ਸਤਗੁਰਿ ਦਯਾਲਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਦ੍ਰਿੜ੍ਹ੍ਹਾਯਾ ਤਿਸੁ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਵਸਿ ਪੰਚ ਕਰੇ ॥
सतगुरि दयालि हरि नामु द्रिड़्हाया तिसु प्रसादि वसि पंच करे ॥
इनके सच्चे गुरु अमरदास जी ने दयालु होकर मन में हरिनाम ही दृढ़ करवाया, जिसकी कृपा से उन्होंने कामादिक पाँच विकारों को वश में किया।
ਕਵਿ ਕਲੵ ਠਕੁਰ ਹਰਦਾਸ ਤਨੇ ਗੁਰ ਰਾਮਦਾਸ ਸਰ ਅਭਰ ਭਰੇ ॥੩॥|
कवि कल्य ठकुर हरदास तने गुर रामदास सर अभर भरे ॥३॥
कवि कलसहार का कथन है कि ठाकुर हरदास जी के सुपुत्र गुरु रामदास जी खाली दिल रूपी सरोवरों को नाम जल से भर देते हैं ।॥३॥
ਅਨਭਉ ਉਨਮਾਨਿ ਅਕਲ ਲਿਵ ਲਾਗੀ ਪਾਰਸੁ ਭੇਟਿਆ ਸਹਜ ਘਰੇ ॥
अनभउ उनमानि अकल लिव लागी पारसु भेटिआ सहज घरे ॥
गुरु रामदास जी ने पूर्ण ज्ञान एवं अनुभव पाया, ईश्वर में उनकी लगन लगी, क्योंकि पारस रूप गुरु अमरदास जी से भेंट हुई थी और स्वाभाविक शान्ति प्राप्त की।
ਸਤਗੁਰ ਪਰਸਾਦਿ ਪਰਮ ਪਦੁ ਪਾਯਾ ਭਗਤਿ ਭਾਇ ਭੰਡਾਰ ਭਰੇ ॥
सतगुर परसादि परम पदु पाया भगति भाइ भंडार भरे ॥
सतगुरु (अमरदास जी) की कृपा से उनको परमपद प्राप्त हुआ और भाव-भक्ति प्रेम के भण्डार उनमें भरे रहते थे।
ਮੇਟਿਆ ਜਨਮਾਂਤੁ ਮਰਣ ਭਉ ਭਾਗਾ ਚਿਤੁ ਲਾਗਾ ਸੰਤੋਖ ਸਰੇ ॥
मेटिआ जनमांतु मरण भउ भागा चितु लागा संतोख सरे ॥
उनका मन संतोष के सरोवर (प्रभु) में लीन था, अतः उनका जन्म-मरण मिट चुका था और मृत्यु का भय निवृत्त हो गया था।
ਕਵਿ ਕਲੵ ਠਕੁਰ ਹਰਦਾਸ ਤਨੇ ਗੁਰ ਰਾਮਦਾਸ ਸਰ ਅਭਰ ਭਰੇ ॥੪॥
कवि कल्य ठकुर हरदास तने गुर रामदास सर अभर भरे ॥४॥
कवि कलसहार का कथन है कि ठाकुर हरदास जी के सुपुत्र गुरु रामदास जी ने खाली सरोवर भी भर दिए हैं ॥ ४॥
ਅਭਰ ਭਰੇ ਪਾਯਉ ਅਪਾਰੁ ਰਿਦ ਅੰਤਰਿ ਧਾਰਿਓ ॥
अभर भरे पायउ अपारु रिद अंतरि धारिओ ॥
खाली दिल रूपी सरोवर भरने वाले गुरु रामदास जी ने ईश्वर को पा लिया है, मन में उसे ही बसाया है।
ਦੁਖ ਭੰਜਨੁ ਆਤਮ ਪ੍ਰਬੋਧੁ ਮਨਿ ਤਤੁ ਬੀਚਾਰਿਓ ॥
दुख भंजनु आतम प्रबोधु मनि ततु बीचारिओ ॥
दुख विनाशक, आत्मा को ज्ञान देने वाले परम तत्व (परमेश्वर) का ही मन में उन्होंने चिंतन किया।
ਸਦਾ ਚਾਇ ਹਰਿ ਭਾਇ ਪ੍ਰੇਮ ਰਸੁ ਆਪੇ ਜਾਣਇ ॥
