ਰਾਗੁ ਗਉੜੀ ਪੂਰਬੀ ਮਹਲਾ ੫
रागु गउड़ी पूरबी महला ५
रागु गउड़ी पूरबी महला ५
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਕਬਹੂ ਨ ਮਨਹੁ ਬਿਸਾਰੇ ॥
हरि हरि कबहू न मनहु बिसारे ॥
हमें अपने मन से प्रभु-परमेश्वर को कभी भी विस्मृत नहीं करना चाहिए।
ਈਹਾ ਊਹਾ ਸਰਬ ਸੁਖਦਾਤਾ ਸਗਲ ਘਟਾ ਪ੍ਰਤਿਪਾਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
ईहा ऊहा सरब सुखदाता सगल घटा प्रतिपारे ॥१॥ रहाउ ॥
चूंकि वह ईश्वर ही लोक एवं परलोक में प्राणियों का सुखदाता है और तमाम शरीरों का पालन-पोषण करता है॥ १॥ रहाउ॥
ਮਹਾ ਕਸਟ ਕਾਟੈ ਖਿਨ ਭੀਤਰਿ ਰਸਨਾ ਨਾਮੁ ਚਿਤਾਰੇ ॥
महा कसट काटै खिन भीतरि रसना नामु चितारे ॥
यदि मनुष्य की रसना भगवान के नाम का जाप करे तो वह एक क्षण में ही महाकष्ट निवृत कर देता है।
ਸੀਤਲ ਸਾਂਤਿ ਸੂਖ ਹਰਿ ਸਰਣੀ ਜਲਤੀ ਅਗਨਿ ਨਿਵਾਰੇ ॥੧॥
सीतल सांति सूख हरि सरणी जलती अगनि निवारे ॥१॥
प्रभु की शरण में शीतलता, शांति एवं सुख विद्यमान हैं और वह जलती अग्नि बुझा देता है॥ १॥
ਗਰਭ ਕੁੰਡ ਨਰਕ ਤੇ ਰਾਖੈ ਭਵਜਲੁ ਪਾਰਿ ਉਤਾਰੇ ॥
गरभ कुंड नरक ते राखै भवजलु पारि उतारे ॥
प्रभु मनुष्य को गर्भ के नरककुण्ड से बचाता है और उसको भवसागर से पार कर देता है।
ਚਰਨ ਕਮਲ ਆਰਾਧਤ ਮਨ ਮਹਿ ਜਮ ਕੀ ਤ੍ਰਾਸ ਬਿਦਾਰੇ ॥੨॥
चरन कमल आराधत मन महि जम की त्रास बिदारे ॥२॥
प्रभु के सुन्दर चरणों की मन में आराधना करने से वह मृत्यु का भय दूर कर देता है॥ २ ॥
ਪੂਰਨ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਪਰਮੇਸੁਰ ਊਚਾ ਅਗਮ ਅਪਾਰੇ ॥
पूरन पारब्रहम परमेसुर ऊचा अगम अपारे ॥
पारब्रह्म परमेश्वर सर्वव्यापक है, वह सर्वोपरि, अगम्य एवं अनन्त है।
ਗੁਣ ਗਾਵਤ ਧਿਆਵਤ ਸੁਖ ਸਾਗਰ ਜੂਏ ਜਨਮੁ ਨ ਹਾਰੇ ॥੩॥
गुण गावत धिआवत सुख सागर जूए जनमु न हारे ॥३॥
सुखों के सागर प्रभु की महिमा-स्तुति एवं ध्यान करने से प्राणी अपना जन्म व्यर्थ नहीं गंवा कर जाता॥ ३॥
ਕਾਮਿ ਕ੍ਰੋਧਿ ਲੋਭਿ ਮੋਹਿ ਮਨੁ ਲੀਨੋ ਨਿਰਗੁਣ ਕੇ ਦਾਤਾਰੇ ॥
कामि क्रोधि लोभि मोहि मनु लीनो निरगुण के दातारे ॥
हे निर्गुण के उदारचित दाता ! मेरा मन भोग-विलास, क्रोध, लालच एवं सांसारिक मोह में लीन है।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਅਪੁਨੋ ਨਾਮੁ ਦੀਜੈ ਨਾਨਕ ਸਦ ਬਲਿਹਾਰੇ ॥੪॥੧॥੧੩੮॥
करि किरपा अपुनो नामु दीजै नानक सद बलिहारे ॥४॥१॥१३८॥
