ਦੇਵਗੰਧਾਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
देवगंधारी महला ५ ॥
देवगंधारी महला ५ ॥
ਮੈ ਬਹੁ ਬਿਧਿ ਪੇਖਿਓ ਦੂਜਾ ਨਾਹੀ ਰੀ ਕੋਊ ॥
मै बहु बिधि पेखिओ दूजा नाही री कोऊ ॥
हे बहन ! मैंने अनेक विधियों से देखा है, किन्तु उस भगवान जैसा दूसरा कोई नहीं है।
ਖੰਡ ਦੀਪ ਸਭ ਭੀਤਰਿ ਰਵਿਆ ਪੂਰਿ ਰਹਿਓ ਸਭ ਲੋਊ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
खंड दीप सभ भीतरि रविआ पूरि रहिओ सभ लोऊ ॥१॥ रहाउ ॥
विश्व के समस्त खण्डों एवं द्वीपों में वह ही समाया हुआ है और सभी लोकों में केवल वही मौजूद है॥ १॥ रहाउ ॥
ਅਗਮ ਅਗੰਮਾ ਕਵਨ ਮਹਿੰਮਾ ਮਨੁ ਜੀਵੈ ਸੁਨਿ ਸੋਊ ॥
अगम अगमा कवन महिमा मनु जीवै सुनि सोऊ ॥
वह अगम्य से भी अगम्य है, उसकी महिमा कौन उच्चरित कर सकता है ? मेरा मन तो उसकी शोभा सुनकर ही जीवित है।
ਚਾਰਿ ਆਸਰਮ ਚਾਰਿ ਬਰੰਨਾ ਮੁਕਤਿ ਭਏ ਸੇਵਤੋਊ ॥੧॥
चारि आसरम चारि बरंना मुकति भए सेवतोऊ ॥१॥
हे भगवान ! चारों आश्रम एवं चारों वर्ण के लोग तेरी भक्ति करके मुक्त हो गए हैं।॥ १॥
ਗੁਰਿ ਸਬਦੁ ਦ੍ਰਿੜਾਇਆ ਪਰਮ ਪਦੁ ਪਾਇਆ ਦੁਤੀਅ ਗਏ ਸੁਖ ਹੋਊ ॥
गुरि सबदु द्रिड़ाइआ परम पदु पाइआ दुतीअ गए सुख होऊ ॥
गुरु ने मन में अपना शब्द बसा दिया है, जिससे परम पद की उपलब्धि हो गई है, हमारी दुविधा मिट गई है तथा सुख ही सुख हो गया है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਭਵ ਸਾਗਰੁ ਤਰਿਆ ਹਰਿ ਨਿਧਿ ਪਾਈ ਸਹਜੋਊ ॥੨॥੨॥੩੩॥
कहु नानक भव सागरु तरिआ हरि निधि पाई सहजोऊ ॥२॥२॥३३॥
हे नानक ! हरि-नाम की निधि प्राप्त करने से मैं सहज ही भवसागर से पार हो गया हूँ ॥२॥ २॥ ३३ ॥
ਰਾਗੁ ਦੇਵਗੰਧਾਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੬
रागु देवगंधारी महला ५ घरु ६
रागु देवगंधारी महला ५ घरु ६
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਏਕੈ ਰੇ ਹਰਿ ਏਕੈ ਜਾਨ ॥
एकै रे हरि एकै जान ॥
परमात्मा एक ही है और उस एक को ही सबका मालिक समझो।
ਏਕੈ ਰੇ ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਾਨ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
एकै रे गुरमुखि जान ॥१॥ रहाउ ॥
गुरुमुख बनकर उसे एक ही समझो।॥ १॥ रहाउ॥
ਕਾਹੇ ਭ੍ਰਮਤ ਹਉ ਤੁਮ ਭ੍ਰਮਹੁ ਨ ਭਾਈ ਰਵਿਆ ਰੇ ਰਵਿਆ ਸ੍ਰਬ ਥਾਨ ॥੧॥
काहे भ्रमत हउ तुम भ्रमहु न भाई रविआ रे रविआ स्रब थान ॥१॥
हे मेरे भाई ! क्यों भटक रहे हो ? तुम मत भटको, ईश्वर तो सारे विश्व में मौजूद है॥ १॥
ਜਿਉ ਬੈਸੰਤਰੁ ਕਾਸਟ ਮਝਾਰਿ ਬਿਨੁ ਸੰਜਮ ਨਹੀ ਕਾਰਜ ਸਾਰਿ ॥
जिउ बैसंतरु कासट मझारि बिनु संजम नही कारज सारि ॥
जैसे लकड़ी में अग्नि किसी युक्ति के बिना कार्य नहीं संवारती, वैसे ही
