ਅਵਰੀ ਨੋ ਸਮਝਾਵਣਿ ਜਾਇ ॥
अवरी नो समझावणि जाइ ॥
फिर भी वह दूसरों को उपदेश करने जाता है कि झूठ मत बोलो।
ਮੁਠਾ ਆਪਿ ਮੁਹਾਏ ਸਾਥੈ ॥
मुठा आपि मुहाए साथै ॥
जो स्वयं लुटा जा रहा है और अपने साथियों को भी लुटा रहा है,
ਨਾਨਕ ਐਸਾ ਆਗੂ ਜਾਪੈ ॥੧॥
नानक ऐसा आगू जापै ॥१॥
हे नानक ! वह इस तरह का नेता मालूम होता है ॥ १॥
ਮਹਲਾ ੪ ॥
महला ४ ॥
महला ४॥
ਜਿਸ ਦੈ ਅੰਦਰਿ ਸਚੁ ਹੈ ਸੋ ਸਚਾ ਨਾਮੁ ਮੁਖਿ ਸਚੁ ਅਲਾਏ ॥
जिस दै अंदरि सचु है सो सचा नामु मुखि सचु अलाए ॥
जिसके हृदय में सत्य विद्यमान है, वही सत्यतादी है और वह अपने मुख से सत्य बोलता है।
ਓਹੁ ਹਰਿ ਮਾਰਗਿ ਆਪਿ ਚਲਦਾ ਹੋਰਨਾ ਨੋ ਹਰਿ ਮਾਰਗਿ ਪਾਏ ॥
ओहु हरि मारगि आपि चलदा होरना नो हरि मारगि पाए ॥
वह स्वयं हरि के मार्ग चलता है और दूसरों को भी हरि के मार्ग लगाता है।
ਜੇ ਅਗੈ ਤੀਰਥੁ ਹੋਇ ਤਾ ਮਲੁ ਲਹੈ ਛਪੜਿ ਨਾਤੈ ਸਗਵੀ ਮਲੁ ਲਾਏ ॥
जे अगै तीरथु होइ ता मलु लहै छपड़ि नातै सगवी मलु लाए ॥
यदि सामने पवित्र तीर्थ रूपी सत्संग हो, तब मैल उतर जाती है। लेकिन मंदे पुरुषों के साथ संगति करने से मैल उतरने की जगह और भी मैल लग जाती है।
ਤੀਰਥੁ ਪੂਰਾ ਸਤਿਗੁਰੂ ਜੋ ਅਨਦਿਨੁ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਏ ॥
तीरथु पूरा सतिगुरू जो अनदिनु हरि हरि नामु धिआए ॥
सतिगुरु जी पूर्णरूपेण तीर्थ हैं जो दिन-रात हरि-प्रभु के नाम का ध्यान करते रहते हैं।
ਓਹੁ ਆਪਿ ਛੁਟਾ ਕੁਟੰਬ ਸਿਉ ਦੇ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਸਭ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਛਡਾਏ ॥
ओहु आपि छुटा कुट्मब सिउ दे हरि हरि नामु सभ स्रिसटि छडाए ॥
वह अपने कुटुंब सहित संसार सागर से पार हो जाता है अर्थात् उसे मोक्ष मिल जाता है और हरि-परमेश्वर का नाम प्रदान करके सारे संसार को पार कर देता है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਤਿਸੁ ਬਲਿਹਾਰਣੈ ਜੋ ਆਪਿ ਜਪੈ ਅਵਰਾ ਨਾਮੁ ਜਪਾਏ ॥੨॥
जन नानक तिसु बलिहारणै जो आपि जपै अवरा नामु जपाए ॥२॥
हे नानक ! मैं उन पर कुर्बान जाता हूँ, जो स्वयं हरि के नाम का जाप करता है और दूसरों से भी नाम का जाप करवाता है॥ २ ॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਇਕਿ ਕੰਦ ਮੂਲੁ ਚੁਣਿ ਖਾਹਿ ਵਣ ਖੰਡਿ ਵਾਸਾ ॥
