ਮੁਕਤਿ ਪਦਾਰਥੁ ਪਾਈਐ ਠਾਕ ਨ ਅਵਘਟ ਘਾਟ ॥੨੩੧॥
मुकति पदारथु पाईऐ ठाक न अवघट घाट ॥२३१॥
उनकी संगत में ही मुक्ति प्राप्त होती है और कठिन रास्ते में रुकावट पैदा नहीं होती ॥ २३१ ॥
ਕਬੀਰ ਏਕ ਘੜੀ ਆਧੀ ਘਰੀ ਆਧੀ ਹੂੰ ਤੇ ਆਧ ॥
कबीर एक घड़ी आधी घरी आधी हूं ते आध ॥
कबीर जी उपदेश देते हैं कि बेशक एक घड़ी या आधी घड़ी, आधी से भी आधी।
ਭਗਤਨ ਸੇਤੀ ਗੋਸਟੇ ਜੋ ਕੀਨੇ ਸੋ ਲਾਭ ॥੨੩੨॥
भगतन सेती गोसटे जो कीने सो लाभ ॥२३२॥
जितने समय भक्तों से ज्ञान-गोष्ठी की जाए, लाभ ही लाभ प्राप्त होता है।॥२३२ ॥
ਕਬੀਰ ਭਾਂਗ ਮਾਛੁਲੀ ਸੁਰਾ ਪਾਨਿ ਜੋ ਜੋ ਪ੍ਰਾਨੀ ਖਾਂਹਿ ॥
कबीर भांग माछुली सुरा पानि जो जो प्रानी खांहि ॥
कबीर जी मांस-मछली व शराब पर एतराज जतलाते हुए कहते हैं कि जो व्यक्ति भांग, शराब पीते हैं, मांस-मछली का भोजन करते हैं,
ਤੀਰਥ ਬਰਤ ਨੇਮ ਕੀਏ ਤੇ ਸਭੈ ਰਸਾਤਲਿ ਜਾਂਹਿ ॥੨੩੩॥
तीरथ बरत नेम कीए ते सभै रसातलि जांहि ॥२३३॥
उनके तीर्थ, व्रत-उपवास, कर्म-धर्म सब निष्फल हो जाते है ॥२३३ ॥
ਨੀਚੇ ਲੋਇਨ ਕਰਿ ਰਹਉ ਲੇ ਸਾਜਨ ਘਟ ਮਾਹਿ ॥
नीचे लोइन करि रहउ ले साजन घट माहि ॥
हे कबीर ! साजन प्रभु को अपने दिल में बसाकर ऑखें नीचे करके रहती हूँ।
ਸਭ ਰਸ ਖੇਲਉ ਪੀਅ ਸਉ ਕਿਸੀ ਲਖਾਵਉ ਨਾਹਿ ॥੨੩੪॥
सभ रस खेलउ पीअ सउ किसी लखावउ नाहि ॥२३४॥
अपने प्रियतम के साथ सब आनंद प्राप्त करती हूँ, पर किसी को मैं इसका भेद नहीं बताती ॥२३४॥
ਆਠ ਜਾਮ ਚਉਸਠਿ ਘਰੀ ਤੁਅ ਨਿਰਖਤ ਰਹੈ ਜੀਉ ॥
आठ जाम चउसठि घरी तुअ निरखत रहै जीउ ॥
हे प्रभु ! आठ प्रहर, चौसठ घड़ी, मेरा दिल तुझे ही देखता रहता है।
ਨੀਚੇ ਲੋਇਨ ਕਿਉ ਕਰਉ ਸਭ ਘਟ ਦੇਖਉ ਪੀਉ ॥੨੩੫॥
नीचे लोइन किउ करउ सभ घट देखउ पीउ ॥२३५॥
मैं अपनी आँखें नीचे क्यों कसैं, जबकि मैं सब में तुझे ही देखता हूँ॥ २३५ ॥
ਸੁਨੁ ਸਖੀ ਪੀਅ ਮਹਿ ਜੀਉ ਬਸੈ ਜੀਅ ਮਹਿ ਬਸੈ ਕਿ ਪੀਉ ॥
सुनु सखी पीअ महि जीउ बसै जीअ महि बसै कि पीउ ॥
हे सखी ! सुन, पति-प्रभु में मेरे प्राण बसते हैं या प्राणों में प्यारा प्रभु बस रहा है।
ਜੀਉ ਪੀਉ ਬੂਝਉ ਨਹੀ ਘਟ ਮਹਿ ਜੀਉ ਕਿ ਪੀਉ ॥੨੩੬॥
जीउ पीउ बूझउ नही घट महि जीउ कि पीउ ॥२३६॥
मैं अपने प्राणों व प्रभु को समझ नहीं सकती कि मेरे हृदय में मेरे प्राण हैं कि प्यारा प्रभु है॥ २३६॥
ਕਬੀਰ ਬਾਮਨੁ ਗੁਰੂ ਹੈ ਜਗਤ ਕਾ ਭਗਤਨ ਕਾ ਗੁਰੁ ਨਾਹਿ ॥
कबीर बामनु गुरू है जगत का भगतन का गुरु नाहि ॥
कबीर जी स्पष्ट शब्दों में कहते हैं कि ब्राह्मण केवल जगत् के लोगों का ही गुरु है, परन्तु भक्तों का गुरु नहीं।
