Hindi Page 133

ਚਰਨ ਸੇਵ ਸੰਤ ਸਾਧ ਕੇ ਸਗਲ ਮਨੋਰਥ ਪੂਰੇ ॥੩॥
चरन सेव संत साध के सगल मनोरथ पूरे ॥३॥
संतों व साधु जनों के चरणों की सेवा करने से मेरी समस्त अभिलाषाएँ पूर्ण हो गई हैं॥ ३॥                                                          

ਘਟਿ ਘਟਿ ਏਕੁ ਵਰਤਦਾ ਜਲਿ ਥਲਿ ਮਹੀਅਲਿ ਪੂਰੇ ॥੪॥ 
घटि घटि एकु वरतदा जलि थलि महीअलि पूरे ॥४॥
कण-कण में एक ईश्वर ही विद्यमान है। जल, थल एवं गगन में भी वही समाया हुआ है॥ ४॥

ਪਾਪ ਬਿਨਾਸਨੁ ਸੇਵਿਆ ਪਵਿਤ੍ਰ ਸੰਤਨ ਕੀ ਧੂਰੇ ॥੫॥
पाप बिनासनु सेविआ पवित्र संतन की धूरे ॥५॥
संतों के चरणों की धूलि द्वारा पवित्र होकर मैंने पापों के विनाशक प्रभु की सेवा की है॥ ५॥

ਸਭ ਛਡਾਈ ਖਸਮਿ ਆਪਿ ਹਰਿ ਜਪਿ ਭਈ ਠਰੂਰੇ ॥੬॥
सभ छडाई खसमि आपि हरि जपि भई ठरूरे ॥६॥
सारी सृष्टि को मालिक प्रभु ने स्वयं ही माया-जाल में से मुक्त किया है और सारी सृष्टि भगवान का नाम जप कर शीतल हो गई है॥ ६॥

ਕਰਤੈ ਕੀਆ ਤਪਾਵਸੋ ਦੁਸਟ ਮੁਏ ਹੋਇ ਮੂਰੇ ॥੭॥
करतै कीआ तपावसो दुसट मुए होइ मूरे ॥७॥
सृजनहार प्रभु ने स्वयं इन्साफ किया है और काम, क्रोध, लोभ, मोह इत्यादि सभी दुष्ट मूक होकर प्राण त्याग गए हैं॥ ७॥

ਨਾਨਕ ਰਤਾ ਸਚਿ ਨਾਇ ਹਰਿ ਵੇਖੈ ਸਦਾ ਹਜੂਰੇ ॥੮॥੫॥੩੯॥੧॥੩੨॥੧॥੫॥੩੯॥
नानक रता सचि नाइ हरि वेखै सदा हजूरे ॥८॥५॥३९॥१॥३२॥१॥५॥३९॥
हे नानक ! जो व्यक्ति सत्य-नाम में मग्न हो जाता है, वह प्रभु-परमेश्वर को सदैव अपने नेत्रों के समक्ष प्रत्यक्ष देखता है ॥८॥५॥३९॥१॥३२॥१॥५॥३९॥

ਬਾਰਹ ਮਾਹਾ ਮਾਂਝ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੪
बारह माहा मांझ महला ५ घरु ४
बारह माहा मांझ महला ५ घरु ४

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।

ਕਿਰਤਿ ਕਰਮ ਕੇ ਵੀਛੁੜੇ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਮੇਲਹੁ ਰਾਮ ॥
किरति करम के वीछुड़े करि किरपा मेलहु राम ॥
हे मेरे राम ! पूर्व जन्म के कृत-कर्मों के अनुसार लिखी किस्मत के कारण हम तुझसे बिछुड़ गए हैं, अतः कृपा करके हमें अपने साथ मिला लो।

ਚਾਰਿ ਕੁੰਟ ਦਹ ਦਿਸ ਭ੍ਰਮੇ ਥਕਿ ਆਏ ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਸਾਮ ॥
चारि कुंट दह दिस भ्रमे थकि आए प्रभ की साम ॥
हे प्रभु ! चारों ही कोनों उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम एवं दसों दिशाओं में भटकने के पश्चात थककर हम तेरी शरण में आए हैं।

ਧੇਨੁ ਦੁਧੈ ਤੇ ਬਾਹਰੀ ਕਿਤੈ ਨ ਆਵੈ ਕਾਮ ॥
धेनु दुधै ते बाहरी कितै न आवै काम ॥
दूध न देने वाली गाय किसी भी कार्य नहीं आती।

ਜਲ ਬਿਨੁ ਸਾਖ ਕੁਮਲਾਵਤੀ ਉਪਜਹਿ ਨਾਹੀ ਦਾਮ ॥
जल बिनु साख कुमलावती उपजहि नाही दाम ॥
जल के बिना फसल मुरझा जाती है और उससे दाम बटोरने हेतु अनाज पैदा नहीं होता।

ਹਰਿ ਨਾਹ ਨ ਮਿਲੀਐ ਸਾਜਨੈ ਕਤ ਪਾਈਐ ਬਿਸਰਾਮ ॥
हरि नाह न मिलीऐ साजनै कत पाईऐ बिसराम
यदि हम प्रभु-पति अपने मित्र से न मिलें तो हम किस तरह विश्राम पा सकते हैं ?