इकि कंद मूलु चुणि खाहि वण खंडि वासा ॥
कई साधु वन प्रदेश में निवास करते हैं और कंदमूल चुनकर उनका सेवन करते हैं।
ਇਕਿ ਭਗਵਾ ਵੇਸੁ ਕਰਿ ਫਿਰਹਿ ਜੋਗੀ ਸੰਨਿਆਸਾ ॥
इकि भगवा वेसु करि फिरहि जोगी संनिआसा ॥
कई भगवे रंग के वस्त्र पहन कर योगियों एवं संन्यासियों की भाँति फिरते हैं।
ਅੰਦਰਿ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਬਹੁਤੁ ਛਾਦਨ ਭੋਜਨ ਕੀ ਆਸਾ ॥
अंदरि त्रिसना बहुतु छादन भोजन की आसा ॥
उनके भीतर अधिकतर तृष्णा है और वे वस्त्रों एवं भोजन की लालसा करते हैं।
ਬਿਰਥਾ ਜਨਮੁ ਗਵਾਇ ਨ ਗਿਰਹੀ ਨ ਉਦਾਸਾ ॥
बिरथा जनमु गवाइ न गिरही न उदासा ॥
वह अपना अनमोल जीवन व्यर्थ ही गंवा देते हैं। इस तरह न वह गृहस्थी हैं और न ही त्यागी।
ਜਮਕਾਲੁ ਸਿਰਹੁ ਨ ਉਤਰੈ ਤ੍ਰਿਬਿਧਿ ਮਨਸਾ ॥
जमकालु सिरहु न उतरै त्रिबिधि मनसा ॥
यमराज उनके सिर पर मंडराता रहता है क्योंकि वे त्रिगुणात्मक वासना के शिकार हैं।
ਗੁਰਮਤੀ ਕਾਲੁ ਨ ਆਵੈ ਨੇੜੈ ਜਾ ਹੋਵੈ ਦਾਸਨਿ ਦਾਸਾ ॥
गुरमती कालु न आवै नेड़ै जा होवै दासनि दासा ॥
जब गुरु के उपदेश से प्राणी परमात्मा के सेवकों का सेवक हो जाता है, तो काल उनके निकट नहीं आता।
ਸਚਾ ਸਬਦੁ ਸਚੁ ਮਨਿ ਘਰ ਹੀ ਮਾਹਿ ਉਦਾਸਾ ॥
सचा सबदु सचु मनि घर ही माहि उदासा ॥
सत्य-नाम उसके सत्यवादी हृदय में निवास करता है और वे घर में रहते हुए भी निर्लिप्त रहते हैं।
ਨਾਨਕ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਨਿ ਆਪਣਾ ਸੇ ਆਸਾ ਤੇ ਨਿਰਾਸਾ ॥੫॥
नानक सतिगुरु सेवनि आपणा से आसा ते निरासा ॥५॥
हे नानक ! जो प्राणी अपने सतिगुरु की श्रद्धापूर्वक सेवा करते हैं, वे सांसारिक अभिलाषाओं से तटस्थ हो जाते हैं॥ ५ ॥
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੧ ॥
सलोकु मः १ ॥
श्लोक महला १॥
ਜੇ ਰਤੁ ਲਗੈ ਕਪੜੈ ਜਾਮਾ ਹੋਇ ਪਲੀਤੁ ॥
जे रतु लगै कपड़ै जामा होइ पलीतु ॥
यदि वस्त्रों को रक्त लग जाए तो वस्त्र अपवित्र हो जाता है।
ਜੋ ਰਤੁ ਪੀਵਹਿ ਮਾਣਸਾ ਤਿਨ ਕਿਉ ਨਿਰਮਲੁ ਚੀਤੁ ॥
जो रतु पीवहि माणसा तिन किउ निरमलु चीतु ॥
जो व्यक्ति दूसरों पर अत्याचार करके उनका रक्त चूसते हैं, उनका मन किस तरह पवित्र हो सकता है ?
ਨਾਨਕ ਨਾਉ ਖੁਦਾਇ ਕਾ ਦਿਲਿ ਹਛੈ ਮੁਖਿ ਲੇਹੁ ॥
नानक नाउ खुदाइ का दिलि हछै मुखि लेहु ॥
हे नानक ! उस अल्लाह का नाम साफ दिल से मुख से बोलो!
