ਹਰਿ ਤੁਮ ਵਡ ਵਡੇ ਵਡੇ ਵਡ ਊਚੇ ਸੋ ਕਰਹਿ ਜਿ ਤੁਧੁ ਭਾਵੀਸ ॥
हरि तुम वड वडे वडे वड ऊचे सो करहि जि तुधु भावीस ॥
हे प्रभु ! तुम बड़े हो, बहुत बड़े हो, महान् हो, जो तुझे ठीक लगता है, वही करते हो।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪੀਆ ਗੁਰਮਤੀ ਧਨੁ ਧੰਨੁ ਧਨੁ ਧੰਨੁ ਧੰਨੁ ਗੁਰੂ ਸਾਬੀਸ ॥੨॥੨॥੮॥
जन नानक अम्रितु पीआ गुरमती धनु धंनु धनु धंनु धंनु गुरू साबीस ॥२॥२॥८॥
नानक का कथन है कि गुरु के उपदेश से हरिनाम अमृत पान किया है, ऐसा गुरु धन्य है, पूजनीय एवं प्रशंसा के लायक है॥२॥२॥८॥
ਕਾਨੜਾ ਮਹਲਾ ੪ ॥
कानड़ा महला ४ ॥
कानड़ा महला ४ ॥
ਭਜੁ ਰਾਮੋ ਮਨਿ ਰਾਮ ॥
भजु रामो मनि राम ॥
हे मन ! राम का भजन करो,
ਜਿਸੁ ਰੂਪ ਨ ਰੇਖ ਵਡਾਮ ॥
जिसु रूप न रेख वडाम ॥
उसका कोई रूप अथवा आकार नहीं, वही बड़ा है।
ਸਤਸੰਗਤਿ ਮਿਲੁ ਭਜੁ ਰਾਮ ॥
सतसंगति मिलु भजु राम ॥
सत्संगति में मिलकर राम का भजन करो,
ਬਡ ਹੋ ਹੋ ਭਾਗ ਮਥਾਮ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
बड हो हो भाग मथाम ॥१॥ रहाउ ॥
भाग्यशाली हो जाओ ॥१॥ रहाउ।॥
ਜਿਤੁ ਗ੍ਰਿਹਿ ਮੰਦਰਿ ਹਰਿ ਹੋਤੁ ਜਾਸੁ ਤਿਤੁ ਘਰਿ ਆਨਦੋ ਆਨੰਦੁ ਭਜੁ ਰਾਮ ਰਾਮ ਰਾਮ ॥
जितु ग्रिहि मंदरि हरि होतु जासु तितु घरि आनदो आनंदु भजु राम राम राम ॥
जिस घर में परमात्मा का यशोगान होता है, वहाँ आनंद ही आनंद बना रहता है।
ਰਾਮ ਨਾਮ ਗੁਨ ਗਾਵਹੁ ਹਰਿ ਪ੍ਰੀਤਮ ਉਪਦੇਸਿ ਗੁਰੂ ਗੁਰ ਸਤਿਗੁਰਾ ਸੁਖੁ ਹੋਤੁ ਹਰਿ ਹਰੇ ਹਰਿ ਹਰੇ ਹਰੇ ਭਜੁ ਰਾਮ ਰਾਮ ਰਾਮ ॥੧॥
राम नाम गुन गावहु हरि प्रीतम उपदेसि गुरू गुर सतिगुरा सुखु होतु हरि हरे हरि हरे हरे भजु राम राम राम ॥१॥
अतः राम ही राम भजते रहो। गुरु के उपदेश से प्रियतम प्रभु के गुण गाओ, सुख ही सुख उपलब्ध होता है, अतः भगवान का भजन करते रहो॥ ५ ॥
ਸਭ ਸਿਸਟਿ ਧਾਰ ਹਰਿ ਤੁਮ ਕਿਰਪਾਲ ਕਰਤਾ ਸਭੁ ਤੂ ਤੂ ਤੂ ਰਾਮ ਰਾਮ ਰਾਮ ॥
सभ सिसटि धार हरि तुम किरपाल करता सभु तू तू तू राम राम राम ॥
हे हरि! तुम समूची सृष्टि के रचयिता हो, कृपा का घर हो, हे राम तू ही सब कुछ है।
ਜਨ ਨਾਨਕੋ ਸਰਣਾਗਤੀ ਦੇਹੁ ਗੁਰਮਤੀ ਭਜੁ ਰਾਮ ਰਾਮ ਰਾਮ ॥੨॥੩॥੯॥
जन नानको सरणागती देहु गुरमती भजु राम राम राम ॥२॥३॥९॥
नानक की विनती है कि हे प्रभु ! शरण प्रदान करो, गुरु-मतानुसार राम नाम का भजन करता रहूँ २॥३॥९ ॥
ਕਾਨੜਾ ਮਹਲਾ ੪ ॥
