ਮਾਨੁ ਅਭਿਮਾਨੁ ਦੋਊ ਸਮਾਨੇ ਮਸਤਕੁ ਡਾਰਿ ਗੁਰ ਪਾਗਿਓ ॥
मानु अभिमानु दोऊ समाने मसतकु डारि गुर पागिओ ॥
मेरे लिए मान-अभिमान दोनों एक समान हैं। अपना मस्तक मैंने गुरु के चरणों पर अर्पित कर दिया है।
ਸੰਪਤ ਹਰਖੁ ਨ ਆਪਤ ਦੂਖਾ ਰੰਗੁ ਠਾਕੁਰੈ ਲਾਗਿਓ ॥੧॥
स्मपत हरखु न आपत दूखा रंगु ठाकुरै लागिओ ॥१॥
मुझे धन-दौलत, हर्ष एवं विपदा दुखी नहीं करती क्योंकि मेरा प्रेम ठाकुर जी से हो गया है॥ १॥
ਬਾਸ ਬਾਸਰੀ ਏਕੈ ਸੁਆਮੀ ਉਦਿਆਨ ਦ੍ਰਿਸਟਾਗਿਓ ॥
बास बासरी एकै सुआमी उदिआन द्रिसटागिओ ॥
एक ईश्वर हृदय-गृह में वास करता है और उद्यान में भी दृष्टिगोचर होता है।
ਨਿਰਭਉ ਭਏ ਸੰਤ ਭ੍ਰਮੁ ਡਾਰਿਓ ਪੂਰਨ ਸਰਬਾਗਿਓ ॥੨॥
निरभउ भए संत भ्रमु डारिओ पूरन सरबागिओ ॥२॥
संतों ने मेरी दुविधा निवृत्त कर दी है और मैं निडर हो गया हूँ। सर्वज्ञ प्रभु सर्वत्र विद्यमान हो रहा है॥ २॥
ਜੋ ਕਿਛੁ ਕਰਤੈ ਕਾਰਣੁ ਕੀਨੋ ਮਨਿ ਬੁਰੋ ਨ ਲਾਗਿਓ ॥
जो किछु करतै कारणु कीनो मनि बुरो न लागिओ ॥
संयोगवश प्रभु जो भी करता है, मेरे हृदय को बुरा नहीं लगता।
ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਪਰਸਾਦਿ ਸੰਤਨ ਕੈ ਸੋਇਓ ਮਨੁ ਜਾਗਿਓ ॥੩॥
साधसंगति परसादि संतन कै सोइओ मनु जागिओ ॥३॥
साधसंगत एवं संतों की कृपा से मेरा मोह-माया में सोया हुआ मन जाग गया है॥३॥
ਜਨ ਨਾਨਕ ਓੜਿ ਤੁਹਾਰੀ ਪਰਿਓ ਆਇਓ ਸਰਣਾਗਿਓ ॥
जन नानक ओड़ि तुहारी परिओ आइओ सरणागिओ ॥
नानक का कथन है कि हे प्रभु ! मैं तुम्हारी ओट में आकर पड़ गया हूँ और शरण में आ गया हूँ।
ਨਾਮ ਰੰਗ ਸਹਜ ਰਸ ਮਾਣੇ ਫਿਰਿ ਦੂਖੁ ਨ ਲਾਗਿਓ ॥੪॥੨॥੧੬੦॥
नाम रंग सहज रस माणे फिरि दूखु न लागिओ ॥४॥२॥१६०॥
अब वह नाम रंग में सहज ही आनंद भोगता है और अब उसे फिर से कोई दुख प्रभावित नहीं करता ॥ ४॥ २॥ १६०॥
ਗਉੜੀ ਮਾਲਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी माला महला ५ ॥
गउड़ी माला महला ५ ॥
ਪਾਇਆ ਲਾਲੁ ਰਤਨੁ ਮਨਿ ਪਾਇਆ ॥
पाइआ लालु रतनु मनि पाइआ ॥
मैंने अपने मन में ही लाल रत्न (माणिक जैसा प्रियतम) पा लिया है।
ਤਨੁ ਸੀਤਲੁ ਮਨੁ ਸੀਤਲੁ ਥੀਆ ਸਤਗੁਰ ਸਬਦਿ ਸਮਾਇਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
तनु सीतलु मनु सीतलु थीआ सतगुर सबदि समाइआ ॥१॥ रहाउ ॥
मेरा तन शीतल हो गया है, मेरा मन भी शीतल हो गया है और मैं सतगुरु के शब्द में समा गया हूँ॥ १॥ रहाउ ॥
ਲਾਥੀ ਭੂਖ ਤ੍ਰਿਸਨ ਸਭ ਲਾਥੀ ਚਿੰਤਾ ਸਗਲ ਬਿਸਾਰੀ ॥
लाथी भूख त्रिसन सभ लाथी चिंता सगल बिसारी ॥
मेरी मोह की भूख निवृत्त हो गई है, मेरी तमाम तृष्णाएँ खत्म हो गई हैं और मेरी सारी चिन्ता मिट गई है।
ਕਰੁ ਮਸਤਕਿ ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਧਰਿਓ ਮਨੁ ਜੀਤੋ ਜਗੁ ਸਾਰੀ ॥੧॥
करु मसतकि गुरि पूरै धरिओ मनु जीतो जगु सारी ॥१॥
