ਜਾ ਕਉ ਸਤਿਗੁਰੁ ਮਇਆ ਕਰੇਹੀ ॥੨॥
जा कउ सतिगुरु मइआ करेही ॥२॥
जिस पर सतगुरु दया करता है॥२॥
ਅਗਿਆਨ ਭਰਮੁ ਬਿਨਸੈ ਦੁਖ ਡੇਰਾ ॥
अगिआन भरमु बिनसै दुख डेरा ॥
अज्ञान, भ्रम एवं दुखों का डेरा उसी का नष्ट होता है,
ਜਾ ਕੈ ਹ੍ਰਿਦੈ ਬਸਹਿ ਗੁਰ ਪੈਰਾ ॥੩॥
जा कै ह्रिदै बसहि गुर पैरा ॥३॥
जिसके हृदय में गुरु चरण बस जाते हैं।॥३॥
ਸਾਧਸੰਗਿ ਰੰਗਿ ਪ੍ਰਭੁ ਧਿਆਇਆ ॥
साधसंगि रंगि प्रभु धिआइआ ॥
गुरु नानक फुरमाते हैं- जो साधु संगत में दत्तचित होकर प्रभु का ध्यान करता है,
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਤਿਨਿ ਪੂਰਾ ਪਾਇਆ ॥੪॥੪॥
कहु नानक तिनि पूरा पाइआ ॥४॥४॥
उसी को पूर्ण परमेश्वर की प्राप्ति होती है।॥४॥४॥
ਕਾਨੜਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
कानड़ा महला ५ ॥
कानड़ा महला ५ ॥
ਭਗਤਿ ਭਗਤਨ ਹੂੰ ਬਨਿ ਆਈ ॥
भगति भगतन हूं बनि आई ॥
भक्ति भक्तजनों को ही शोभा देती है।
ਤਨ ਮਨ ਗਲਤ ਭਏ ਠਾਕੁਰ ਸਿਉ ਆਪਨ ਲੀਏ ਮਿਲਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
तन मन गलत भए ठाकुर सिउ आपन लीए मिलाई ॥१॥ रहाउ ॥
इनका तन मन परमात्मा में तल्लीन रहता है और उसी में समाहित हो जाते हैं।॥१॥रहाउ॥
ਗਾਵਨਹਾਰੀ ਗਾਵੈ ਗੀਤ ॥
गावनहारी गावै गीत ॥
वैसे तो पूरी दुनिया भगवान के गीत गाती है,
ਤੇ ਉਧਰੇ ਬਸੇ ਜਿਹ ਚੀਤ ॥੧॥
ते उधरे बसे जिह चीत ॥१॥
लेकिन उन लोगों का ही उद्धार होता है, जिसके मन में बसता हैil१॥
ਪੇਖੇ ਬਿੰਜਨ ਪਰੋਸਨਹਾਰੈ ॥
पेखे बिंजन परोसनहारै ॥
बेशक भोजन परोसने वाला अनेक व्यंजनों को देखता है,
ਜਿਹ ਭੋਜਨੁ ਕੀਨੋ ਤੇ ਤ੍ਰਿਪਤਾਰੈ ॥੨॥
जिह भोजनु कीनो ते त्रिपतारै ॥२॥
पर तृप्त केवल भोजन करने वाला ही होता है।॥२॥
ਅਨਿਕ ਸ੍ਵਾਂਗ ਕਾਛੇ ਭੇਖਧਾਰੀ ॥
अनिक स्वांग काछे भेखधारी ॥
वेषधारी अनेक स्वांग रचता है,
ਜੈਸੋ ਸਾ ਤੈਸੋ ਦ੍ਰਿਸਟਾਰੀ ॥੩॥
जैसो सा तैसो द्रिसटारी ॥३॥
परन्तु जो असल में होता है, वही दिखाई देता है॥३॥
ਕਹਨ ਕਹਾਵਨ ਸਗਲ ਜੰਜਾਰ ॥
कहन कहावन सगल जंजार ॥
बातें करना अथवा करवाना सब जंजाल है।
ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਸਚੁ ਕਰਣੀ ਸਾਰ ॥੪॥੫॥
नानक दास सचु करणी सार ॥४॥५॥
दास नानक का अनुरोध है कि सत्कर्म ही सार है॥४॥५॥
ਕਾਨੜਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
कानड़ा महला ५ ॥
कानड़ा महला ५ ॥
ਤੇਰੋ ਜਨੁ ਹਰਿ ਜਸੁ ਸੁਨਤ ਉਮਾਹਿਓ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
तेरो जनु हरि जसु सुनत उमाहिओ ॥१॥ रहाउ ॥
हे प्रभु ! भक्त तेरा यश सुनकर खुशी से खिल उठा है।॥१॥रहाउ॥