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਨ ਪਾਵੈਗੋ ਹਰਿ ਜੀ ਕੋ ਦੁਆਰ ॥
बिनु गुर न पावैगो हरि जी को दुआर ॥
गुरु के बिना परमेश्वर का द्वार प्राप्त नहीं हो सकता।
ਮਿਲਿ ਸੰਗਤਿ ਤਜਿ ਅਭਿਮਾਨ ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਪਾਏ ਹੈ ਪਰਮ ਨਿਧਾਨ ॥੨॥੧॥੩੪॥
मिलि संगति तजि अभिमान कहु नानक पाए है परम निधान ॥२॥१॥३४॥
हे नानक ! गुरु की संगति में मिलकर अपना अभिमान त्याग दो, इस तरह नाम रूपी परम खजाना प्राप्त हो जाएगा ॥ २॥ १॥ ३४ ॥
ਦੇਵਗੰਧਾਰੀ ੫ ॥
देवगंधारी ५ ॥
देवगंधारी ५ ॥
ਜਾਨੀ ਨ ਜਾਈ ਤਾ ਕੀ ਗਾਤਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जानी न जाई ता की गाति ॥१॥ रहाउ ॥
उस भगवान की गति समझी नहीं जा सकती।॥ १॥ रहाउ॥
ਕਹ ਪੇਖਾਰਉ ਹਉ ਕਰਿ ਚਤੁਰਾਈ ਬਿਸਮਨ ਬਿਸਮੇ ਕਹਨ ਕਹਾਤਿ ॥੧॥
कह पेखारउ हउ करि चतुराई बिसमन बिसमे कहन कहाति ॥१॥
किसी चतुराई के माध्यम से उसकी गति को कैसे दिखा सकता हूँ? उसकी गति का कथन करने वाले भी आश्चर्यचकित हो जाते हैं।॥ १॥
ਗਣ ਗੰਧਰਬ ਸਿਧ ਅਰੁ ਸਾਧਿਕ ॥
गण गंधरब सिध अरु साधिक ॥
देवगण, गंधर्व, सिद्धपुरुष, साधक,
ਸੁਰਿ ਨਰ ਦੇਵ ਬ੍ਰਹਮ ਬ੍ਰਹਮਾਦਿਕ ॥
सुरि नर देव ब्रहम ब्रहमादिक ॥
देवते, नर, देव, ब्रह्मर्षि, ब्रह्मा इत्यादि तथा
ਚਤੁਰ ਬੇਦ ਉਚਰਤ ਦਿਨੁ ਰਾਤਿ ॥
चतुर बेद उचरत दिनु राति ॥
चारों वेद दिन-रात यही उच्चरित करते हैं कि
ਅਗਮ ਅਗਮ ਠਾਕੁਰੁ ਆਗਾਧਿ ॥
अगम अगम ठाकुरु आगाधि ॥
परमात्मा अगम्य, अनन्त तथा अगाध है।
ਗੁਨ ਬੇਅੰਤ ਬੇਅੰਤ ਭਨੁ ਨਾਨਕ ਕਹਨੁ ਨ ਜਾਈ ਪਰੈ ਪਰਾਤਿ ॥੨॥੨॥੩੫॥
गुन बेअंत बेअंत भनु नानक कहनु न जाई परै पराति ॥२॥२॥३५॥
हे नानक ! उस परमेश्वर के गुण अनन्त एवं अपार हैं और उसके गुणों की अभिव्यक्ति नहीं की जा सकती, क्योंकि वे पहुँच से पूर्णतया परे है॥ २॥ २॥ ३५ ॥
ਦੇਵਗੰਧਾਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
देवगंधारी महला ५ ॥
देवगंधारी महला ५ ॥
ਧਿਆਏ ਗਾਏ ਕਰਨੈਹਾਰ ॥
धिआए गाए करनैहार ॥
जो व्यक्ति विश्व रचयिता परमात्मा का नामस्मरण तथा गुणगान करता है,
ਭਉ ਨਾਹੀ ਸੁਖ ਸਹਜ ਅਨੰਦਾ ਅਨਿਕ ਓਹੀ ਰੇ ਏਕ ਸਮਾਰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
भउ नाही सुख सहज अनंदा अनिक ओही रे एक समार ॥१॥ रहाउ ॥
वह निडर हो जाता है और उसे सहज सुख एवं आत्मिक आनंद उपलब्ध हो जाता है। इसलिए उस मालिक का नाम ही हृदय में धारण करना चाहिए, जिसके अनेक रूप हैं परन्तु फिर भी वह एक ही है॥ १॥ रहाउ ॥
ਸਫਲ ਮੂਰਤਿ ਗੁਰੁ ਮੇਰੈ ਮਾਥੈ ॥
सफल मूरति गुरु मेरै माथै ॥
जिस गुरु के दर्शन करने से जीवन सफल हो जाता है, उसने अपना हाथ मेरे माथे पर रखा हुआ है।
