Hindi Page 1270

ਮਲਾਰ ਮਃ ੫ ॥
मलार मः ५ ॥
मलार महला ५ ॥

ਪ੍ਰਭ ਕੋ ਭਗਤਿ ਬਛਲੁ ਬਿਰਦਾਇਓ ॥
प्रभ को भगति बछलु बिरदाइओ ॥
भक्तों से प्रेम करना प्रभु का स्वभाव है,

ਨਿੰਦਕ ਮਾਰਿ ਚਰਨ ਤਲ ਦੀਨੇ ਅਪੁਨੋ ਜਸੁ ਵਰਤਾਇਓ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
निंदक मारि चरन तल दीने अपुनो जसु वरताइओ ॥१॥ रहाउ ॥
अतः वह निंदकों को मार कर अपने चरणों के नीचे दबा देता है और इस प्रकार सम्पूर्ण विश्व में अपने यश को फैलाता है॥१॥रहाउ॥

ਜੈ ਜੈ ਕਾਰੁ ਕੀਨੋ ਸਭ ਜਗ ਮਹਿ ਦਇਆ ਜੀਅਨ ਮਹਿ ਪਾਇਓ ॥
जै जै कारु कीनो सभ जग महि दइआ जीअन महि पाइओ ॥
समूचे जगत में उसी की जय-जयकार हो रही है, वह सदैव जीवों पर दया करता है।

ਕੰਠਿ ਲਾਇ ਅਪੁਨੋ ਦਾਸੁ ਰਾਖਿਓ ਤਾਤੀ ਵਾਉ ਨ ਲਾਇਓ ॥੧॥
कंठि लाइ अपुनो दासु राखिओ ताती वाउ न लाइओ ॥१॥
वह अपने भक्तों को गले से लगाकर रखता है और उनको कोई गर्म वायु अर्थात् दुख तकलीफ छूने नहीं देता॥१॥

ਅੰਗੀਕਾਰੁ ਕੀਓ ਮੇਰੇ ਸੁਆਮੀ ਭ੍ਰਮੁ ਭਉ ਮੇਟਿ ਸੁਖਾਇਓ ॥
अंगीकारु कीओ मेरे सुआमी भ्रमु भउ मेटि सुखाइओ ॥
मेरे स्वामी प्रभु ने सहायता की तो भ्रम भय मिटाकर सुख प्राप्त कर दिया।

ਮਹਾ ਅਨੰਦ ਕਰਹੁ ਦਾਸ ਹਰਿ ਕੇ ਨਾਨਕ ਬਿਸ੍ਵਾਸੁ ਮਨਿ ਆਇਓ ॥੨॥੧੪॥੧੮॥
महा अनंद करहु दास हरि के नानक बिस्वासु मनि आइओ ॥२॥१४॥१८॥
हे भक्तो ! तुम महा आनंद प्राप्त करो, नानक के मन में परमात्मा पर पूर्ण विश्वास बन गया है॥२॥१४॥१८॥

ਰਾਗੁ ਮਲਾਰ ਮਹਲਾ ੫ ਚਉਪਦੇ ਘਰੁ ੨
रागु मलार महला ५ चउपदे घरु २
रागु मलार महला ५ चउपदे घरु २

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥

ਗੁਰਮੁਖਿ ਦੀਸੈ ਬ੍ਰਹਮ ਪਸਾਰੁ ॥
गुरमुखि दीसै ब्रहम पसारु ॥
गुरु-मुख को सम्पूर्ण संसार ब्रह्म रूप फैला हुआ दिखाई देता है,

ਗੁਰਮੁਖਿ ਤ੍ਰੈ ਗੁਣੀਆਂ ਬਿਸਥਾਰੁ ॥
गुरमुखि त्रै गुणीआं बिसथारु ॥
सब ओर तीन गुणों का विस्तार दृष्टिगत होता है।

ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਦ ਬੇਦ ਬੀਚਾਰੁ ॥
गुरमुखि नाद बेद बीचारु ॥
गुरु का शब्द वेद मंत्रों का चिंतन है और

ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਘੋਰ ਅੰਧਾਰੁ ॥੧॥
बिनु गुर पूरे घोर अंधारु ॥१॥
पूर्ण गुरु के बिना घोर अंधकार है॥१॥

ਮੇਰੇ ਮਨ ਗੁਰੁ ਗੁਰੁ ਕਰਤ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਪਾਈਐ ॥
मेरे मन गुरु गुरु करत सदा सुखु पाईऐ ॥
हे मेरे मन ! गुरु का नाम जपने से सदैव सुख प्राप्त होता है।

