ੴ ਸਤਿ ਨਾਮੁ ਕਰਤਾ ਪੁਰਖੁ ਨਿਰਭਉ ਨਿਰਵੈਰੁ ਅਕਾਲ ਮੂਰਤਿ ਅਜੂਨੀ ਸੈਭੰ ਗੁਰਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सति नामु करता पुरखु निरभउ निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं गुरप्रसादि ॥
ईश्वर एक है, उसका नाम सत्य है। वह संसार का रचयिता सर्वशक्तिमान है। वह निडर है, उसका किसी से वैर नहीं, वह कालातीत, जन्म-मरण से रहित एवं स्वयंभू है और उसकी लब्धि केवल गुरु-कृपा से ही होती है।
ਰਾਗੁ ਬਿਹਾਗੜਾ ਚਉਪਦੇ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੨ ॥
रागु बिहागड़ा चउपदे महला ५ घरु २ ॥
रागु बिहागड़ा चउपदे महला ५ घरु २ ॥
ਦੂਤਨ ਸੰਗਰੀਆ ॥
दूतन संगरीआ ॥
काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार इत्यादि दुष्टों के साथ निवास करना
ਭੁਇਅੰਗਨਿ ਬਸਰੀਆ ॥
भुइअंगनि बसरीआ ॥
विषैले साँपों के साथ रहने के समान है।
ਅਨਿਕ ਉਪਰੀਆ ॥੧॥
अनिक उपरीआ ॥१॥
इन्हें छोड़ने के लिए मैंने अनेक उपाय किए हैं॥ १॥
ਤਉ ਮੈ ਹਰਿ ਹਰਿ ਕਰੀਆ ॥
तउ मै हरि हरि करीआ ॥
तब मैंने परमेश्वर के नाम का भजन किया तो
ਤਉ ਸੁਖ ਸਹਜਰੀਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
तउ सुख सहजरीआ ॥१॥ रहाउ ॥
मुझे सहज सुख उपलब्ध हो गया ॥ १॥ रहाउ ॥
ਮਿਥਨ ਮੋਹਰੀਆ ॥ ਅਨ ਕਉ ਮੇਰੀਆ ॥
मिथन मोहरीआ ॥ अन कउ मेरीआ ॥
सांसारिक पदार्थों का मोह मिथ्या है, जो झूठा मोह प्राणी को अपना लगता है
ਵਿਚਿ ਘੂਮਨ ਘਿਰੀਆ ॥੨॥
विचि घूमन घिरीआ ॥२॥
वही उसे आवागमन के भंवर में डाल देता है॥ २॥
ਸਗਲ ਬਟਰੀਆ ॥
सगल बटरीआ ॥
सारे प्राणी यात्री हैं,
ਬਿਰਖ ਇਕ ਤਰੀਆ ॥
बिरख इक तरीआ ॥
जो दुनिया के वृक्ष के नीचे आ विराजते हैं।
ਬਹੁ ਬੰਧਹਿ ਪਰੀਆ ॥੩॥
बहु बंधहि परीआ ॥३॥
किन्तु अनेक मायावी बन्धनों में फंसे हुए हैं।॥ ३॥
ਥਿਰੁ ਸਾਧ ਸਫਰੀਆ ॥
थिरु साध सफरीआ ॥
केवल साधु मुसाफिर ही अटल हैं
ਜਹ ਕੀਰਤਨੁ ਹਰੀਆ ॥
जह कीरतनु हरीआ ॥
जो हरि-नाम का कीर्तिगान करते रहते हैं।
ਨਾਨਕ ਸਰਨਰੀਆ ॥੪॥੧॥
नानक सरनरीआ ॥४॥१॥
इसलिए नानक ने साधुओं की ही शरण ली है॥ ४॥ १॥
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਰਾਗੁ ਬਿਹਾਗੜਾ ਮਹਲਾ ੯ ॥
रागु बिहागड़ा महला ९ ॥
रागु बिहागड़ा महला ९ ॥
ਹਰਿ ਕੀ ਗਤਿ ਨਹਿ ਕੋਊ ਜਾਨੈ ॥
हरि की गति नहि कोऊ जानै ॥
भगवान की गति कोई भी नहीं जानता।
