ਗਾਵਤ ਸੁਨਤ ਦੋਊ ਭਏ ਮੁਕਤੇ ਜਿਨਾ ਗੁਰਮੁਖਿ ਖਿਨੁ ਹਰਿ ਪੀਕ ॥੧॥
गावत सुनत दोऊ भए मुकते जिना गुरमुखि खिनु हरि पीक ॥१॥
जिसने गुरु से एक पल हरिनाम अमृत का पान किया है, उसके गुण गाने एवं सुनने वाले दोनों मुक्त हो जाते हैं।॥ १॥
ਮੇਰੈ ਮਨਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਰਸੁ ਟੀਕ ॥
मेरै मनि हरि हरि राम नामु रसु टीक ॥
हे मेरे मन ! परमात्मा के भजन में लीन रहो,
ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਸੀਤਲ ਜਲੁ ਪਾਇਆ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਪੀਆ ਰਸੁ ਝੀਕ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुरमुखि नामु सीतल जलु पाइआ हरि हरि नामु पीआ रसु झीक ॥१॥ रहाउ ॥
गुरु से हमने हरिनाम रूपी शीतल जल प्राप्त किया है और आनंदपूर्वक हरिनाम रस का पान किया है॥ १॥रहाउ॥
ਜਿਨ ਹਰਿ ਹਿਰਦੈ ਪ੍ਰੀਤਿ ਲਗਾਨੀ ਤਿਨਾ ਮਸਤਕਿ ਊਜਲ ਟੀਕ ॥
जिन हरि हिरदै प्रीति लगानी तिना मसतकि ऊजल टीक ॥
जिन्होंने हृदय में परमात्मा से प्रेम लगाया है, उनका जीवन सफल हो गया है।
ਹਰਿ ਜਨ ਸੋਭਾ ਸਭ ਜਗ ਊਪਰਿ ਜਿਉ ਵਿਚਿ ਉਡਵਾ ਸਸਿ ਕੀਕ ॥੨॥
हरि जन सोभा सभ जग ऊपरि जिउ विचि उडवा ससि कीक ॥२॥
समूचे जगत में हरि-भक्तो की यों शोभा होती है, जैसे सितारों में चांद शोभा देता है।॥ २॥
ਜਿਨ ਹਰਿ ਹਿਰਦੈ ਨਾਮੁ ਨ ਵਸਿਓ ਤਿਨ ਸਭਿ ਕਾਰਜ ਫੀਕ ॥
जिन हरि हिरदै नामु न वसिओ तिन सभि कारज फीक ॥
जिन लोगों के दिल में प्रभु का नाम नहीं बसता, उनके सभी कार्य असफल होते हैं।
ਜੈਸੇ ਸੀਗਾਰੁ ਕਰੈ ਦੇਹ ਮਾਨੁਖ ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਨਕਟੇ ਨਕ ਕੀਕ ॥੩॥
जैसे सीगारु करै देह मानुख नाम बिना नकटे नक कीक ॥३॥
नामविहीन मनुष्य इस तरह है, जैसे श्रृंगार करने के बावजूद नाक कटने पर नकटा कहलाता है॥ ३॥
ਘਟਿ ਘਟਿ ਰਮਈਆ ਰਮਤ ਰਾਮ ਰਾਇ ਸਭ ਵਰਤੈ ਸਭ ਮਹਿ ਈਕ ॥
घटि घटि रमईआ रमत राम राइ सभ वरतै सभ महि ईक ॥
सबमें एक परमेश्वर ही व्याप्त है, वह घट घट में विद्यमान है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਕਉ ਹਰਿ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰੀ ਗੁਰ ਬਚਨ ਧਿਆਇਓ ਘਰੀ ਮੀਕ ॥੪॥੩॥
जन नानक कउ हरि किरपा धारी गुर बचन धिआइओ घरी मीक ॥४॥३॥
दास नानक पर ईश्वर की कृपा हुई है और गुरु के वचनों से वह हरिनाम ध्यान में ही लीन रहता है।४॥ ३॥
ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥
प्रभाती महला ४ ॥
प्रभाती महला ४ ॥
ਅਗਮ ਦਇਆਲ ਕ੍ਰਿਪਾ ਪ੍ਰਭਿ ਧਾਰੀ ਮੁਖਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਹਮ ਕਹੇ ॥
अगम दइआल क्रिपा प्रभि धारी मुखि हरि हरि नामु हम कहे ॥