ਜਤ ਕਤ ਪੇਖਉ ਤਤ ਤਤ ਸਾਥੈ ॥
जत कत पेखउ तत तत साथै ॥
मैं जहाँ कहीं भी देखता हूँ, उधर ही मैं भगवान को अपने साथ ही पाता हूँ।
ਚਰਨ ਕਮਲ ਮੇਰੇ ਪ੍ਰਾਨ ਅਧਾਰ ॥੧॥
चरन कमल मेरे प्रान अधार ॥१॥
प्रभु के सुन्दर चरण-कमल मेरे प्राणों का आधार हैं॥१॥
ਸਮਰਥ ਅਥਾਹ ਬਡਾ ਪ੍ਰਭੁ ਮੇਰਾ ॥
समरथ अथाह बडा प्रभु मेरा ॥
मेरा प्रभु सर्वकला समर्थ, अथाह एवं महान् है।
ਘਟ ਘਟ ਅੰਤਰਿ ਸਾਹਿਬੁ ਨੇਰਾ ॥
घट घट अंतरि साहिबु नेरा ॥
वह कण-कण में (प्रत्येक हृदय में) रहता है और बहुत ही समीप है।
ਤਾ ਕੀ ਸਰਨਿ ਆਸਰ ਪ੍ਰਭ ਨਾਨਕ ਜਾ ਕਾ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਰਾਵਾਰ ॥੨॥੩॥੩੬॥
ता की सरनि आसर प्रभ नानक जा का अंतु न पारावार ॥२॥३॥३६॥
नानक ने उस परमात्मा की शरण में आश्रय लिया है, जिसका कोई अन्त तथा ओर-छोर प्राप्त नहीं हो सकता ॥ २ ॥ ३॥ ३६॥
ਦੇਵਗੰਧਾਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
देवगंधारी महला ५ ॥
देवगंधारी महला ५ ॥
ਉਲਟੀ ਰੇ ਮਨ ਉਲਟੀ ਰੇ ॥
उलटी रे मन उलटी रे ॥
हे मेरे मन ! अपनी आदत को शीघ्र ही बदल दे तथा
ਸਾਕਤ ਸਿਉ ਕਰਿ ਉਲਟੀ ਰੇ ॥
साकत सिउ करि उलटी रे ॥
शाक्त इन्सान का साथ छोड़ दे।
ਝੂਠੈ ਕੀ ਰੇ ਝੂਠੁ ਪਰੀਤਿ ਛੁਟਕੀ ਰੇ ਮਨ ਛੁਟਕੀ ਰੇ ਸਾਕਤ ਸੰਗਿ ਨ ਛੁਟਕੀ ਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
झूठै की रे झूठु परीति छुटकी रे मन छुटकी रे साकत संगि न छुटकी रे ॥१॥ रहाउ ॥
हे मन ! परमात्मा से विमुख झूठे लोगों की प्रीति झूठी ही समझ और इन्हें त्याग दे, क्योंकि उनकी संगति में रहने से तुझे मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती ॥ १॥ रहाउ॥
ਜਿਉ ਕਾਜਰ ਭਰਿ ਮੰਦਰੁ ਰਾਖਿਓ ਜੋ ਪੈਸੈ ਕਾਲੂਖੀ ਰੇ ॥
जिउ काजर भरि मंदरु राखिओ जो पैसै कालूखी रे ॥
जैसे कोई व्यक्ति कालिख से भरे हुए घर में प्रविष्ट होता है तो काला ही हो जाता है।
ਦੂਰਹੁ ਹੀ ਤੇ ਭਾਗਿ ਗਇਓ ਹੈ ਜਿਸੁ ਗੁਰ ਮਿਲਿ ਛੁਟਕੀ ਤ੍ਰਿਕੁਟੀ ਰੇ ॥੧॥
दूरहु ही ते भागि गइओ है जिसु गुर मिलि छुटकी त्रिकुटी रे ॥१॥
जो सच्चे गुरु से मिल जाता है उसके माथे की त्रिकुटी मिट जाती है और वह दुर्जन लोगों की संगति से दूर से ही भाग जाता है॥ १॥
ਮਾਗਉ ਦਾਨੁ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਕ੍ਰਿਪਾ ਨਿਧਿ ਮੇਰਾ ਮੁਖੁ ਸਾਕਤ ਸੰਗਿ ਨ ਜੁਟਸੀ ਰੇ ॥
मागउ दानु क्रिपाल क्रिपा निधि मेरा मुखु साकत संगि न जुटसी रे ॥
हे कृपा के भण्डार ! हे कृपालु परमात्मा ! मैं तुझ से एक यही दान माँगता हूँ कि मेरा चेहरा शाक्त मनुष्य के सामने मत करना अर्थात् उससे मुझे दूर ही रखना।