ਆਪੇ ਹੀ ਪ੍ਰਭੁ ਦੇਹਿ ਮਤਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਈਐ ॥
आपे ही प्रभु देहि मति हरि नामु धिआईऐ ॥
परमेश्वर स्वयं ही सुमति प्रदान करता है और मनुष्य हरि के नाम का ध्यान करता है।
ਵਡਭਾਗੀ ਸਤਿਗੁਰੁ ਮਿਲੈ ਮੁਖਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪਾਈਐ ॥
वडभागी सतिगुरु मिलै मुखि अम्रितु पाईऐ ॥
बड़े सौभाग्य से सतिगुरु जी मिलते हैं, जो उसके मुख (हरिनाम का) अमृत डालते हैं।
ਹਉਮੈ ਦੁਬਿਧਾ ਬਿਨਸਿ ਜਾਇ ਸਹਜੇ ਸੁਖਿ ਸਮਾਈਐ ॥
हउमै दुबिधा बिनसि जाइ सहजे सुखि समाईऐ ॥
जब अहंकार एवं दुविधा नष्ट हो जाते हैं, वह सहज ही सुख में लीन हो जाता है।
ਸਭੁ ਆਪੇ ਆਪਿ ਵਰਤਦਾ ਆਪੇ ਨਾਇ ਲਾਈਐ ॥੨॥
सभु आपे आपि वरतदा आपे नाइ लाईऐ ॥२॥
प्रभु स्वयं ही सर्वव्यापक हो रहा है और स्वयं ही मनुष्य को अपने नाम-सिमरन में लगाता है॥ २॥
ਮਨਮੁਖਿ ਗਰਬਿ ਨ ਪਾਇਓ ਅਗਿਆਨ ਇਆਣੇ ॥
मनमुखि गरबि न पाइओ अगिआन इआणे ॥
स्वेच्छाचारी अहंकारवश ईश्वर को प्राप्त नहीं कर सकते, वे मूर्ख एवं ज्ञानहीन हैं।
ਸਤਿਗੁਰ ਸੇਵਾ ਨਾ ਕਰਹਿ ਫਿਰਿ ਫਿਰਿ ਪਛੁਤਾਣੇ ॥
सतिगुर सेवा ना करहि फिरि फिरि पछुताणे ॥
वे सतिगुरु की सेवा-भक्ति नहीं करते और पुनः पुनः पश्चाताप करते हैं।
ਗਰਭ ਜੋਨੀ ਵਾਸੁ ਪਾਇਦੇ ਗਰਭੇ ਗਲਿ ਜਾਣੇ ॥
गरभ जोनी वासु पाइदे गरभे गलि जाणे ॥
गर्भयोनि में उनको निवास मिलता है और गर्भ में ही गल-सड़ जाते हैं।
ਮੇਰੇ ਕਰਤੇ ਏਵੈ ਭਾਵਦਾ ਮਨਮੁਖ ਭਰਮਾਣੇ ॥੩॥
मेरे करते एवै भावदा मनमुख भरमाणे ॥३॥
मेरे सृजनहार प्रभु को यहीं भला लगता है कि स्वेच्छाचारी भटकते रहें॥ ३॥
ਮੇਰੈ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭਿ ਲੇਖੁ ਲਿਖਾਇਆ ਧੁਰਿ ਮਸਤਕਿ ਪੂਰਾ ॥
रै हरि प्रभि लेखु लिखाइआ धुरि मसतकि पूरा ॥
मेरे हरि-प्रभु ने आदि से ही प्राणी के मस्तक पर उसका भाग्य लिख दिया था।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਆ ਭੇਟਿਆ ਗੁਰੁ ਸੂਰਾ ॥
हरि हरि नामु धिआइआ भेटिआ गुरु सूरा ॥
जब मनुष्य शूरवीर गुरु से मिलता है, वह हरि-परमेश्वर के नाम की आराधना करता है।
ਮੇਰਾ ਪਿਤਾ ਮਾਤਾ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਹੈ ਹਰਿ ਬੰਧਪੁ ਬੀਰਾ ॥
मेरा पिता माता हरि नामु है हरि बंधपु बीरा ॥
हरि का नाम मेरा पिता एवं मेरी माता है। भगवान ही मेरा संबंधी और भ्राता है।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਬਖਸਿ ਮਿਲਾਇ ਪ੍ਰਭ ਜਨੁ ਨਾਨਕੁ ਕੀਰਾ ॥੪॥੩॥੧੭॥੩੭॥
हरि हरि बखसि मिलाइ प्रभ जनु नानकु कीरा ॥४॥३॥१७॥३७॥
हे प्रभु ! कृमि सेवक नानक को क्षमादान करके अपने साथ मिला लो ॥४॥३॥१७॥३७॥
ਗਉੜੀ ਬੈਰਾਗਣਿ ਮਹਲਾ ੩ ॥
गउड़ी बैरागणि महला ३ ॥
गउड़ी बैरागणि महला ३ ॥
