ਸਤਿਗੁਰ ਸਬਦੀ ਪਾਧਰੁ ਜਾਣਿ ॥
सतिगुर सबदी पाधरु जाणि ॥
गुरु की शिक्षा से ही रास्ते की जानकारी होती है और
ਗੁਰ ਕੈ ਤਕੀਐ ਸਾਚੈ ਤਾਣਿ ॥
गुर कै तकीऐ साचै ताणि ॥
गुरु के आसरे सच्चा बल प्राप्त होता है।
ਨਾਮੁ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਲਸਿ ਰੂੜ੍ਹ੍ਹੀ ਬਾਣਿ ॥
नामु सम्हालसि रूड़्ही बाणि ॥
सुन्दर वाणी से नाम स्मरण करता है और
ਥੈਂ ਭਾਵੈ ਦਰੁ ਲਹਸਿ ਪਿਰਾਣਿ ॥੨॥
थैं भावै दरु लहसि पिराणि ॥२॥
यदि तुझे मंजूर हो तो तेरा द्वार पहचान लेता है॥२॥
ਊਡਾਂ ਬੈਸਾ ਏਕ ਲਿਵ ਤਾਰ ॥
ऊडां बैसा एक लिव तार ॥
चाहे चला जाऊँ या बैठा रहूँ, एक ईश्वर में ध्यान लगा हुआ है।
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਨਾਮ ਆਧਾਰ ॥
गुर कै सबदि नाम आधार ॥
गुरु के उपदेश से जिसके पास नाम का आसरा है,
ਨਾ ਜਲੁ ਡੂੰਗਰੁ ਨ ਊਚੀ ਧਾਰ ॥
ना जलु डूंगरु न ऊची धार ॥
उसे जल, पर्वत एवं ऊँची धाराएँ भी प्रभावित नहीं करतीं।
ਨਿਜ ਘਰਿ ਵਾਸਾ ਤਹ ਮਗੁ ਨ ਚਾਲਣਹਾਰ ॥੩॥
निज घरि वासा तह मगु न चालणहार ॥३॥
उसे सच्चे घर में निवास मिल जाता है और किसी कठिन रास्ते पर नहीं चलना पड़ता॥३॥
ਜਿਤੁ ਘਰਿ ਵਸਹਿ ਤੂਹੈ ਬਿਧਿ ਜਾਣਹਿ ਬੀਜਉ ਮਹਲੁ ਨ ਜਾਪੈ ॥
जितु घरि वसहि तूहै बिधि जाणहि बीजउ महलु न जापै ॥
जिस घर में रहता है, तू ही विधि जानता है, किसी अन्य को ज्ञान नहीं होता।
ਸਤਿਗੁਰ ਬਾਝਹੁ ਸਮਝ ਨ ਹੋਵੀ ਸਭੁ ਜਗੁ ਦਬਿਆ ਛਾਪੈ ॥
सतिगुर बाझहु समझ न होवी सभु जगु दबिआ छापै ॥
सतगुरु के बिना समझ नहीं होती और पूरा संसार अज्ञान के कचरे में दबा पड़ा है।
ਕਰਣ ਪਲਾਵ ਕਰੈ ਬਿਲਲਾਤਉ ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਨਾਮੁ ਨ ਜਾਪੈ ॥
करण पलाव करै बिललातउ बिनु गुर नामु न जापै ॥
रोता-चिल्लाता है, परन्तु गुरु के बिना हरिनाम का सुमिरन (स्मरण) नहीं होता।
ਪਲ ਪੰਕਜ ਮਹਿ ਨਾਮੁ ਛਡਾਏ ਜੇ ਗੁਰ ਸਬਦੁ ਸਿਞਾਪੈ ॥੪॥
पल पंकज महि नामु छडाए जे गुर सबदु सिञापै ॥४॥
यदि गुरु की शिक्षा को पहचान लिया जाए तो पल में ही प्रभु नाम द्वारा बन्धनों से छुटकारा हो जाता है॥४॥
ਇਕਿ ਮੂਰਖ ਅੰਧੇ ਮੁਗਧ ਗਵਾਰ ॥
इकि मूरख अंधे मुगध गवार ॥
कुछ मूर्ख, अंधे, अनाड़ी एवं गंवार लोग हैं,
ਇਕਿ ਸਤਿਗੁਰ ਕੈ ਭੈ ਨਾਮ ਅਧਾਰ ॥
इकि सतिगुर कै भै नाम अधार ॥
कई ऐसे भी हैं जो सतिगुरु के प्रेम में नाम-स्मरण के आसरे जी रहे हैं।
ਸਾਚੀ ਬਾਣੀ ਮੀਠੀ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਧਾਰ ॥
साची बाणी मीठी अम्रित धार ॥
गुरु की वाणी शुद्ध, मीठी एवं अमृत की धारा के समान है,
ਜਿਨਿ ਪੀਤੀ ਤਿਸੁ ਮੋਖ ਦੁਆਰ ॥੫॥
जिनि पीती तिसु मोख दुआर ॥५॥