मन-वाणी से परे, दयासागर प्रभु ने कृपा की तो हम हरिनाम का भजन करने लग गए।
ਪਤਿਤ ਪਾਵਨ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਓ ਸਭਿ ਕਿਲਬਿਖ ਪਾਪ ਲਹੇ ॥੧॥
पतित पावन हरि नामु धिआइओ सभि किलबिख पाप लहे ॥१॥
हरिनाम पापियों को पावन करने वाला है, उसका ध्यान करने से सब पाप-अपराध दूर हो गए हैं॥ १॥
ਜਪਿ ਮਨ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਰਵਿ ਰਹੇ ॥
जपि मन राम नामु रवि रहे ॥
हे मन ! ईश्वर का जाप करो,
ਦੀਨ ਦਇਆਲੁ ਦੁਖ ਭੰਜਨੁ ਗਾਇਓ ਗੁਰਮਤਿ ਨਾਮੁ ਪਦਾਰਥੁ ਲਹੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
दीन दइआलु दुख भंजनु गाइओ गुरमति नामु पदारथु लहे ॥१॥ रहाउ ॥
वह सर्वव्यापक है, वह दीनों पर दया करने वाला है, दुखों को नाश करने वाला है, अतः उसी का स्तुतिगान करो।
ਕਾਇਆ ਨਗਰਿ ਨਗਰਿ ਹਰਿ ਬਸਿਓ ਮਤਿ ਗੁਰਮਤਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਸਹੇ ॥
काइआ नगरि नगरि हरि बसिओ मति गुरमति हरि हरि सहे ॥
गुरु की शिक्षा द्वारा हरिनाम पदार्थ प्राप्त होता है॥ १॥रहाउ॥
ਸਰੀਰਿ ਸਰੋਵਰਿ ਨਾਮੁ ਹਰਿ ਪ੍ਰਗਟਿਓ ਘਰਿ ਮੰਦਰਿ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਲਹੇ ॥੨॥
सरीरि सरोवरि नामु हरि प्रगटिओ घरि मंदरि हरि प्रभु लहे ॥२॥
शरीर रूपी नगरी में परमेश्वर ही बसा हुआ है और गुरु की शिक्षा से उसके दर्शन होते हैं।
ਜੋ ਨਰ ਭਰਮਿ ਭਰਮਿ ਉਦਿਆਨੇ ਤੇ ਸਾਕਤ ਮੂੜ ਮੁਹੇ ॥
जो नर भरमि भरमि उदिआने ते साकत मूड़ मुहे ॥
शरीर रूपी सरोवर में ही हरिनाम प्रगट होता है और हृदय घर में प्रभु की प्राप्ति हो जाती है॥ २॥
ਜਿਉ ਮ੍ਰਿਗ ਨਾਭਿ ਬਸੈ ਬਾਸੁ ਬਸਨਾ ਭ੍ਰਮਿ ਭ੍ਰਮਿਓ ਝਾਰ ਗਹੇ ॥੩॥
जिउ म्रिग नाभि बसै बासु बसना भ्रमि भ्रमिओ झार गहे ॥३॥
जो व्यक्ति जंगलों में भटकता फिरता है दरअसल ऐसा मायावी मूर्ख लुट जाता है, जैसे मृग के अन्दर सुगन्धि होती है, परन्तु वह झाड़ियों में भ्रमता फिरता है॥ ३॥
ਤੁਮ ਵਡ ਅਗਮ ਅਗਾਧਿ ਬੋਧਿ ਪ੍ਰਭ ਮਤਿ ਦੇਵਹੁ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਲਹੇ ॥
तुम वड अगम अगाधि बोधि प्रभ मति देवहु हरि प्रभ लहे ॥
हे प्रभु ! तुम बहुत बड़े, अगम्य, असीम एवं ज्ञानवान हो, ऐसा उपदेश प्रदान करो कि तुझे पा लें।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਕਉ ਗੁਰਿ ਹਾਥੁ ਸਿਰਿ ਧਰਿਓ ਹਰਿ ਰਾਮ ਨਾਮਿ ਰਵਿ ਰਹੇ ॥੪॥੪॥
जन नानक कउ गुरि हाथु सिरि धरिओ हरि राम नामि रवि रहे ॥४॥४॥
सेवक नानक को गुरु का आशीर्वाद प्राप्त हुआ तो वह हरिनाम में लीन हो गया।॥ ४॥ ४॥
ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥
प्रभाती महला ४ ॥
प्रभाती महला ४ ॥
