ਸਤਿਗੁਰੁ ਗੁਰੁ ਸੇਵਿ ਅਲਖ ਗਤਿ ਜਾ ਕੀ ਸ੍ਰੀ ਰਾਮਦਾਸੁ ਤਾਰਣ ਤਰਣੰ ॥੨॥
सतिगुरु गुरु सेवि अलख गति जा की स्री रामदासु तारण तरणं ॥२॥
सतिगुरु रामदास की सेवा करो, उनकी महिमा अवर्णनीय है, वास्तव में श्री गुरु रामदास संसार-सागर से पार उतारने वाले जहाज हैं॥२ ॥
ਸੰਸਾਰੁ ਅਗਮ ਸਾਗਰੁ ਤੁਲਹਾ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਗੁਰੂ ਮੁਖਿ ਪਾਯਾ ॥
संसारु अगम सागरु तुलहा हरि नामु गुरू मुखि पाया ॥
यह संसार असीम सागर है, जिससे परमात्मा का नाम पार करवाने वाला जहाज है और यह गुरु से प्राप्त होता है।
ਜਗਿ ਜਨਮ ਮਰਣੁ ਭਗਾ ਇਹ ਆਈ ਹੀਐ ਪਰਤੀਤਿ ॥
जगि जनम मरणु भगा इह आई हीऐ परतीति ॥
जब मन में हरिनाम के प्रति पूर्ण आस्था उत्पन्न होती है, तो जग में जन्म-मरण से मुक्ति हो जाती है।
ਪਰਤੀਤਿ ਹੀਐ ਆਈ ਜਿਨ ਜਨ ਕੈ ਤਿਨੑ ਕਉ ਪਦਵੀ ਉਚ ਭਈ ॥
परतीति हीऐ आई जिन जन कै तिन्ह कउ पदवी उच भई ॥
जिस व्यक्ति के मन में पूर्ण भरोसा हो जाता है, उसे ही उच्च पदवी प्राप्त होती है।
ਤਜਿ ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਲੋਭੁ ਅਰੁ ਲਾਲਚੁ ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧ ਕੀ ਬ੍ਰਿਥਾ ਗਈ ॥
तजि माइआ मोहु लोभु अरु लालचु काम क्रोध की ब्रिथा गई ॥
वह माया-मोह एवं लोभ-लालच को छोड़ देता है और काम-क्रोध की पीड़ा से छूट जाता है।
ਅਵਲੋਕੵਾ ਬ੍ਰਹਮੁ ਭਰਮੁ ਸਭੁ ਛੁਟਕੵਾ ਦਿਬੵ ਦ੍ਰਿਸ੍ਟਿ ਕਾਰਣ ਕਰਣੰ ॥
अवलोक्या ब्रहमु भरमु सभु छुटक्या दिब्य द्रिस्टि कारण करणं ॥
जिस सज्जन ने सर्वकर्ता, करण-कारण, दिव्य दृष्टि, परब्रह्म रूप गुरु रामदास को देखा है, उसके सब भ्रम छूट गए हैं।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਗੁਰੁ ਸੇਵਿ ਅਲਖ ਗਤਿ ਜਾ ਕੀ ਸ੍ਰੀ ਰਾਮਦਾਸੁ ਤਾਰਣ ਤਰਣੰ ॥੩॥
सतिगुरु गुरु सेवि अलख गति जा की स्री रामदासु तारण तरणं ॥३॥
सतिगुरु की सेवा करो, जिसकी महिमा अवर्णनीय है, हे जिज्ञासुओ, श्री गुरु रामदास भवसागर से पार लंघाने वाले जहाज हैं।॥३॥
ਪਰਤਾਪੁ ਸਦਾ ਗੁਰ ਕਾ ਘਟਿ ਘਟਿ ਪਰਗਾਸੁ ਭਯਾ ਜਸੁ ਜਨ ਕੈ ॥