ਅਵਰਿ ਦਿਵਾਜੇ ਦੁਨੀ ਕੇ ਝੂਠੇ ਅਮਲ ਕਰੇਹੁ ॥੧॥
अवरि दिवाजे दुनी के झूठे अमल करेहु ॥१॥
नाम के बिना आपके सभी कार्य दुनिया के दिखावा मात्र ही हैं और आप सभी झूठे कर्म करते हैं।॥ १॥
ਮਃ ੧ ॥
मः १ ॥
महला १॥
ਜਾ ਹਉ ਨਾਹੀ ਤਾ ਕਿਆ ਆਖਾ ਕਿਹੁ ਨਾਹੀ ਕਿਆ ਹੋਵਾ ॥
जा हउ नाही ता किआ आखा किहु नाही किआ होवा ॥
जब मैं कुछ भी नहीं तो दूसरों को मैं क्या उपदेश कर सकता हूँ? अथवा जब मुझ में कोई भी गुण नहीं तो मैं कैसे गुणों का दिखावा करूँ ?
ਕੀਤਾ ਕਰਣਾ ਕਹਿਆ ਕਥਨਾ ਭਰਿਆ ਭਰਿ ਭਰਿ ਧੋਵਾਂ ॥
कीता करणा कहिआ कथना भरिआ भरि भरि धोवां ॥
जिस तरह का ईश्वर ने मुझे बनाया है, वैसे ही मैं करता हूँ। जिस तरह उसने मुझे कहा है, वैसे ही मैं बोलता हूँ। मैं बुरे कर्मों के कारण पापों से भरा हुआ हूँ। उनको अब मैं धोने का प्रयास करता हूँ।
ਆਪਿ ਨ ਬੁਝਾ ਲੋਕ ਬੁਝਾਈ ਐਸਾ ਆਗੂ ਹੋਵਾਂ ॥
आपि न बुझा लोक बुझाई ऐसा आगू होवां ॥
मैं स्वयं समझता नहीं लेकिन फिर भी दूसरों को समझाता हूँ। मैं इस तरह का ज्ञानहीन मार्गदर्शक बन सकता हूँ।
ਨਾਨਕ ਅੰਧਾ ਹੋਇ ਕੈ ਦਸੇ ਰਾਹੈ ਸਭਸੁ ਮੁਹਾਏ ਸਾਥੈ ॥
नानक अंधा होइ कै दसे राहै सभसु मुहाए साथै ॥
हे नानक ! जो व्यक्ति स्वयं ज्ञानहीन अंधा होकर मार्ग-दर्शन करता है, वह अपने साथियों को भी लुटवा देता है।
ਅਗੈ ਗਇਆ ਮੁਹੇ ਮੁਹਿ ਪਾਹਿ ਸੁ ਐਸਾ ਆਗੂ ਜਾਪੈ ॥੨॥
अगै गइआ मुहे मुहि पाहि सु ऐसा आगू जापै ॥२॥
आगे परलोक में जाकर उसके मुख पर जूते पड़ते हैं और फिर पता चलता है कि वह किस तरह का पाखंडी मार्गदर्शक था ॥२ ॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਮਾਹਾ ਰੁਤੀ ਸਭ ਤੂੰ ਘੜੀ ਮੂਰਤ ਵੀਚਾਰਾ ॥
माहा रुती सभ तूं घड़ी मूरत वीचारा ॥
हे अकालपुरुष ! समस्त महीनों, ऋतुओं, घड़ी, मुहूर्त में मैं तेरी वन्दना करता हूँ।
ਤੂੰ ਗਣਤੈ ਕਿਨੈ ਨ ਪਾਇਓ ਸਚੇ ਅਲਖ ਅਪਾਰਾ ॥
तूं गणतै किनै न पाइओ सचे अलख अपारा ॥
हे सच्चे अलख, अपार प्रभु ! कर्मों की गणना करके तुझे किसी ने भी नहीं पाया।
ਪੜਿਆ ਮੂਰਖੁ ਆਖੀਐ ਜਿਸੁ ਲਬੁ ਲੋਭੁ ਅਹੰਕਾਰਾ ॥
पड़िआ मूरखु आखीऐ जिसु लबु लोभु अहंकारा ॥
उस पढ़े हुए विद्वान व्यक्ति को महामूर्ख ही समझो, जिसके अन्तर्मन में लोभ, लालच एवं अहंकार है।