जिसने इसका पान किया है, उसे मुक्ति मिल गई है॥५॥
ਨਾਮੁ ਭੈ ਭਾਇ ਰਿਦੈ ਵਸਾਹੀ ਗੁਰ ਕਰਣੀ ਸਚੁ ਬਾਣੀ ॥
नामु भै भाइ रिदै वसाही गुर करणी सचु बाणी ॥
श्रद्धा-भावना से प्रभु का नाम हृदय में बसाओ, गुरु की वाणी द्वारा सच्चा कार्य करो।
ਇੰਦੁ ਵਰਸੈ ਧਰਤਿ ਸੁਹਾਵੀ ਘਟਿ ਘਟਿ ਜੋਤਿ ਸਮਾਣੀ ॥
इंदु वरसै धरति सुहावी घटि घटि जोति समाणी ॥
जब वर्षा होती है तो धरती सुन्दर हो जाती है, घट घट में ईश्वर की ज्योति व्याप्त है।
ਕਾਲਰਿ ਬੀਜਸਿ ਦੁਰਮਤਿ ਐਸੀ ਨਿਗੁਰੇ ਕੀ ਨੀਸਾਣੀ ॥
कालरि बीजसि दुरमति ऐसी निगुरे की नीसाणी ॥
जैसे बंजर धरती में बीज बोने से कोई लाभ नहीं होता, वैसे ही खोटी बुद्धि वाले निगुरे की यही निशानी है कि जितना भी उसे उपदेश दिया जाए, उस पर कोई असर नहीं होता।
ਸਤਿਗੁਰ ਬਾਝਹੁ ਘੋਰ ਅੰਧਾਰਾ ਡੂਬਿ ਮੁਏ ਬਿਨੁ ਪਾਣੀ ॥੬॥
सतिगुर बाझहु घोर अंधारा डूबि मुए बिनु पाणी ॥६॥
गुरु के बिना घोर अंधेरा ही है और प्राणी बिना पानी के ही डूब मरता है॥६॥
ਜੋ ਕਿਛੁ ਕੀਨੋ ਸੁ ਪ੍ਰਭੂ ਰਜਾਇ ॥
जो किछु कीनो सु प्रभू रजाइ ॥
जो कुछ होता है, वह प्रभु की रज़ा है।
ਜੋ ਧੁਰਿ ਲਿਖਿਆ ਸੁ ਮੇਟਣਾ ਨ ਜਾਇ ॥
जो धुरि लिखिआ सु मेटणा न जाइ ॥
जो विधाता लिख देता है, उसे बदला नहीं जा सकता।
ਹੁਕਮੇ ਬਾਧਾ ਕਾਰ ਕਮਾਇ ॥
हुकमे बाधा कार कमाइ ॥
जीव उसके हुक्म के अन्तर्गत ही कर्म करता है।
ਏਕ ਸਬਦਿ ਰਾਚੈ ਸਚਿ ਸਮਾਇ ॥੭॥
एक सबदि राचै सचि समाइ ॥७॥
एक शब्द में लीन व्यक्ति सत्य में विलीन हो जाता है।॥७॥
ਚਹੁ ਦਿਸਿ ਹੁਕਮੁ ਵਰਤੈ ਪ੍ਰਭ ਤੇਰਾ ਚਹੁ ਦਿਸਿ ਨਾਮ ਪਤਾਲੰ ॥
चहु दिसि हुकमु वरतै प्रभ तेरा चहु दिसि नाम पतालं ॥
हे प्रभु ! चारों दिशाओं में तेरा हुक्म चलता है, चहुं दिशाओं एवं पाताल में तेरा नाम ही फैला हुआ है।
ਸਭ ਮਹਿ ਸਬਦੁ ਵਰਤੈ ਪ੍ਰਭ ਸਾਚਾ ਕਰਮਿ ਮਿਲੈ ਬੈਆਲੰ ॥
सभ महि सबदु वरतै प्रभ साचा करमि मिलै बैआलं ॥
सबमें शब्द ही व्याप्त है और कर्म से ही सच्चा प्रभु मिलता है।
ਜਾਂਮਣੁ ਮਰਣਾ ਦੀਸੈ ਸਿਰਿ ਊਭੌ ਖੁਧਿਆ ਨਿਦ੍ਰਾ ਕਾਲੰ ॥
जांमणु मरणा दीसै सिरि ऊभौ खुधिआ निद्रा कालं ॥
जन्म-मरण, भूख, नींद एवं काल सिर पर खड़े दिखाई दे रहे हैं।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਮਿਲੈ ਮਨਿ ਭਾਵੈ ਸਾਚੀ ਨਦਰਿ ਰਸਾਲੰ ॥੮॥੧॥੪॥
नानक नामु मिलै मनि भावै साची नदरि रसालं ॥८॥१॥४॥
हे नानक ! यदि ईश्वर की करुणा-दृष्टि हो जाए तो मन को भाने वाला नाम मिल जाता है।॥८॥१॥४॥
ਮਲਾਰ ਮਹਲਾ ੧ ॥
मलार महला १ ॥
मलार महला १ ॥
ਮਰਣ ਮੁਕਤਿ ਗਤਿ ਸਾਰ ਨ ਜਾਨੈ ॥
मरण मुकति गति सार न जानै ॥
लोग मृत्यु एवं मुक्ति की उपयोगिता को नहीं जानते।
