Hindi Page 1280

ਧਰਮੁ ਕਰਾਏ ਕਰਮ ਧੁਰਹੁ ਫੁਰਮਾਇਆ ॥੩॥
धरमु कराए करम धुरहु फुरमाइआ ॥३॥
वह विधाता कर्मानुसार सच्चा इन्साफ ही करता है॥३॥

ਸਲੋਕ ਮਃ ੨ ॥
सलोक मः २ ॥
श्लोक महला २॥

ਸਾਵਣੁ ਆਇਆ ਹੇ ਸਖੀ ਕੰਤੈ ਚਿਤਿ ਕਰੇਹੁ ॥
सावणु आइआ हे सखी कंतै चिति करेहु ॥
हे सखी ! सावन का सुहावना मौसम आ गया है, पति-प्रभु का स्मरण करो।

ਨਾਨਕ ਝੂਰਿ ਮਰਹਿ ਦੋਹਾਗਣੀ ਜਿਨੑ ਅਵਰੀ ਲਾਗਾ ਨੇਹੁ ॥੧॥
नानक झूरि मरहि दोहागणी जिन्ह अवरी लागा नेहु ॥१॥
नानक का कथन है कि जो पति-प्रभु के अलावा किसी अन्य के साथ प्रेम लगाती हैं, ऐसी बदनसीब स्त्रियाँ दुखों में ही घिरी रहती हैं।॥१॥

ਮਃ ੨ ॥
मः २ ॥
महला २॥

ਸਾਵਣੁ ਆਇਆ ਹੇ ਸਖੀ ਜਲਹਰੁ ਬਰਸਨਹਾਰੁ ॥
सावणु आइआ हे सखी जलहरु बरसनहारु ॥
हे सखी ! सावन का महीना आया है, बादल खूब बरसात कर रहे हैं।

ਨਾਨਕ ਸੁਖਿ ਸਵਨੁ ਸੋਹਾਗਣੀ ਜਿਨੑ ਸਹ ਨਾਲਿ ਪਿਆਰੁ ॥੨॥
नानक सुखि सवनु सोहागणी जिन्ह सह नालि पिआरु ॥२॥
नानक फुरमाते हैं कि जिन्होंने प्रभु से प्रेम लगाया हुआ है, ऐसी सुहागिन स्त्रियाँ सुख में लीन हैं।॥२॥

ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥

ਆਪੇ ਛਿੰਝ ਪਵਾਇ ਮਲਾਖਾੜਾ ਰਚਿਆ ॥
आपे छिंझ पवाइ मलाखाड़ा रचिआ ॥
ईश्वर ने स्वयं जीवन-संघर्ष डालकर संसार रूपी मल्ल-अखाड़ा बनाया है।

ਲਥੇ ਭੜਥੂ ਪਾਇ ਗੁਰਮੁਖਿ ਮਚਿਆ ॥
लथे भड़थू पाइ गुरमुखि मचिआ ॥
जीव जबरदस्त मुकाबला करते हैं, गुरमुख सहर्ष रचे रहते हैं।

ਮਨਮੁਖ ਮਾਰੇ ਪਛਾੜਿ ਮੂਰਖ ਕਚਿਆ ॥
मनमुख मारे पछाड़ि मूरख कचिआ ॥
मूर्ख एवं कच्चे स्वेच्छाचारी जीवन मुकाबले में पराजित हो जाते हैं।

ਆਪਿ ਭਿੜੈ ਮਾਰੇ ਆਪਿ ਆਪਿ ਕਾਰਜੁ ਰਚਿਆ ॥
आपि भिड़ै मारे आपि आपि कारजु रचिआ ॥
सब ईश्वर की ही लीला है, वह स्वयं मुकाबला करता है, मारने वाला भी स्वयं ही है और स्वयं ही कार्य रचता है।

ਸਭਨਾ ਖਸਮੁ ਏਕੁ ਹੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਾਣੀਐ ॥
सभना खसमु एकु है गुरमुखि जाणीऐ ॥
गुरु से यही सच्चाई पता लगती है कि सबका मालिक एक ही है।

ਹੁਕਮੀ ਲਿਖੈ ਸਿਰਿ ਲੇਖੁ ਵਿਣੁ ਕਲਮ ਮਸਵਾਣੀਐ ॥
हुकमी लिखै सिरि लेखु विणु कलम मसवाणीऐ ॥
बिना कलम एवं स्याही के विधाता अपने हुक्म से सबका भाग्य लिखता है।

ਸਤਸੰਗਤਿ ਮੇਲਾਪੁ ਜਿਥੈ ਹਰਿ ਗੁਣ ਸਦਾ ਵਖਾਣੀਐ ॥
सतसंगति मेलापु जिथै हरि गुण सदा वखाणीऐ ॥
सत्संगत वह मिलाप है, जहाँ सदैव परमात्मा के गुणों का बखान होता है।

ਨਾਨਕ ਸਚਾ ਸਬਦੁ ਸਲਾਹਿ ਸਚੁ ਪਛਾਣੀਐ ॥੪॥
नानक सचा सबदु सलाहि सचु पछाणीऐ ॥४॥
हे नानक ! सच्चे परमेश्वर की स्तुति से सत्य की पहचान होती है।॥४॥

