराजित राम को परताप ॥
ईश्वर की महिमा सब ओर फैली हुई है,

ਆਧਿ ਬਿਆਧਿ ਉਪਾਧਿ ਸਭ ਨਾਸੀ ਬਿਨਸੇ ਤੀਨੈ ਤਾਪ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
आधि बिआधि उपाधि सभ नासी बिनसे तीनै ताप ॥१॥ रहाउ ॥
इससे आधि, व्याधि, उपाधि, तीन प्रकार के रोग विनष्ट हो जाते हैं।॥१॥रहाउ॥।

ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਬੁਝੀ ਪੂਰਨ ਸਭ ਆਸਾ ਚੂਕੇ ਸੋਗ ਸੰਤਾਪ ॥
त्रिसना बुझी पूरन सभ आसा चूके सोग संताप ॥
हमारी तृष्णा बुझ गई है, सभी आकांक्षाएं पूर्ण हुई हैं और शोक संताप समाप्त हुए हैं।

ਗੁਣ ਗਾਵਤ ਅਚੁਤ ਅਬਿਨਾਸੀ ਮਨ ਤਨ ਆਤਮ ਧ੍ਰਾਪ ॥੧॥
गुण गावत अचुत अबिनासी मन तन आतम ध्राप ॥१॥
अविनाशी निरंकार का गुणगान करते हुए मन, तन एवं आत्मा को तृप्ति मिली है॥१॥

ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧ ਲੋਭ ਮਦ ਮਤਸਰ ਸਾਧੂ ਕੈ ਸੰਗਿ ਖਾਪ ॥
काम क्रोध लोभ मद मतसर साधू कै संगि खाप ॥
साधु-महात्मा की संगत में जीव का काम, क्रोध, लोभ, ईष्र्या-द्वेष का अन्त हो जाता है।

ਭਗਤਿ ਵਛਲ ਭੈ ਕਾਟਨਹਾਰੇ ਨਾਨਕ ਕੇ ਮਾਈ ਬਾਪ ॥੨॥੭੭॥੧੦੦॥
भगति वछल भै काटनहारे नानक के माई बाप ॥२॥७७॥१००॥
नानक का माई-बाप निरंकार भक्तवत्सल एवं सब भय काटनेवाला है॥२॥ ७७ ॥ १०० ॥

ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥

ਆਤੁਰੁ ਨਾਮ ਬਿਨੁ ਸੰਸਾਰ ॥
आतुरु नाम बिनु संसार ॥
प्रभु नाम बिना पूरी दुनिया व्याकुल है।

ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਨ ਹੋਵਤ ਕੂਕਰੀ ਆਸਾ ਇਤੁ ਲਾਗੋ ਬਿਖਿਆ ਛਾਰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
त्रिपति न होवत कूकरी आसा इतु लागो बिखिआ छार ॥१॥ रहाउ ॥
कुतिया आशा से इसकी तृप्ति नहीं होती और इसे विकारों की मिट्टी लगी रहती है।॥१॥रहाउ॥।

ਪਾਇ ਠਗਉਰੀ ਆਪਿ ਭੁਲਾਇਓ ਜਨਮਤ ਬਾਰੋ ਬਾਰ ॥
पाइ ठगउरी आपि भुलाइओ जनमत बारो बार ॥
परब्रह्म ने ठग-बूटी डालकर मनुष्य को स्वयं भुलाया हुआ है, इसी वजह से वह बार-बार जन्मता-मरता है।

ਹਰਿ ਕਾ ਸਿਮਰਨੁ ਨਿਮਖ ਨ ਸਿਮਰਿਓ ਜਮਕੰਕਰ ਕਰਤ ਖੁਆਰ ॥੧॥
हरि का सिमरनु निमख न सिमरिओ जमकंकर करत खुआर ॥१॥
वह एक पल भी परमात्मा का भजन नहीं करता, अतः यमदूत इसे तंग करता है॥१॥

ਹੋਹੁ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਦੀਨ ਦੁਖ ਭੰਜਨ ਤੇਰਿਆ ਸੰਤਹ ਕੀ ਰਾਵਾਰ ॥
होहु क्रिपाल दीन दुख भंजन तेरिआ संतह की रावार ॥
हे करुणानिधि ! तू दीनों के दुख नाश करने वाला है, कृपा करो, हम तेरे संत पुरुषों की धूल हैं।

error: Content is protected !!