ਸਤਿਗੁਰ ਤੇ ਗਿਆਨੁ ਪਾਇਆ ਹਰਿ ਤਤੁ ਬੀਚਾਰਾ ॥
सतिगुर ते गिआनु पाइआ हरि ततु बीचारा ॥
सतिगुरु से ज्ञान प्राप्त करके मैंने परम तत्व ईश्वर के मूल का चिन्तन किया है।
ਮਤਿ ਮਲੀਣ ਪਰਗਟੁ ਭਈ ਜਪਿ ਨਾਮੁ ਮੁਰਾਰਾ ॥
मति मलीण परगटु भई जपि नामु मुरारा ॥
मुरारि प्रभु के नाम का जाप करने से मेरी मलिन बुद्धि निर्मल हो गई है।
ਸਿਵਿ ਸਕਤਿ ਮਿਟਾਈਆ ਚੂਕਾ ਅੰਧਿਆਰਾ ॥
सिवि सकति मिटाईआ चूका अंधिआरा ॥
ईश्वर ने माया का नाश कर दिया है और मेरा अज्ञानता का अंधकार दूर हो गया है।
ਧੁਰਿ ਮਸਤਕਿ ਜਿਨ ਕਉ ਲਿਖਿਆ ਤਿਨ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਪਿਆਰਾ ॥੧॥
धुरि मसतकि जिन कउ लिखिआ तिन हरि नामु पिआरा ॥१॥
जिनके मस्तक पर आदि से ही भाग्य-रेखाएँ विद्यमान हों, उनको हरि का नाम प्रिय लगता है॥ १ ॥
ਹਰਿ ਕਿਤੁ ਬਿਧਿ ਪਾਈਐ ਸੰਤ ਜਨਹੁ ਜਿਸੁ ਦੇਖਿ ਹਉ ਜੀਵਾ ॥
हरि कितु बिधि पाईऐ संत जनहु जिसु देखि हउ जीवा ॥
हे सन्तजनो ! कौन-से साधनों द्वारा परमात्मा को पाया जा सकता है? जिसके दर्शन करके मैं जीवित रहती हूँ।
ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਚਸਾ ਨ ਜੀਵਤੀ ਗੁਰ ਮੇਲਿਹੁ ਹਰਿ ਰਸੁ ਪੀਵਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि बिनु चसा न जीवती गुर मेलिहु हरि रसु पीवा ॥१॥ रहाउ ॥
परमात्मा के बिना मैं निमिष मात्र भी जीवित नहीं रह सकती। मुझे गुरु के साथ मिला दीजिए चूंकि जो मैं हरि-रस का पान करूँ॥ १॥ रहाउ॥
ਹਉ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਵਾ ਨਿਤ ਹਰਿ ਸੁਣੀ ਹਰਿ ਹਰਿ ਗਤਿ ਕੀਨੀ ॥
हउ हरि गुण गावा नित हरि सुणी हरि हरि गति कीनी ॥
मैं नित्य ईश्वर की गुणस्तुति करती हूँ और प्रतिदिन परमेश्वर की महिमा ही सुनती हूँ। मुझे हरि-प्रभु ने (संसार से) मुक्त कर दिया है।
ਹਰਿ ਰਸੁ ਗੁਰ ਤੇ ਪਾਇਆ ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਤਨੁ ਲੀਨੀ ॥
हरि रसु गुर ते पाइआ मेरा मनु तनु लीनी ॥
हरि-रस मैंने गुरु से प्राप्त किया है। मेरा मन एवं तन उसमें लीन हो गए हैं।
ਧਨੁ ਧਨੁ ਗੁਰੁ ਸਤ ਪੁਰਖੁ ਹੈ ਜਿਨਿ ਭਗਤਿ ਹਰਿ ਦੀਨੀ ॥
धनु धनु गुरु सत पुरखु है जिनि भगति हरि दीनी ॥
वह सत्यपुरुष गुरु धन्य-धन्य है, जिन्होंने मुझे भगवान की भक्ति प्रदान की है।
ਜਿਸੁ ਗੁਰ ਤੇ ਹਰਿ ਪਾਇਆ ਸੋ ਗੁਰੁ ਹਮ ਕੀਨੀ ॥੨॥
जिसु गुर ते हरि पाइआ सो गुरु हम कीनी ॥२॥
मैंने उसे ही अपना गुरु धारण किया है, जिस गुरु के द्वारा मैंने परमात्मा को पाया है॥ २॥
ਗੁਣਦਾਤਾ ਹਰਿ ਰਾਇ ਹੈ ਹਮ ਅਵਗਣਿਆਰੇ ॥
गुणदाता हरि राइ है हम अवगणिआरे ॥
विश्व का मालिक प्रभु गुणों का दाता है परन्तु हम जीवों में अनेक अवगुण विद्यमान हैं।
ਪਾਪੀ ਪਾਥਰ ਡੂਬਦੇ ਗੁਰਮਤਿ ਹਰਿ ਤਾਰੇ ॥