ਮਨਹਿ ਪ੍ਰਗਾਸੁ ਪੇਖਿ ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਸੋਭਾ ਜਤ ਕਤ ਪੇਖਉ ਆਹਿਓ ॥੧॥
मनहि प्रगासु पेखि प्रभ की सोभा जत कत पेखउ आहिओ ॥१॥
प्रभु की शोभा देखकर मन में आलोक हो जाता है, जहाँ भी देखता हूँ, वही दिखाई देता है॥१॥
ਸਭ ਤੇ ਪਰੈ ਪਰੈ ਤੇ ਊਚਾ ਗਹਿਰ ਗੰਭੀਰ ਅਥਾਹਿਓ ॥੨॥
सभ ते परै परै ते ऊचा गहिर ग्मभीर अथाहिओ ॥२॥
तू सबसे परे है, महान् है, गहन-गम्भीर एवं अथाह है॥२॥
ਓਤਿ ਪੋਤਿ ਮਿਲਿਓ ਭਗਤਨ ਕਉ ਜਨ ਸਿਉ ਪਰਦਾ ਲਾਹਿਓ ॥੩॥
ओति पोति मिलिओ भगतन कउ जन सिउ परदा लाहिओ ॥३॥
वह भक्तों के साथ ओत-प्रोत की तरह मिला रहता है और दास से पर्दा उतार देता है।॥३॥
ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਗਾਵੈ ਗੁਣ ਨਾਨਕ ਸਹਜ ਸਮਾਧਿ ਸਮਾਹਿਓ ॥੪॥੬॥
गुर प्रसादि गावै गुण नानक सहज समाधि समाहिओ ॥४॥६॥
हे नानक ! गुरु की कृपा से वह ईश्वर के गुण गाता है और सहज समाधि में लीन रहता है॥४॥६॥
ਕਾਨੜਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
कानड़ा महला ५ ॥
कानड़ा महला ५ ॥
ਸੰਤਨ ਪਹਿ ਆਪਿ ਉਧਾਰਨ ਆਇਓ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
संतन पहि आपि उधारन आइओ ॥१॥ रहाउ ॥
संसार का उद्धार करने के लिए ईश्वर स्वयं संत-महापुरुषों के पास आता है॥१॥रहाउ॥
ਦਰਸਨ ਭੇਟਤ ਹੋਤ ਪੁਨੀਤਾ ਹਰਿ ਹਰਿ ਮੰਤ੍ਰੁ ਦ੍ਰਿੜਾਇਓ ॥੧॥
दरसन भेटत होत पुनीता हरि हरि मंत्रु द्रिड़ाइओ ॥१॥
उनके दर्शन करने से प्राणी पवित्र हो जाता है और हरिनाम मंत्र दृढ़ करवाता है।॥१॥
ਕਾਟੇ ਰੋਗ ਭਏ ਮਨ ਨਿਰਮਲ ਹਰਿ ਹਰਿ ਅਉਖਧੁ ਖਾਇਓ ॥੨॥
काटे रोग भए मन निरमल हरि हरि अउखधु खाइओ ॥२॥
हरिनाम औषधि सेवन करने से सब रोग कट जाते हैं और मन निर्मल हो जाता है॥२॥
ਅਸਥਿਤ ਭਏ ਬਸੇ ਸੁਖ ਥਾਨਾ ਬਹੁਰਿ ਨ ਕਤਹੂ ਧਾਇਓ ॥੩॥
असथित भए बसे सुख थाना बहुरि न कतहू धाइओ ॥३॥
तदन्तर प्राणी निश्चिंत होकर सुखपूर्वक रहता है और पुनः इधर-उधर नहीं दौड़ता॥३॥
ਸੰਤ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਤਰੇ ਕੁਲ ਲੋਗਾ ਨਾਨਕ ਲਿਪਤ ਨ ਮਾਇਓ ॥੪॥੭॥
संत प्रसादि तरे कुल लोगा नानक लिपत न माइओ ॥४॥७॥
हे नानक ! संतों की कृपा से लोगों की मुक्ति होती है और वे मोह-माया में लिप्त नहीं होते॥४॥७॥
ਕਾਨੜਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
कानड़ा महला ५ ॥
कानड़ा महला ५ ॥
ਬਿਸਰਿ ਗਈ ਸਭ ਤਾਤਿ ਪਰਾਈ ॥
बिसरि गई सभ ताति पराई ॥
लोगों से इर्षा-द्वेष सब भूल गई है
ਜਬ ਤੇ ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਮੋਹਿ ਪਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जब ते साधसंगति मोहि पाई ॥१॥ रहाउ ॥