हे प्रभु ! कृपा करके अपने नाम का दान दीजिए। नानक तो सदैव ही तुझ पर कुर्बान जाता है ॥ ४॥ १॥ १३८ ॥
ਰਾਗੁ ਗਉੜੀ ਚੇਤੀ ਮਹਲਾ ੫
रागु गउड़ी चेती महला ५
रागु गउड़ी चेती महला ५
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਸੁਖੁ ਨਾਹੀ ਰੇ ਹਰਿ ਭਗਤਿ ਬਿਨਾ ॥
सुखु नाही रे हरि भगति बिना ॥
भगवान की भक्ति के बिना कोई सुख उपलब्ध नहीं होता।
ਜੀਤਿ ਜਨਮੁ ਇਹੁ ਰਤਨੁ ਅਮੋਲਕੁ ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਜਪਿ ਇਕ ਖਿਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जीति जनमु इहु रतनु अमोलकु साधसंगति जपि इक खिना ॥१॥ रहाउ ॥
साधसंगत में रहकर एक क्षण भर के लिए भी प्रभु का चिन्तन करके मनुष्य जीवन का यह अनमोल रत्न जीत ले॥ १॥ रहाउ॥
ਸੁਤ ਸੰਪਤਿ ਬਨਿਤਾ ਬਿਨੋਦ ॥
सुत स्मपति बनिता बिनोद ॥
हे प्राणी ! पुत्र, सम्पति, पत्नी का प्रेम,और
ਛੋਡਿ ਗਏ ਬਹੁ ਲੋਗ ਭੋਗ ॥੧॥
छोडि गए बहु लोग भोग ॥१॥
हर्षोल्लास भरे मनोरंजन एवं भोग को त्याग बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो चले गए हैं।॥ १॥
ਹੈਵਰ ਗੈਵਰ ਰਾਜ ਰੰਗ ॥
हैवर गैवर राज रंग ॥
अपने कुशल घोड़े, हाथी एवं शासन के आनन्द को त्याग कर
ਤਿਆਗਿ ਚਲਿਓ ਹੈ ਮੂੜ ਨੰਗ ॥੨॥
तिआगि चलिओ है मूड़ नंग ॥२॥
मूर्ख मनुष्य नग्न ही अन्त में दुनिया से चला जाता है॥ २॥
ਚੋਆ ਚੰਦਨ ਦੇਹ ਫੂਲਿਆ ॥
चोआ चंदन देह फूलिआ ॥
जिस शरीर पर इत्र तथा चन्दन लगाकर मनुष्य अभिमान करता था,
ਸੋ ਤਨੁ ਧਰ ਸੰਗਿ ਰੂਲਿਆ ॥੩॥
सो तनु धर संगि रूलिआ ॥३॥
वह शरीर (अन्त में) पार्थिव (मिट्टी) हो जाता है॥ ३॥
ਮੋਹਿ ਮੋਹਿਆ ਜਾਨੈ ਦੂਰਿ ਹੈ ॥
मोहि मोहिआ जानै दूरि है ॥
हे नानक ! दुनिया के मोह में मुग्ध हुआ मनुष्य ईश्वर को दूर समझता है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸਦਾ ਹਦੂਰਿ ਹੈ ॥੪॥੧॥੧੩੯॥
कहु नानक सदा हदूरि है ॥४॥१॥१३९॥
परन्तु ईश्वर सदा ही प्राणी के आसपास रहता है ॥ ४ ॥ १ ॥ १३९ ॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
ਮਨ ਧਰ ਤਰਬੇ ਹਰਿ ਨਾਮ ਨੋ ॥
मन धर तरबे हरि नाम नो ॥
हे प्राणी ! तू ईश्वर-नाम के आधार से संसार सागर से पार हो जाएगा।
ਸਾਗਰ ਲਹਰਿ ਸੰਸਾ ਸੰਸਾਰੁ ਗੁਰੁ ਬੋਹਿਥੁ ਪਾਰ ਗਰਾਮਨੋ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सागर लहरि संसा संसारु गुरु बोहिथु पार गरामनो ॥१॥ रहाउ ॥
