Hindi Page 1358

ਭੈ ਅਟਵੀਅੰ ਮਹਾ ਨਗਰ ਬਾਸੰ ਧਰਮ ਲਖੵਣ ਪ੍ਰਭ ਮਇਆ ॥
भै अटवीअं महा नगर बासं धरम लख्यण प्रभ मइआ ॥
भयानक वन सरीखा क्षेत्र भी महा नगर में बदल जाता है। ऐसे धर्म के लक्षण तो प्रभु की कृपा से प्राप्त होते हैं।

ਸਾਧ ਸੰਗਮ ਰਾਮ ਰਾਮ ਰਮਣੰ ਸਰਣਿ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਹਰਿ ਦਯਾਲ ਚਰਣੰ ॥੪੪॥
साध संगम राम राम रमणं सरणि नानक हरि हरि दयाल चरणं ॥४४॥
साधुओं की शरण में राम-राम का मंत्र जपना चाहिए। हे नानक ! दयालु प्रभु के चरणों में सब संभव है॥ ४४॥

ਹੇ ਅਜਿਤ ਸੂਰ ਸੰਗ੍ਰਾਮੰ ਅਤਿ ਬਲਨਾ ਬਹੁ ਮਰਦਨਹ ॥
हे अजित सूर संग्रामं अति बलना बहु मरदनह ॥
हे (मोह )अजय महायोद्धा ! तू इतना शक्तिशाली है कि तूने बड़े-बड़े वीरों का मर्दन कर दिया है।

ਗਣ ਗੰਧਰਬ ਦੇਵ ਮਾਨੁਖੵੰ ਪਸੁ ਪੰਖੀ ਬਿਮੋਹਨਹ ॥
गण गंधरब देव मानुख्यं पसु पंखी बिमोहनह ॥
गण-गंधर्व, देवता, मनुष्य एवं पशु-पक्षियों को भी मोहित कर लिया है।

ਹਰਿ ਕਰਣਹਾਰੰ ਨਮਸਕਾਰੰ ਸਰਣਿ ਨਾਨਕ ਜਗਦੀਸ੍ਵਰਹ ॥੪੫॥
हरि करणहारं नमसकारं सरणि नानक जगदीस्वरह ॥४५॥
नानक का कथन है कि उस सर्वकर्ता ईश्वर को हमारा कोटि-कोटि नमस्कार है, हम उस जगदीश्वर की शरण में हैं॥ ४५॥

ਹੇ ਕਾਮੰ ਨਰਕ ਬਿਸ੍ਰਾਮੰ ਬਹੁ ਜੋਨੀ ਭ੍ਰਮਾਵਣਹ ॥
हे कामं नरक बिस्रामं बहु जोनी भ्रमावणह ॥
हे काम ! तू जीवों को नरक में पहुँचाने वाला है और अनेक योनियों में भटकाता है।

ਚਿਤ ਹਰਣੰ ਤ੍ਰੈ ਲੋਕ ਗੰਮੵੰ ਜਪ ਤਪ ਸੀਲ ਬਿਦਾਰਣਹ ॥
चित हरणं त्रै लोक गम्यं जप तप सील बिदारणह ॥
तू लोगों का दिल चुराने वाला है, तीनों लोकों में गमन कर रहा है, तू जप, तप, शील नष्ट करने वाला है।

ਅਲਪ ਸੁਖ ਅਵਿਤ ਚੰਚਲ ਊਚ ਨੀਚ ਸਮਾਵਣਹ ॥
अलप सुख अवित चंचल ऊच नीच समावणह ॥
तू थोड़ा-सा सुख देने वाला है, घनहीन करने वाला, चंचल बनाने वाला और बड़े अथवा छोटे सब में लीन होता है।

ਤਵ ਭੈ ਬਿਮੁੰਚਿਤ ਸਾਧ ਸੰਗਮ ਓਟ ਨਾਨਕ ਨਾਰਾਇਣਹ ॥੪੬॥
तव भै बिमुंचित साध संगम ओट नानक नाराइणह ॥४६॥
नानक का कथन है कि तेरे भय से बचने के लिए साधु पुरुषों की संगत एवं परमात्मा का आसरा ले लिया है॥ ४६॥

