ਸਲੋਕ ਮਃ ੩ ॥
सलोक मः ३ ॥
श्लोक महला ३॥
ਅਮਰੁ ਵੇਪਰਵਾਹੁ ਹੈ ਤਿਸੁ ਨਾਲਿ ਸਿਆਣਪ ਨ ਚਲਈ ਨ ਹੁਜਤਿ ਕਰਣੀ ਜਾਇ ॥
अमरु वेपरवाहु है तिसु नालि सिआणप न चलई न हुजति करणी जाइ ॥
सर्वोच्च शक्ति परमेश्वर का हुक्म अटल है, उसके साथ कोई चतुराई नहीं चल सकती और न ही एतराज किया जा सकता है।
ਆਪੁ ਛੋਡਿ ਸਰਣਾਇ ਪਵੈ ਮੰਨਿ ਲਏ ਰਜਾਇ ॥
आपु छोडि सरणाइ पवै मंनि लए रजाइ ॥
जो अपना अहम् छोड़कर शरण में आता है, उसकी रज़ा को मान लेता है,
ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਮ ਡੰਡੁ ਨ ਲਗਈ ਹਉਮੈ ਵਿਚਹੁ ਜਾਇ ॥
गुरमुखि जम डंडु न लगई हउमै विचहु जाइ ॥
उस गुरुमुख को यम का दण्ड नहीं मिलता और उसका अभिमान समाप्त हो जाता है।
ਨਾਨਕ ਸੇਵਕੁ ਸੋਈ ਆਖੀਐ ਜਿ ਸਚਿ ਰਹੈ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥੧॥
नानक सेवकु सोई आखीऐ जि सचि रहै लिव लाइ ॥१॥
हे नानक ! असल में सेवक वही कहलाता है, जो परमात्मा के ध्यान में लीन रहता है॥१॥
ਮਃ ੩ ॥
मः ३ ॥
महला ३॥
ਦਾਤਿ ਜੋਤਿ ਸਭ ਸੂਰਤਿ ਤੇਰੀ ॥
दाति जोति सभ सूरति तेरी ॥
हे परमेश्वर ! यह प्राण दान एवं सौन्दर्य सब तेरा ही है।
ਬਹੁਤੁ ਸਿਆਣਪ ਹਉਮੈ ਮੇਰੀ ॥
बहुतु सिआणप हउमै मेरी ॥
मेरे पास केवल अभिमान एवं चतुराई है।
ਬਹੁ ਕਰਮ ਕਮਾਵਹਿ ਲੋਭਿ ਮੋਹਿ ਵਿਆਪੇ ਹਉਮੈ ਕਦੇ ਨ ਚੂਕੈ ਫੇਰੀ ॥
बहु करम कमावहि लोभि मोहि विआपे हउमै कदे न चूकै फेरी ॥
हम अनेक कर्म करते हैं, लोभ में लीन रहते हैं, पर अहम् कभी दूर नहीं होता।
ਨਾਨਕ ਆਪਿ ਕਰਾਏ ਕਰਤਾ ਜੋ ਤਿਸੁ ਭਾਵੈ ਸਾਈ ਗਲ ਚੰਗੇਰੀ ॥੨॥
नानक आपि कराए करता जो तिसु भावै साई गल चंगेरी ॥२॥
नानक का कथन है कि ईश्वर ही करवाता है, जो उसे ठीक लगता है, वही बात अच्छी है॥२॥
ਪਉੜੀ ਮਃ ੫ ॥
पउड़ी मः ५ ॥
पउड़ी महला ५॥
ਸਚੁ ਖਾਣਾ ਸਚੁ ਪੈਨਣਾ ਸਚੁ ਨਾਮੁ ਅਧਾਰੁ ॥
सचु खाणा सचु पैनणा सचु नामु अधारु ॥
खाना-पहनना अर्थात् समूचा जीवन आचरण सत्य पर ही आधारित है और सच्चा नाम ही हमारा एकमात्र आसरा है।
ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਮੇਲਾਇਆ ਪ੍ਰਭੁ ਦੇਵਣਹਾਰੁ ॥
गुरि पूरै मेलाइआ प्रभु देवणहारु ॥
पूर्ण गुरु ही देने वाले प्रभु से मिलाने वाला है।
ਭਾਗੁ ਪੂਰਾ ਤਿਨ ਜਾਗਿਆ ਜਪਿਆ ਨਿਰੰਕਾਰੁ ॥
भागु पूरा तिन जागिआ जपिआ निरंकारु ॥
जिसने निरंकार का नाम जपा है, उनका पूर्ण भाग्य जाग गया है।
