ਤੂੰ ਵਡਾ ਤੂੰ ਊਚੋ ਊਚਾ ॥
तूं वडा तूं ऊचो ऊचा ॥
हे प्रभु ! तुम महान हो, तुम सर्वोच्च एवं सर्वोपरि हो।
ਤੂੰ ਬੇਅੰਤੁ ਅਤਿ ਮੂਚੋ ਮੂਚਾ ॥
तूं बेअंतु अति मूचो मूचा ॥
हे दाता ! तुम अनन्त हो और सर्वश्रेष्ठ हो।
ਹਉ ਕੁਰਬਾਣੀ ਤੇਰੈ ਵੰਞਾ ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਦਸਾਵਣਿਆ ॥੮॥੧॥੩੫॥
हउ कुरबाणी तेरै वंञा नानक दास दसावणिआ ॥८॥१॥३५॥
हे प्रभु ! मैं तुझ पर बलिहारी जाता हूँ। हे नानक ! मैं प्रभु के दासों का दास हूँ॥ ८ ॥ १ ॥ ३५॥
ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥
माझ महला ५ ॥
माझ महला ५ ॥
ਕਉਣੁ ਸੁ ਮੁਕਤਾ ਕਉਣੁ ਸੁ ਜੁਗਤਾ ॥
कउणु सु मुकता कउणु सु जुगता ॥
वह कौन है जो माया के बंधनों से मुक्त हो गया है? और कौन परमात्मा से नाम द्वारा जुड़ा हुआ है?
ਕਉਣੁ ਸੁ ਗਿਆਨੀ ਕਉਣੁ ਸੁ ਬਕਤਾ ॥
कउणु सु गिआनी कउणु सु बकता ॥
कौन ज्ञानी है ? और कौन वक्ता है?
ਕਉਣੁ ਸੁ ਗਿਰਹੀ ਕਉਣੁ ਉਦਾਸੀ ਕਉਣੁ ਸੁ ਕੀਮਤਿ ਪਾਏ ਜੀਉ ॥੧॥
कउणु सु गिरही कउणु उदासी कउणु सु कीमति पाए जीउ ॥१॥
कौन गृहस्थी है ? और कौन त्यागी है ? और परमेश्वर का मूल्य कौन पा सकता है?॥ १॥
ਕਿਨਿ ਬਿਧਿ ਬਾਧਾ ਕਿਨਿ ਬਿਧਿ ਛੂਟਾ ॥
किनि बिधि बाधा किनि बिधि छूटा ॥
मनुष्य कैसे माया के बंधनों में बंध जाता है? और कैसे मुक्त हो जाता है ?
ਕਿਨਿ ਬਿਧਿ ਆਵਣੁ ਜਾਵਣੁ ਤੂਟਾ ॥
किनि बिधि आवणु जावणु तूटा ॥
किस विधि द्वारा जीव आवागमन (जन्म-मरण) से बच सकता है ?
ਕਉਣ ਕਰਮ ਕਉਣ ਨਿਹਕਰਮਾ ਕਉਣੁ ਸੁ ਕਹੈ ਕਹਾਏ ਜੀਉ ॥੨॥
कउण करम कउण निहकरमा कउणु सु कहै कहाए जीउ ॥२॥
धर्म-कर्म करने वाला कोन है ? और वासना रहित होकर कर्म करने वाला कौन है ? कौन ईश्वर के नाम की महिमा करता और अन्यों से महिमा करवाता है॥ २ ॥
ਕਉਣੁ ਸੁ ਸੁਖੀਆ ਕਉਣੁ ਸੁ ਦੁਖੀਆ ॥
कउणु सु सुखीआ कउणु सु दुखीआ ॥
जगत् में कौन सुखी है और कौन दुखी है ?
ਕਉਣੁ ਸੁ ਸਨਮੁਖੁ ਕਉਣੁ ਵੇਮੁਖੀਆ ॥
कउणु सु सनमुखु कउणु वेमुखीआ ॥
कौन समक्ष है और कौन विमुख ?