ਹੇ ਕਲਿ ਮੂਲ ਕ੍ਰੋਧੰ ਕਦੰਚ ਕਰੁਣਾ ਨ ਉਪਰਜਤੇ ॥
हे कलि मूल क्रोधं कदंच करुणा न उपरजते ॥
हे क्रोध ! तू कलह-कलेश का मूल कारण है, तुझे तो कभी दया आती ही नहीं।

ਬਿਖਯੰਤ ਜੀਵੰ ਵਸੵੰ ਕਰੋਤਿ ਨਿਰਤੵੰ ਕਰੋਤਿ ਜਥਾ ਮਰਕਟਹ ॥
बिखयंत जीवं वस्यं करोति निरत्यं करोति जथा मरकटह ॥
तू विषयी जीवों को अपने वश में कर लेता है और जिस कारण वे बन्दर की तरह नाचते हैं।

ਅਨਿਕ ਸਾਸਨ ਤਾੜੰਤਿ ਜਮਦੂਤਹ ਤਵ ਸੰਗੇ ਅਧਮੰ ਨਰਹ ॥
अनिक सासन ताड़ंति जमदूतह तव संगे अधमं नरह ॥
तेरी संगत में आकर भले व्यक्ति भी नीच बन जाते हैं और यमदूत उनको हुक्म देकर दण्ड पहुँचाते हैं।

ਦੀਨ ਦੁਖ ਭੰਜਨ ਦਯਾਲ ਪ੍ਰਭੁ ਨਾਨਕ ਸਰਬ ਜੀਅ ਰਖੵਾ ਕਰੋਤਿ ॥੪੭॥
दीन दुख भंजन दयाल प्रभु नानक सरब जीअ रख्या करोति ॥४७॥
नानक का कथन है कि दोनों के दुख नाश करने वाला दयालु प्रभु ही सब जीवों की (क्रोध से) रक्षा करता है॥ ४७॥

ਹੇ ਲੋਭਾ ਲੰਪਟ ਸੰਗ ਸਿਰਮੋਰਹ ਅਨਿਕ ਲਹਰੀ ਕਲੋਲਤੇ ॥
हे लोभा ल्मपट संग सिरमोरह अनिक लहरी कलोलते ॥
हे लोभ ! तूने तो बादशाह, अमीर, सब को अपने शिकंजे में डाला हुआ है और वे तेरी लहरों में फँसकर अनेक तमाशे करते हैं।

ਧਾਵੰਤ ਜੀਆ ਬਹੁ ਪ੍ਰਕਾਰੰ ਅਨਿਕ ਭਾਂਤਿ ਬਹੁ ਡੋਲਤੇ ॥
धावंत जीआ बहु प्रकारं अनिक भांति बहु डोलते ॥
तेरे वश में आकर जीव अनेक प्रकार से दौड़ते हैं और अनेक तरीकों से बहुत डोलते हैं।

ਨਚ ਮਿਤ੍ਰੰ ਨਚ ਇਸਟੰ ਨਚ ਬਾਧਵ ਨਚ ਮਾਤ ਪਿਤਾ ਤਵ ਲਜਯਾ ॥
नच मित्रं नच इसटं नच बाधव नच मात पिता तव लजया ॥
तुझे मित्र, इष्ट, रिश्तेदार, माता-पिता की कोई शर्म नहीं।

ਅਕਰਣੰ ਕਰੋਤਿ ਅਖਾਦੵਿ ਖਾਦੵੰ ਅਸਾਜੵੰ ਸਾਜਿ ਸਮਜਯਾ ॥
अकरणं करोति अखाद्यि खाद्यं असाज्यं साजि समजया ॥
तू न करने लायक भी काम करवाता है, न खाने योग्य चीज भी खिलाता है, समाज में न बनने वाली को भी बना देते हो।