संशय की लहरों से भरे हुए जगत् सागर से पार होने के लिए गुरु जी जहाज हैं॥ १॥ रहाउ ॥
ਕਲਿ ਕਾਲਖ ਅੰਧਿਆਰੀਆ ॥
कलि कालख अंधिआरीआ ॥
कलियुग में गहरा अंधकार है।
ਗੁਰ ਗਿਆਨ ਦੀਪਕ ਉਜਿਆਰੀਆ ॥੧॥
गुर गिआन दीपक उजिआरीआ ॥१॥
गुरु के दिए हुए ज्ञान का दीपक उजाला कर देता है॥ १॥
ਬਿਖੁ ਬਿਖਿਆ ਪਸਰੀ ਅਤਿ ਘਨੀ ॥
बिखु बिखिआ पसरी अति घनी ॥
मोह-माया का विष अधिक मात्रा में फैला हुआ है।
ਉਬਰੇ ਜਪਿ ਜਪਿ ਹਰਿ ਗੁਨੀ ॥੨॥
उबरे जपि जपि हरि गुनी ॥२॥
ईश्वर की निरन्तर आराधना करने से महापुरुष बच जाते हैं।॥ २॥
ਮਤਵਾਰੋ ਮਾਇਆ ਸੋਇਆ ॥
मतवारो माइआ सोइआ ॥
माया में मुग्ध हुआ मनुष्य (इस विष की मार से) सोया हुआ है।
ਗੁਰ ਭੇਟਤ ਭ੍ਰਮੁ ਭਉ ਖੋਇਆ ॥੩॥
गुर भेटत भ्रमु भउ खोइआ ॥३॥
लेकिन गुरु को मिलने से दुविधा एवं भय दूर हो जाते हैं॥३ ॥
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਏਕੁ ਧਿਆਇਆ ॥
कहु नानक एकु धिआइआ ॥
है नानक ! जिस व्यक्ति ने एक ईश्वर का ध्यान किया है।
ਘਟਿ ਘਟਿ ਨਦਰੀ ਆਇਆ ॥੪॥੨॥੧੪੦॥
घटि घटि नदरी आइआ ॥४॥२॥१४०॥
उत्त व्यक्ति को ही भगवान कण-कण में मौजूद दिखाई दिया है॥ ४॥ २॥ १४०॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
ਦੀਬਾਨੁ ਹਮਾਰੋ ਤੁਹੀ ਏਕ ॥
दीबानु हमारो तुही एक ॥
हे ईश्वर ! एक तू ही हमारा सहारा है।
ਸੇਵਾ ਥਾਰੀ ਗੁਰਹਿ ਟੇਕ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सेवा थारी गुरहि टेक ॥१॥ रहाउ ॥
गुरु की शरण में मैं तेरी ही सेवा करता रहता हूँ॥ १॥ रहाउ॥
ਅਨਿਕ ਜੁਗਤਿ ਨਹੀ ਪਾਇਆ ॥
अनिक जुगति नही पाइआ ॥
हे प्रभु ! अनेक युक्तियों द्वारा मैं तुझे प्राप्त न कर सका।
ਗੁਰਿ ਚਾਕਰ ਲੈ ਲਾਇਆ ॥੧॥
गुरि चाकर लै लाइआ ॥१॥
गुरु ने कृपा करके मुझे तेरी सेवा-भक्ति में लगा दिया है।॥ १ ॥
ਮਾਰੇ ਪੰਚ ਬਿਖਾਦੀਆ ॥
मारे पंच बिखादीआ ॥
मैंने पाँच दुष्टों (कामादि विकारों) का नाश कर दिया है।
ਗੁਰ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਦਲੁ ਸਾਧਿਆ ॥੨॥
गुर किरपा ते दलु साधिआ ॥२॥
गुरु की कृपा से मैंने बुराई की सेना को पराजित कर दिया है॥ २॥
ਬਖਸੀਸ ਵਜਹੁ ਮਿਲਿ ਏਕੁ ਨਾਮ ॥
बखसीस वजहु मिलि एकु नाम ॥
मुझे एक नाम प्रभु के दान के तौर पर प्राप्त हुआ है।
ਸੂਖ ਸਹਜ ਆਨੰਦ ਬਿਸ੍ਰਾਮ ॥੩॥
सूख सहज आनंद बिस्राम ॥३॥
अब मेरा निवास सहज सुख एवं आनंद में है॥ ३॥