ਜੋਗੀ ਜਤੀ ਤਪੀ ਪਚਿ ਹਾਰੇ ਅਰੁ ਬਹੁ ਲੋਗ ਸਿਆਨੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जोगी जती तपी पचि हारे अरु बहु लोग सिआने ॥१॥ रहाउ ॥
योगी, ब्रह्मचारी, तपस्वी और बहुत सारे बुद्धिमान-विद्वान लोग भी बुरी तरह विफल हो गए हैं।॥ १॥ रहाउ॥
ਛਿਨ ਮਹਿ ਰਾਉ ਰੰਕ ਕਉ ਕਰਈ ਰਾਉ ਰੰਕ ਕਰਿ ਡਾਰੇ ॥
छिन महि राउ रंक कउ करई राउ रंक करि डारे ॥
ईश्वर एक क्षण में राजा को रंक (भिखारी) बना देता है और रंक (भिखारी) को राजा बना देता है।
ਰੀਤੇ ਭਰੇ ਭਰੇ ਸਖਨਾਵੈ ਯਹ ਤਾ ਕੋ ਬਿਵਹਾਰੇ ॥੧॥
रीते भरे भरे सखनावै यह ता को बिवहारे ॥१॥
उसका ऐसा व्यवहार है कि वह खाली वस्तुओं को भी भरपूर कर देता है और जो भरपूर हैं, उसे शून्य करके रख देता है॥ १॥
ਅਪਨੀ ਮਾਇਆ ਆਪਿ ਪਸਾਰੀ ਆਪਹਿ ਦੇਖਨਹਾਰਾ ॥
अपनी माइआ आपि पसारी आपहि देखनहारा ॥
अपनी माया का उसने आप ही प्रसार किया हुआ है और वह स्वयं ही जगत लीला को देख रहा है।
ਨਾਨਾ ਰੂਪੁ ਧਰੇ ਬਹੁ ਰੰਗੀ ਸਭ ਤੇ ਰਹੈ ਨਿਆਰਾ ॥੨॥
नाना रूपु धरे बहु रंगी सभ ते रहै निआरा ॥२॥
वह अनेक रूप धारण करता है और अनेक लीलाएँ खेलता है किन्तु फिर भी सबसे न्यारा ही रहता है॥ २॥
ਅਗਨਤ ਅਪਾਰੁ ਅਲਖ ਨਿਰੰਜਨ ਜਿਹ ਸਭ ਜਗੁ ਭਰਮਾਇਓ ॥
अगनत अपारु अलख निरंजन जिह सभ जगु भरमाइओ ॥
वह निरंजन प्रभु गुण गणना से परे, अपार तथा अलक्ष्य है, जिसने समूचे जगत को भ्रम में डाला हुआ है।
ਸਗਲ ਭਰਮ ਤਜਿ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਾਣੀ ਚਰਨਿ ਤਾਹਿ ਚਿਤੁ ਲਾਇਓ ॥੩॥੧॥੨॥
सगल भरम तजि नानक प्राणी चरनि ताहि चितु लाइओ ॥३॥१॥२॥
नानक का कथन है कि हे प्राणी ! अपने मोह-माया के सभी भ्रम त्याग दे और अपना चित्त प्रभु-चरणों में लगा॥ ३॥ १॥ २॥
ਰਾਗੁ ਬਿਹਾਗੜਾ ਛੰਤ ਮਹਲਾ ੪ ਘਰੁ ੧
रागु बिहागड़ा छंत महला ४ घरु १
रागु बिहागड़ा छंत महला ४ घरु १
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਈਐ ਮੇਰੀ ਜਿੰਦੁੜੀਏ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਅਮੋਲੇ ਰਾਮ ॥
हरि हरि नामु धिआईऐ मेरी जिंदुड़ीए गुरमुखि नामु अमोले राम ॥
हे मेरी आत्मा ! हरि-परमेश्वर के नाम का नित्य ही ध्यान करते रहना चाहिए, लेकिन गुरुमुख बनकर ही हरि का अमूल्य नाम प्राप्त होता है।
ਹਰਿ ਰਸਿ ਬੀਧਾ ਹਰਿ ਮਨੁ ਪਿਆਰਾ ਮਨੁ ਹਰਿ ਰਸਿ ਨਾਮਿ ਝਕੋਲੇ ਰਾਮ ॥
हरि रसि बीधा हरि मनु पिआरा मनु हरि रसि नामि झकोले राम ॥
मेरा मन हरि के नाम-रस में बिंध गया है और मन को हरि ही प्रिय लगता है, हरि के नाम-रस से भीगकर यह मन पावन हो गया है।