पूर्ण गुरु ने अपना हाथ मेरे मस्तक पर रखा है और अपने मन पर विजय पाने से मैंने सम्पूर्ण संसार जीत लिया है॥ १॥
ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਅਘਾਇ ਰਹੇ ਰਿਦ ਅੰਤਰਿ ਡੋਲਨ ਤੇ ਅਬ ਚੂਕੇ ॥
त्रिपति अघाइ रहे रिद अंतरि डोलन ते अब चूके ॥
अपने हृदय के भीतर मैं तृप्त एवं संतुष्ट रहता हूँ और अब मैं डांवाडोल नहीं होता।
ਅਖੁਟੁ ਖਜਾਨਾ ਸਤਿਗੁਰਿ ਦੀਆ ਤੋਟਿ ਨਹੀ ਰੇ ਮੂਕੇ ॥੨॥
अखुटु खजाना सतिगुरि दीआ तोटि नही रे मूके ॥२॥
नाम रूपी अक्षय भण्डार सतिगुरु ने मुझे प्रदान किया है, न ही यह कम होता है और न ही यह समाप्त होता है॥ २॥
ਅਚਰਜੁ ਏਕੁ ਸੁਨਹੁ ਰੇ ਭਾਈ ਗੁਰਿ ਐਸੀ ਬੂਝ ਬੁਝਾਈ ॥
अचरजु एकु सुनहु रे भाई गुरि ऐसी बूझ बुझाई ॥
हे भाई ! एक आश्चर्यजनक बात सुनो, गुरु ने मुझे ऐसा ज्ञान दिया है कि
ਲਾਹਿ ਪਰਦਾ ਠਾਕੁਰੁ ਜਉ ਭੇਟਿਓ ਤਉ ਬਿਸਰੀ ਤਾਤਿ ਪਰਾਈ ॥੩॥
लाहि परदा ठाकुरु जउ भेटिओ तउ बिसरी ताति पराई ॥३॥
जब पर्दा दूर हटाकर मैं अपने ईश्वर से मिला तो मुझे दूसरों से ईष्या करनी भूल गई। ३॥
ਕਹਿਓ ਨ ਜਾਈ ਏਹੁ ਅਚੰਭਉ ਸੋ ਜਾਨੈ ਜਿਨਿ ਚਾਖਿਆ ॥
कहिओ न जाई एहु अच्मभउ सो जानै जिनि चाखिआ ॥
यह एक आश्चर्य है, जो वर्णन नहीं किया जा सकता। जिस व्यक्ति ने इसे चखा है, वही इसे जानता है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸਚ ਭਏ ਬਿਗਾਸਾ ਗੁਰਿ ਨਿਧਾਨੁ ਰਿਦੈ ਲੈ ਰਾਖਿਆ ॥੪॥੩॥੧੬੧॥
कहु नानक सच भए बिगासा गुरि निधानु रिदै लै राखिआ ॥४॥३॥१६१॥
हे नानक ! मेरे अन्तर्मन में सत्य का प्रकाश हो गया है। प्रभु-नाम रूपी धन गुरु जी से प्राप्त करके मैंने इसे अपने हृदय में बसा लिया है॥ ४ ॥ ३ ॥ १६१ ॥
ਗਉੜੀ ਮਾਲਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी माला महला ५ ॥
गउड़ी माला महला ५ ॥
ਉਬਰਤ ਰਾਜਾ ਰਾਮ ਕੀ ਸਰਣੀ ॥
उबरत राजा राम की सरणी ॥
विश्व के राजा राम की शरण में आकर जीव (मोह-माया से) बच जाता है।
ਸਰਬ ਲੋਕ ਮਾਇਆ ਕੇ ਮੰਡਲ ਗਿਰਿ ਗਿਰਿ ਪਰਤੇ ਧਰਣੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सरब लोक माइआ के मंडल गिरि गिरि परते धरणी ॥१॥ रहाउ ॥
इहलोक, आकाश्लोक एवं पाताललोक के प्राणी माया के आकर्षण में ही फँसे हुए हैं। माया के आकर्षण के कारण ये उच्चस्तर से गिर गिर कर निम्नस्तर पर आ जाते हैं।॥१॥ रहाउ॥
ਸਾਸਤ ਸਿੰਮ੍ਰਿਤਿ ਬੇਦ ਬੀਚਾਰੇ ਮਹਾ ਪੁਰਖਨ ਇਉ ਕਹਿਆ ॥
सासत सिम्रिति बेद बीचारे महा पुरखन इउ कहिआ ॥
शास्त्रों, स्मृतियों एवं वेदों ने यही विचार किया है और महापुरुषों ने भी यही कहा है कि
ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਭਜਨ ਨਾਹੀ ਨਿਸਤਾਰਾ ਸੂਖੁ ਨ ਕਿਨਹੂੰ ਲਹਿਆ ॥੧॥
बिनु हरि भजन नाही निसतारा सूखु न किनहूं लहिआ ॥१॥