ਕੰਠੇ ਬੈਠੀ ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਪਛਾਨੈ ॥੧॥
कंठे बैठी गुर सबदि पछानै ॥१॥
किनारे पर बैठी जीव-स्त्री ही गुरु के उपदेश द्वारा जान पाती है॥१॥
ਤੂ ਕੈਸੇ ਆੜਿ ਫਾਥੀ ਜਾਲਿ ॥
तू कैसे आड़ि फाथी जालि ॥
हे जीव रूपी पक्षी ! तू क्योंकर जाल में फंसी हुई है।
ਅਲਖੁ ਨ ਜਾਚਹਿ ਰਿਦੈ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਲਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अलखु न जाचहि रिदै सम्हालि ॥१॥ रहाउ ॥
अदृष्ट को देख नहीं पाती, अपने हृदय में परमात्मा का चिंतन कर॥१॥रहाउ॥
ਏਕ ਜੀਅ ਕੈ ਜੀਆ ਖਾਹੀ ॥
एक जीअ कै जीआ खाही ॥
अपना पेट भरने के लिए तू कितने ही जीवों को खाती है।
ਜਲਿ ਤਰਤੀ ਬੂਡੀ ਜਲ ਮਾਹੀ ॥੨॥
जलि तरती बूडी जल माही ॥२॥
जल में तैरते हुए जल में डूब मरती हो।॥२॥
ਸਰਬ ਜੀਅ ਕੀਏ ਪ੍ਰਤਪਾਨੀ ॥
सरब जीअ कीए प्रतपानी ॥
सब जीवों को तूने दुखी किया है,
ਜਬ ਪਕੜੀ ਤਬ ਹੀ ਪਛੁਤਾਨੀ ॥੩॥
जब पकड़ी तब ही पछुतानी ॥३॥
जब पकड़ी गई तो पछताना पड़ा॥३॥
ਜਬ ਗਲਿ ਫਾਸ ਪੜੀ ਅਤਿ ਭਾਰੀ ॥
जब गलि फास पड़ी अति भारी ॥
जब गले में मौत का भारी फंदा पड़ता है तो
ਊਡਿ ਨ ਸਾਕੈ ਪੰਖ ਪਸਾਰੀ ॥੪॥
ऊडि न साकै पंख पसारी ॥४॥
पंख फैलाकर उड़ नहीं सकती॥४॥
ਰਸਿ ਚੂਗਹਿ ਮਨਮੁਖਿ ਗਾਵਾਰਿ ॥
रसि चूगहि मनमुखि गावारि ॥
मूर्ख स्वेच्छाचारी भोग विलासों का दाना चुगता रहता है परन्तु
ਫਾਥੀ ਛੂਟਹਿ ਗੁਣ ਗਿਆਨ ਬੀਚਾਰਿ ॥੫॥
फाथी छूटहि गुण गिआन बीचारि ॥५॥
सद्गुणों एवं ज्ञान का चिंतन करने से बन्धनों के फंदे से छुटकारा होता है।॥५॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਿ ਤੂਟੈ ਜਮਕਾਲੁ ॥
सतिगुरु सेवि तूटै जमकालु ॥
सतगुरु की सेवा से यमकाल का भय नष्ट हो जाता है और
ਹਿਰਦੈ ਸਾਚਾ ਸਬਦੁ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਲੁ ॥੬॥
हिरदै साचा सबदु सम्हालु ॥६॥
हृदय में सच्चे उपदेश का मनन करता है॥६॥
ਗੁਰਮਤਿ ਸਾਚੀ ਸਬਦੁ ਹੈ ਸਾਰੁ ॥
गुरमति साची सबदु है सारु ॥
गुरु की शिक्षा शाश्वत है और उसका शब्द ही उपयोगी है।
ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਰਖੈ ਉਰਿ ਧਾਰਿ ॥੭॥
हरि का नामु रखै उरि धारि ॥७॥
उसी से परमात्मा का नाम हृदय में अवस्थित होता है॥७॥
ਸੇ ਦੁਖ ਆਗੈ ਜਿ ਭੋਗ ਬਿਲਾਸੇ ॥
से दुख आगै जि भोग बिलासे ॥
जो लोग भोग-विलासों में लीन रहते हैं, वे केवल दुख ही दुख पाते हैं।
ਨਾਨਕ ਮੁਕਤਿ ਨਹੀ ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਸਾਚੇ ॥੮॥੨॥੫॥
नानक मुकति नही बिनु नावै साचे ॥८॥२॥५॥
गुरु नानक का मत है कि सच्चे नाम के स्मरण बिना मुक्ति संभव नहीं॥८॥२॥५॥