परतापु सदा गुर का घटि घटि परगासु भया जसु जन कै ॥
गुरु रामदास का प्रताप सर्वत्र फैला हुआ है, शिष्य, सेवक उनका ही यश गा रहे हैं।
ਇਕਿ ਪੜਹਿ ਸੁਣਹਿ ਗਾਵਹਿ ਪਰਭਾਤਿਹਿ ਕਰਹਿ ਇਸ੍ਨਾਨੁ ॥
इकि पड़हि सुणहि गावहि परभातिहि करहि इस्नानु ॥
कोई प्रभात काल उठकर स्नान करके उनकी अमृतवाणी पढ़ते-सुनते एवं गाते हैं।
ਇਸ੍ਨਾਨੁ ਕਰਹਿ ਪਰਭਾਤਿ ਸੁਧ ਮਨਿ ਗੁਰ ਪੂਜਾ ਬਿਧਿ ਸਹਿਤ ਕਰੰ ॥
इस्नानु करहि परभाति सुध मनि गुर पूजा बिधि सहित करं ॥
वे प्रातः काल स्नान करके शुद्ध मन से गुरु की पूजा-अर्चना करते हैं।
ਕੰਚਨੁ ਤਨੁ ਹੋਇ ਪਰਸਿ ਪਾਰਸ ਕਉ ਜੋਤਿ ਸਰੂਪੀ ਧੵਾਨੁ ਧਰੰ ॥
कंचनु तनु होइ परसि पारस कउ जोति सरूपी ध्यानु धरं ॥
गुरु रूपी पारस के स्पर्श से उनका तन कंचन हो जाता है और ज्योति स्वरूप गुरु रामदास का ही वे ध्यान धारण करते हैं।
ਜਗਜੀਵਨੁ ਜਗੰਨਾਥੁ ਜਲ ਥਲ ਮਹਿ ਰਹਿਆ ਪੂਰਿ ਬਹੁ ਬਿਧਿ ਬਰਨੰ ॥
जगजीवनु जगंनाथु जल थल महि रहिआ पूरि बहु बिधि बरनं ॥
संसार का जीवन, जगत का मालिक जल थल सबमें व्याप्त है, अनेक प्रकार से उसी का वर्णन हो रहा है।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਗੁਰੁ ਸੇਵਿ ਅਲਖ ਗਤਿ ਜਾ ਕੀ ਸ੍ਰੀ ਰਾਮਦਾਸੁ ਤਾਰਣ ਤਰਣੰ ॥੪॥
सतिगुरु गुरु सेवि अलख गति जा की स्री रामदासु तारण तरणं ॥४॥
सो ऐसे परमेश्वर रूप गुरु (रामदास) की सेवा करो, उसकी महिमा अवर्णनीय है, हे जिज्ञासुओ, श्री गुरु रामदास भवसागर से पार करवाने वाले जहाज हैं॥४॥
ਜਿਨਹੁ ਬਾਤ ਨਿਸ੍ਚਲ ਧ੍ਰੂਅ ਜਾਨੀ ਤੇਈ ਜੀਵ ਕਾਲ ਤੇ ਬਚਾ ॥
जिनहु बात निस्चल ध्रूअ जानी तेई जीव काल ते बचा ॥
जिन्होंने गुरु की बात को धुव की तरह निश्चय रूप में मान लिया है, ऐसे व्यक्ति काल से बच गए हैं।
ਤਿਨੑ ਤਰਿਓ ਸਮੁਦ੍ਰੁ ਰੁਦ੍ਰੁ ਖਿਨ ਇਕ ਮਹਿ ਜਲਹਰ ਬਿੰਬ ਜੁਗਤਿ ਜਗੁ ਰਚਾ ॥
तिन्ह तरिओ समुद्रु रुद्रु खिन इक महि जलहर बि्मब जुगति जगु रचा ॥
उन्होंने भयानक संसार-समुद्र एक पल में पार कर लिया है और वे यही मानते हैं कि यह जगत बादलों की छाया समान नश्वर है।
ਕੁੰਡਲਨੀ ਸੁਰਝੀ ਸਤਸੰਗਤਿ ਪਰਮਾਨੰਦ ਗੁਰੂ ਮੁਖਿ ਮਚਾ ॥