ਅਰਝਿ ਉਰਝਿ ਕੈ ਪਚਿ ਮੂਆ ਚਾਰਉ ਬੇਦਹੁ ਮਾਹਿ ॥੨੩੭॥
अरझि उरझि कै पचि मूआ चारउ बेदहु माहि ॥२३७॥
जो स्वयं चार वेदों के कर्मकाण्ड की उलझन में मर खप रहा है (उसे भक्तों का गुरु नहीं माना जा सकता) ॥ २३७ ॥
ਹਰਿ ਹੈ ਖਾਂਡੁ ਰੇਤੁ ਮਹਿ ਬਿਖਰੀ ਹਾਥੀ ਚੁਨੀ ਨ ਜਾਇ ॥
हरि है खांडु रेतु महि बिखरी हाथी चुनी न जाइ ॥
ईश्वर चीनी समान है, जो संसार रूपी रेत में बिखरा हुआ है। इसे अहंकार रूपी हाथी बनकर चुना नहीं जा सकता।
ਕਹਿ ਕਬੀਰ ਗੁਰਿ ਭਲੀ ਬੁਝਾਈ ਕੀਟੀ ਹੋਇ ਕੈ ਖਾਇ ॥੨੩੮॥
कहि कबीर गुरि भली बुझाई कीटी होइ कै खाइ ॥२३८॥
कबीर जी कहते हैं कि गुरु ने भली बात समझा दी है कि इस चीनी का आनंद केवल नम्रता रूपी चाँटी बनकर ही लिया जा सकता है॥२३८ ॥
ਕਬੀਰ ਜਉ ਤੁਹਿ ਸਾਧ ਪਿਰੰਮ ਕੀ ਸੀਸੁ ਕਾਟਿ ਕਰਿ ਗੋਇ ॥
कबीर जउ तुहि साध पिरम की सीसु काटि करि गोइ ॥
कबीर जी कहते हैं कि यदि तुझे ईश्वर मिलन की अभिलाषा है तो अपना शीश काटकर उसे गेंद बना ले।
ਖੇਲਤ ਖੇਲਤ ਹਾਲ ਕਰਿ ਜੋ ਕਿਛੁ ਹੋਇ ਤ ਹੋਇ ॥੨੩੯॥
खेलत खेलत हाल करि जो किछु होइ त होइ ॥२३९॥
इस गेंद से खेलते-खेलते मस्ती में रंग जा, जो कुछ होना है, उसकी परवाह मत करो ॥ २३६ ॥
ਕਬੀਰ ਜਉ ਤੁਹਿ ਸਾਧ ਪਿਰੰਮ ਕੀ ਪਾਕੇ ਸੇਤੀ ਖੇਲੁ ॥
कबीर जउ तुहि साध पिरम की पाके सेती खेलु ॥
कबीर जी कहते हैं कि यदि तुझे प्रभु मिलन की चाह है तो पक्के गुरु के साथ खेल।
ਕਾਚੀ ਸਰਸਉਂ ਪੇਲਿ ਕੈ ਨਾ ਖਲਿ ਭਈ ਨ ਤੇਲੁ ॥੨੪੦॥
काची सरसउं पेलि कै ना खलि भई न तेलु ॥२४०॥
क्योंकि कच्चे गुरु से न इहलोक का सुख मिलता है न ही परलोक का। जैसे कच्ची सरसों को पेरने से न तेल प्राप्त होता है, न ही खली प्राप्त होती है॥२४० ॥
ਢੂੰਢਤ ਡੋਲਹਿ ਅੰਧ ਗਤਿ ਅਰੁ ਚੀਨਤ ਨਾਹੀ ਸੰਤ ॥
ढूंढत डोलहि अंध गति अरु चीनत नाही संत ॥
अज्ञानांध व्यक्ति इधर-उधर भटकते रहते हैं परन्तु संत पुरुषों को पहचान नहीं पाते।
ਕਹਿ ਨਾਮਾ ਕਿਉ ਪਾਈਐ ਬਿਨੁ ਭਗਤਹੁ ਭਗਵੰਤੁ ॥੨੪੧॥
कहि नामा किउ पाईऐ बिनु भगतहु भगवंतु ॥२४१॥
नामदेव कहते हैं कि फिर भक्ति के बिना भगवान को कैसे पाया जा सकता है।२४१ ॥
ਹਰਿ ਸੋ ਹੀਰਾ ਛਾਡਿ ਕੈ ਕਰਹਿ ਆਨ ਕੀ ਆਸ ॥
हरि सो हीरा छाडि कै करहि आन की आस ॥
परमात्मा रूपी हीरे को छोड़कर जो लोग अन्य की आशा करते हैं,
ਤੇ ਨਰ ਦੋਜਕ ਜਾਹਿਗੇ ਸਤਿ ਭਾਖੈ ਰਵਿਦਾਸ ॥੨੪੨॥
ते नर दोजक जाहिगे सति भाखै रविदास ॥२४२॥
भक्त रविदास ने सच ही कहा है कि – वे नरक में ही जाएँगे ॥ २४२ ॥