ਤ੍ਰਾਹਿ ਤ੍ਰਾਹਿ ਸਰਣਿ ਸੁਆਮੀ ਬਿਗੵਾਪ੍ਤਿ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਨਰਹਰਹ ॥੪੮॥
त्राहि त्राहि सरणि सुआमी बिग्याप्ति नानक हरि नरहरह ॥४८॥
नानक प्रार्थना करते हैं कि हे नारायण ! हम तेरी शरण में आ गए हैं, इस लोभ से हर्मे बचा लो।॥ ४८॥

ਹੇ ਜਨਮ ਮਰਣ ਮੂਲੰ ਅਹੰਕਾਰੰ ਪਾਪਾਤਮਾ ॥
हे जनम मरण मूलं अहंकारं पापातमा ॥
हे पापी अहंकार ! तू जन्म-मरण का मूल है।

ਮਿਤ੍ਰੰ ਤਜੰਤਿ ਸਤ੍ਰੰ ਦ੍ਰਿੜੰਤਿ ਅਨਿਕ ਮਾਯਾ ਬਿਸ੍ਤੀਰਨਹ ॥
मित्रं तजंति सत्रं द्रिड़ंति अनिक माया बिस्तीरनह ॥
तू मित्रों से दूर करके शत्रुओं से नाता जोड़ता है और अनेक प्रकार से माया के प्रपंच फैलाता है।

ਆਵੰਤ ਜਾਵੰਤ ਥਕੰਤ ਜੀਆ ਦੁਖ ਸੁਖ ਬਹੁ ਭੋਗਣਹ ॥
आवंत जावंत थकंत जीआ दुख सुख बहु भोगणह ॥
तेरे कारण जीव आवागमन में थक जाते हैं और बहुत सुख दुख भोगते हैं।

ਭ੍ਰਮ ਭਯਾਨ ਉਦਿਆਨ ਰਮਣੰ ਮਹਾ ਬਿਕਟ ਅਸਾਧ ਰੋਗਣਹ ॥
भ्रम भयान उदिआन रमणं महा बिकट असाध रोगणह ॥
वे भ्रम के भयानक जंगल में रहते हैं और महा विकट एवं असाध्य रोगों का शिकार हो जाते हैं।

ਬੈਦੵੰ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਪਰਮੇਸ੍ਵਰ ਆਰਾਧਿ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰੇ ॥੪੯॥
बैद्यं पारब्रहम परमेस्वर आराधि नानक हरि हरि हरे ॥४९॥
नानक का कथन है कि इन रोगों का उपचार करने वाला वैद्य एकमात्र परब्रह्म परमेश्वर है, अत: उस हरि की आराधना करो॥ ४६॥

ਹੇ ਪ੍ਰਾਣ ਨਾਥ ਗੋਬਿੰਦਹ ਕ੍ਰਿਪਾ ਨਿਧਾਨ ਜਗਦ ਗੁਰੋ ॥
हे प्राण नाथ गोबिंदह क्रिपा निधान जगद गुरो ॥
हे प्राणनाथ ! हे गोविन्द ! हे कृपा के घर ! हे जगदगुरु !

ਹੇ ਸੰਸਾਰ ਤਾਪ ਹਰਣਹ ਕਰੁਣਾ ਮੈ ਸਭ ਦੁਖ ਹਰੋ ॥
हे संसार ताप हरणह करुणा मै सभ दुख हरो ॥
हे संसार के कष्ट हरण करने वाले ! हे करुणामय ! सब दुखों को दूर करो।

ਹੇ ਸਰਣਿ ਜੋਗ ਦਯਾਲਹ ਦੀਨਾ ਨਾਥ ਮਯਾ ਕਰੋ ॥
हे सरणि जोग दयालह दीना नाथ मया करो ॥
हे शरण देने योग्य ! हे दयालु दीनानाथ ! कृपा करो।