ਕਿਨਿ ਬਿਧਿ ਮਿਲੀਐ ਕਿਨਿ ਬਿਧਿ ਬਿਛੁਰੈ ਇਹ ਬਿਧਿ ਕਉਣੁ ਪ੍ਰਗਟਾਏ ਜੀਉ ॥੩॥
किनि बिधि मिलीऐ किनि बिधि बिछुरै इह बिधि कउणु प्रगटाए जीउ ॥३॥
किस विधि से परमात्मा मिलता है और किस विधि से मनुष्य उससे बिछुड़ जाता है? यह विधि मुझे कौन बतलाएगा ? ॥ ३॥
ਕਉਣੁ ਸੁ ਅਖਰੁ ਜਿਤੁ ਧਾਵਤੁ ਰਹਤਾ ॥
कउणु सु अखरु जितु धावतु रहता ॥
वह कौन-सा दिव्य अक्षर है, जिसके अध्ययन से मन का भटकना मिट जाता है ?
ਕਉਣੁ ਉਪਦੇਸੁ ਜਿਤੁ ਦੁਖੁ ਸੁਖੁ ਸਮ ਸਹਤਾ ॥
कउणु उपदेसु जितु दुखु सुखु सम सहता ॥
वह कौन-सा उपदेश है ? जिसके द्वारा प्राणी सुख-दुख को एक समान जानकर सहन करता है।
ਕਉਣੁ ਸੁ ਚਾਲ ਜਿਤੁ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਧਿਆਏ ਕਿਨਿ ਬਿਧਿ ਕੀਰਤਨੁ ਗਾਏ ਜੀਉ ॥੪॥
कउणु सु चाल जितु पारब्रहमु धिआए किनि बिधि कीरतनु गाए जीउ ॥४॥
वह कौन-सी युक्ति है? जिसके द्वारा प्राणी पारब्रह्म-परमेश्वर की आराधना करे ? किस विधि द्वारा प्रभु का भजन कर सकता है ? ॥ ४॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਮੁਕਤਾ ਗੁਰਮੁਖਿ ਜੁਗਤਾ ॥
गुरमुखि मुकता गुरमुखि जुगता ॥
गुरु जी उत्तर देते हैं कि गुरमुख मुक्त है और गुरमुख ईश्वर से जुड़ा रहता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਗਿਆਨੀ ਗੁਰਮੁਖਿ ਬਕਤਾ ॥
गुरमुखि गिआनी गुरमुखि बकता ॥
गुरमुख ज्ञानी है और गुरमुख वक्ता है।
ਧੰਨੁ ਗਿਰਹੀ ਉਦਾਸੀ ਗੁਰਮੁਖਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਕੀਮਤਿ ਪਾਏ ਜੀਉ ॥੫॥
धंनु गिरही उदासी गुरमुखि गुरमुखि कीमति पाए जीउ ॥५॥
धन्य है वह गुरमुख चाहे वह गृहस्थी हो अथवा त्यागी। गुरमुख ही प्रभु का मूल्यांकन जानता है॥ ५ ॥
ਹਉਮੈ ਬਾਧਾ ਗੁਰਮੁਖਿ ਛੂਟਾ ॥
हउमै बाधा गुरमुखि छूटा ॥
जीव अहंकारवश माया के बंधनों में बंध जाता है परन्तु गुरमुख माया के बधनों से मुक्त हो जाता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਆਵਣੁ ਜਾਵਣੁ ਤੂਟਾ ॥
गुरमुखि आवणु जावणु तूटा ॥
गुरमुख का आवागमन जीवन-मृत्यु का चक्र समाप्त हो जाता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਕਰਮ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਿਹਕਰਮਾ ਗੁਰਮੁਖਿ ਕਰੇ ਸੁ ਸੁਭਾਏ ਜੀਉ ॥੬॥
गुरमुखि करम गुरमुखि निहकरमा गुरमुखि करे सु सुभाए जीउ ॥६॥
गुरमुख सुकर्म (धर्म-कर्म) करता है, परन्तु फल की इच्छा नहीं रखता। गुरमुख प्रभु-प्रेम में जो भी कर्म करता है, वह शोभनीय है॥ ६॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਸੁਖੀਆ ਮਨਮੁਖਿ ਦੁਖੀਆ ॥