सदा चाइ हरि भाइ प्रेम रसु आपे जाणइ ॥
गुरु रामदास जी को सदैव हरि-भक्ति का चाव बना रहा है और इस प्रेम रस को वे स्वयं ही जानते हैं।
ਸਤਗੁਰ ਕੈ ਪਰਸਾਦਿ ਸਹਜ ਸੇਤੀ ਰੰਗੁ ਮਾਣਇ ॥
सतगुर कै परसादि सहज सेती रंगु माणइ ॥
सतगुरु (अमरदास जी) की कृपा से वे प्रभु प्रेम का स्वाभाविक ही आनंद पा रहे हैं।
ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਅੰਗਦ ਸੁਮਤਿ ਗੁਰਿ ਅਮਰਿ ਅਮਰੁ ਵਰਤਾਇਓ ॥
नानक प्रसादि अंगद सुमति गुरि अमरि अमरु वरताइओ ॥
गुरु नानक की कृपा, गुरु अंगद देव की सुमति से गुरु अमरदास ने विधाता के विधान सेवा-सिमरन का पालन किया है।
ਗੁਰ ਰਾਮਦਾਸ ਕਲੵੁਚਰੈ ਤੈਂ ਅਟਲ ਅਮਰ ਪਦੁ ਪਾਇਓ ॥੫॥
गुर रामदास कल्युचरै तैं अटल अमर पदु पाइओ ॥५॥
कवि कलसहार का कथन है कि हे गुरु रामदास ! तुमने भी अटल अमर पद पा लिया है ॥५॥
ਸੰਤੋਖ ਸਰੋਵਰਿ ਬਸੈ ਅਮਿਅ ਰਸੁ ਰਸਨ ਪ੍ਰਕਾਸੈ ॥
संतोख सरोवरि बसै अमिअ रसु रसन प्रकासै ॥
गुरु रामदास जी संतोष सरोवर में रहते हैं और अपनी जीभ से नामामृत का रस व्यक्त करते हैं।
ਮਿਲਤ ਸਾਂਤਿ ਉਪਜੈ ਦੁਰਤੁ ਦੂਰੰਤਰਿ ਨਾਸੈ ॥
मिलत सांति उपजै दुरतु दूरंतरि नासै ॥
उनके दर्शन एवं मिलन से मन को शान्ति प्राप्त होती है और पाप इत्यादि दूर से ही नाश हो जाते हैं।
ਸੁਖ ਸਾਗਰੁ ਪਾਇਅਉ ਦਿੰਤੁ ਹਰਿ ਮਗਿ ਨ ਹੁਟੈ ॥
सुख सागरु पाइअउ दिंतु हरि मगि न हुटै ॥
उन्होंने सुखों के सागर हरि को पा लिया है, अतः हरि-भक्ति मार्ग से पीछे नहीं हटते।
ਸੰਜਮੁ ਸਤੁ ਸੰਤੋਖੁ ਸੀਲ ਸੰਨਾਹੁ ਮਫੁਟੈ ॥
संजमु सतु संतोखु सील संनाहु मफुटै ॥
गुरु रामदास जी ने संयम, सत्य, संतोष एवं शील स्वभाव का अटूट कवच धारण किया हुआ है।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਪ੍ਰਮਾਣੁ ਬਿਧ ਨੈ ਸਿਰਿਉ ਜਗਿ ਜਸ ਤੂਰੁ ਬਜਾਇਅਉ ॥
सतिगुरु प्रमाणु बिध नै सिरिउ जगि जस तूरु बजाइअउ ॥
सतगुरु अमरदास की तरह गुरु रामदास को भी विधाता ने वैसा ही कीर्तिस्तंभ स्थापित किया है, पूरा जगत उनका यशोगान कर रहा है।
ਗੁਰ ਰਾਮਦਾਸ ਕਲੵੁਚਰੈ ਤੈ ਅਭੈ ਅਮਰ ਪਦੁ ਪਾਇਅਉ ॥੬॥
गुर रामदास कल्युचरै तै अभै अमर पदु पाइअउ ॥६॥
फलसहार का कथन है कि हे गुरु रामदास ! तूने अभय ईश्वर समान अमर पद पा लिया है ॥६॥
