ਨਾਨਕ ਦਾਸੁ ਦਰਸੁ ਪ੍ਰਭ ਜਾਚੈ ਮਨ ਤਨ ਕੋ ਆਧਾਰ ॥੨॥੭੮॥੧੦੧॥
नानक दासु दरसु प्रभ जाचै मन तन को आधार ॥२॥७८॥१०१॥
दास नानक प्रभु दर्शन ही चाहता है, वही मन तन का आसरा है ॥२॥७८॥१०१॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਮੈਲਾ ਹਰਿ ਕੇ ਨਾਮ ਬਿਨੁ ਜੀਉ ॥
मैला हरि के नाम बिनु जीउ ॥
परमेश्वर के नाम बिना जीव मैला है।
ਤਿਨਿ ਪ੍ਰਭਿ ਸਾਚੈ ਆਪਿ ਭੁਲਾਇਆ ਬਿਖੈ ਠਗਉਰੀ ਪੀਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
तिनि प्रभि साचै आपि भुलाइआ बिखै ठगउरी पीउ ॥१॥ रहाउ ॥
दरअसल विकारों की ठगबूटी पिला कर सच्चे प्रभु ने स्वयं ही इसे भुला दिया है॥१॥रहाउ॥
ਕੋਟਿ ਜਨਮ ਭ੍ਰਮਤੌ ਬਹੁ ਭਾਂਤੀ ਥਿਤਿ ਨਹੀ ਕਤਹੂ ਪਾਈ ॥
कोटि जनम भ्रमतौ बहु भांती थिति नही कतहू पाई ॥
वह अनेक प्रकार से करोड़ों जन्म भटकता है और इसे कहीं स्थिरता प्राप्त नहीं होती।
ਪੂਰਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸਹਜਿ ਨ ਭੇਟਿਆ ਸਾਕਤੁ ਆਵੈ ਜਾਈ ॥੧॥
पूरा सतिगुरु सहजि न भेटिआ साकतु आवै जाई ॥१॥
पूर्ण सतिगुरु से इसकी मुलाकात नहीं होती, जिस कारण शाक्त जीव आता जाता है॥१॥
ਰਾਖਿ ਲੇਹੁ ਪ੍ਰਭ ਸੰਮ੍ਰਿਥ ਦਾਤੇ ਤੁਮ ਪ੍ਰਭ ਅਗਮ ਅਪਾਰ ॥
राखि लेहु प्रभ सम्रिथ दाते तुम प्रभ अगम अपार ॥
हे प्रभु ! तू समर्थ, दाता, अगम्य अपार है, मुझे बचा लो।
ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਤੇਰੀ ਸਰਣਾਈ ਭਵਜਲੁ ਉਤਰਿਓ ਪਾਰ ॥੨॥੭੯॥੧੦੨॥
नानक दास तेरी सरणाई भवजलु उतरिओ पार ॥२॥७९॥१०२॥
दास नानक तेरी शरण में संसार-सागर से पार उतर गया है॥ २ ॥ ७६ ॥ १०२ ॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਰਮਣ ਕਉ ਰਾਮ ਕੇ ਗੁਣ ਬਾਦ ॥
रमण कउ राम के गुण बाद ॥
अर्चना के लिए परमात्मा का भजन बढ़िया है।
ਸਾਧਸੰਗਿ ਧਿਆਈਐ ਪਰਮੇਸਰੁ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਜਾ ਕੇ ਸੁਆਦ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
साधसंगि धिआईऐ परमेसरु अम्रित जा के सुआद ॥१॥ रहाउ ॥
साधु पुरुषों के साथ परमेश्वर की अर्चना करो, इसका स्वाद अमृतमय है॥१॥रहाउ॥।
ਸਿਮਰਤ ਏਕੁ ਅਚੁਤ ਅਬਿਨਾਸੀ ਬਿਨਸੇ ਮਾਇਆ ਮਾਦ ॥
सिमरत एकु अचुत अबिनासी बिनसे माइआ माद ॥
अटल अविनाशी प्रभु का स्मरण करने से माया का अभिमान समाप्त हो जाता है।
ਸਹਜ ਅਨਦ ਅਨਹਦ ਧੁਨਿ ਬਾਣੀ ਬਹੁਰਿ ਨ ਭਏ ਬਿਖਾਦ ॥੧॥