गुरमुखि सुखीआ मनमुखि दुखीआ ॥
इस दुनिया में गुरमुख सदैव सुखी रहता है परन्तु मनमुख सदैव दुखी रहता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਨਮੁਖੁ ਮਨਮੁਖਿ ਵੇਮੁਖੀਆ ॥
गुरमुखि सनमुखु मनमुखि वेमुखीआ ॥
गुरमुख हमेशा ही भगवान के समक्ष रहता है किन्तु मनमुख भगवान से विमुख हो जाता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਮਿਲੀਐ ਮਨਮੁਖਿ ਵਿਛੁਰੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਬਿਧਿ ਪ੍ਰਗਟਾਏ ਜੀਉ ॥੭॥
गुरमुखि मिलीऐ मनमुखि विछुरै गुरमुखि बिधि प्रगटाए जीउ ॥७॥
गुरमुख ही भगवान से मिलता है। परन्तु मनमुख भगवान से बिछुड़ जाता है। गुरु ही भगवान से मिलन की विधि प्रगट करता है॥ ७॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਅਖਰੁ ਜਿਤੁ ਧਾਵਤੁ ਰਹਤਾ ॥
गुरमुखि अखरु जितु धावतु रहता ॥
गुरु का उपदेश दिव्य अक्षर है, जिससे भटका हुआ मन वश में आ जाता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਉਪਦੇਸੁ ਦੁਖੁ ਸੁਖੁ ਸਮ ਸਹਤਾ ॥
गुरमुखि उपदेसु दुखु सुखु सम सहता ॥
गुरु के उपदेश द्वारा मनुष्य दु:ख एवं सुख को एक समान समझता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਚਾਲ ਜਿਤੁ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਧਿਆਏ ਗੁਰਮੁਖਿ ਕੀਰਤਨੁ ਗਾਏ ਜੀਉ ॥੮॥
गुरमुखि चाल जितु पारब्रहमु धिआए गुरमुखि कीरतनु गाए जीउ ॥८॥
गुरु का उपदेश ही सद्मार्ग है, जिस द्वारा पारब्रह्म प्रभु का चिन्तन किया जाता है। गुरमुख ही परमेश्वर का कीर्तन गायन करते हैं।॥ ८ ॥
ਸਗਲੀ ਬਣਤ ਬਣਾਈ ਆਪੇ ॥
सगली बणत बणाई आपे ॥
जगत-रचना की सारी संरचना प्रभु ने आप ही की है।
ਆਪੇ ਕਰੇ ਕਰਾਏ ਥਾਪੇ ॥
आपे करे कराए थापे ॥
परमात्मा प्राणियों का कर्ता है, स्वयं ही कर्म करवाता है और स्वयं ही जीवों को पैदा करता है।
ਇਕਸੁ ਤੇ ਹੋਇਓ ਅਨੰਤਾ ਨਾਨਕ ਏਕਸੁ ਮਾਹਿ ਸਮਾਏ ਜੀਉ ॥੯॥੨॥੩੬॥
इकसु ते होइओ अनंता नानक एकसु माहि समाए जीउ ॥९॥२॥३६॥
वह सृष्टि रचना के समय अनन्त रूप हो जाता है। हे नानक ! जगत् के प्रलयकाल में समस्त प्राणी एक ईश्वर में ही समा जाते हैं॥९॥२॥३६॥
ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥
माझ महला ५ ॥
माझ महला ५ ॥
ਪ੍ਰਭੁ ਅਬਿਨਾਸੀ ਤਾ ਕਿਆ ਕਾੜਾ ॥
प्रभु अबिनासी ता किआ काड़ा ॥
हे अविनाशी प्रभु ! जब तू मेरा रखवाला है तो मुझे क्या चिंता है ?