ਸਲੋਕ ਮਃ ੩ ॥
सलोक मः ३ ॥
श्लोक महला ३॥

ਊਂਨਵਿ ਊਂਨਵਿ ਆਇਆ ਅਵਰਿ ਕਰੇਂਦਾ ਵੰਨ ॥
ऊंनवि ऊंनवि आइआ अवरि करेंदा वंन ॥
झुक-झुककर बादल के रूप में प्रभु ही आया है, वह अनेक प्रकार के रंग करता है।

ਕਿਆ ਜਾਣਾ ਤਿਸੁ ਸਾਹ ਸਿਉ ਕੇਵ ਰਹਸੀ ਰੰਗੁ ॥
किआ जाणा तिसु साह सिउ केव रहसी रंगु ॥
मैं यह भी नहीं जानता कि प्रभु से प्रेम कैसे रहेगा।

ਰੰਗੁ ਰਹਿਆ ਤਿਨੑ ਕਾਮਣੀ ਜਿਨੑ ਮਨਿ ਭਉ ਭਾਉ ਹੋਇ ॥
रंगु रहिआ तिन्ह कामणी जिन्ह मनि भउ भाउ होइ ॥
जिसके मन में श्रद्धा एवं प्रेम होता है, उस जीव रूपी कामिनी से ही प्रेम रहता है।

ਨਾਨਕ ਭੈ ਭਾਇ ਬਾਹਰੀ ਤਿਨ ਤਨਿ ਸੁਖੁ ਨ ਹੋਇ ॥੧॥
नानक भै भाइ बाहरी तिन तनि सुखु न होइ ॥१॥
हे नानक ! श्रद्धा-प्रेम के बिना तन को कभी सुख नसीब नहीं होता॥१॥

ਮਃ ੩ ॥
मः ३ ॥
महला ३॥

ਊਂਨਵਿ ਊਂਨਵਿ ਆਇਆ ਵਰਸੈ ਨੀਰੁ ਨਿਪੰਗੁ ॥
ऊंनवि ऊंनवि आइआ वरसै नीरु निपंगु ॥
बादल रूप में झुक-झुककर प्रभु ही आकर प्रेम का जल बरसा रहा है।

ਨਾਨਕ ਦੁਖੁ ਲਾਗਾ ਤਿਨੑ ਕਾਮਣੀ ਜਿਨੑ ਕੰਤੈ ਸਿਉ ਮਨਿ ਭੰਗੁ ॥੨॥
नानक दुखु लागा तिन्ह कामणी जिन्ह कंतै सिउ मनि भंगु ॥२॥
हे नानक ! वह जीव रूपी कामिनी दुखी ही रहती है, जिसका प्रभु से मन टूटा हुआ है।॥२॥

ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥

ਦੋਵੈ ਤਰਫਾ ਉਪਾਇ ਇਕੁ ਵਰਤਿਆ ॥
दोवै तरफा उपाइ इकु वरतिआ ॥
गृहस्थ एवं सन्यास रूपी दो रास्ते बनाकर एक वही कार्यशील है।

ਬੇਦ ਬਾਣੀ ਵਰਤਾਇ ਅੰਦਰਿ ਵਾਦੁ ਘਤਿਆ ॥
बेद बाणी वरताइ अंदरि वादु घतिआ ॥
वेद वाणी का प्रसार कर उसमें विवाद उत्पन्न कर दिया।

ਪਰਵਿਰਤਿ ਨਿਰਵਿਰਤਿ ਹਾਠਾ ਦੋਵੈ ਵਿਚਿ ਧਰਮੁ ਫਿਰੈ ਰੈਬਾਰਿਆ ॥
परविरति निरविरति हाठा दोवै विचि धरमु फिरै रैबारिआ ॥
प्रवृति (गृहस्थ जीवन) एवं निवृति (संसार से त्याग) दोनों के बीच में धर्म वकील बना हुआ है।

ਮਨਮੁਖ ਕਚੇ ਕੂੜਿਆਰ ਤਿਨੑੀ ਨਿਹਚਉ ਦਰਗਹ ਹਾਰਿਆ ॥
मनमुख कचे कूड़िआर तिन्ही निहचउ दरगह हारिआ ॥
स्वेच्छाचारी जीव झूठे ही सिद्ध होते हैं और वे निश्चय ही प्रभु दरबार में हारते हैं।

ਗੁਰਮਤੀ ਸਬਦਿ ਸੂਰ ਹੈ ਕਾਮੁ ਕ੍ਰੋਧੁ ਜਿਨੑੀ ਮਾਰਿਆ ॥
गुरमती सबदि सूर है कामु क्रोधु जिन्ही मारिआ ॥
गुरु-मतानुसार शब्द के अनुरूप चलने वाले योद्धा हैं, जो काम-क्रोध को खत्म कर देते हैं।