कुंडलनी सुरझी सतसंगति परमानंद गुरू मुखि मचा ॥
गुरु की संगत में कुण्डलिनी सुलझ गई है और परमानंद की प्राप्ति हुई है।
ਸਿਰੀ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬੁ ਸਭ ਊਪਰਿ ਮਨ ਬਚ ਕ੍ਰੰਮ ਸੇਵੀਐ ਸਚਾ ॥੫॥
सिरी गुरू साहिबु सभ ऊपरि मन बच क्रम सेवीऐ सचा ॥५॥
महामहिम गुरु ही मालिक है, सबसे बड़ा है, मन, वचन, कर्म से उसी की सेवा करनी चाहिए ॥५॥
ਵਾਹਿਗੁਰੂ ਵਾਹਿਗੁਰੂ ਵਾਹਿਗੁਰੂ ਵਾਹਿ ਜੀਉ ॥
वाहिगुरू वाहिगुरू वाहिगुरू वाहि जीउ ॥
हे वाहिगुरु ! हे (गुरु रामदास) परमेश्वर ! वाह-वाह, तू प्रशंसनीय है, मैं तुझ पर कुर्बान हूँ।
ਕਵਲ ਨੈਨ ਮਧੁਰ ਬੈਨ ਕੋਟਿ ਸੈਨ ਸੰਗ ਸੋਭ ਕਹਤ ਮਾ ਜਸੋਦ ਜਿਸਹਿ ਦਹੀ ਭਾਤੁ ਖਾਹਿ ਜੀਉ ॥
कवल नैन मधुर बैन कोटि सैन संग सोभ कहत मा जसोद जिसहि दही भातु खाहि जीउ ॥
तुम्हारे नयन कमल समान हैं, तुम मधुर बोलने वाले हो, करोड़ों के साथ तू शोभा दे रहा है, जिसे यशोदा मैया दही चावल खाने के लिए देती थी, श्री गोपाल कृष्ण तुम ही हो।
ਦੇਖਿ ਰੂਪੁ ਅਤਿ ਅਨੂਪੁ ਮੋਹ ਮਹਾ ਮਗ ਭਈ ਕਿੰਕਨੀ ਸਬਦ ਝਨਤਕਾਰ ਖੇਲੁ ਪਾਹਿ ਜੀਉ ॥
देखि रूपु अति अनूपु मोह महा मग भई किंकनी सबद झनतकार खेलु पाहि जीउ ॥
तेरा अनुपम रूप देखकर वह मोह में मोहित हो जाती थी, खेल-खेल में मधुर झंकार तुम ही करने वाले थे।
ਕਾਲ ਕਲਮ ਹੁਕਮੁ ਹਾਥਿ ਕਹਹੁ ਕਉਨੁ ਮੇਟਿ ਸਕੈ ਈਸੁ ਬੰਮੵੁ ਗੵਾਨੁ ਧੵਾਨੁ ਧਰਤ ਹੀਐ ਚਾਹਿ ਜੀਉ ॥
काल कलम हुकमु हाथि कहहु कउनु मेटि सकै ईसु बम्यु ग्यानु ध्यानु धरत हीऐ चाहि जीउ ॥
मृत्यु की कलम तथा हुक्म तेरे ही हाथ में है, जिसे कोई बदल नहीं सकता। शिव, ब्रह्मा भी तेरे ज्ञान-ध्यान को हृदय में धारण करना चाहते हैं।
ਸਤਿ ਸਾਚੁ ਸ੍ਰੀ ਨਿਵਾਸੁ ਆਦਿ ਪੁਰਖੁ ਸਦਾ ਤੁਹੀ ਵਾਹਿਗੁਰੂ ਵਾਹਿਗੁਰੂ ਵਾਹਿਗੁਰੂ ਵਾਹਿ ਜੀਉ ॥੧॥੬॥
सति साचु स्री निवासु आदि पुरखु सदा तुही वाहिगुरू वाहिगुरू वाहिगुरू वाहि जीउ ॥१॥६॥
तू शाश्वत रूप है, देवी लक्ष्मी तेरी सेवा में तल्लीन रहती है, तू रचनहार परमपुरुष है। हे परम परमेश्वर, वाहिगुरु ! तू स्तुति के योग्य है, तुझ पर मैं कुर्बान जाता हूँ॥१॥ ६॥