ਸਾਧੂ ਸੰਗਤਿ ਲਗਿਆ ਤਰਿਆ ਸੰਸਾਰੁ ॥
साधू संगति लगिआ तरिआ संसारु ॥
साधु पुरुषों की संगत में संसार-सागर से पार हुआ जा सकता है।
ਨਾਨਕ ਸਿਫਤਿ ਸਲਾਹ ਕਰਿ ਪ੍ਰਭ ਕਾ ਜੈਕਾਰੁ ॥੩੫॥
नानक सिफति सलाह करि प्रभ का जैकारु ॥३५॥
हे नानक ! प्रभु का स्तुतिगान करो; उसी की जय-जय करो॥३५॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੫ ॥
सलोक मः ५ ॥
श्लोक महला ५॥
ਸਭੇ ਜੀਅ ਸਮਾਲਿ ਅਪਣੀ ਮਿਹਰ ਕਰੁ ॥
सभे जीअ समालि अपणी मिहर करु ॥
परमात्मा अपनी मेहर करके सब जीवों का पालन-पोषण करता है।
ਅੰਨੁ ਪਾਣੀ ਮੁਚੁ ਉਪਾਇ ਦੁਖ ਦਾਲਦੁ ਭੰਨਿ ਤਰੁ ॥
अंनु पाणी मुचु उपाइ दुख दालदु भंनि तरु ॥
वह अत्याधिक अनाज-पानी पैदा करता और लोगों की दुख-तकलीफों को दूर करके पार उतारता है।
ਅਰਦਾਸਿ ਸੁਣੀ ਦਾਤਾਰਿ ਹੋਈ ਸਿਸਟਿ ਠਰੁ ॥
अरदासि सुणी दातारि होई सिसटि ठरु ॥
दाता ने प्रार्थना सुनी तो समूची सृष्टि को शांत कर दिया।
ਲੇਵਹੁ ਕੰਠਿ ਲਗਾਇ ਅਪਦਾ ਸਭ ਹਰੁ ॥
लेवहु कंठि लगाइ अपदा सभ हरु ॥
वह दीनों को गले लगा लेता है और सब मुसीबतें दूर करता है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇ ਪ੍ਰਭ ਕਾ ਸਫਲੁ ਘਰੁ ॥੧॥
नानक नामु धिआइ प्रभ का सफलु घरु ॥१॥
हे नानक ! प्रभु नाम का ध्यान करो, उसका घर फलदायी है॥१॥
ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥
ਵੁਠੇ ਮੇਘ ਸੁਹਾਵਣੇ ਹੁਕਮੁ ਕੀਤਾ ਕਰਤਾਰਿ ॥
वुठे मेघ सुहावणे हुकमु कीता करतारि ॥
ईश्वर का हुक्म हुआ तो सुन्दर बादल बरस उठे।
ਰਿਜਕੁ ਉਪਾਇਓਨੁ ਅਗਲਾ ਠਾਂਢਿ ਪਈ ਸੰਸਾਰਿ ॥
रिजकु उपाइओनु अगला ठांढि पई संसारि ॥
अधिक मात्रा में अनाज उत्पन्न हुआ है और पूरे संसार को शान्ति प्राप्त हुई है।
ਤਨੁ ਮਨੁ ਹਰਿਆ ਹੋਇਆ ਸਿਮਰਤ ਅਗਮ ਅਪਾਰ ॥
तनु मनु हरिआ होइआ सिमरत अगम अपार ॥
प्रभु के स्मरण से तन मन खिल गया है।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਪ੍ਰਭ ਆਪਣੀ ਸਚੇ ਸਿਰਜਣਹਾਰ ॥
करि किरपा प्रभ आपणी सचे सिरजणहार ॥
संसार के रचयिता सच्चे प्रभु ने अपनी कृपा की है।
ਕੀਤਾ ਲੋੜਹਿ ਸੋ ਕਰਹਿ ਨਾਨਕ ਸਦ ਬਲਿਹਾਰ ॥੨॥
कीता लोड़हि सो करहि नानक सद बलिहार ॥२॥
हे प्रभु ! जो तू चाहता है, वही करता है, नानक तुझ पर सदैव कुर्बान है॥२॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਵਡਾ ਆਪਿ ਅਗੰਮੁ ਹੈ ਵਡੀ ਵਡਿਆਈ ॥
वडा आपि अगमु है वडी वडिआई ॥
