Hindi Page 1241

ਕੁੰਗੂ ਚੰਨਣੁ ਫੁਲ ਚੜਾਏ ॥
कुंगू चंनणु फुल चड़ाए ॥
वह केसर, चन्दन एवं फूल चढ़ाता है और

ਪੈਰੀ ਪੈ ਪੈ ਬਹੁਤੁ ਮਨਾਏ ॥
पैरी पै पै बहुतु मनाए ॥
उनके पैरों में पड़-पड़कर मनाने का भरसक प्रयास करता है।

ਮਾਣੂਆ ਮੰਗਿ ਮੰਗਿ ਪੈਨੑੈ ਖਾਇ ॥
माणूआ मंगि मंगि पैन्है खाइ ॥
(समाज की अजीब विडम्बना है कि) वह लोगों से (दान-दक्षिणा इत्यादि) मांग-मांगकर खाता-पहनता है।

ਅੰਧੀ ਕੰਮੀ ਅੰਧ ਸਜਾਇ ॥
अंधी कमी अंध सजाइ ॥
इस प्रकार अज्ञानपूर्ण कर्म में अन्धा दण्ड ही प्राप्त होता है।

ਭੁਖਿਆ ਦੇਇ ਨ ਮਰਦਿਆ ਰਖੈ ॥
भुखिआ देइ न मरदिआ रखै ॥
पत्थरों की मूर्तियाँ न तो भूखे लोगों का पेट भर सकती हैं और न ही मरने से बचा सकती हैं।

ਅੰਧਾ ਝਗੜਾ ਅੰਧੀ ਸਥੈ ॥੧॥
अंधा झगड़ा अंधी सथै ॥१॥
फिर भला अन्धों की झुण्डली में अंधा झगड़ा किसलिए ॥१॥

ਮਹਲਾ ੧ ॥
महला १ ॥
महला १ ॥

ਸਭੇ ਸੁਰਤੀ ਜੋਗ ਸਭਿ ਸਭੇ ਬੇਦ ਪੁਰਾਣ ॥
सभे सुरती जोग सभि सभे बेद पुराण ॥
सभी चिन्तन, योग-साधना, सभी वेद-पुराणों का पाठ-पठन,

ਸਭੇ ਕਰਣੇ ਤਪ ਸਭਿ ਸਭੇ ਗੀਤ ਗਿਆਨ ॥
सभे करणे तप सभि सभे गीत गिआन ॥
सभी कर्म, तपस्या, गीत, ज्ञान,

ਸਭੇ ਬੁਧੀ ਸੁਧਿ ਸਭਿ ਸਭਿ ਤੀਰਥ ਸਭਿ ਥਾਨ ॥
सभे बुधी सुधि सभि सभि तीरथ सभि थान ॥
सब बुद्धियाँ, शुद्धता, सभी तीर्थ, पावन स्थल,

ਸਭਿ ਪਾਤਿਸਾਹੀਆ ਅਮਰ ਸਭਿ ਸਭਿ ਖੁਸੀਆ ਸਭਿ ਖਾਨ ॥
सभि पातिसाहीआ अमर सभि सभि खुसीआ सभि खान ॥
सब हकूमतें, सब कानून, सब खुशियां, सब भोजन,

ਸਭੇ ਮਾਣਸ ਦੇਵ ਸਭਿ ਸਭੇ ਜੋਗ ਧਿਆਨ ॥
सभे माणस देव सभि सभे जोग धिआन ॥
सभी मनुष्यों, देवताओं, योगियों, ध्यानशीलों,

ਸਭੇ ਪੁਰੀਆ ਖੰਡ ਸਭਿ ਸਭੇ ਜੀਅ ਜਹਾਨ ॥
सभे पुरीआ खंड सभि सभे जीअ जहान ॥
सब पुरियों, खण्डों, संसार के सब जीवों को

ਹੁਕਮਿ ਚਲਾਏ ਆਪਣੈ ਕਰਮੀ ਵਹੈ ਕਲਾਮ ॥
हुकमि चलाए आपणै करमी वहै कलाम ॥
ईश्वर अपने हुक्म से चला रहा है और कर्मों के अनुसार फल देता जा रहा है।