ਰਾਮ ਨਾਮ ਪਰਮ ਧਾਮ ਸੁਧ ਬੁਧ ਨਿਰੀਕਾਰ ਬੇਸੁਮਾਰ ਸਰਬਰ ਕਉ ਕਾਹਿ ਜੀਉ ॥
राम नाम परम धाम सुध बुध निरीकार बेसुमार सरबर कउ काहि जीउ ॥
तेरा नाम राम है, तू वैकुण्ठ में विराजमान है, परमपवित्र है, बुद्धिमान है, निराकार, बे-अन्त है, तेरे सरीखा (हे गुरु रामदास) कोई नहीं।
ਸੁਥਰ ਚਿਤ ਭਗਤ ਹਿਤ ਭੇਖੁ ਧਰਿਓ ਹਰਨਾਖਸੁ ਹਰਿਓ ਨਖ ਬਿਦਾਰਿ ਜੀਉ ॥
सुथर चित भगत हित भेखु धरिओ हरनाखसु हरिओ नख बिदारि जीउ ॥
तू सदा रहने वाला है, स्थिरचित है, भक्तों से प्रेम करने वाला है, अपने भक्त की खातिर नृसिंहावतार धारण किया और दुष्ट हिरण्यकशिपु को नाखुनों से चीरकर फाड़ दिया।
ਸੰਖ ਚਕ੍ਰ ਗਦਾ ਪਦਮ ਆਪਿ ਆਪੁ ਕੀਓ ਛਦਮ ਅਪਰੰਪਰ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਲਖੈ ਕਉਨੁ ਤਾਹਿ ਜੀਉ ॥
संख चक्र गदा पदम आपि आपु कीओ छदम अपर्मपर पारब्रहम लखै कउनु ताहि जीउ ॥
शंख, चक्र, गदा एवं पदम (हे गुरु रामदास) तुम्हीं ने धारण किया हुआ है, तू परे से परे है , वामनावतार में राजा बलि को तू ही छलने वाला है। हे परब्रह्म, तेरा रूप अव्यक्त है।
ਸਤਿ ਸਾਚੁ ਸ੍ਰੀ ਨਿਵਾਸੁ ਆਦਿ ਪੁਰਖੁ ਸਦਾ ਤੁਹੀ ਵਾਹਿਗੁਰੂ ਵਾਹਿਗੁਰੂ ਵਾਹਿਗੁਰੂ ਵਾਹਿ ਜੀਉ ॥੨॥੭॥
सति साचु स्री निवासु आदि पुरखु सदा तुही वाहिगुरू वाहिगुरू वाहिगुरू वाहि जीउ ॥२॥७॥
“(हे गुरु रामदास) तू सत्य है, शाश्वत स्वरूप है, तू ही आदिपुरुष है, देवी लक्ष्मी तेरी सेवा में तल्लीन है। तू सदा रहने वाला है, वाह-वाह मेरे वाहिगुरु (गुरु रामदास) तू महामहिम पूज्य है, मैं तुझ पर सर्वदा कुर्बान हँ ॥२॥७॥
ਪੀਤ ਬਸਨ ਕੁੰਦ ਦਸਨ ਪ੍ਰਿਆ ਸਹਿਤ ਕੰਠ ਮਾਲ ਮੁਕਟੁ ਸੀਸਿ ਮੋਰ ਪੰਖ ਚਾਹਿ ਜੀਉ ॥
पीत बसन कुंद दसन प्रिआ सहित कंठ माल मुकटु सीसि मोर पंख चाहि जीउ ॥
हे सतिगुरु रामदास ! पीले वस्त्रों में तू ही कृष्ण-कन्हैया है, तेरे मोतियों की तरह सफेद दाँत हैं, अपनी प्रिया (राधा) के साथ आनंद करता है, तेरे गले में वैजयंती माला है, मोर पंखों वाला शीश पर मुकुट धारण किया है।