ਸਚੈ ਅੰਦਰਿ ਮਹਲਿ ਸਬਦਿ ਸਵਾਰਿਆ ॥
सचै अंदरि महलि सबदि सवारिआ ॥
सत्य में लीन रहने वाले शब्द द्वारा जीवन संवार लेते हैं।

ਸੇ ਭਗਤ ਤੁਧੁ ਭਾਵਦੇ ਸਚੈ ਨਾਇ ਪਿਆਰਿਆ ॥
से भगत तुधु भावदे सचै नाइ पिआरिआ ॥
हे प्रभु ! वही भक्त तुझे अच्छे लगते हैं, जो सच्चे नाम से प्रेम करते हैं।

ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਨਿ ਆਪਣਾ ਤਿਨੑਾ ਵਿਟਹੁ ਹਉ ਵਾਰਿਆ ॥੫॥
सतिगुरु सेवनि आपणा तिन्हा विटहु हउ वारिआ ॥५॥
जो अपने सतिगुरु की सेवा करते हैं, मैं उन पर कुर्बान जाता हूँ॥५॥

ਸਲੋਕ ਮਃ ੩ ॥
सलोक मः ३ ॥
श्लोक महला ३॥

ਊਂਨਵਿ ਊਂਨਵਿ ਆਇਆ ਵਰਸੈ ਲਾਇ ਝੜੀ ॥
ऊंनवि ऊंनवि आइआ वरसै लाइ झड़ी ॥
झुक-झुककर बादल आया है और खूब वर्षा कर रहा है।

ਨਾਨਕ ਭਾਣੈ ਚਲੈ ਕੰਤ ਕੈ ਸੁ ਮਾਣੇ ਸਦਾ ਰਲੀ ॥੧॥
नानक भाणै चलै कंत कै सु माणे सदा रली ॥१॥
हे नानक ! जो प्रभु की रज़ा में चलते हैं, वे सदा आनंद मनाते हैं।॥१॥

ਮਃ ੩ ॥
मः ३ ॥
महला ३॥

ਕਿਆ ਉਠਿ ਉਠਿ ਦੇਖਹੁ ਬਪੁੜੇਂ ਇਸੁ ਮੇਘੈ ਹਥਿ ਕਿਛੁ ਨਾਹਿ ॥
किआ उठि उठि देखहु बपुड़ें इसु मेघै हथि किछु नाहि ॥
हे जीव ! उठ-उठकर भला क्या देख रहे हो ? इस बादल के हाथ में कुछ नहीं।

ਜਿਨਿ ਏਹੁ ਮੇਘੁ ਪਠਾਇਆ ਤਿਸੁ ਰਾਖਹੁ ਮਨ ਮਾਂਹਿ ॥
जिनि एहु मेघु पठाइआ तिसु राखहु मन मांहि ॥
जिसने इस बादल को भेजा है, उस प्रभु को मन में बसाकर रखो।

ਤਿਸ ਨੋ ਮੰਨਿ ਵਸਾਇਸੀ ਜਾ ਕਉ ਨਦਰਿ ਕਰੇਇ ॥
तिस नो मंनि वसाइसी जा कउ नदरि करेइ ॥
दरअसल जिस पर अपनी कृपा करता है, वही उसे मन में बसाता है।

ਨਾਨਕ ਨਦਰੀ ਬਾਹਰੀ ਸਭ ਕਰਣ ਪਲਾਹ ਕਰੇਇ ॥੨॥
नानक नदरी बाहरी सभ करण पलाह करेइ ॥२॥
हे नानक ! ईश्वर की कृपा-दृष्टि के बिना सब करुणा प्रलाप करते हैं॥२॥

ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥

ਸੋ ਹਰਿ ਸਦਾ ਸਰੇਵੀਐ ਜਿਸੁ ਕਰਤ ਨ ਲਾਗੈ ਵਾਰ ॥
सो हरि सदा सरेवीऐ जिसु करत न लागै वार ॥
उस परमात्मा की सदैव वंदना करो, जिसे रचना करने में कोई समय नहीं लगता।

ਆਡਾਣੇ ਆਕਾਸ ਕਰਿ ਖਿਨ ਮਹਿ ਢਾਹਿ ਉਸਾਰਣਹਾਰ ॥
आडाणे आकास करि खिन महि ढाहि उसारणहार ॥
वह रचनाकार सर्वशक्तिमान है, जो पल में आकाश को तम्बू की तरह स्थापित कर गिराने-बनाने वाला है।

ਆਪੇ ਜਗਤੁ ਉਪਾਇ ਕੈ ਕੁਦਰਤਿ ਕਰੇ ਵੀਚਾਰ ॥
आपे जगतु उपाइ कै कुदरति करे वीचार ॥
वह जगतु को उत्पन्न कर कुदरत पर विचार करता है।

ਮਨਮੁਖ ਅਗੈ ਲੇਖਾ ਮੰਗੀਐ ਬਹੁਤੀ ਹੋਵੈ ਮਾਰ ॥
मनमुख अगै लेखा मंगीऐ बहुती होवै मार ॥
जब स्वेच्छाचारी के कर्मों का हिसाब होता है, तो वह कठोर दण्ड भोगता है।

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