Hindi Page 1225

ਪੂਰਨ ਹੋਤ ਨ ਕਤਹੁ ਬਾਤਹਿ ਅੰਤਿ ਪਰਤੀ ਹਾਰਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
पूरन होत न कतहु बातहि अंति परती हारि ॥१॥ रहाउ ॥
मगर यह कभी पूरी नहीं होती और अन्त में प्राणी हार जाता है॥१॥रहाउ॥।

ਸਾਂਤਿ ਸੂਖ ਨ ਸਹਜੁ ਉਪਜੈ ਇਹੈ ਇਸੁ ਬਿਉਹਾਰਿ ॥
सांति सूख न सहजु उपजै इहै इसु बिउहारि ॥
दरअसल इसका यही व्यवहार है कि इसकी वजह से मन में सुख, शान्ति एवं आनंद उत्पन्न नही होता।

ਆਪ ਪਰ ਕਾ ਕਛੁ ਨ ਜਾਨੈ ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧਹਿ ਜਾਰਿ ॥੧॥
आप पर का कछु न जानै काम क्रोधहि जारि ॥१॥
व्यक्ति काम, क्रोध की अग्नि में जलता रहता है और इसे अपने अथवा पराए की भी जानकारी नहीं होती ॥१॥

ਸੰਸਾਰ ਸਾਗਰੁ ਦੁਖਿ ਬਿਆਪਿਓ ਦਾਸ ਲੇਵਹੁ ਤਾਰਿ ॥
संसार सागरु दुखि बिआपिओ दास लेवहु तारि ॥
हे प्रभु ! संसार-सागर के दुखों में लीन दास को पार उतार लो।

ਚਰਨ ਕਮਲ ਸਰਣਾਇ ਨਾਨਕ ਸਦ ਸਦਾ ਬਲਿਹਾਰਿ ॥੨॥੮੪॥੧੦੭॥
चरन कमल सरणाइ नानक सद सदा बलिहारि ॥२॥८४॥१०७॥
नानक तेरे चरण-कमल की शरण में है और सदैव तुझ पर बलिहारी जाता है।॥२॥८४॥१०७ ॥

ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥

ਰੇ ਪਾਪੀ ਤੈ ਕਵਨ ਕੀ ਮਤਿ ਲੀਨ ॥
रे पापी तै कवन की मति लीन ॥
अरे पापी ! तूने किस की शिक्षा ली है।

ਨਿਮਖ ਘਰੀ ਨ ਸਿਮਰਿ ਸੁਆਮੀ ਜੀਉ ਪਿੰਡੁ ਜਿਨਿ ਦੀਨ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
निमख घरी न सिमरि सुआमी जीउ पिंडु जिनि दीन ॥१॥ रहाउ ॥
जिसने प्राण-शरीर सब दिया है, उस मालिक का पल भर भजन नहीं करते॥१॥रहाउ॥।

ਖਾਤ ਪੀਵਤ ਸਵੰਤ ਸੁਖੀਆ ਨਾਮੁ ਸਿਮਰਤ ਖੀਨ ॥
खात पीवत सवंत सुखीआ नामु सिमरत खीन ॥
खाना-पीना, सोना तूने सुख बना लिया है परन्तु ईश्वर का नाम-स्मरण करने में तकलीफ होती है।

ਗਰਭ ਉਦਰ ਬਿਲਲਾਟ ਕਰਤਾ ਤਹਾਂ ਹੋਵਤ ਦੀਨ ॥੧॥
गरभ उदर बिललाट करता तहां होवत दीन ॥१॥
माँ के पेट में तू प्रार्थना करता फिरता था और वहाँ दीन बना हुआ था ॥१॥

ਮਹਾ ਮਾਦ ਬਿਕਾਰ ਬਾਧਾ ਅਨਿਕ ਜੋਨਿ ਭ੍ਰਮੀਨ ॥
महा माद बिकार बाधा अनिक जोनि भ्रमीन ॥
जीव मोह-माया के नशे और विकारों में फँसकर अनेक योनियों में घूमता है।

ਗੋਬਿੰਦ ਬਿਸਰੇ ਕਵਨ ਦੁਖ ਗਨੀਅਹਿ ਸੁਖੁ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਪਦ ਚੀਨੑ ॥੨॥੮੫॥੧੦੮॥
गोबिंद बिसरे कवन दुख गनीअहि सुखु नानक हरि पद चीन्ह ॥२॥८५॥१०८॥
ईश्वर को भूलने से दुखों की गिनती भी संभव नहीं, हे नानक ! परमेश्वर के चरणों को जानने से परम सुख मिलता है॥२॥ ८५ ॥ १०८॥

ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥

ਮਾਈ ਰੀ ਚਰਨਹ ਓਟ ਗਹੀ ॥
माई री चरनह ओट गही ॥
हे माई ! मैंने हरि-चरणों का आसरा लिया है।

ਦਰਸਨੁ ਪੇਖਿ ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਮੋਹਿਓ ਦੁਰਮਤਿ ਜਾਤ ਬਹੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
दरसनु पेखि मेरा मनु मोहिओ दुरमति जात बही ॥१॥ रहाउ ॥
उसके दर्शन करके मेरा मन मोहित हो गया है और खोटी बुद्धि समाप्त हो गई है॥१॥रहाउ॥।

ਅਗਹ ਅਗਾਧਿ ਊਚ ਅਬਿਨਾਸੀ ਕੀਮਤਿ ਜਾਤ ਨ ਕਹੀ ॥
अगह अगाधि ऊच अबिनासी कीमति जात न कही ॥
वह अगम्य, असीम, सर्वोच्च एवं अनश्वर है, उसका मूल्यांकन नहीं किया जा सकता।

ਜਲਿ ਥਲਿ ਪੇਖਿ ਪੇਖਿ ਮਨੁ ਬਿਗਸਿਓ ਪੂਰਿ ਰਹਿਓ ਸ੍ਰਬ ਮਹੀ ॥੧॥
जलि थलि पेखि पेखि मनु बिगसिओ पूरि रहिओ स्रब मही ॥१॥
जल, भूमि में हरि को देखकर मन खिल उठा है, वह सब में पूर्ण रूप से व्याप्त है॥१॥

ਦੀਨ ਦਇਆਲ ਪ੍ਰੀਤਮ ਮਨਮੋਹਨ ਮਿਲਿ ਸਾਧਹ ਕੀਨੋ ਸਹੀ ॥
दीन दइआल प्रीतम मनमोहन मिलि साधह कीनो सही ॥
दीनदयाल प्रियतम परमेश्वर को साधु पुरुषों में अनुभव किया जाता है।

ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਜੀਵਤ ਹਰਿ ਨਾਨਕ ਜਮ ਕੀ ਭੀਰ ਨ ਫਹੀ ॥੨॥੮੬॥੧੦੯॥
सिमरि सिमरि जीवत हरि नानक जम की भीर न फही ॥२॥८६॥१०९॥
हे नानक ! ईश्वर का सुमिरन (स्मरण) करने से जीवन मिलता है, इस तरह मौत की पीड़ा में नहीं आना पड़ता ॥२॥ ८६॥ १०६॥

ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥

ਮਾਈ ਰੀ ਮਨੁ ਮੇਰੋ ਮਤਵਾਰੋ ॥
माई री मनु मेरो मतवारो ॥
हे माँ! मेरा मन मतवाला हो गया है।

ਪੇਖਿ ਦਇਆਲ ਅਨਦ ਸੁਖ ਪੂਰਨ ਹਰਿ ਰਸਿ ਰਪਿਓ ਖੁਮਾਰੋ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
पेखि दइआल अनद सुख पूरन हरि रसि रपिओ खुमारो ॥१॥ रहाउ ॥
दयालु हरि को देखकर आनंद एवं सुख की प्राप्ति हुई है और हरिनाम रस की खुमारी छा गई है॥१॥रहाउ॥।

ਨਿਰਮਲ ਭਏ ਊਜਲ ਜਸੁ ਗਾਵਤ ਬਹੁਰਿ ਨ ਹੋਵਤ ਕਾਰੋ ॥
निरमल भए ऊजल जसु गावत बहुरि न होवत कारो ॥
परमात्मा के पावन यशोगान से मन निर्मल हो गया है, अब पुनः मलिन नहीं होता।

ਚਰਨ ਕਮਲ ਸਿਉ ਡੋਰੀ ਰਾਚੀ ਭੇਟਿਓ ਪੁਰਖੁ ਅਪਾਰੋ ॥੧॥
चरन कमल सिउ डोरी राची भेटिओ पुरखु अपारो ॥१॥
उसके चरण-कमल से डोरी लगी है और उस परमपुरुष से ही साक्षात्कार हुआ है॥१॥

