Hindi Page 1256

ਦੁਖ ਸੁਖ ਦੋਊ ਸਮ ਕਰਿ ਜਾਨੈ ਬੁਰਾ ਭਲਾ ਸੰਸਾਰ ॥
दुख सुख दोऊ सम करि जानै बुरा भला संसार ॥
वह दुख-सुख दोनों को समान मानता है और संसार में बुरे-भले को एक दृष्टि से ही देखता है।

ਸੁਧਿ ਬੁਧਿ ਸੁਰਤਿ ਨਾਮਿ ਹਰਿ ਪਾਈਐ ਸਤਸੰਗਤਿ ਗੁਰ ਪਿਆਰ ॥੨॥
सुधि बुधि सुरति नामि हरि पाईऐ सतसंगति गुर पिआर ॥२॥
गुरु के प्रेम से सत्संगत में ही ज्ञान, बुद्धि, विवेक तथा हरि-नाम प्राप्त होता है।॥२॥

ਅਹਿਨਿਸਿ ਲਾਹਾ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਪਰਾਪਤਿ ਗੁਰੁ ਦਾਤਾ ਦੇਵਣਹਾਰੁ ॥
अहिनिसि लाहा हरि नामु परापति गुरु दाता देवणहारु ॥
दाता गुरु जिसे नाम देता है, वह दिन-रात हरि-नाम प्राप्ति का लाभ पाता है।

ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਿਖ ਸੋਈ ਜਨੁ ਪਾਏ ਜਿਸ ਨੋ ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਕਰਤਾਰੁ ॥੩॥
गुरमुखि सिख सोई जनु पाए जिस नो नदरि करे करतारु ॥३॥
गुरु से वही व्यक्ति शिक्षा प्राप्त करता है, जिस पर ईश्वर करुणा करता है॥३॥

ਕਾਇਆ ਮਹਲੁ ਮੰਦਰੁ ਘਰੁ ਹਰਿ ਕਾ ਤਿਸੁ ਮਹਿ ਰਾਖੀ ਜੋਤਿ ਅਪਾਰ ॥
काइआ महलु मंदरु घरु हरि का तिसु महि राखी जोति अपार ॥
शरीर रूपी महल परमात्मा का घर है, जिसमें उसकी ज्योति अवस्थित है।

ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਮਹਲਿ ਬੁਲਾਈਐ ਹਰਿ ਮੇਲੇ ਮੇਲਣਹਾਰ ॥੪॥੫॥
नानक गुरमुखि महलि बुलाईऐ हरि मेले मेलणहार ॥४॥५॥
गुरु नानक फुरमाते हैं कि ईश्वर गुरु के द्वारा ही अपने महल में बुलाता है और मिलाने वाला प्रभु स्वयं ही मिला लेता है॥४॥५॥

ਮਲਾਰ ਮਹਲਾ ੧ ਘਰੁ ੨
मलार महला १ घरु २
मलार महला १ घरु २

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥

ਪਵਣੈ ਪਾਣੀ ਜਾਣੈ ਜਾਤਿ ॥
पवणै पाणी जाणै जाति ॥
पवन-पानी इत्यादि पाँच तत्वों से उत्पत्ति को माना जाता है।

ਕਾਇਆਂ ਅਗਨਿ ਕਰੇ ਨਿਭਰਾਂਤਿ ॥
काइआं अगनि करे निभरांति ॥
बेशक शरीर के निर्माण में गर्भ-अग्नि भी भूमिका निभाती है।

ਜੰਮਹਿ ਜੀਅ ਜਾਣੈ ਜੇ ਥਾਉ ॥
जमहि जीअ जाणै जे थाउ ॥
अगर जीव के जन्म लेने वाले मूल स्थान (ईश्वर) को मनुष्य जानता है तो ही

ਸੁਰਤਾ ਪੰਡਿਤੁ ਤਾ ਕਾ ਨਾਉ ॥੧॥
सुरता पंडितु ता का नाउ ॥१॥
ज्ञानवान है, उसी का नाम पण्डित कहा जा सकता है।॥१॥

ਗੁਣ ਗੋਬਿੰਦ ਨ ਜਾਣੀਅਹਿ ਮਾਇ ॥
गुण गोबिंद न जाणीअहि माइ ॥
हे माँ! परमात्मा के गुणों को जाना नहीं जा सकता और

ਅਣਡੀਠਾ ਕਿਛੁ ਕਹਣੁ ਨ ਜਾਇ ॥
अणडीठा किछु कहणु न जाइ ॥
उसे देखे बिना भी कुछ नहीं कहा जा सकता।