जब से मुझे साधु-पुरुषों की संगति प्राप्त हुई है॥१॥रहाउ॥
ਨਾ ਕੋ ਬੈਰੀ ਨਹੀ ਬਿਗਾਨਾ ਸਗਲ ਸੰਗਿ ਹਮ ਕਉ ਬਨਿ ਆਈ ॥੧॥
ना को बैरी नही बिगाना सगल संगि हम कउ बनि आई ॥१॥
न कोई शत्रु है, न ही कोई पराया है, मेरा सब के साथ प्रेम बन गया है॥१॥
ਜੋ ਪ੍ਰਭ ਕੀਨੋ ਸੋ ਭਲ ਮਾਨਿਓ ਏਹ ਸੁਮਤਿ ਸਾਧੂ ਤੇ ਪਾਈ ॥੨॥
जो प्रभ कीनो सो भल मानिओ एह सुमति साधू ते पाई ॥२॥
जो प्रभु करता है, उसे भला मानना चाहिए, यह सुमति मैंने साधु से प्राप्त की है॥२॥
ਸਭ ਮਹਿ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਪ੍ਰਭੁ ਏਕੈ ਪੇਖਿ ਪੇਖਿ ਨਾਨਕ ਬਿਗਸਾਈ ॥੩॥੮॥
सभ महि रवि रहिआ प्रभु एकै पेखि पेखि नानक बिगसाई ॥३॥८॥
सब में एक प्रभु ही व्याप्त है, हे नानक ! यह देख-देखकर मन खिल गया है॥३॥८॥
ਕਾਨੜਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
कानड़ा महला ५ ॥
कानड़ा महला ५ ॥
ਠਾਕੁਰ ਜੀਉ ਤੁਹਾਰੋ ਪਰਨਾ ॥
ठाकुर जीउ तुहारो परना ॥
हे ठाकुर जी ! मुझे तुम्हारा ही आसरा है।
ਮਾਨੁ ਮਹਤੁ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਾਰੈ ਊਪਰਿ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਰੀ ਓਟ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਾਰੀ ਸਰਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मानु महतु तुम्हारै ऊपरि तुम्हरी ओट तुम्हारी सरना ॥१॥ रहाउ ॥
मेरा मान-महत्व तुझ पर निर्भर है, तुम्हारा ही अवलम्ब है, तुम्हारी शरण में आया हूँ॥१॥रहाउ॥
ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਰੀ ਆਸ ਭਰੋਸਾ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਰਾ ਤੁਮਰਾ ਨਾਮੁ ਰਿਦੈ ਲੈ ਧਰਨਾ ॥
तुम्हरी आस भरोसा तुम्हरा तुमरा नामु रिदै लै धरना ॥
मुझे तुम्हारी ही आशा है, तुम्हारा ही भरोसा है और तुम्हारा ही नाम हृदय में धारण करता हूँ।
ਤੁਮਰੋ ਬਲੁ ਤੁਮ ਸੰਗਿ ਸੁਹੇਲੇ ਜੋ ਜੋ ਕਹਹੁ ਸੋਈ ਸੋਈ ਕਰਨਾ ॥੧॥
तुमरो बलु तुम संगि सुहेले जो जो कहहु सोई सोई करना ॥१॥
मुझे तुम्हारा ही बल है, तेरे साथ ही सुखी हूँ, जो-जो कहते हो, मैं वही करता हूँ॥१॥
ਤੁਮਰੀ ਦਇਆ ਮਇਆ ਸੁਖੁ ਪਾਵਉ ਹੋਹੁ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਤ ਭਉਜਲੁ ਤਰਨਾ ॥
तुमरी दइआ मइआ सुखु पावउ होहु क्रिपाल त भउजलु तरना ॥
तुम्हारी दया से ही सुख पाता हूँ, यदि तू कृपालु हो जाए तो संसार-सागर से पार उतर सकता हूँ।
ਅਭੈ ਦਾਨੁ ਨਾਮੁ ਹਰਿ ਪਾਇਓ ਸਿਰੁ ਡਾਰਿਓ ਨਾਨਕ ਸੰਤ ਚਰਨਾ ॥੨॥੯॥
अभै दानु नामु हरि पाइओ सिरु डारिओ नानक संत चरना ॥२॥९॥
नानक का कथन है कि जब संतों के चरणों में नतमस्तक हो गया तो अभयदान हरिनाम पा लिया॥२॥९॥