कानड़ा महला ४ ॥
कानड़ा महला ४ ॥
ਸਤਿਗੁਰ ਚਾਟਉ ਪਗ ਚਾਟ ॥
सतिगुर चाटउ पग चाट ॥
मैं गुरु के पैरों को चूमता हूँ,
ਜਿਤੁ ਮਿਲਿ ਹਰਿ ਪਾਧਰ ਬਾਟ ॥
जितु मिलि हरि पाधर बाट ॥
जिससे प्रभु मिलन का रास्ता प्राप्त होता है।
ਭਜੁ ਹਰਿ ਰਸੁ ਰਸ ਹਰਿ ਗਾਟ ॥
भजु हरि रसु रस हरि गाट ॥
खूब मजे लेकर भगवान का भजन करो,
ਹਰਿ ਹੋ ਹੋ ਲਿਖੇ ਲਿਲਾਟ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि हो हो लिखे लिलाट ॥१॥ रहाउ ॥
भाग्य में लिखा है तो प्रभु का प्रेम से कीर्तन करो॥१॥रहाउ॥
ਖਟ ਕਰਮ ਕਿਰਿਆ ਕਰਿ ਬਹੁ ਬਹੁ ਬਿਸਥਾਰ ਸਿਧ ਸਾਧਿਕ ਜੋਗੀਆ ਕਰਿ ਜਟ ਜਟਾ ਜਟ ਜਾਟ ॥
खट करम किरिआ करि बहु बहु बिसथार सिध साधिक जोगीआ करि जट जटा जट जाट ॥
छः कर्मो और बहुत सारे कर्मकाण्डों का सिद्ध-साधक, योगियों ने विस्तार किया हुआ है और अपनी जटाएं बढ़ा रखी हैं।किसी वेषाडम्बर से परमात्मा प्राप्त नहीं होता।
ਕਰਿ ਭੇਖ ਨ ਪਾਈਐ ਹਰਿ ਬ੍ਰਹਮ ਜੋਗੁ ਹਰਿ ਪਾਈਐ ਸਤਸੰਗਤੀ ਉਪਦੇਸਿ ਗੁਰੂ ਗੁਰ ਸੰਤ ਜਨਾ ਖੋਲਿ ਖੋਲਿ ਕਪਾਟ ॥੧॥
करि भेख न पाईऐ हरि ब्रहम जोगु हरि पाईऐ सतसंगती उपदेसि गुरू गुर संत जना खोलि खोलि कपाट ॥१॥
परमात्मा की प्राप्ति सत्संगत एवं गुरु के उपदेश से ही होती है, चूंकि गुरु संतजन मन के कपाट को खोलकर ब्रहा का भेद बतलाते हैं॥१॥
ਤੂ ਅਪਰੰਪਰੁ ਸੁਆਮੀ ਅਤਿ ਅਗਾਹੁ ਤੂ ਭਰਪੁਰਿ ਰਹਿਆ ਜਲ ਥਲੇ ਹਰਿ ਇਕੁ ਇਕੋ ਇਕ ਏਕੈ ਹਰਿ ਥਾਟ ॥
तू अपर्मपरु सुआमी अति अगाहु तू भरपुरि रहिआ जल थले हरि इकु इको इक एकै हरि थाट ॥
हे स्वामी ! तू अपरंपार है, असीम है, तू सबमें भरपूर है।जल-थल हर स्थान पर एक परमेश्वर ही व्याप्त है।
ਤੂ ਜਾਣਹਿ ਸਭ ਬਿਧਿ ਬੂਝਹਿ ਆਪੇ ਜਨ ਨਾਨਕ ਕੇ ਪ੍ਰਭ ਘਟਿ ਘਟੇ ਘਟਿ ਘਟੇ ਘਟਿ ਹਰਿ ਘਾਟ ॥੨॥੪॥੧੦॥
तू जाणहि सभ बिधि बूझहि आपे जन नानक के प्रभ घटि घटे घटि घटे घटि हरि घाट ॥२॥४॥१०॥
तू अन्तर्यामी है, सर्वज्ञाता है। दास नानक का प्रभु घट-घट में व्याप्त है॥२॥४॥१०॥
ਕਾਨੜਾ ਮਹਲਾ ੪ ॥
कानड़ा महला ४ ॥
कानड़ा महला ४ ॥
ਜਪਿ ਮਨ ਗੋਬਿਦ ਮਾਧੋ ॥
जपि मन गोबिद माधो ॥
हे मन ! ईश्वर का भजन करो,
ਹਰਿ ਹਰਿ ਅਗਮ ਅਗਾਧੋ ॥
हरि हरि अगम अगाधो ॥
वह अगम्य अथाह है।
ਮਤਿ ਗੁਰਮਤਿ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਲਾਧੋ ॥
मति गुरमति हरि प्रभु लाधो ॥