ਗੁਰ ਉਪਦੇਸਿ ਹਰਿ ਹਿਰਦੈ ਵਸਿਓ ਸਾਸਿ ਗਿਰਾਸਿ ਅਪਣਾ ਖਸਮੁ ਧਿਆਈਐ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुर उपदेसि हरि हिरदै वसिओ सासि गिरासि अपणा खसमु धिआईऐ ॥१॥ रहाउ ॥
गुरु के उपदेश से परमात्मा हृदय में अवस्थित होता है, अतः श्वास-ग्रास से अपने मालिक का चिंतन करो॥१॥रहाउ॥

ਗੁਰ ਕੇ ਚਰਣ ਵਿਟਹੁ ਬਲਿ ਜਾਉ ॥
गुर के चरण विटहु बलि जाउ ॥
गुरु के चरणों पर कुर्बान होना चाहिए।

ਗੁਰ ਕੇ ਗੁਣ ਅਨਦਿਨੁ ਨਿਤ ਗਾਉ ॥
गुर के गुण अनदिनु नित गाउ ॥
प्रतिदिन गुरु के गुण गाओ।

ਗੁਰ ਕੀ ਧੂੜਿ ਕਰਉ ਇਸਨਾਨੁ ॥
गुर की धूड़ि करउ इसनानु ॥
गुरु की चरण-धूल में स्नान करो एवं

ਸਾਚੀ ਦਰਗਹ ਪਾਈਐ ਮਾਨੁ ॥੨॥
साची दरगह पाईऐ मानु ॥२॥
सच्चे दरबार में सम्मान प्राप्त करो॥२॥

ਗੁਰੁ ਬੋਹਿਥੁ ਭਵਜਲ ਤਾਰਣਹਾਰੁ ॥
गुरु बोहिथु भवजल तारणहारु ॥
गुरु भयानक संसार-सागर से पार उतारने वाला जहाज है।

ਗੁਰਿ ਭੇਟਿਐ ਨ ਹੋਇ ਜੋਨਿ ਅਉਤਾਰੁ ॥
गुरि भेटिऐ न होइ जोनि अउतारु ॥
यदि गुरु से साक्षात्कार हो जाए तो जन्म-मरण का चक्र छूट जाता है।

ਗੁਰ ਕੀ ਸੇਵਾ ਸੋ ਜਨੁ ਪਾਏ ॥
गुर की सेवा सो जनु पाए ॥
गुरु की सेवा वही व्यक्ति प्राप्त करता है,

ਜਾ ਕਉ ਕਰਮਿ ਲਿਖਿਆ ਧੁਰਿ ਆਏ ॥੩॥
जा कउ करमि लिखिआ धुरि आए ॥३॥
जिसके भाग्य में विधाता ने लिखा होता है।॥३॥

ਗੁਰੁ ਮੇਰੀ ਜੀਵਨਿ ਗੁਰੁ ਆਧਾਰੁ ॥
गुरु मेरी जीवनि गुरु आधारु ॥
गुरु ही मेरा जीवन है, एकमात्र वही मेरा आसरा है।

ਗੁਰੁ ਮੇਰੀ ਵਰਤਣਿ ਗੁਰੁ ਪਰਵਾਰੁ ॥
गुरु मेरी वरतणि गुरु परवारु ॥
गुरु ही मेरा जीवन-आचरण एवं परिवार है।

ਗੁਰੁ ਮੇਰਾ ਖਸਮੁ ਸਤਿਗੁਰ ਸਰਣਾਈ ॥
गुरु मेरा खसमु सतिगुर सरणाई ॥
गुरु ही मेरा मालिक है, अतः उस सच्चे गुरु की शरण में रहता हूँ।

ਨਾਨਕ ਗੁਰੁ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਜਾ ਕੀ ਕੀਮ ਨ ਪਾਈ ॥੪॥੧॥੧੯॥
नानक गुरु पारब्रहमु जा की कीम न पाई ॥४॥१॥१९॥
नानक फुरमाते हैं कि गुरु ही परब्रह्म है, उसकी महत्ता अवर्णनीय है॥४॥१॥१९॥

ਮਲਾਰ ਮਹਲਾ ੫ ॥
मलार महला ५ ॥
मलार महला ५ ॥

ਗੁਰ ਕੇ ਚਰਨ ਹਿਰਦੈ ਵਸਾਏ ॥
गुर के चरन हिरदै वसाए ॥
जब गुरु के चरण हृदय में बस जाते हैं तो

ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਪ੍ਰਭਿ ਆਪਿ ਮਿਲਾਏ ॥
करि किरपा प्रभि आपि मिलाए ॥
प्रभु कृपा करके स्वयं ही मिला लेता है।

ਅਪਨੇ ਸੇਵਕ ਕਉ ਲਏ ਪ੍ਰਭੁ ਲਾਇ ॥
अपने सेवक कउ लए प्रभु लाइ ॥
प्रभु अपने जिस सेवक को भक्ति में लगा लेता है,

ਤਾ ਕੀ ਕੀਮਤਿ ਕਹੀ ਨ ਜਾਇ ॥੧॥
ता की कीमति कही न जाइ ॥१॥
उसकी महता व्यक्त नहीं की जा सकती॥१॥

ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਪੂਰਨ ਸੁਖਦਾਤੇ ॥
करि किरपा पूरन सुखदाते ॥
हे पूर्ण सुखदाता ! कृपा करो,

ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਰੀ ਕ੍ਰਿਪਾ ਤੇ ਤੂੰ ਚਿਤਿ ਆਵਹਿ ਆਠ ਪਹਰ ਤੇਰੈ ਰੰਗਿ ਰਾਤੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
तुम्हरी क्रिपा ते तूं चिति आवहि आठ पहर तेरै रंगि राते ॥१॥ रहाउ ॥
तुम्हारी कृपा से ही तू स्मरण आता है और आठ प्रहर तेरी भक्ति में लीन रहते हैं।॥१॥रहाउ॥

ਗਾਵਣੁ ਸੁਨਣੁ ਸਭੁ ਤੇਰਾ ਭਾਣਾ ॥
गावणु सुनणु सभु तेरा भाणा ॥
हे स्रष्टा ! तेरा कीर्तिगान करना एवं सुनना सब तेरी रज़ा है।

ਹੁਕਮੁ ਬੂਝੈ ਸੋ ਸਾਚਿ ਸਮਾਣਾ ॥
हुकमु बूझै सो साचि समाणा ॥
जो हुक्म मानता है, वह सत्य में लीन हो जाता है।

ਜਪਿ ਜਪਿ ਜੀਵਹਿ ਤੇਰਾ ਨਾਂਉ ॥
जपि जपि जीवहि तेरा नांउ ॥
हम तेरा नाम जप जपकर ही जीते हैं और

ਤੁਝ ਬਿਨੁ ਦੂਜਾ ਨਾਹੀ ਥਾਉ ॥੨॥
तुझ बिनु दूजा नाही थाउ ॥२॥
तेरे सिवा अन्य कोई ठिकाना नहीं॥२॥

ਦੁਖ ਸੁਖ ਕਰਤੇ ਹੁਕਮੁ ਰਜਾਇ ॥
दुख सुख करते हुकमु रजाइ ॥
दुख एवं सुख परमात्मा के हुक्म एवं रज़ा के अन्तर्गत है।

ਭਾਣੈ ਬਖਸ ਭਾਣੈ ਦੇਇ ਸਜਾਇ ॥
भाणै बखस भाणै देइ सजाइ ॥
वह अपनी रज़ा से किसी को क्षमा कर देता है तो किसी को सजा देता है।

ਦੁਹਾਂ ਸਿਰਿਆਂ ਕਾ ਕਰਤਾ ਆਪਿ ॥
दुहां सिरिआं का करता आपि ॥
लोक-परलोक दोनों का कर्ता स्वयं परमात्मा है,

ਕੁਰਬਾਣੁ ਜਾਂਈ ਤੇਰੇ ਪਰਤਾਪ ॥੩॥
कुरबाणु जांई तेरे परताप ॥३॥
हे रचनहार ! तेरे यश पर कुर्बान जाता हूँ॥३॥

ਤੇਰੀ ਕੀਮਤਿ ਤੂਹੈ ਜਾਣਹਿ ॥
तेरी कीमति तूहै जाणहि ॥
अपनी महिमा तू ही जानता है।

ਤੂ ਆਪੇ ਬੂਝਹਿ ਸੁਣਿ ਆਪਿ ਵਖਾਣਹਿ ॥
तू आपे बूझहि सुणि आपि वखाणहि ॥
तू स्वयं समझता, सुनता और स्वयं बखान करता है।

ਸੇਈ ਭਗਤ ਜੋ ਤੁਧੁ ਭਾਣੇ ॥
सेई भगत जो तुधु भाणे ॥
वही अनन्य भक्त हैं, जो तुझे अच्छे लगते हैं।

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