ਕਰੁ ਗਹਿ ਲੀਨੇ ਸਰਬਸੁ ਦੀਨੇ ਦੀਪਕ ਭਇਓ ਉਜਾਰੋ ॥
करु गहि लीने सरबसु दीने दीपक भइओ उजारो ॥
उसने हमारा हाथ पकड़ा है, सब कुछ दे दिया है और ज्ञान-दीपक से उजाला कर दिया है।

ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਰਸਿਕ ਬੈਰਾਗੀ ਕੁਲਹ ਸਮੂਹਾਂ ਤਾਰੋ ॥੨॥੮੭॥੧੧੦॥
नानक नामि रसिक बैरागी कुलह समूहां तारो ॥२॥८७॥११०॥
नानक का कथन है कि हरि-नाम रस में वैराग्यवान प्राणी अपनी समस्त वंशावलि को पार उतार देता है ॥२॥ ८७॥ ११० ॥

ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥

ਮਾਈ ਰੀ ਆਨ ਸਿਮਰਿ ਮਰਿ ਜਾਂਹਿ ॥
माई री आन सिमरि मरि जांहि ॥
हे माँ ! प्रभु के सिवा अन्य को याद करना मृत्यु समान है।

ਤਿਆਗਿ ਗੋਬਿਦੁ ਜੀਅਨ ਕੋ ਦਾਤਾ ਮਾਇਆ ਸੰਗਿ ਲਪਟਾਹਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
तिआगि गोबिदु जीअन को दाता माइआ संगि लपटाहि ॥१॥ रहाउ ॥
जीवों को देने वाले परमेश्वर को त्याग कर मनुष्य माया के संग लिपटा रहता है॥१॥रहाउ॥।

ਨਾਮੁ ਬਿਸਾਰਿ ਚਲਹਿ ਅਨ ਮਾਰਗਿ ਨਰਕ ਘੋਰ ਮਹਿ ਪਾਹਿ ॥
नामु बिसारि चलहि अन मारगि नरक घोर महि पाहि ॥
वह प्रभु नाम को भुलाकर कुपथ पर चलता है, अन्तत: घोर नरक में पड़ता है।

ਅਨਿਕ ਸਜਾਂਈ ਗਣਤ ਨ ਆਵੈ ਗਰਭੈ ਗਰਭਿ ਭ੍ਰਮਾਹਿ ॥੧॥
अनिक सजांई गणत न आवै गरभै गरभि भ्रमाहि ॥१॥
वह इतनी सजा भोगता है, जिसकी गणना नहीं की जा सकती और वह गर्भ योनियों में ही भटकता है॥१॥

ਸੇ ਧਨਵੰਤੇ ਸੇ ਪਤਿਵੰਤੇ ਹਰਿ ਕੀ ਸਰਣਿ ਸਮਾਹਿ ॥
से धनवंते से पतिवंते हरि की सरणि समाहि ॥
वही धनवान् तथा इज्जतदार है, जो परमात्मा की शरण में आता है।

ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਨਾਨਕ ਜਗੁ ਜੀਤਿਓ ਬਹੁਰਿ ਨ ਆਵਹਿ ਜਾਂਹਿ ॥੨॥੮੮॥੧੧੧॥
गुर प्रसादि नानक जगु जीतिओ बहुरि न आवहि जांहि ॥२॥८८॥१११॥
हे नानक ! गुरु की कृपा से वह जगत को जीत लेता है और जन्म-मरण से मुक्त हो जाता है॥२॥ ८८॥ १११ ॥

ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥

ਹਰਿ ਕਾਟੀ ਕੁਟਿਲਤਾ ਕੁਠਾਰਿ ॥
हरि काटी कुटिलता कुठारि ॥
ईश्वर ने हमारी कुटिलता को कुल्हाड़ी से काट दिया है।

ਭ੍ਰਮ ਬਨ ਦਹਨ ਭਏ ਖਿਨ ਭੀਤਰਿ ਰਾਮ ਨਾਮ ਪਰਹਾਰਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
भ्रम बन दहन भए खिन भीतरि राम नाम परहारि ॥१॥ रहाउ ॥
हम भ्रम के वन में जल रहे थे, जिसे राम नाम ने पल में ठण्डा कर दिया है॥१॥रहाउ॥।

ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧ ਨਿੰਦਾ ਪਰਹਰੀਆ ਕਾਢੇ ਸਾਧੂ ਕੈ ਸੰਗਿ ਮਾਰਿ ॥
काम क्रोध निंदा परहरीआ काढे साधू कै संगि मारि ॥
साधु पुरुषों की संगत में काम, क्रोध, निन्दा को मारकर निकाल दिया है।

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