ਗਾਵਹਿ ਗੁਣ ਬਰਨ ਚਾਰਿ ਖਟ ਦਰਸਨ ਬ੍ਰਹਮਾਦਿਕ ਸਿਮਰੰਥਿ ਗੁਨਾ ॥
गावहि गुण बरन चारि खट दरसन ब्रहमादिक सिमरंथि गुना ॥
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र- चार वर्ण, योगी, सन्यासी, वैष्णव इत्यादि छः शास्त्रं, ब्रह्मा इत्यादि सब लोग गुरु नानक का गुणगान करते हुए उनका स्मरण कर रहे हैं।
ਗਾਵੈ ਗੁਣ ਸੇਸੁ ਸਹਸ ਜਿਹਬਾ ਰਸ ਆਦਿ ਅੰਤਿ ਲਿਵ ਲਾਗਿ ਧੁਨਾ ॥
गावै गुण सेसु सहस जिहबा रस आदि अंति लिव लागि धुना ॥
हजार जिव्हाओं से युग-युग ध्यान लगाकर शेषनाग भी उनकी महिमा-गान में लीन है।
ਗਾਵੈ ਗੁਣ ਮਹਾਦੇਉ ਬੈਰਾਗੀ ਜਿਨਿ ਧਿਆਨ ਨਿਰੰਤਰਿ ਜਾਣਿਓ ॥
गावै गुण महादेउ बैरागी जिनि धिआन निरंतरि जाणिओ ॥
जिसने निरन्तर ध्यान लगाकर ब्रह्मा को जाना है, वैरागी शिवशंकर भी उनके स्तोत्र गा रहा है।
ਕਬਿ ਕਲ ਸੁਜਸੁ ਗਾਵਉ ਗੁਰ ਨਾਨਕ ਰਾਜੁ ਜੋਗੁ ਜਿਨਿ ਮਾਣਿਓ ॥੫॥
कबि कल सुजसु गावउ गुर नानक राजु जोगु जिनि माणिओ ॥५॥
कवि कल्ह का कथन है कि मैं गुरु नानक देव जी का यशोगान कर रहा हूँ, जिन्होंने राज-योग का आनंद लिया ॥५॥
ਰਾਜੁ ਜੋਗੁ ਮਾਣਿਓ ਬਸਿਓ ਨਿਰਵੈਰੁ ਰਿਦੰਤਰਿ ॥
राजु जोगु माणिओ बसिओ निरवैरु रिदंतरि ॥
उस गुरु नानक ने राज-योग का पूर्ण आनंद लिया है, जिसके हृदय में निर्वेर ईश्वर बस रहा है।
ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਸਗਲ ਉਧਰੀ ਨਾਮਿ ਲੇ ਤਰਿਓ ਨਿਰੰਤਰਿ ॥
स्रिसटि सगल उधरी नामि ले तरिओ निरंतरि ॥
हरिनाम का जाप करके गुरु नानक देव जी स्वयं तो संसार-सागर से पार हुए ही हैं, उन्होंने समूची सृष्टि को भी पार उतार दिया है।
ਗੁਣ ਗਾਵਹਿ ਸਨਕਾਦਿ ਆਦਿ ਜਨਕਾਦਿ ਜੁਗਹ ਲਗਿ ॥
गुण गावहि सनकादि आदि जनकादि जुगह लगि ॥
ब्रह्मा-सुत सनक इत्यादि एवं जनक सरीखे युग-युग से गुण-गान कर रहे हैं।
ਧੰਨਿ ਧੰਨਿ ਗੁਰੁ ਧੰਨਿ ਜਨਮੁ ਸਕਯਥੁ ਭਲੌ ਜਗਿ ॥
धंनि धंनि गुरु धंनि जनमु सकयथु भलौ जगि ॥
हे गुरु नानक ! तू धन्य है, महान् है, प्रशंसा के योग्य है, दुनिया का भला करने के कारण तेरा जन्म सफल हो गया है।
ਪਾਤਾਲ ਪੁਰੀ ਜੈਕਾਰ ਧੁਨਿ ਕਬਿ ਜਨ ਕਲ ਵਖਾਣਿਓ ॥
पाताल पुरी जैकार धुनि कबि जन कल वखाणिओ ॥
कवि कल्ह बखान करता है कि पातालपुरी से जय-जयकार की ध्वनि सुनाई दे रही है।
ਹਰਿ ਨਾਮ ਰਸਿਕ ਨਾਨਕ ਗੁਰ ਰਾਜੁ ਜੋਗੁ ਤੈ ਮਾਣਿਓ ॥੬॥
हरि नाम रसिक नानक गुर राजु जोगु तै माणिओ ॥६॥
हरिनाम के रसिया, गुरु नानक ! तूने राज एवं योग दोनों का आनंद प्राप्त किया है॥ ६ ॥