पापी पाथर डूबदे गुरमति हरि तारे ॥
पानी में डूबते पत्थरों की तरह भवसागर में डूबते पापी जीवों को भगवान ने गुरु की मति देकर पार कर दिया है।
ਤੂੰ ਗੁਣਦਾਤਾ ਨਿਰਮਲਾ ਹਮ ਅਵਗਣਿਆਰੇ ॥
तूं गुणदाता निरमला हम अवगणिआरे ॥
हे गुणों के दाता ! तू बड़ा निर्मल है लेकिन हम जीवों में अनेक अवगुण भरे हुए हैं।
ਹਰਿ ਸਰਣਾਗਤਿ ਰਾਖਿ ਲੇਹੁ ਮੂੜ ਮੁਗਧ ਨਿਸਤਾਰੇ ॥੩॥
हरि सरणागति राखि लेहु मूड़ मुगध निसतारे ॥३॥
हे भगवान ! तू महा मूर्खों को भी भवसागर से पार कर देता है, अतः मैं तेरी ही शरण में आया हूँ और मुझे भी भवसागर से पार कर दो॥ ३॥
ਸਹਜੁ ਅਨੰਦੁ ਸਦਾ ਗੁਰਮਤੀ ਹਰਿ ਹਰਿ ਮਨਿ ਧਿਆਇਆ ॥
सहजु अनंदु सदा गुरमती हरि हरि मनि धिआइआ ॥
जो व्यक्ति गुरु की मति द्वारा अपने मन में हरि-परमेश्वर का ध्यान करते हैं, उन्हें हमेशा ही सहज सुख एवं आनंद प्राप्त होता है।
ਸਜਣੁ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਪਾਇਆ ਘਰਿ ਸੋਹਿਲਾ ਗਾਇਆ ॥
सजणु हरि प्रभु पाइआ घरि सोहिला गाइआ ॥
वे अपने सज्जन प्रभु को पाकर अपने हृदय-घर में उसकी महिमा-स्तुति के गीत गाते रहते हैं।
ਹਰਿ ਦਇਆ ਧਾਰਿ ਪ੍ਰਭ ਬੇਨਤੀ ਹਰਿ ਹਰਿ ਚੇਤਾਇਆ ॥
हरि दइआ धारि प्रभ बेनती हरि हरि चेताइआ ॥
हे हरि ! मुझ पर दया करो। हे प्रभु ! मेरी यही विनती है कि मैं सर्वदा ही हरि-परमेश्वर का नाम याद करता रहूँ।
ਜਨ ਨਾਨਕੁ ਮੰਗੈ ਧੂੜਿ ਤਿਨ ਜਿਨ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪਾਇਆ ॥੪॥੪॥੧੮॥੩੮॥
जन नानकु मंगै धूड़ि तिन जिन सतिगुरु पाइआ ॥४॥४॥१८॥३८॥
जन नानक उन महापुरुषों की चरण-धूलि की ही कामना करता है, जिन्होंने सतिगुरु को पाया है ॥४॥४॥१८॥३८॥
ਗਉੜੀ ਗੁਆਰੇਰੀ ਮਹਲਾ ੪ ਚਉਥਾ ਚਉਪਦੇ
गउड़ी गुआरेरी महला ४ चउथा चउपदे
गउड़ी गुआरेरी महला ४ चउथा चउपदे
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਪੰਡਿਤੁ ਸਾਸਤ ਸਿਮ੍ਰਿਤਿ ਪੜਿਆ ॥
पंडितु सासत सिम्रिति पड़िआ ॥
पण्डित शास्त्रों एवं स्मृतियों का अध्ययन करता है।
ਜੋਗੀ ਗੋਰਖੁ ਗੋਰਖੁ ਕਰਿਆ ॥
जोगी गोरखु गोरखु करिआ ॥
योगी अपने गुरु का नाम ‘गोरख गोरख’ पुकारता है।
ਮੈ ਮੂਰਖ ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਪੁ ਪੜਿਆ ॥੧॥
मै मूरख हरि हरि जपु पड़िआ ॥१॥
लेकिन मैं मूर्ख हरि-परमेश्वर के नाम का ही जाप करता हूँ॥ १॥
ਨਾ ਜਾਨਾ ਕਿਆ ਗਤਿ ਰਾਮ ਹਮਾਰੀ ॥
ना जाना किआ गति राम हमारी ॥
हे मेरे राम ! मैं नहीं जानता कि मेरी क्या हालत होगी।
ਹਰਿ ਭਜੁ ਮਨ ਮੇਰੇ ਤਰੁ ਭਉਜਲੁ ਤੂ ਤਾਰੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि भजु मन मेरे तरु भउजलु तू तारी ॥१॥ रहाउ ॥
हे मेरे मन ! तू भगवान का भजन करके भवसागर से पार हो जा॥ १ ॥ रहाउ ॥