गुरु की शिक्षा से प्रभु प्राप्त हो जाता है,
ਧੁਰਿ ਹੋ ਹੋ ਲਿਖੇ ਲਿਲਾਧੋ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
धुरि हो हो लिखे लिलाधो ॥१॥ रहाउ ॥
विधाता ने प्रारम्भ से ऐसा भाग्य लिखा होता है।॥१॥रहाउ॥
ਬਿਖੁ ਮਾਇਆ ਸੰਚਿ ਬਹੁ ਚਿਤੈ ਬਿਕਾਰ ਸੁਖੁ ਪਾਈਐ ਹਰਿ ਭਜੁ ਸੰਤ ਸੰਤ ਸੰਗਤੀ ਮਿਲਿ ਸਤਿਗੁਰੂ ਗੁਰੁ ਸਾਧੋ ॥
बिखु माइआ संचि बहु चितै बिकार सुखु पाईऐ हरि भजु संत संत संगती मिलि सतिगुरू गुरु साधो ॥
मनुष्य धन-दौलत के जहर को इकठ्ठा करने के लिए बहुत विकार सोचता है, लेकिन परम सुख संतों की संगत में परमात्मा का भजन करने से ही प्राप्त होता है, अतः गुरु की साधना करो।
ਜਿਉ ਛੁਹਿ ਪਾਰਸ ਮਨੂਰ ਭਏ ਕੰਚਨ ਤਿਉ ਪਤਿਤ ਜਨ ਮਿਲਿ ਸੰਗਤੀ ਸੁਧ ਹੋਵਤ ਗੁਰਮਤੀ ਸੁਧ ਹਾਧੋ ॥੧॥
जिउ छुहि पारस मनूर भए कंचन तिउ पतित जन मिलि संगती सुध होवत गुरमती सुध हाधो ॥१॥
जैसे पारस को छू कर लोहा सोना बन जाता है, वैसे ही अच्छी संगत में पापी भी शुद्ध हो जाते हैं, गुरु-मतानुसार अभ्यास करो॥१॥
ਜਿਉ ਕਾਸਟ ਸੰਗਿ ਲੋਹਾ ਬਹੁ ਤਰਤਾ ਤਿਉ ਪਾਪੀ ਸੰਗਿ ਤਰੇ ਸਾਧ ਸਾਧ ਸੰਗਤੀ ਗੁਰ ਸਤਿਗੁਰੂ ਗੁਰ ਸਾਧੋ ॥
जिउ कासट संगि लोहा बहु तरता तिउ पापी संगि तरे साध साध संगती गुर सतिगुरू गुर साधो ॥
ज्यों लकड़ी के साथ लोहा पार हो जाता है, वैसे ही पापी व्यक्ति साधुओं की संगत में पार हो जाते हैं, अतः गुरु की सेवा करो।
ਚਾਰਿ ਬਰਨ ਚਾਰਿ ਆਸ੍ਰਮ ਹੈ ਕੋਈ ਮਿਲੈ ਗੁਰੂ ਗੁਰ ਨਾਨਕ ਸੋ ਆਪਿ ਤਰੈ ਕੁਲ ਸਗਲ ਤਰਾਧੋ ॥੨॥੫॥੧੧॥
चारि बरन चारि आस्रम है कोई मिलै गुरू गुर नानक सो आपि तरै कुल सगल तराधो ॥२॥५॥११॥
चार वर्णो अथवा चार आश्रमों में से जो भी कोई गुरु को मिलता है, गुरु नानक का वचन है कि वह स्वयं तो भवजल से पार उतरता ही है, अपनी वंशावलि को भी तिरा देता है॥२॥५॥११॥
ਕਾਨੜਾ ਮਹਲਾ ੪ ॥
कानड़ा महला ४ ॥
कानड़ा महला ४ ॥
ਹਰਿ ਜਸੁ ਗਾਵਹੁ ਭਗਵਾਨ ॥
हरि जसु गावहु भगवान ॥
हे भक्तजनो ! भगवान का यश गाओ,
ਜਸੁ ਗਾਵਤ ਪਾਪ ਲਹਾਨ ॥
जसु गावत पाप लहान ॥
हरि-यश गाने से पाप दूर हो जाते हैं।
ਮਤਿ ਗੁਰਮਤਿ ਸੁਨਿ ਜਸੁ ਕਾਨ ॥
मति गुरमति सुनि जसु कान ॥
गुरु-मतानुसार कानों से हरि का यश सुनो,
ਹਰਿ ਹੋ ਹੋ ਕਿਰਪਾਨ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि हो हो किरपान ॥१॥ रहाउ ॥
हरि कृपा करने वाला है॥१॥रहाउ॥