ਕਿਆ ਕਰਿ ਆਖਿ ਵਖਾਣੀਐ ਮਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
किआ करि आखि वखाणीऐ माइ ॥१॥ रहाउ ॥
क्योंकर उसके गुणों की चर्चा की जाए॥१॥रहाउ॥

ਊਪਰਿ ਦਰਿ ਅਸਮਾਨਿ ਪਇਆਲਿ ॥
ऊपरि दरि असमानि पइआलि ॥
ऊपर आसमान, नीचे पाताल और मध्य धरती में परमेश्वर ही स्थित है,

ਕਿਉ ਕਰਿ ਕਹੀਐ ਦੇਹੁ ਵੀਚਾਰਿ ॥
किउ करि कहीऐ देहु वीचारि ॥
क्योंकर कहा जाए, विचार दीजिए।

ਬਿਨੁ ਜਿਹਵਾ ਜੋ ਜਪੈ ਹਿਆਇ ॥
बिनु जिहवा जो जपै हिआइ ॥
जीभ के बिना जो हृदय में जपता है,

ਕੋਈ ਜਾਣੈ ਕੈਸਾ ਨਾਉ ॥੨॥
कोई जाणै कैसा नाउ ॥२॥
क्या कोई जानता है कि वह कैसे नाम जपता है॥२॥

ਕਥਨੀ ਬਦਨੀ ਰਹੈ ਨਿਭਰਾਂਤਿ ॥
कथनी बदनी रहै निभरांति ॥
कहने-बोलने से परे हो जाता है।

ਸੋ ਬੂਝੈ ਹੋਵੈ ਜਿਸੁ ਦਾਤਿ ॥
सो बूझै होवै जिसु दाति ॥
जिस पर दया करता है, वही बूझता है।

ਅਹਿਨਿਸਿ ਅੰਤਰਿ ਰਹੈ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥
अहिनिसि अंतरि रहै लिव लाइ ॥
वह दिन-रात ईश्वर के ध्यान में लीन रहता है,

ਸੋਈ ਪੁਰਖੁ ਜਿ ਸਚਿ ਸਮਾਇ ॥੩॥
सोई पुरखु जि सचि समाइ ॥३॥
वही उत्तम पुरुष है और सत्य में समा जाता है॥३॥

ਜਾਤਿ ਕੁਲੀਨੁ ਸੇਵਕੁ ਜੇ ਹੋਇ ॥
जाति कुलीनु सेवकु जे होइ ॥
अगर कोई उत्तम जाति में ईश्वर का सेवक हो जाए,

ਤਾ ਕਾ ਕਹਣਾ ਕਹਹੁ ਨ ਕੋਇ ॥
ता का कहणा कहहु न कोइ ॥
मगर ईश्वर की स्तुति न करे तो जीवन बेकार है।

ਵਿਚਿ ਸਨਾਤੀਂ ਸੇਵਕੁ ਹੋਇ ॥
विचि सनातीं सेवकु होइ ॥
हे नानक ! अगर कोई छोटी जाति से ईश्वर का सेवक हो तो

ਨਾਨਕ ਪਣ੍ਹੀਆ ਪਹਿਰੈ ਸੋਇ ॥੪॥੧॥੬॥
नानक पण्हीआ पहिरै सोइ ॥४॥१॥६॥
हमारी चमड़ी के जूते भी उसके पाँवों में पहनने के लिए हाजिर हैं॥४॥१॥६॥

ਮਲਾਰ ਮਹਲਾ ੧ ॥
मलार महला १ ॥
मलार महला १ ॥

ਦੁਖੁ ਵੇਛੋੜਾ ਇਕੁ ਦੁਖੁ ਭੂਖ ॥
दुखु वेछोड़ा इकु दुखु भूख ॥
एक दुख किसी से वियोग का है, एक दुख भूख का है।

ਇਕੁ ਦੁਖੁ ਸਕਤਵਾਰ ਜਮਦੂਤ ॥
इकु दुखु सकतवार जमदूत ॥
एक दुख ताकतवर यमदूतों का है, जो जीव को साथ ले जाते हैं।

ਇਕੁ ਦੁਖੁ ਰੋਗੁ ਲਗੈ ਤਨਿ ਧਾਇ ॥
इकु दुखु रोगु लगै तनि धाइ ॥
जो शरीर को रोग लग जाता है, एक दुख यह भी है।

ਵੈਦ ਨ ਭੋਲੇ ਦਾਰੂ ਲਾਇ ॥੧॥
वैद न भोले दारू लाइ ॥१॥
अरे भोले वैद्य ! कोई दवा मत लगाना॥१॥