भगवान के भजन के बिना भवसागर से उद्धार नहीं हो सकता और न ही किसी को सुख उपलब्ध हुआ है॥ १॥
ਤੀਨਿ ਭਵਨ ਕੀ ਲਖਮੀ ਜੋਰੀ ਬੂਝਤ ਨਾਹੀ ਲਹਰੇ ॥
तीनि भवन की लखमी जोरी बूझत नाही लहरे ॥
चाहे मनुष्य तीनों लोकों की लक्ष्मी (दौलत) एकत्रित कर ले परन्तु उसके लोभ की लहरें मिटती नहीं।
ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਭਗਤਿ ਕਹਾ ਥਿਤਿ ਪਾਵੈ ਫਿਰਤੋ ਪਹਰੇ ਪਹਰੇ ॥੨॥
बिनु हरि भगति कहा थिति पावै फिरतो पहरे पहरे ॥२॥
भगवान की भक्ति के बिना मन को स्थिरता कहीं प्राप्त हो सकती है और प्राणी हमेशा ही माया को आकर्षण में भटकता रहता है। २॥
ਅਨਿਕ ਬਿਲਾਸ ਕਰਤ ਮਨ ਮੋਹਨ ਪੂਰਨ ਹੋਤ ਨ ਕਾਮਾ ॥
अनिक बिलास करत मन मोहन पूरन होत न कामा ॥
मनुष्य मन को आकर्षित करने वाले विलासों में लिप्त होता है परन्तु उसकी तृष्णाएँ तृप्त नहीं होती।
ਜਲਤੋ ਜਲਤੋ ਕਬਹੂ ਨ ਬੂਝਤ ਸਗਲ ਬ੍ਰਿਥੇ ਬਿਨੁ ਨਾਮਾ ॥੩॥
जलतो जलतो कबहू न बूझत सगल ब्रिथे बिनु नामा ॥३॥
वह सदा तृष्णाग्नि में जलता रहता है और कदापि शांत नहीं होता। प्रभु के नाम बिना सबकुछ व्यर्थ हैं। ३॥
ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਜਪਹੁ ਮੇਰੇ ਮੀਤਾ ਇਹੈ ਸਾਰ ਸੁਖੁ ਪੂਰਾ ॥
हरि का नामु जपहु मेरे मीता इहै सार सुखु पूरा ॥
हे मेरे मित्र ! भगवान के नाम का जाप करो, यह पूर्ण सुख का सार है।
ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਜਨਮ ਮਰਣੁ ਨਿਵਾਰੈ ਨਾਨਕ ਜਨ ਕੀ ਧੂਰਾ ॥੪॥੪॥੧੬੨॥
साधसंगति जनम मरणु निवारै नानक जन की धूरा ॥४॥४॥१६२॥
हे नानक ! संतों की संगति में जन्म-मरण का चक्र समाप्त हो जाता है और वह प्रभु के सेवकों की धूलि हो जाता है॥ ४॥ ४॥ १६२॥
ਗਉੜੀ ਮਾਲਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी माला महला ५ ॥
गउड़ी माला महला ५ ॥
ਮੋ ਕਉ ਇਹ ਬਿਧਿ ਕੋ ਸਮਝਾਵੈ ॥
मो कउ इह बिधि को समझावै ॥
हे मान्यवर ! मुझे यह विधि कौन समझा सकता है?
ਕਰਤਾ ਹੋਇ ਜਨਾਵੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
करता होइ जनावै ॥१॥ रहाउ ॥
यदि मनुष्य करने वाला हो, तो ही वह कर सकता है॥ १॥ रहाउ॥
ਅਨਜਾਨਤ ਕਿਛੁ ਇਨਹਿ ਕਮਾਨੋ ਜਪ ਤਪ ਕਛੂ ਨ ਸਾਧਾ ॥
अनजानत किछु इनहि कमानो जप तप कछू न साधा ॥
यह मनुष्य अज्ञानता में सब कुछ करता है, परन्तु वह आराधना एवं तपस्या कुछ भी नहीं करता।
ਦਹ ਦਿਸਿ ਲੈ ਇਹੁ ਮਨੁ ਦਉਰਾਇਓ ਕਵਨ ਕਰਮ ਕਰਿ ਬਾਧਾ ॥੧॥
दह दिसि लै इहु मनु दउराइओ कवन करम करि बाधा ॥१॥
तृष्णा में वह अपने इस मन को दसों दिशाओं में भगाता है। वह कौन-से कर्म द्वारा फँसा पड़ा है ? ॥ १॥
ਮਨ ਤਨ ਧਨ ਭੂਮਿ ਕਾ ਠਾਕੁਰੁ ਹਉ ਇਸ ਕਾ ਇਹੁ ਮੇਰਾ ॥
मन तन धन भूमि का ठाकुरु हउ इस का इहु मेरा ॥
प्राणी यह कहता है कि मैं अपने मन, तन, धन एवं भूमि का स्वामी हूँ। मैं इनका हूँ और यह मेरे हैं।