ਜਗੁ ਜਿਤਉ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਮਾਣਿ ਮਨਿ ਏਕੁ ਧਿਆਯਉ ॥
जगु जितउ सतिगुर प्रमाणि मनि एकु धिआयउ ॥
(गुरु अमरदास की तरह) गुरु रामदास ने पूरी दुनिया को जीत लिया है और मन में ईश्वर का ही ध्यान किया।
ਧਨਿ ਧਨਿ ਸਤਿਗੁਰ ਅਮਰਦਾਸੁ ਜਿਨਿ ਨਾਮੁ ਦ੍ਰਿੜਾਯਉ ॥
धनि धनि सतिगुर अमरदासु जिनि नामु द्रिड़ायउ ॥
सतिगुरु अमरदास धन्य धन्य हैं, जिन्होंने उनके मन में हरिनाम स्थापित किया।
ਨਵ ਨਿਧਿ ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਰਿਧਿ ਸਿਧਿ ਤਾ ਕੀ ਦਾਸੀ ॥
नव निधि नामु निधानु रिधि सिधि ता की दासी ॥
उन्होंने नौ निधियों वाला सुखों का भण्डार हरिनाम पाया है, ऋद्धियाँ-सिद्धियाँ उनकी दासियाँ हैं।
ਸਹਜ ਸਰੋਵਰੁ ਮਿਲਿਓ ਪੁਰਖੁ ਭੇਟਿਓ ਅਬਿਨਾਸੀ ॥
सहज सरोवरु मिलिओ पुरखु भेटिओ अबिनासी ॥
इनको शान्ति का सरोवर मिल गया है, अविनाशी कर्तापुरुष से इनका साक्षात्कार हो गया है।
ਆਦਿ ਲੇ ਭਗਤ ਜਿਤੁ ਲਗਿ ਤਰੇ ਸੋ ਗੁਰਿ ਨਾਮੁ ਦ੍ਰਿੜਾਇਅਉ ॥
आदि ले भगत जितु लगि तरे सो गुरि नामु द्रिड़ाइअउ ॥
सृष्टि रचना से अब तक जिस हरिनाम में लीन होकर भक्त संसार-सागर से पार हुए हैं, वह हरिनाम् इनके गुरु अमरदास जी ने गुरु रामदास जी को दृढ़ करवाया।
ਗੁਰ ਰਾਮਦਾਸ ਕਲੵੁਚਰੈ ਤੈ ਹਰਿ ਪ੍ਰੇਮ ਪਦਾਰਥੁ ਪਾਇਅਉ ॥੭॥
गुर रामदास कल्युचरै तै हरि प्रेम पदारथु पाइअउ ॥७॥
कलसहार भाट का कथन है कि हे गुरु रामदास ! तूने भी हरि प्रेम-भक्ति रूपी पदार्थ को ही पाया है ॥७॥
ਪ੍ਰੇਮ ਭਗਤਿ ਪਰਵਾਹ ਪ੍ਰੀਤਿ ਪੁਬਲੀ ਨ ਹੁਟਇ ॥
प्रेम भगति परवाह प्रीति पुबली न हुटइ ॥
गुरु रामदास के मन में प्रेम-भक्ति का प्रवाह चलता रहता है, पूर्व जन्म का प्रेम बिल्कुल नहीं टूट पाया।
ਸਤਿਗੁਰ ਸਬਦੁ ਅਥਾਹੁ ਅਮਿਅ ਧਾਰਾ ਰਸੁ ਗੁਟਇ ॥
सतिगुर सबदु अथाहु अमिअ धारा रसु गुटइ ॥
सतिगुरु अमरदास के अथाह शब्द की अमृतधारा का रस वे आनंदपूर्वक लेते हैं।
ਮਤਿ ਮਾਤਾ ਸੰਤੋਖੁ ਪਿਤਾ ਸਰਿ ਸਹਜ ਸਮਾਯਉ ॥
मति माता संतोखु पिता सरि सहज समायउ ॥
विवेक बुद्धि इनकी माता है, संतोष गुरु रामदास जी के पिता हैं, वे शान्ति के सरोवर में लीन रहते हैं।
ਆਜੋਨੀ ਸੰਭਵਿਅਉ ਜਗਤੁ ਗੁਰ ਬਚਨਿ ਤਰਾਯਉ ॥