वह प्रभु स्वयं तो बड़ा है, उसकी कीर्ति भी बहुत बड़ी है।
ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਵੇਖਿ ਵਿਗਸਿਆ ਅੰਤਰਿ ਸਾਂਤਿ ਆਈ ॥
गुर सबदी वेखि विगसिआ अंतरि सांति आई ॥
गुरु के उपदेश से उसके दर्शन करके मन खिल गया है और शान्ति प्राप्त हुई है।
ਸਭੁ ਆਪੇ ਆਪਿ ਵਰਤਦਾ ਆਪੇ ਹੈ ਭਾਈ ॥
सभु आपे आपि वरतदा आपे है भाई ॥
सब में अपने आप वही कार्यशील है और स्वयं ही सब कुछ है।
ਆਪਿ ਨਾਥੁ ਸਭ ਨਥੀਅਨੁ ਸਭ ਹੁਕਮਿ ਚਲਾਈ ॥
आपि नाथु सभ नथीअनु सभ हुकमि चलाई ॥
वह दुनिया का मालिक है, उसने सबको काबू किया हुआ है और सब पर उसी का हुक्म चल रहा है।
ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਭਾਵੈ ਸੋ ਕਰੇ ਸਭ ਚਲੈ ਰਜਾਈ ॥੩੬॥੧॥ ਸੁਧੁ ॥
नानक हरि भावै सो करे सभ चलै रजाई ॥३६॥१॥ सुधु ॥
नानक का कथन है कि जो परमात्मा चाहता है, वही करता है, सब लोग उसकी रज़ा में चलते हैं।॥३६॥१॥शुद्ध-मूल के साथ मिलान है॥
ਰਾਗੁ ਸਾਰੰਗ ਬਾਣੀ ਭਗਤਾਂ ਕੀ ॥ ਕਬੀਰ ਜੀ ॥
रागु सारंग बाणी भगतां की ॥ कबीर जी ॥
रागु सारंग बाणी भगतां की ॥
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਕਹਾ ਨਰ ਗਰਬਸਿ ਥੋਰੀ ਬਾਤ ॥
कहा नर गरबसि थोरी बात ॥
हे नर ! छोटी-सी बात का भी तू क्यों इतना अभिमान करता है ?
ਮਨ ਦਸ ਨਾਜੁ ਟਕਾ ਚਾਰਿ ਗਾਂਠੀ ਐਂਡੌ ਟੇਢੌ ਜਾਤੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मन दस नाजु टका चारि गांठी ऐंडौ टेढौ जातु ॥१॥ रहाउ ॥
दस मन अनाज तथा चार पैसे तेरे पास हैं तो भी भला क्यों घमण्ड में टेढ़ा चलता है॥१॥रहाउ॥
ਬਹੁਤੁ ਪ੍ਰਤਾਪੁ ਗਾਂਉ ਸਉ ਪਾਏ ਦੁਇ ਲਖ ਟਕਾ ਬਰਾਤ ॥
बहुतु प्रतापु गांउ सउ पाए दुइ लख टका बरात ॥
सौ गांव अथवा दो लाख टके की सम्पति प्राप्त करके लोगों में बहुत प्रताप फैल जाता है।
ਦਿਵਸ ਚਾਰਿ ਕੀ ਕਰਹੁ ਸਾਹਿਬੀ ਜੈਸੇ ਬਨ ਹਰ ਪਾਤ ॥੧॥
दिवस चारि की करहु साहिबी जैसे बन हर पात ॥१॥
जिस प्रकार वन के हरे पते हैं, वैसे ही चार दिन की तुम्हारी प्रभुता है॥१॥
ਨਾ ਕੋਊ ਲੈ ਆਇਓ ਇਹੁ ਧਨੁ ਨਾ ਕੋਊ ਲੈ ਜਾਤੁ ॥
ना कोऊ लै आइओ इहु धनु ना कोऊ लै जातु ॥
न कोई धन-दौलत लेकर आया है और न ही कोई इसे लेकर जाता है।
ਰਾਵਨ ਹੂੰ ਤੇ ਅਧਿਕ ਛਤ੍ਰਪਤਿ ਖਿਨ ਮਹਿ ਗਏ ਬਿਲਾਤ ॥੨॥
रावन हूं ते अधिक छत्रपति खिन महि गए बिलात ॥२॥
रावण सरीखे कितने ही बड़े-बड़े छत्रपति भी पल में खत्म हो गए हैं।॥२॥