ਨਾਨਕ ਸਚਾ ਸਚਿ ਨਾਇ ਸਚੁ ਸਭਾ ਦੀਬਾਨੁ ॥੨॥
नानक सचा सचि नाइ सचु सभा दीबानु ॥२॥
गुरु नानक कथन करते हैं कि ईश्वर सत्य है, उसका नाम शाश्वत है, उसकी अदालत भी अटल है॥२॥

ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी ॥

ਨਾਇ ਮੰਨਿਐ ਸੁਖੁ ਊਪਜੈ ਨਾਮੇ ਗਤਿ ਹੋਈ ॥
नाइ मंनिऐ सुखु ऊपजै नामे गति होई ॥
हरि नाम का मनन करने से ही सुख उत्पन्न होता है और नाम से ही मुक्ति होती है

ਨਾਇ ਮੰਨਿਐ ਪਤਿ ਪਾਈਐ ਹਿਰਦੈ ਹਰਿ ਸੋਈ ॥
नाइ मंनिऐ पति पाईऐ हिरदै हरि सोई ॥
नाम का मनन करने से संसार में इज्जत प्राप्त होती है और हृदय में ईश्वर ही बसता है।

ਨਾਇ ਮੰਨਿਐ ਭਵਜਲੁ ਲੰਘੀਐ ਫਿਰਿ ਬਿਘਨੁ ਨ ਹੋਈ ॥
नाइ मंनिऐ भवजलु लंघीऐ फिरि बिघनु न होई ॥
यदि हरिनाम का मनन किया जाए तो संसार-सागर से पार हुआ जा सकता है, पुनः कोई विपति का सामना नहीं करना पड़ता।

ਨਾਇ ਮੰਨਿਐ ਪੰਥੁ ਪਰਗਟਾ ਨਾਮੇ ਸਭ ਲੋਈ ॥
नाइ मंनिऐ पंथु परगटा नामे सभ लोई ॥
प्रभु के नाम-मनन से सच्चा मार्ग प्राप्त होता है और नाम से दुनिया में कीर्ति होती है।

ਨਾਨਕ ਸਤਿਗੁਰਿ ਮਿਲਿਐ ਨਾਉ ਮੰਨੀਐ ਜਿਨ ਦੇਵੈ ਸੋਈ ॥੯॥
नानक सतिगुरि मिलिऐ नाउ मंनीऐ जिन देवै सोई ॥९॥
हे नानक ! यदि सच्चा गुरु मिल जाए तो ही हरिनाम का मनन होता है, जिसे वह देता है, वही पाता है ॥६॥

ਸਲੋਕ ਮਃ ੧ ॥
सलोक मः १ ॥
श्लोक महला १॥

ਪੁਰੀਆ ਖੰਡਾ ਸਿਰਿ ਕਰੇ ਇਕ ਪੈਰਿ ਧਿਆਏ ॥
पुरीआ खंडा सिरि करे इक पैरि धिआए ॥
बड़े-बड़े नगरों एवं प्रदेशों को जीत लिया जाए, एक पैर पर खड़े होकर तपस्या की जाए।

ਪਉਣੁ ਮਾਰਿ ਮਨਿ ਜਪੁ ਕਰੇ ਸਿਰੁ ਮੁੰਡੀ ਤਲੈ ਦੇਇ ॥
पउणु मारि मनि जपु करे सिरु मुंडी तलै देइ ॥
प्राणायाम कर जप किया जाए, शीर्षासन कर लिया जाए।

ਕਿਸੁ ਉਪਰਿ ਓਹੁ ਟਿਕ ਟਿਕੈ ਕਿਸ ਨੋ ਜੋਰੁ ਕਰੇਇ ॥
किसु उपरि ओहु टिक टिकै किस नो जोरु करेइ ॥
जीव कोई भी तरीका अपना ले, बेशक कोई भी ताकत अपना ले।