ਨਾਉ ਪੜੀਐ ਨਾਉ ਬੁਝੀਐ ਗੁਰਮਤੀ ਵੀਚਾਰਾ ॥
नाउ पड़ीऐ नाउ बुझीऐ गुरमती वीचारा ॥
गुरु की मति द्वारा हमें विचार करके नाम को पढ़ना एवं समझना चाहिए।
ਗੁਰਮਤੀ ਨਾਮੁ ਧਨੁ ਖਟਿਆ ਭਗਤੀ ਭਰੇ ਭੰਡਾਰਾ ॥
गुरमती नामु धनु खटिआ भगती भरे भंडारा ॥
जिस व्यक्ति ने गुरु की मति द्वारा नाम रूपी धन की कमाई की है, उसके भण्डार भक्ति से भर गए हैं।
ਨਿਰਮਲੁ ਨਾਮੁ ਮੰਨਿਆ ਦਰਿ ਸਚੈ ਸਚਿਆਰਾ ॥
निरमलु नामु मंनिआ दरि सचै सचिआरा ॥
जिस व्यक्ति ने निर्मल नाम का मन से सिमरन किया है, वह सत्य के दरबार में सत्यवादी स्वीकृत हो जाता है।
ਜਿਸ ਦਾ ਜੀਉ ਪਰਾਣੁ ਹੈ ਅੰਤਰਿ ਜੋਤਿ ਅਪਾਰਾ ॥
जिस दा जीउ पराणु है अंतरि जोति अपारा ॥
जिसने प्रत्येक जीव को आत्मा एवं प्राण दिए हैं, वह प्रभु अनंत है और उसकी ज्योति प्रत्येक जीव के हृदय में विद्यमान है।
ਸਚਾ ਸਾਹੁ ਇਕੁ ਤੂੰ ਹੋਰੁ ਜਗਤੁ ਵਣਜਾਰਾ ॥੬॥
सचा साहु इकु तूं होरु जगतु वणजारा ॥६॥
हे प्रभु ! एक तू ही सच्चा शाह है और शेष सारा जगत् वणजारा है॥ ६॥
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੧ ॥
सलोकु मः १ ॥
श्लोक महला १ ॥
ਮਿਹਰ ਮਸੀਤਿ ਸਿਦਕੁ ਮੁਸਲਾ ਹਕੁ ਹਲਾਲੁ ਕੁਰਾਣੁ ॥
मिहर मसीति सिदकु मुसला हकु हलालु कुराणु ॥
जीवों पर दया करना ही मस्जिद में जाकर सजदा करना है। अल्लाह पर पूर्ण श्रद्धा रखना ही मुसल्ले पर बैठ कर नमाज पढ़ना है। हक-हलाल अर्थात् धर्म-कर्म करना ही कुरान को पढ़ना है।
ਸਰਮ ਸੁੰਨਤਿ ਸੀਲੁ ਰੋਜਾ ਹੋਹੁ ਮੁਸਲਮਾਣੁ ॥
सरम सुंनति सीलु रोजा होहु मुसलमाणु ॥
नाम की कमाई करना ही सुन्नत करवाना है। शील स्वभाव का बनना ही रोजा रखना है। तभी तुम एक सच्चे मुसलमान बनोगे।
ਕਰਣੀ ਕਾਬਾ ਸਚੁ ਪੀਰੁ ਕਲਮਾ ਕਰਮ ਨਿਵਾਜ ॥
करणी काबा सचु पीरु कलमा करम निवाज ॥
सत्य कर्म करना ही मक्का जाकर काबे के दर्शन करना है। सच्चे खुदा को जानना ही पीर की पूजा करना है। शुभ कर्म करना ही कलमा एवं नमाज है।
ਤਸਬੀ ਸਾ ਤਿਸੁ ਭਾਵਸੀ ਨਾਨਕ ਰਖੈ ਲਾਜ ॥੧॥
तसबी सा तिसु भावसी नानक रखै लाज ॥१॥
अल्लाह की रजा में रहना ही माला फेर कर नाम जपना है। हे नानक ! जो इन गुणों से युक्त होगा तो ही अल्लाह को अच्छा लगेगा और ऐसे मुसलमान की खुदा लाज-प्रतिष्ठा रखता है॥ १॥