ਜਿਤੁ ਘਰਿ ਹਰਿ ਕੰਤੁ ਨ ਪ੍ਰਗਟਈ ਭਠਿ ਨਗਰ ਸੇ ਗ੍ਰਾਮ ॥
जितु घरि हरि कंतु न प्रगटई भठि नगर से ग्राम ॥
वह घर, गांव एवं नगर जहाँ पर हरि प्रभु प्रत्यक्ष नहीं होता, अग्निकुण्ड के तुल्य है।

ਸ੍ਰਬ ਸੀਗਾਰ ਤੰਬੋਲ ਰਸ ਸਣੁ ਦੇਹੀ ਸਭ ਖਾਮ ॥
स्रब सीगार त्मबोल रस सणु देही सभ खाम ॥
समूह हार-श्रृंगार, पान एवं रस सहित शरीर के सभी अंग व्यर्थ हैं।

ਪ੍ਰਭ ਸੁਆਮੀ ਕੰਤ ਵਿਹੂਣੀਆ ਮੀਤ ਸਜਣ ਸਭਿ ਜਾਮ ॥
प्रभ सुआमी कंत विहूणीआ मीत सजण सभि जाम ॥
प्रभु-परमेश्वर के बिना सभी मित्र एवं सखा यमदूत के तुल्य हैं।

ਨਾਨਕ ਕੀ ਬੇਨੰਤੀਆ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਦੀਜੈ ਨਾਮੁ ॥
नानक की बेनंतीआ करि किरपा दीजै नामु ॥
नानक की विनती है कि हे प्रभु ! अपनी कृपा करके मुझे अपना नाम प्रदान कीजिए।

ਹਰਿ ਮੇਲਹੁ ਸੁਆਮੀ ਸੰਗਿ ਪ੍ਰਭ ਜਿਸ ਕਾ ਨਿਹਚਲ ਧਾਮ ॥੧॥
हरि मेलहु सुआमी संगि प्रभ जिस का निहचल धाम ॥१॥
हे सतिगुरु ! मुझे मेरे स्वामी प्रभु से मिला दो, जिसका धाम (वैकुण्ठ) सदैव अटल है॥ १॥

ਚੇਤਿ ਗੋਵਿੰਦੁ ਅਰਾਧੀਐ ਹੋਵੈ ਅਨੰਦੁ ਘਣਾ ॥
चेति गोविंदु अराधीऐ होवै अनंदु घणा ॥
यदि चैत्र के महीने में गोविन्द का सिमरन किया जाए तो बड़ा आनन्द प्राप्त होता है।

ਸੰਤ ਜਨਾ ਮਿਲਿ ਪਾਈਐ ਰਸਨਾ ਨਾਮੁ ਭਣਾ ॥
संत जना मिलि पाईऐ रसना नामु भणा ॥
संतजनों से मिलकर जिव्हा से नाम का जाप करने से हरि-प्रभु पाया जाता है।

ਜਿਨਿ ਪਾਇਆ ਪ੍ਰਭੁ ਆਪਣਾ ਆਏ ਤਿਸਹਿ ਗਣਾ ॥
जिनि पाइआ प्रभु आपणा आए तिसहि गणा ॥
जिन्होंने हरि-प्रभु को प्राप्त कर लिया है, उनका ही जगत् में जन्म लेना सफल है।

ਇਕੁ ਖਿਨੁ ਤਿਸੁ ਬਿਨੁ ਜੀਵਣਾ ਬਿਰਥਾ ਜਨਮੁ ਜਣਾ ॥
इकु खिनु तिसु बिनु जीवणा बिरथा जनमु जणा ॥
प्रभु को एक क्षण भर के लिए भी स्मरण न करने से मनुष्य के तमाम जन्म को ही व्यर्थ गया समझो।

ਜਲਿ ਥਲਿ ਮਹੀਅਲਿ ਪੂਰਿਆ ਰਵਿਆ ਵਿਚਿ ਵਣਾ ॥
जलि थलि महीअलि पूरिआ रविआ विचि वणा ॥
परमेश्वर जल, थल, एवं गगन में सर्वत्र विद्यमान है और वनों में भी मौजूद है।

ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਚਿਤਿ ਨ ਆਵਈ ਕਿਤੜਾ ਦੁਖੁ ਗਣਾ ॥
सो प्रभु चिति न आवई कितड़ा दुखु गणा ॥
यदि ऐसा प्रभु मुझे स्मरण न हो तो कैसे बताऊं कि मुझे कितना दुःख होता है ?