सहज अनद अनहद धुनि बाणी बहुरि न भए बिखाद ॥१॥
अनाहद वाणी की ध्वनि में परम आनंद प्राप्त होता है और दुख -तकलीफ का दुबारा सामना नहीं करना पड़ता ॥१॥
ਸਨਕਾਦਿਕ ਬ੍ਰਹਮਾਦਿਕ ਗਾਵਤ ਗਾਵਤ ਸੁਕ ਪ੍ਰਹਿਲਾਦ ॥
सनकादिक ब्रहमादिक गावत गावत सुक प्रहिलाद ॥
सनक-सनंदन, ब्रह्मा, शुकदेव, प्रहलाद इत्यादि सब परमात्मा के गुण गाते हैं।
ਪੀਵਤ ਅਮਿਉ ਮਨੋਹਰ ਹਰਿ ਰਸੁ ਜਪਿ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਬਿਸਮਾਦ ॥੨॥੮੦॥੧੦੩॥
पीवत अमिउ मनोहर हरि रसु जपि नानक हरि बिसमाद ॥२॥८०॥१०३॥
हे नानक ! अद्भुत हरि रस के अमृत जल का पान करने से परमानंद प्राप्त होता है॥ २ ॥ ८० ॥ १०३ ॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਕੀਨੑੇ ਪਾਪ ਕੇ ਬਹੁ ਕੋਟ ॥
कीन्हे पाप के बहु कोट ॥
मनुष्य ने पापों का बहुत बड़ा दुर्ग बनाया हुआ है।
ਦਿਨਸੁ ਰੈਨੀ ਥਕਤ ਨਾਹੀ ਕਤਹਿ ਨਾਹੀ ਛੋਟ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
दिनसु रैनी थकत नाही कतहि नाही छोट ॥१॥ रहाउ ॥
वह दिन-रात इसमें थकता नहीं और न ही कभी पापों में छूट आती है॥१॥रहाउ॥।
ਮਹਾ ਬਜਰ ਬਿਖ ਬਿਆਧੀ ਸਿਰਿ ਉਠਾਈ ਪੋਟ ॥
महा बजर बिख बिआधी सिरि उठाई पोट ॥
इस तरह मनुष्य ने सिर पर महावज़ विषय रोगों की पोटली उठाई हुई है।
ਉਘਰਿ ਗਈਆਂ ਖਿਨਹਿ ਭੀਤਰਿ ਜਮਹਿ ਗ੍ਰਾਸੇ ਝੋਟ ॥੧॥
उघरि गईआं खिनहि भीतरि जमहि ग्रासे झोट ॥१॥
वह पल में ही खुल जाती है और मौत उसे अपना शिकार बना लेती है॥१॥
ਪਸੁ ਪਰੇਤ ਉਸਟ ਗਰਧਭ ਅਨਿਕ ਜੋਨੀ ਲੇਟ ॥
पसु परेत उसट गरधभ अनिक जोनी लेट ॥
तदन्तर मनुष्य पशु-प्रेत, ऊँट, गधे इत्यादि अनेक योनियों में आता है।
ਭਜੁ ਸਾਧਸੰਗਿ ਗੋਬਿੰਦ ਨਾਨਕ ਕਛੁ ਨ ਲਾਗੈ ਫੇਟ ॥੨॥੮੧॥੧੦੪॥
भजु साधसंगि गोबिंद नानक कछु न लागै फेट ॥२॥८१॥१०४॥
नानक अनुरोध करते हैं कि हे मनुष्य ! साधु पुरुषों के साथ ईश्वर का भजन कर लो, फिर कोई चोट नहीं लगेगी॥२॥ ८१ ॥१०४॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਅੰਧੇ ਖਾਵਹਿ ਬਿਸੂ ਕੇ ਗਟਾਕ ॥
अंधे खावहि बिसू के गटाक ॥
अन्धे व्यक्ति पापों का जहर खाते हैं।
ਨੈਨ ਸ੍ਰਵਨ ਸਰੀਰੁ ਸਭੁ ਹੁਟਿਓ ਸਾਸੁ ਗਇਓ ਤਤ ਘਾਟ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
नैन स्रवन सरीरु सभु हुटिओ सासु गइओ तत घाट ॥१॥ रहाउ ॥
उनकी ऑखें, कान, शरीर सब कमजोर हो गया है और श्वास-तत्व भी कम हो गया है॥१॥रहाउ॥।