ਸਰੀਰ ਸ੍ਵਸਥ ਖੀਣ ਸਮਏ ਸਿਮਰੰਤਿ ਨਾਨਕ ਰਾਮ ਦਾਮੋਦਰ ਮਾਧਵਹ ॥੫੦॥
सरीर स्वसथ खीण समए सिमरंति नानक राम दामोदर माधवह ॥५०॥
नानक विनती करते हैं कि हे प्रभु ! शरीर स्वस्थ अथवा बीमार हो, दोनों ही वक्त तेरा सिमरन करते रहें॥ ५०॥

ਚਰਣ ਕਮਲ ਸਰਣੰ ਰਮਣੰ ਗੋਪਾਲ ਕੀਰਤਨਹ ॥
चरण कमल सरणं रमणं गोपाल कीरतनह ॥
हे ईश्वर ! तेरे चरण-कमल की शरण में तेरा ही कीर्तन करते रहें।

ਸਾਧ ਸੰਗੇਣ ਤਰਣੰ ਨਾਨਕ ਮਹਾ ਸਾਗਰ ਭੈ ਦੁਤਰਹ ॥੫੧॥
साध संगेण तरणं नानक महा सागर भै दुतरह ॥५१॥
नानक का कथन है कि यदि साधु-पुरुषों की संगत की जाए तो भयानक दुस्तर महासागर से पार हुआ जा सकता है॥ ५१॥

ਸਿਰ ਮਸ੍ਤਕ ਰਖੵਾ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੰ ਹਸ੍ਤ ਕਾਯਾ ਰਖੵਾ ਪਰਮੇਸ੍ਵਰਹ ॥
सिर मस्तक रख्या पारब्रहमं हस्त काया रख्या परमेस्वरह ॥
हे परब्रह्म ! (आशीष देकर) सिर-मस्तक का संरक्षण करो, हे परमेश्वर ! इन हाथों एवं शरीर की रक्षा करें (हम कोई बुरा काम न करें)।

ਆਤਮ ਰਖੵਾ ਗੋਪਾਲ ਸੁਆਮੀ ਧਨ ਚਰਣ ਰਖੵਾ ਜਗਦੀਸ੍ਵਰਹ ॥
आतम रख्या गोपाल सुआमी धन चरण रख्या जगदीस्वरह ॥
हे गोपाल ! हमारी आत्मा की रक्षा करना, धन एवं चरणों को, हे जगदीश्वर ! तू ही बचाने वाला है।

ਸਰਬ ਰਖੵਾ ਗੁਰ ਦਯਾਲਹ ਭੈ ਦੂਖ ਬਿਨਾਸਨਹ ॥
सरब रख्या गुर दयालह भै दूख बिनासनह ॥
हे दयालु गुरु ! सबकी रक्षा करना, भय-दुखों का नाश करना।

ਭਗਤਿ ਵਛਲ ਅਨਾਥ ਨਾਥੇ ਸਰਣਿ ਨਾਨਕ ਪੁਰਖ ਅਚੁਤਹ ॥੫੨॥
भगति वछल अनाथ नाथे सरणि नानक पुरख अचुतह ॥५२॥
नानक विनती करते हैं कि हे भक्तवत्सल ! अनाथों के नाथ ! हे अटल प्रभु ! हमें अपनी शरण में रखो॥ ५२॥

ਜੇਨ ਕਲਾ ਧਾਰਿਓ ਆਕਾਸੰ ਬੈਸੰਤਰੰ ਕਾਸਟ ਬੇਸਟੰ ॥
जेन कला धारिओ आकासं बैसंतरं कासट बेसटं ॥
जिस ओंकार ने अपनी शक्ति से आकाश को धारण किया हुआ है, लकड़ी में अग्नि को टिकाया हुआ है।

ਜੇਨ ਕਲਾ ਸਸਿ ਸੂਰ ਨਖੵਤ੍ਰ ਜੋਤੵਿੰ ਸਾਸੰ ਸਰੀਰ ਧਾਰਣੰ ॥
जेन कला ससि सूर नख्यत्र जोत्यिं सासं सरीर धारणं ॥
जिसकी शक्ति से सूर्य, चन्द्रमा एवं नक्षत्रों को ज्योति मिल रही है और जिससे शरीर में प्राणों का संचार हो रहा है।

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