ਮਨਿ ਲਾਗੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ਰਾਮ ਨਾਮ ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਪਿਓ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਵਡਫਾ ॥
मनि लागी प्रीति राम नाम हरि हरि जपिओ हरि प्रभु वडफा ॥
मन में हरिनाम से प्रीति लगी तो सच्चिदानंद सर्वेश्वर प्रभु का जाप किया।
ਸਤਿਗੁਰ ਬਚਨ ਸੁਖਾਨੇ ਹੀਅਰੈ ਹਰਿ ਧਾਰੀ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਕ੍ਰਿਪਫਾ ॥੧॥
सतिगुर बचन सुखाने हीअरै हरि धारी हरि प्रभ क्रिपफा ॥१॥
प्रभु की कृपा हुई तो सतगुरु के वचन हृदय में सुख प्रदान करने लगे॥ १॥
ਮੇਰੇ ਮਨ ਭਜੁ ਰਾਮ ਨਾਮ ਹਰਿ ਨਿਮਖਫਾ ॥
मेरे मन भजु राम नाम हरि निमखफा ॥
हे मेरे मन ! पल भर के लिए परमात्मा का भजन कर लो;
ਹਰਿ ਹਰਿ ਦਾਨੁ ਦੀਓ ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਹਰਿ ਨਾਮਾ ਮਨਿ ਤਨਿ ਬਸਫਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि हरि दानु दीओ गुरि पूरै हरि नामा मनि तनि बसफा ॥१॥ रहाउ ॥
पूर्णगुरु ने हरिनाम का दान प्रदान किया है और यह मन तन में अवस्थित हो गया है।॥ १॥रहाउ॥
ਕਾਇਆ ਨਗਰਿ ਵਸਿਓ ਘਰਿ ਮੰਦਰਿ ਜਪਿ ਸੋਭਾ ਗੁਰਮੁਖਿ ਕਰਪਫਾ ॥
काइआ नगरि वसिओ घरि मंदरि जपि सोभा गुरमुखि करपफा ॥
शरीर रूपी नगरी एवं हृदय-घर में ईश्वर ही बसा हुआ है और गुरु द्वारा जाप करके उसकी शोभा मालूम हुई है।
ਹਲਤਿ ਪਲਤਿ ਜਨ ਭਏ ਸੁਹੇਲੇ ਮੁਖ ਊਜਲ ਗੁਰਮੁਖਿ ਤਰਫਾ ॥੨॥
हलति पलति जन भए सुहेले मुख ऊजल गुरमुखि तरफा ॥२॥
गुरु के द्वारा यश प्राप्त होता है और लोक-परलोक में जीव सुख पाता है॥ २॥
ਅਨਭਉ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਲਿਵ ਲਾਗੀ ਹਰਿ ਉਰ ਧਾਰਿਓ ਗੁਰਿ ਨਿਮਖਫਾ ॥
अनभउ हरि हरि हरि लिव लागी हरि उर धारिओ गुरि निमखफा ॥
हमारी तो निर्भय परमात्मा में लगन लगी हुई है, गुरु की कृपा से प्रभु को मन में धारण कर लिया है।
ਕੋਟਿ ਕੋਟਿ ਕੇ ਦੋਖ ਸਭ ਜਨ ਕੇ ਹਰਿ ਦੂਰਿ ਕੀਏ ਇਕ ਪਲਫਾ ॥੩॥
कोटि कोटि के दोख सभ जन के हरि दूरि कीए इक पलफा ॥३॥
दया की मूर्ति परमात्मा ने भक्तों के करोड़ों पाप-दोष एक पल में दूर कर दिए हैं।॥ ३॥
ਤੁਮਰੇ ਜਨ ਤੁਮ ਹੀ ਤੇ ਜਾਨੇ ਪ੍ਰਭ ਜਾਨਿਓ ਜਨ ਤੇ ਮੁਖਫਾ ॥
तुमरे जन तुम ही ते जाने प्रभ जानिओ जन ते मुखफा ॥
हे प्रभु ! तुम्हारे भक्त तुम्हारी भक्ति से विख्यात होते हैं और तेरी कीर्ति भी भक्तों द्वारा ही है।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਆਪੁ ਧਰਿਓ ਹਰਿ ਜਨ ਮਹਿ ਜਨ ਨਾਨਕੁ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਇਕਫਾ ॥੪॥੫॥
हरि हरि आपु धरिओ हरि जन महि जन नानकु हरि प्रभु इकफा ॥४॥५॥
नानक का फुरमान है कि हरिभक्त परमात्मा का रूप हैं और भक्त एवं परमात्मा अभिन्न हैं।॥ ४॥ ५॥