ਜਿਨੀ ਰਾਵਿਆ ਸੋ ਪ੍ਰਭੂ ਤਿੰਨਾ ਭਾਗੁ ਮਣਾ ॥
जिनी राविआ सो प्रभू तिंना भागु मणा ॥
जिन्होंने उस पारब्रह्म-प्रभु को स्मरण किया है, वे बड़े भाग्यवान हैं।

ਹਰਿ ਦਰਸਨ ਕੰਉ ਮਨੁ ਲੋਚਦਾ ਨਾਨਕ ਪਿਆਸ ਮਨਾ ॥
हरि दरसन कंउ मनु लोचदा नानक पिआस मना ॥
हे नानक ! मेरा मन हरि के दर्शन करने हेतु अभिलाषी है और मेरे मन में उसके दर्शनों की तीव्र लालसा बनी हुई है।

ਚੇਤਿ ਮਿਲਾਏ ਸੋ ਪ੍ਰਭੂ ਤਿਸ ਕੈ ਪਾਇ ਲਗਾ ॥੨॥
चेति मिलाए सो प्रभू तिस कै पाइ लगा ॥२॥
मैं उसके चरण स्पर्श करता हूँ जो मुझे चैत्र के महीने में उस ईश्वर से मिला दे॥ २॥

ਵੈਸਾਖਿ ਧੀਰਨਿ ਕਿਉ ਵਾਢੀਆ ਜਿਨਾ ਪ੍ਰੇਮ ਬਿਛੋਹੁ ॥
वैसाखि धीरनि किउ वाढीआ जिना प्रेम बिछोहु ॥
वैसाख के महीने में वह जीव-स्त्रियां कैसे धैर्य करें, जिनका अपने प्रियतम से विरहा हुआ है।                                                    

ਹਰਿ ਸਾਜਨੁ ਪੁਰਖੁ ਵਿਸਾਰਿ ਕੈ ਲਗੀ ਮਾਇਆ ਧੋਹੁ ॥
हरि साजनु पुरखु विसारि कै लगी माइआ धोहु ॥
अपने हरि-प्रभु साजन को भुलाकर वह झूठी माया के मोह में फँस गई हैं।

ਪੁਤ੍ਰ ਕਲਤ੍ਰ ਨ ਸੰਗਿ ਧਨਾ ਹਰਿ ਅਵਿਨਾਸੀ ਓਹੁ ॥
पुत्र कलत्र न संगि धना हरि अविनासी ओहु ॥
मरणोपरांत पुत्र, पत्नी तथा धन-दौलत प्राणी के साथ नहीं जाते अपितु अविनाशी प्रभु ही उसका रक्षक बनता है।

ਪਲਚਿ ਪਲਚਿ ਸਗਲੀ ਮੁਈ ਝੂਠੈ ਧੰਧੈ ਮੋਹੁ ॥
पलचि पलचि सगली मुई झूठै धंधै मोहु ॥
सारी दुनिया झूठे कर्मों की लगन में मोह बद्ध उलझ-उलझकर नष्ट हो गई है।

ਇਕਸੁ ਹਰਿ ਕੇ ਨਾਮ ਬਿਨੁ ਅਗੈ ਲਈਅਹਿ ਖੋਹਿ ॥
इकसु हरि के नाम बिनु अगै लईअहि खोहि ॥
आगे परलोक में एक ईश्वर के नाम के अलावा मनुष्य के किए हुए सभी कर्म-धर्म छीन लिए जाते हैं। अर्थात् उन्हें कोई फल नहीं मिलता।

ਦਯੁ ਵਿਸਾਰਿ ਵਿਗੁਚਣਾ ਪ੍ਰਭ ਬਿਨੁ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਇ ॥
दयु विसारि विगुचणा प्रभ बिनु अवरु न कोइ ॥
दयालु परमात्मा को विस्मृत करके मनुष्य तबाह हो जाता है। हरि-प्रभु के अलावा अन्य कोई भी जीव का रक्षक नहीं बनता।

ਪ੍ਰੀਤਮ ਚਰਣੀ ਜੋ ਲਗੇ ਤਿਨ ਕੀ ਨਿਰਮਲ ਸੋਇ ॥
प्रीतम चरणी जो लगे तिन की निरमल सोइ ॥
जो प्रियतम के चरणों में लग जाते हैं, वे बड़े पवित्र हैं और उनकी बहुत शोभा होती है।

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