ਸਤਜੁਗਿ ਤੈ ਮਾਣਿਓ ਛਲਿਓ ਬਲਿ ਬਾਵਨ ਭਾਇਓ ॥
सतजुगि तै माणिओ छलिओ बलि बावन भाइओ ॥
हे गुरु नानक ! सतयुग में भी तूने ही राज-योग का आनंद लिया और वामनावतार में राजा बलि को छलना तेरी ही मर्जी थी।
ਤ੍ਰੇਤੈ ਤੈ ਮਾਣਿਓ ਰਾਮੁ ਰਘੁਵੰਸੁ ਕਹਾਇਓ ॥
त्रेतै तै माणिओ रामु रघुवंसु कहाइओ ॥
त्रेतायुग में तुम्हीं रघुवंशी राम कहलाए और तब भी तूने ही राज-योग का आनंद लिया।
ਦੁਆਪੁਰਿ ਕ੍ਰਿਸਨ ਮੁਰਾਰਿ ਕੰਸੁ ਕਿਰਤਾਰਥੁ ਕੀਓ ॥
दुआपुरि क्रिसन मुरारि कंसु किरतारथु कीओ ॥
द्वापर युग में कृष्णावतार में तूने ही कंस को मुक्ति दी,
ਉਗ੍ਰਸੈਣ ਕਉ ਰਾਜੁ ਅਭੈ ਭਗਤਹ ਜਨ ਦੀਓ ॥
उग्रसैण कउ राजु अभै भगतह जन दीओ ॥
राजा उग्रसेन को राज दिया और भक्तजनों को अभयदान दिया।
ਕਲਿਜੁਗਿ ਪ੍ਰਮਾਣੁ ਨਾਨਕ ਗੁਰੁ ਅੰਗਦੁ ਅਮਰੁ ਕਹਾਇਓ ॥
कलिजुगि प्रमाणु नानक गुरु अंगदु अमरु कहाइओ ॥
कलियुग में भी साक्षी रूप में गुरु नानक, गुरु अंगद, गुरु अमरदास कहलाए।
ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਰਾਜੁ ਅਬਿਚਲੁ ਅਟਲੁ ਆਦਿ ਪੁਰਖਿ ਫੁਰਮਾਇਓ ॥੭॥
स्री गुरू राजु अबिचलु अटलु आदि पुरखि फुरमाइओ ॥७॥
अनादि परमपिता परमेश्वर का हुक्म है कि श्री गुरु नानक का राज्य सदा अविचल एवं अटल है॥७ ॥
ਗੁਣ ਗਾਵੈ ਰਵਿਦਾਸੁ ਭਗਤੁ ਜੈਦੇਵ ਤ੍ਰਿਲੋਚਨ ॥
गुण गावै रविदासु भगतु जैदेव त्रिलोचन ॥
भक्त रविदास, जयदेव, त्रिलोचन गुरु नानक जी का गुणानुवाद कर रहे हैं और
ਨਾਮਾ ਭਗਤੁ ਕਬੀਰੁ ਸਦਾ ਗਾਵਹਿ ਸਮ ਲੋਚਨ ॥
नामा भगतु कबीरु सदा गावहि सम लोचन ॥
भक्त नामदेव एवं कबीर भी समदृष्टि मानते हुए सदा गुरु नानक साहिब का स्तुतिगान करते हैं।
ਭਗਤੁ ਬੇਣਿ ਗੁਣ ਰਵੈ ਸਹਜਿ ਆਤਮ ਰੰਗੁ ਮਾਣੈ ॥
भगतु बेणि गुण रवै सहजि आतम रंगु माणै ॥
भक्त बेणी भी उनके यशोगान में लीन है, जो सहजावस्था में आनंद पाता है और
ਜੋਗ ਧਿਆਨਿ ਗੁਰ ਗਿਆਨਿ ਬਿਨਾ ਪ੍ਰਭ ਅਵਰੁ ਨ ਜਾਣੈ ॥
जोग धिआनि गुर गिआनि बिना प्रभ अवरु न जाणै ॥
गुरु ज्ञान द्वारा उसी में ध्यानमग्न होकर प्रभु के सिवा किसी अन्य को नहीं मानता।
ਸੁਖਦੇਉ ਪਰੀਖੵਤੁ ਗੁਣ ਰਵੈ ਗੋਤਮ ਰਿਖਿ ਜਸੁ ਗਾਇਓ ॥
सुखदेउ परीख्यतु गुण रवै गोतम रिखि जसु गाइओ ॥
शुकदेव, राजा परीक्षित एवं गौतम ऋषि भी गुरु नानक का मंगलगान कर रहे हैं।
ਕਬਿ ਕਲ ਸੁਜਸੁ ਨਾਨਕ ਗੁਰ ਨਿਤ ਨਵਤਨੁ ਜਗਿ ਛਾਇਓ ॥੮॥
कबि कल सुजसु नानक गुर नित नवतनु जगि छाइओ ॥८॥
कवि कल्ह भी उस गुरु नानक का सुयश गा रहा है, जिसकी नित्यनवीन कीर्ति पूरे जगत में फैली हुई है॥८॥