ਕਿਸ ਨੋ ਕਹੀਐ ਨਾਨਕਾ ਕਿਸ ਨੋ ਕਰਤਾ ਦੇਇ ॥
किस नो कहीऐ नानका किस नो करता देइ ॥
हे नानक ! किसी को कहा नहीं जा सकता, ईश्वर किस को खुश होकर देता है।

ਹੁਕਮਿ ਰਹਾਏ ਆਪਣੈ ਮੂਰਖੁ ਆਪੁ ਗਣੇਇ ॥੧॥
हुकमि रहाए आपणै मूरखु आपु गणेइ ॥१॥
सब ईश्वर के हुक्म से हो रहा है, किन्तु मूर्ख यह मानता है कि यह मेरी शक्ति का फल हे ॥१॥

ਮਃ ੧ ॥
मः १ ॥
महला १ ॥

ਹੈ ਹੈ ਆਖਾਂ ਕੋਟਿ ਕੋਟਿ ਕੋਟੀ ਹੂ ਕੋਟਿ ਕੋਟਿ ॥
है है आखां कोटि कोटि कोटी हू कोटि कोटि ॥
मैं करोड़ों दफा परमात्मा की हस्ती, अनंतशक्ति, सर्वव्यापकता, सत्ता एवं महिमा की बात कहता रहूँ।

ਆਖੂੰ ਆਖਾਂ ਸਦਾ ਸਦਾ ਕਹਣਿ ਨ ਆਵੈ ਤੋਟਿ ॥
आखूं आखां सदा सदा कहणि न आवै तोटि ॥
मैं बेशक सदैव कहता रहूँ, वह शाश्वत, चिरस्थाई, अटल है और मेरे यह कहने में कोई कमी भी न आए।

ਨਾ ਹਉ ਥਕਾਂ ਨ ਠਾਕੀਆ ਏਵਡ ਰਖਹਿ ਜੋਤਿ ॥
ना हउ थकां न ठाकीआ एवड रखहि जोति ॥
वह मुझे इतनी समर्था दे कि यह बात कहते कभी थक न पाऊँ, कोई रुकावट भी पेश न आए।

ਨਾਨਕ ਚਸਿਅਹੁ ਚੁਖ ਬਿੰਦ ਉਪਰਿ ਆਖਣੁ ਦੋਸੁ ॥੨॥
नानक चसिअहु चुख बिंद उपरि आखणु दोसु ॥२॥
गुरु नानक फुरमाते हैं कि इन सबके बावजूद भी उस सर्वशक्तिमान के बारे में जितना भी कहता हूँ बहुत थोड़ा है उसकी प्रशंशा के लिए कहना पूरा नहीं है ॥२॥

ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी ॥

ਨਾਇ ਮੰਨਿਐ ਕੁਲੁ ਉਧਰੈ ਸਭੁ ਕੁਟੰਬੁ ਸਬਾਇਆ ॥
नाइ मंनिऐ कुलु उधरै सभु कुट्मबु सबाइआ ॥
हरिनाम के मनन से समूचे परिवार सहित कुल का उद्धार हो जाता है।

ਨਾਇ ਮੰਨਿਐ ਸੰਗਤਿ ਉਧਰੈ ਜਿਨ ਰਿਦੈ ਵਸਾਇਆ ॥
नाइ मंनिऐ संगति उधरै जिन रिदै वसाइआ ॥
नाम का मनन करने से उसकी संगत में उद्धार हो जाता है, जिसने दिल में परमात्मा को बसाया होता है।

ਨਾਇ ਮੰਨਿਐ ਸੁਣਿ ਉਧਰੇ ਜਿਨ ਰਸਨ ਰਸਾਇਆ ॥
नाइ मंनिऐ सुणि उधरे जिन रसन रसाइआ ॥
हरिनाम के मनन एवं श्रवण से उसी का उद्धार होता है, जो रसना से हरि का भजन करता है।

ਨਾਇ ਮੰਨਿਐ ਦੁਖ ਭੁਖ ਗਈ ਜਿਨ ਨਾਮਿ ਚਿਤੁ ਲਾਇਆ ॥
नाइ मंनिऐ दुख भुख गई जिन नामि चितु लाइआ ॥
हरिनाम के मनन से दुख एवं भूख भी दूर हो गई, जिसने नाम में मन लगाया है।

ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਤਿਨੀ ਸਾਲਾਹਿਆ ਜਿਨ ਗੁਰੂ ਮਿਲਾਇਆ ॥੧੦॥
नानक नामु तिनी सालाहिआ जिन गुरू मिलाइआ ॥१०॥
गुरु नानक का फुरमान है कि उन्होंने ही ईश्वर का स्तुतिगान किया है, जिनका गुरु से साक्षात्कार हुआ है॥१०॥

ਸਲੋਕ ਮਃ ੧ ॥
सलोक मः १ ॥
श्लोक महला १ ॥

ਸਭੇ ਰਾਤੀ ਸਭਿ ਦਿਹ ਸਭਿ ਥਿਤੀ ਸਭਿ ਵਾਰ ॥
सभे राती सभि दिह सभि थिती सभि वार ॥
सभी दिन-रात, सब तिथियाँ एवं वार,

ਸਭੇ ਰੁਤੀ ਮਾਹ ਸਭਿ ਸਭਿ ਧਰਤੀਂ ਸਭਿ ਭਾਰ ॥
सभे रुती माह सभि सभि धरतीं सभि भार ॥
मौसम, महीने, समूची धरती, पर्वत,

ਸਭੇ ਪਾਣੀ ਪਉਣ ਸਭਿ ਸਭਿ ਅਗਨੀ ਪਾਤਾਲ ॥
सभे पाणी पउण सभि सभि अगनी पाताल ॥
हवा, पानी, अग्नि, पाताल,

ਸਭੇ ਪੁਰੀਆ ਖੰਡ ਸਭਿ ਸਭਿ ਲੋਅ ਲੋਅ ਆਕਾਰ ॥
सभे पुरीआ खंड सभि सभि लोअ लोअ आकार ॥
सभी प्रदेश, नगर, चौदह लोक, संसार सब कितना बड़ा है।

ਹੁਕਮੁ ਨ ਜਾਪੀ ਕੇਤੜਾ ਕਹਿ ਨ ਸਕੀਜੈ ਕਾਰ ॥
हुकमु न जापी केतड़ा कहि न सकीजै कार ॥
परमात्मा के हुक्म का रहस्य प्राप्त नहीं हो सकता, उसकी महिमा, उपलब्धियों एवं लीलाओं का वर्णन भी नहीं हो सकता।

ਆਖਹਿ ਥਕਹਿ ਆਖਿ ਆਖਿ ਕਰਿ ਸਿਫਤੀਂ ਵੀਚਾਰ ॥
आखहि थकहि आखि आखि करि सिफतीं वीचार ॥
उसकी स्तुति करने वाले स्तुतिगान कर करके थक गए हैं।

ਤ੍ਰਿਣੁ ਨ ਪਾਇਓ ਬਪੁੜੀ ਨਾਨਕੁ ਕਹੈ ਗਵਾਰ ॥੧॥
त्रिणु न पाइओ बपुड़ी नानकु कहै गवार ॥१॥
हे नानक ! उन गंवारों को थोड़ा-सा भी रहस्य प्राप्त नहीं हुआ ॥१॥

ਮਃ ੧ ॥
मः १ ॥
महला १ ॥

ਅਖੀਂ ਪਰਣੈ ਜੇ ਫਿਰਾਂ ਦੇਖਾਂ ਸਭੁ ਆਕਾਰੁ ॥
अखीं परणै जे फिरां देखां सभु आकारु ॥
यदि आँखों के भार धूमकर सृष्टि को देखें।

ਪੁਛਾ ਗਿਆਨੀ ਪੰਡਿਤਾਂ ਪੁਛਾ ਬੇਦ ਬੀਚਾਰ ॥
पुछा गिआनी पंडितां पुछा बेद बीचार ॥
ज्ञानी, पण्डितों से सच्चाई पूछे, वेदों का चिन्तन करके रहस्य पूछे ,

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