ਹਰਿ ਭਗਵੰਤਾ ਤਾ ਜਨੁ ਖਰਾ ਸੁਖਾਲਾ ॥
हरि भगवंता ता जनु खरा सुखाला ॥
हे हरि-परमेश्वर ! जब तू मेरा रक्षक है तो मैं तेरा उपासक बहुत सुखी रहता हूँ।
ਜੀਅ ਪ੍ਰਾਨ ਮਾਨ ਸੁਖਦਾਤਾ ਤੂੰ ਕਰਹਿ ਸੋਈ ਸੁਖੁ ਪਾਵਣਿਆ ॥੧॥
जीअ प्रान मान सुखदाता तूं करहि सोई सुखु पावणिआ ॥१॥
तू ही मेरी आत्मा, प्राण एवं मान-प्रतिष्ठा है और तू ही सुखदाता है। तुम जो कुछ भी करते हो, उससे ही मैं सुख प्राप्त करता हूँ॥ १॥
ਹਉ ਵਾਰੀ ਜੀਉ ਵਾਰੀ ਗੁਰਮੁਖਿ ਮਨਿ ਤਨਿ ਭਾਵਣਿਆ ॥
हउ वारी जीउ वारी गुरमुखि मनि तनि भावणिआ ॥
मैं उन गुरमुखों पर तन-मन से बलिहारी हूँ जिनके मन एवं तन को तुम अच्छे लगते हो।
ਤੂੰ ਮੇਰਾ ਪਰਬਤੁ ਤੂੰ ਮੇਰਾ ਓਲਾ ਤੁਮ ਸੰਗਿ ਲਵੈ ਨ ਲਾਵਣਿਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
तूं मेरा परबतु तूं मेरा ओला तुम संगि लवै न लावणिआ ॥१॥ रहाउ ॥
तू ही मेरा पर्वत है और तू ही मेरा आधार है। हे प्रभु ! तेरे साथ कोई भी समानता नहीं कर सकता ॥ १॥ रहाउ॥
ਤੇਰਾ ਕੀਤਾ ਜਿਸੁ ਲਾਗੈ ਮੀਠਾ ॥
तेरा कीता जिसु लागै मीठा ॥
जिस व्यक्ति को तेरा किया (इच्छा) मीठा लगता है,
ਘਟਿ ਘਟਿ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਤਿਨਿ ਜਨਿ ਡੀਠਾ ॥
घटि घटि पारब्रहमु तिनि जनि डीठा ॥
उसे पारब्रह्म-प्रभु प्रत्येक जीव के हृदय में विद्यमान दिखाई देता है।
ਥਾਨਿ ਥਨੰਤਰਿ ਤੂੰਹੈ ਤੂੰਹੈ ਇਕੋ ਇਕੁ ਵਰਤਾਵਣਿਆ ॥੨॥
थानि थनंतरि तूंहै तूंहै इको इकु वरतावणिआ ॥२॥
एक तू ही समस्त स्थानों में रहता है। एक तू ही सर्वत्र अपना हुक्म चला रहा है॥ २॥
ਸਗਲ ਮਨੋਰਥ ਤੂੰ ਦੇਵਣਹਾਰਾ ॥
सगल मनोरथ तूं देवणहारा ॥
हे प्रभु ! तुम समस्त मनोरथ पूर्ण करने वाले हो।
ਭਗਤੀ ਭਾਇ ਭਰੇ ਭੰਡਾਰਾ ॥
भगती भाइ भरे भंडारा ॥
तेरे भण्डार प्रेम एवं भक्ति से भरे हुए हैं।
ਦਇਆ ਧਾਰਿ ਰਾਖੇ ਤੁਧੁ ਸੇਈ ਪੂਰੈ ਕਰਮਿ ਸਮਾਵਣਿਆ ॥੩॥
दइआ धारि राखे तुधु सेई पूरै करमि समावणिआ ॥३॥
हे नाथ ! जिन पर तुम दया करके रक्षा करते हो, वह तेरी पूर्ण कृपा से तुझ में ही समा जाते हैं।॥ ३॥