ਗੁਣ ਗਾਵਹਿ ਪਾਯਾਲਿ ਭਗਤ ਨਾਗਾਦਿ ਭੁਯੰਗਮ ॥
गुण गावहि पायालि भगत नागादि भुयंगम ॥
पाताललोक में नाग, भुजंग इत्यादिभक्त भी (गुरु नानक का) कीर्ति-गान कर रहे हैं।
ਮਹਾਦੇਉ ਗੁਣ ਰਵੈ ਸਦਾ ਜੋਗੀ ਜਤਿ ਜੰਗਮ ॥
महादेउ गुण रवै सदा जोगी जति जंगम ॥
महादेव, योगी, सन्यासी, जंगम इत्यादि सदा उसी के गौरव-गान में लीन रहते हैं।
ਗੁਣ ਗਾਵੈ ਮੁਨਿ ਬੵਾਸੁ ਜਿਨਿ ਬੇਦ ਬੵਾਕਰਣ ਬੀਚਾਰਿਅ ॥
गुण गावै मुनि ब्यासु जिनि बेद ब्याकरण बीचारिअ ॥
वेद एवं व्याकरण का चिंतन करने वाले मुनि व्यास भी गुरु नानक का ही गुणगान कर रहा है।
ਬ੍ਰਹਮਾ ਗੁਣ ਉਚਰੈ ਜਿਨਿ ਹੁਕਮਿ ਸਭ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਸਵਾਰੀਅ ॥
ब्रहमा गुण उचरै जिनि हुकमि सभ स्रिसटि सवारीअ ॥
जिसके हुक्म से समूची सृष्टि की सृजना हुई, वह ब्रह्मा भी स्तुतिगान कर रहा है।
ਬ੍ਰਹਮੰਡ ਖੰਡ ਪੂਰਨ ਬ੍ਰਹਮੁ ਗੁਣ ਨਿਰਗੁਣ ਸਮ ਜਾਣਿਓ ॥
ब्रहमंड खंड पूरन ब्रहमु गुण निरगुण सम जाणिओ ॥
जिसने ब्रह्माण्ड के सब खण्डों में पूर्णब्रह्म को सगुण-निर्गुण रूप में एक समान माना है,
ਜਪੁ ਕਲ ਸੁਜਸੁ ਨਾਨਕ ਗੁਰ ਸਹਜੁ ਜੋਗੁ ਜਿਨਿ ਮਾਣਿਓ ॥੯॥
जपु कल सुजसु नानक गुर सहजु जोगु जिनि माणिओ ॥९॥
जिस गुरु नानक ने सहज योग का आनंद लिया है, कवि कल्ह उसी का जाप करते हुए सुयश गा रहा है।॥६॥
ਗੁਣ ਗਾਵਹਿ ਨਵ ਨਾਥ ਧੰਨਿ ਗੁਰੁ ਸਾਚਿ ਸਮਾਇਓ ॥
गुण गावहि नव नाथ धंनि गुरु साचि समाइओ ॥
गोरख, मच्छन्द्र, गोपी इत्यादि नौ नाथ भी गुण गाते हैं और उनका कथन है कि सत्य में समाहित गुरु नानक धन्य हैं।
ਮਾਂਧਾਤਾ ਗੁਣ ਰਵੈ ਜੇਨ ਚਕ੍ਰਵੈ ਕਹਾਇਓ ॥
मांधाता गुण रवै जेन चक्रवै कहाइओ ॥
चक्रवर्ती कहे जाने वाले मानधाता भी गुणानुवाद करते हैं।
ਗੁਣ ਗਾਵੈ ਬਲਿ ਰਾਉ ਸਪਤ ਪਾਤਾਲਿ ਬਸੰਤੌ ॥
गुण गावै बलि राउ सपत पातालि बसंतौ ॥
सातवें पाताल में रहने वाला राजा बलि भी गुरु नानक का स्तुतिगान कर रहा है।
ਭਰਥਰਿ ਗੁਣ ਉਚਰੈ ਸਦਾ ਗੁਰ ਸੰਗਿ ਰਹੰਤੌ ॥
भरथरि गुण उचरै सदा गुर संगि रहंतौ ॥
गुरु नानक के संग रहने वाला भर्तृहरि योगी भी उनकी प्रशंसा गा रहा है।
ਦੂਰਬਾ ਪਰੂਰਉ ਅੰਗਰੈ ਗੁਰ ਨਾਨਕ ਜਸੁ ਗਾਇਓ ॥
दूरबा परूरउ अंगरै गुर नानक जसु गाइओ ॥
दुर्वासा ऋषि, राजा पुरुरवा एवं अंगिरा मुनि भी गुरु नानक का यशोगान कर रहे हैं।
ਕਬਿ ਕਲ ਸੁਜਸੁ ਨਾਨਕ ਗੁਰ ਘਟਿ ਘਟਿ ਸਹਜਿ ਸਮਾਇਓ ॥੧੦॥
कबि कल सुजसु नानक गुर घटि घटि सहजि समाइओ ॥१०॥
कवि कल्ह घट घट में समाहित गुरु नानक देव जी का सुयश गा रहा है॥१०॥