आजोनी स्मभविअउ जगतु गुर बचनि तरायउ ॥
जन्म-मरण से मुक्त, स्वतः प्रकाशमान रूप गुरु (रामदास जी) ने वचनों द्वारा पूरे जगत को संसार-सागर से तिरा दिया है।
ਅਬਿਗਤ ਅਗੋਚਰੁ ਅਪਰਪਰੁ ਮਨਿ ਗੁਰ ਸਬਦੁ ਵਸਾਇਅਉ ॥
अबिगत अगोचरु अपरपरु मनि गुर सबदु वसाइअउ ॥
वे अव्यक्त, ज्ञानेन्द्रियों से परे, अपरंपार रूप हैं और शब्द-गुरु को मन में बसाया हुआ है।
ਗੁਰ ਰਾਮਦਾਸ ਕਲੵੁਚਰੈ ਤੈ ਜਗਤ ਉਧਾਰਣੁ ਪਾਇਅਉ ॥੮॥
गुर रामदास कल्युचरै तै जगत उधारणु पाइअउ ॥८॥
भाट कलसहार (स्तुति करता हुआ) कहता है कि हे गुरु रामदास ! तूने तो जगत उद्धारक परमेश्वर को पा लिया है ॥८॥
ਜਗਤ ਉਧਾਰਣੁ ਨਵ ਨਿਧਾਨੁ ਭਗਤਹ ਭਵ ਤਾਰਣੁ ॥
जगत उधारणु नव निधानु भगतह भव तारणु ॥
हरिनाम संसार का उद्धार करने वाला है, नवनिधान सुखों का घर है, भक्तों को संसार-सागर से पार उतारने वाला है,
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਬੂੰਦ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਬਿਸੁ ਕੀ ਬਿਖੈ ਨਿਵਾਰਣੁ ॥
अम्रित बूंद हरि नामु बिसु की बिखै निवारणु ॥
यह हरिनाम रूपी अमृत की बूंद गुरु रामदास जी के पास है, जो विश्व के विकार रूपी जहर का निवारण कर देती है।
ਸਹਜ ਤਰੋਵਰ ਫਲਿਓ ਗਿਆਨ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਫਲ ਲਾਗੇ ॥
सहज तरोवर फलिओ गिआन अम्रित फल लागे ॥
सहज-शान्ति का वृक्ष फला फूला है, जिस पर ज्ञान अमृत का फल लगा हुआ है,
ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਪਾਈਅਹਿ ਧੰਨਿ ਤੇ ਜਨ ਬਡਭਾਗੇ ॥
गुर प्रसादि पाईअहि धंनि ते जन बडभागे ॥
वे लोग धन्य एवं भाग्यशाली है, जो गुरु की कृपा से इसे प्राप्त करते हैं।
ਤੇ ਮੁਕਤੇ ਭਏ ਸਤਿਗੁਰ ਸਬਦਿ ਮਨਿ ਗੁਰ ਪਰਚਾ ਪਾਇਅਉ ॥
ते मुकते भए सतिगुर सबदि मनि गुर परचा पाइअउ ॥
जिन्होंने मन से गुरु रामदास पर श्रद्धा धारण की, प्रेम लगाया वे सतिगुरु के उपदेश द्वारा संसार के बन्धनों से मुक्त हो गए।
ਗੁਰ ਰਾਮਦਾਸ ਕਲੵੁਚਰੈ ਤੈ ਸਬਦ ਨੀਸਾਨੁ ਬਜਾਇਅਉ ॥੯॥
गुर रामदास कल्युचरै तै सबद नीसानु बजाइअउ ॥९॥
भाट कलसहार का कथन है कि हे गुरु रामदास ! तूने प्रभु-शब्द का बिगुल बजाया है अर्थात् सब ओर ब्रह्म शब्द का प्रसार कर दिया है ॥६॥