ਕਬੀਰ ਜਉ ਗ੍ਰਿਹੁ ਕਰਹਿ ਤ ਧਰਮੁ ਕਰੁ ਨਾਹੀ ਤ ਕਰੁ ਬੈਰਾਗੁ ॥
कबीर जउ ग्रिहु करहि त धरमु करु नाही त करु बैरागु ॥
कबीर जी जनमानस को समझाते हैं कि यदि घर-गृहस्थी का जीवन अपना लिया है तो अपने धर्म-कर्त्तव्य का पालन करो, अन्यथा त्यागी बन जाओ।
ਬੈਰਾਗੀ ਬੰਧਨੁ ਕਰੈ ਤਾ ਕੋ ਬਡੋ ਅਭਾਗੁ ॥੨੪੩॥
बैरागी बंधनु करै ता को बडो अभागु ॥२४३॥
परन्तु यदि त्यागी बनकर भी संसार के बन्धनों में पड़ गए तो यह तुम्हारा दुर्भाग्य है॥ २४३॥
ਸਲੋਕ ਸੇਖ ਫਰੀਦ ਕੇ
सलोक सेख फरीद के
सलोक सेख फरीद के
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
वह परब्रह्म केवल एक (ऑकार-स्वरूप) है, सतगुरु की कृपा से प्राप्ति होती है।
ਜਿਤੁ ਦਿਹਾੜੈ ਧਨ ਵਰੀ ਸਾਹੇ ਲਏ ਲਿਖਾਇ ॥
जितु दिहाड़ै धन वरी साहे लए लिखाइ ॥
जिस दिन जीव-स्त्री का विवाह होना है, वह मुहूर्त पहले ही लिखा हुआ है। (अर्थात् जन्म के साथ ही मृत्यु का दिन भी पूर्व ही तय है)”
ਮਲਕੁ ਜਿ ਕੰਨੀ ਸੁਣੀਦਾ ਮੁਹੁ ਦੇਖਾਲੇ ਆਇ ॥
मलकु जि कंनी सुणीदा मुहु देखाले आइ ॥
जिस मौत के फरिश्ते के बारे में कानों से सुना जाता था, वह आकर मुँह दिखा देता है।
ਜਿੰਦੁ ਨਿਮਾਣੀ ਕਢੀਐ ਹਡਾ ਕੂ ਕੜਕਾਇ ॥
जिंदु निमाणी कढीऐ हडा कू कड़काइ ॥
वह हड्डियों को तोड़-मरोड़कर बेचारे प्राणों को निकाल लेता है।
ਸਾਹੇ ਲਿਖੇ ਨ ਚਲਨੀ ਜਿੰਦੂ ਕੂੰ ਸਮਝਾਇ ॥
साहे लिखे न चलनी जिंदू कूं समझाइ ॥
इन प्राणों को अच्छी तरह समझा दो कि मौत का समय बदल नहीं सकता।
ਜਿੰਦੁ ਵਹੁਟੀ ਮਰਣੁ ਵਰੁ ਲੈ ਜਾਸੀ ਪਰਣਾਇ ॥
जिंदु वहुटी मरणु वरु लै जासी परणाइ ॥
प्राण रूपी दुल्हन के साथ मौत रूपी दूल्हा विवाह रचा कर ले ही जाता है।
ਆਪਣ ਹਥੀ ਜੋਲਿ ਕੈ ਕੈ ਗਲਿ ਲਗੈ ਧਾਇ ॥
आपण हथी जोलि कै कै गलि लगै धाइ ॥
तो फिर भला अपने हाथों से प्राणों को विदा करके देह किसके गले लगकर आंसू बहाएगी।
ਵਾਲਹੁ ਨਿਕੀ ਪੁਰਸਲਾਤ ਕੰਨੀ ਨ ਸੁਣੀ ਆਇ ॥
वालहु निकी पुरसलात कंनी न सुणी आइ ॥
हे जीव ! क्या तूने कानों से सुना नहीं कि नरक की आग पर बना पुल बालों से भी बारीक है।
ਫਰੀਦਾ ਕਿੜੀ ਪਵੰਦੀਈ ਖੜਾ ਨ ਆਪੁ ਮੁਹਾਇ ॥੧॥
फरीदा किड़ी पवंदीई खड़ा न आपु मुहाइ ॥१॥
फरीद जी अनुरोध करते हैं कि आवाजें आ रही हैं, उससे गुजरने के लिए तू खड़ा-खड़ा मत लुट॥१॥
ਫਰੀਦਾ ਦਰ ਦਰਵੇਸੀ ਗਾਖੜੀ ਚਲਾਂ ਦੁਨੀਆਂ ਭਤਿ ॥
फरीदा दर दरवेसी गाखड़ी चलां दुनीआं भति ॥
हे फरीद ! रब के दर की फकीरी करना बहुत कठिन है, परन्तु मैं तो दुनियादारी की तरह ही चल रहा हूँ।