ਵੈਦ ਨ ਭੋਲੇ ਦਾਰੂ ਲਾਇ ॥
वैद न भोले दारू लाइ ॥
हे भोले वैद्य जी ! अपनी दवा का हमारे लिए कोई इस्तेमाल मत करो,

ਦਰਦੁ ਹੋਵੈ ਦੁਖੁ ਰਹੈ ਸਰੀਰ ॥
दरदु होवै दुखु रहै सरीर ॥
क्योंकि दर्द होता है तो शरीर में दुख रहता ही है।

ਐਸਾ ਦਾਰੂ ਲਗੈ ਨ ਬੀਰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
ऐसा दारू लगै न बीर ॥१॥ रहाउ ॥
हे भाई ! ऐसी दवा का हम पर कोई असर नहीं होने वाला॥१॥रहाउ॥

ਖਸਮੁ ਵਿਸਾਰਿ ਕੀਏ ਰਸ ਭੋਗ ॥
खसमु विसारि कीए रस भोग ॥
मालिक को भुलाकर जब रस एवं भोगों का आनंद प्राप्त किया

ਤਾਂ ਤਨਿ ਉਠਿ ਖਲੋਏ ਰੋਗ ॥
तां तनि उठि खलोए रोग ॥
तो शरीर में रोग लग गए।

ਮਨ ਅੰਧੇ ਕਉ ਮਿਲੈ ਸਜਾਇ ॥
मन अंधे कउ मिलै सजाइ ॥
इसी कारण अंधे मन को सजा मिलती है।

ਵੈਦ ਨ ਭੋਲੇ ਦਾਰੂ ਲਾਇ ॥੨॥
वैद न भोले दारू लाइ ॥२॥
हे भोले वैद्य ! कोई दवा मत लगाना॥२॥

ਚੰਦਨ ਕਾ ਫਲੁ ਚੰਦਨ ਵਾਸੁ ॥
चंदन का फलु चंदन वासु ॥
चंदन की महत्ता उसकी खुशबू में है और

ਮਾਣਸ ਕਾ ਫਲੁ ਘਟ ਮਹਿ ਸਾਸੁ ॥
माणस का फलु घट महि सासु ॥
मनुष्य का फल शरीर में चल रही साँसे हैं।

ਸਾਸਿ ਗਇਐ ਕਾਇਆ ਢਲਿ ਪਾਇ ॥
सासि गइऐ काइआ ढलि पाइ ॥
जब साँसे छूट जाती हैं तो शरीर मिट्टी हो जाता है।

ਤਾ ਕੈ ਪਾਛੈ ਕੋਇ ਨ ਖਾਇ ॥੩॥
ता कै पाछै कोइ न खाइ ॥३॥
तत्पश्चात् कोई भोजन ग्रहण नहीं करता॥३॥

ਕੰਚਨ ਕਾਇਆ ਨਿਰਮਲ ਹੰਸੁ ॥
कंचन काइआ निरमल हंसु ॥
सोने जैसी काया में आत्मा रूपी हंस है,

ਜਿਸੁ ਮਹਿ ਨਾਮੁ ਨਿਰੰਜਨ ਅੰਸੁ ॥
जिसु महि नामु निरंजन अंसु ॥
जिसमें प्रभु नाम का अंश है।

ਦੂਖ ਰੋਗ ਸਭਿ ਗਇਆ ਗਵਾਇ ॥
दूख रोग सभि गइआ गवाइ ॥
प्रभु-नाम से सभी दुख रोग दूर होते हैं।

ਨਾਨਕ ਛੂਟਸਿ ਸਾਚੈ ਨਾਇ ॥੪॥੨॥੭॥
नानक छूटसि साचै नाइ ॥४॥२॥७॥
गुरु नानक कथन करते हैं कि सच्चे नाम से ही दुख-रोगों से छुटकारा होता है॥४॥२॥७॥

ਮਲਾਰ ਮਹਲਾ ੧ ॥
मलार महला १ ॥
मलार महला १ ॥

ਦੁਖ ਮਹੁਰਾ ਮਾਰਣ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ॥
दुख महुरा मारण हरि नामु ॥
दुख ऐसा जहर है, जिसे हरिनाम का सिमरन ही मारने वाला है।

ਸਿਲਾ ਸੰਤੋਖ ਪੀਸਣੁ ਹਥਿ ਦਾਨੁ ॥
सिला संतोख पीसणु हथि दानु ॥
संतोष की शिला पर पीसा जाता है और हाथों से दान के रूप में दिया जाता है।

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