ਅਨਾਥ ਰਞਾਣਿ ਉਦਰੁ ਲੇ ਪੋਖਹਿ ਮਾਇਆ ਗਈਆ ਹਾਟਿ ॥
अनाथ रञाणि उदरु ले पोखहि माइआ गईआ हाटि ॥
गरीबों को कष्ट पहुँचा कर अपना पेट भरते हैं, परन्तु ऐसी दौलत भी अंततः साथ छोड़ जाती है।
ਕਿਲਬਿਖ ਕਰਤ ਕਰਤ ਪਛੁਤਾਵਹਿ ਕਬਹੁ ਨ ਸਾਕਹਿ ਛਾਂਟਿ ॥੧॥
किलबिख करत करत पछुतावहि कबहु न साकहि छांटि ॥१॥
इस तरह उम्र भर पाप करते-करते पछताते हैं, मगर पाप-धन का कभी साथ नहीं छोड़ते ॥१॥
ਨਿੰਦਕੁ ਜਮਦੂਤੀ ਆਇ ਸੰਘਾਰਿਓ ਦੇਵਹਿ ਮੂੰਡ ਉਪਰਿ ਮਟਾਕ ॥
निंदकु जमदूती आइ संघारिओ देवहि मूंड उपरि मटाक ॥
निंदक को यमदूत आकर मार देता है और सिर से पटकता है।
ਨਾਨਕ ਆਪਨ ਕਟਾਰੀ ਆਪਸ ਕਉ ਲਾਈ ਮਨੁ ਅਪਨਾ ਕੀਨੋ ਫਾਟ ॥੨॥੮੨॥੧੦੫॥
नानक आपन कटारी आपस कउ लाई मनु अपना कीनो फाट ॥२॥८२॥१०५॥
हे नानक ! व्यक्ति अपने पापों की कटार अपने ऊपर मारता है और अपने मन को चोटिल करता है ॥२॥ ८२॥ १०५ ॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਟੂਟੀ ਨਿੰਦਕ ਕੀ ਅਧ ਬੀਚ ॥
टूटी निंदक की अध बीच ॥
निंदक लोगों की अधबीच में ही जीवन डोर टूट जाती है।
ਜਨ ਕਾ ਰਾਖਾ ਆਪਿ ਸੁਆਮੀ ਬੇਮੁਖ ਕਉ ਆਇ ਪਹੂਚੀ ਮੀਚ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जन का राखा आपि सुआमी बेमुख कउ आइ पहूची मीच ॥१॥ रहाउ ॥
भक्तों को बचाने वाला स्वयं मालिक है, परन्तु विमुख जीव के पास मौत आ पहुँचती है॥१॥रहाउ॥।
ਉਸ ਕਾ ਕਹਿਆ ਕੋਇ ਨ ਸੁਣਈ ਕਹੀ ਨ ਬੈਸਣੁ ਪਾਵੈ ॥
उस का कहिआ कोइ न सुणई कही न बैसणु पावै ॥
उसकी फरियाद कोई नहीं सुनता और कहीं भी वह आसरा नहीं पाता।
ਈਹਾਂ ਦੁਖੁ ਆਗੈ ਨਰਕੁ ਭੁੰਚੈ ਬਹੁ ਜੋਨੀ ਭਰਮਾਵੈ ॥੧॥
ईहां दुखु आगै नरकु भुंचै बहु जोनी भरमावै ॥१॥
यहाँ दुखी रहता है, आगे नरक भोगता है, इस प्रकार अनेक योनियों में भटकता है॥१॥
ਪ੍ਰਗਟੁ ਭਇਆ ਖੰਡੀ ਬ੍ਰਹਮੰਡੀ ਕੀਤਾ ਅਪਣਾ ਪਾਇਆ ॥
प्रगटु भइआ खंडी ब्रहमंडी कीता अपणा पाइआ ॥
ऐसा व्यक्ति दुनिया भर में मशहूर हो जाता है और अपने किए कमों का ही फल पाता है।
ਨਾਨਕ ਸਰਣਿ ਨਿਰਭਉ ਕਰਤੇ ਕੀ ਅਨਦ ਮੰਗਲ ਗੁਣ ਗਾਇਆ ॥੨॥੮੩॥੧੦੬॥
नानक सरणि निरभउ करते की अनद मंगल गुण गाइआ ॥२॥८३॥१०६॥
हे नानक ! बिना किसी डर के स्रष्टा की शरण में आओ और आनंद मंगल से उसका गुणानुवाद करो ॥२॥ ८३ ॥ १०६॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਚਲਤ ਬਹੁ ਪਰਕਾਰਿ ॥
त्रिसना चलत बहु परकारि ॥
तृष्णा बहुत प्रकार से चलती है,