ਪਰ ਘਰਿ ਚੀਤੁ ਮਨਮੁਖਿ ਡੋਲਾਇ ॥
पर घरि चीतु मनमुखि डोलाइ ॥
स्वेच्छाचारी इन्सान का मन पराई नारी की लालसा करता है।
ਗਲਿ ਜੇਵਰੀ ਧੰਧੈ ਲਪਟਾਇ ॥
गलि जेवरी धंधै लपटाइ ॥
उसकी गर्दन पर मृत्यु का फँदा होता है और वह सांसारिक विवादों में फंसा रहता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਛੂਟਸਿ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਇ ॥੫॥
गुरमुखि छूटसि हरि गुण गाइ ॥५॥
गुरमुख की ईश्वर की गुणस्तुति करने से मुक्ति हो जाती है॥ ५॥
ਜਿਉ ਤਨੁ ਬਿਧਵਾ ਪਰ ਕਉ ਦੇਈ ॥
जिउ तनु बिधवा पर कउ देई ॥
जिस प्रकार एक आचरणहीन नारी, जो अपना तन पराए पुरुष को अर्पित कर देती हैं
ਕਾਮਿ ਦਾਮਿ ਚਿਤੁ ਪਰ ਵਸਿ ਸੇਈ ॥
कामि दामि चितु पर वसि सेई ॥
और भोगविलास अथवा धन की खातिर जिसका मन दूसरे के वश में हो जाता है,
ਬਿਨੁ ਪਿਰ ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਨ ਕਬਹੂੰ ਹੋਈ ॥੬॥
बिनु पिर त्रिपति न कबहूं होई ॥६॥
उसे अपने पति बिना संतोष नहीं होता। द्वैत भाव वाला मनुष्य वैसा ही है॥ ६॥
ਪੜਿ ਪੜਿ ਪੋਥੀ ਸਿੰਮ੍ਰਿਤਿ ਪਾਠਾ ॥
पड़ि पड़ि पोथी सिम्रिति पाठा ॥
प्राणी ग्रंथों का अध्ययन करता है, स्मृतियों का पाठ करता है
ਬੇਦ ਪੁਰਾਣ ਪੜੈ ਸੁਣਿ ਥਾਟਾ ॥
बेद पुराण पड़ै सुणि थाटा ॥
और वेदों, पुराणों एवं दूसरी रचनाओं का अध्ययन करता उसे सुनता है।
ਬਿਨੁ ਰਸ ਰਾਤੇ ਮਨੁ ਬਹੁ ਨਾਟਾ ॥੭॥
बिनु रस राते मनु बहु नाटा ॥७॥
परन्तु नाम-रस के साथ अनुरक्त हुए बिना मन बहुत डोलता है॥ ७ ॥
ਜਿਉ ਚਾਤ੍ਰਿਕ ਜਲ ਪ੍ਰੇਮ ਪਿਆਸਾ ॥
जिउ चात्रिक जल प्रेम पिआसा ॥
जैसे चात्रिक का वर्षा की बूंदों के साथ प्रेम एवं उल्लास है,”
ਜਿਉ ਮੀਨਾ ਜਲ ਮਾਹਿ ਉਲਾਸਾ ॥
जिउ मीना जल माहि उलासा ॥
जैसे मछली जल में प्रसन्न होती है,
ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਰਸੁ ਪੀ ਤ੍ਰਿਪਤਾਸਾ ॥੮॥੧੧॥
नानक हरि रसु पी त्रिपतासा ॥८॥११॥
वैसे ही नानक हरि रस का पान करके तृप्त हो गया है॥ ८॥ ११॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
गउड़ी महला १ ॥
गउड़ी महला १ ॥
ਹਠੁ ਕਰਿ ਮਰੈ ਨ ਲੇਖੈ ਪਾਵੈ ॥
हठु करि मरै न लेखै पावै ॥
जो व्यक्ति हठ करके मरता है, वह स्वीकार नहीं होता,
ਵੇਸ ਕਰੈ ਬਹੁ ਭਸਮ ਲਗਾਵੈ ॥
वेस करै बहु भसम लगावै ॥
चाहे वह धार्मिक वेशभूषा पहन ले अथवा अपने शरीर पर अधिकतर विभूति लगा ले।
ਨਾਮੁ ਬਿਸਾਰਿ ਬਹੁਰਿ ਪਛੁਤਾਵੈ ॥੧॥
नामु बिसारि बहुरि पछुतावै ॥१॥
प्रभु नाम को विस्मृत करके वह अंततः पश्चाताप करता है॥ १॥
ਤੂੰ ਮਨਿ ਹਰਿ ਜੀਉ ਤੂੰ ਮਨਿ ਸੂਖ ॥
तूं मनि हरि जीउ तूं मनि सूख ॥
हे भाई ! तू पारब्रह्म प्रभु की आराधना कर और अपने मन में आत्मिक सुख प्राप्त कर।
ਨਾਮੁ ਬਿਸਾਰਿ ਸਹਹਿ ਜਮ ਦੂਖ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
नामु बिसारि सहहि जम दूख ॥१॥ रहाउ ॥
प्रभु के नाम को विस्मृत करके तू मृत्यु का कष्ट सहन करेगा ॥ १॥ रहाउ॥
ਚੋਆ ਚੰਦਨ ਅਗਰ ਕਪੂਰਿ ॥
चोआ चंदन अगर कपूरि ॥
चन्दन, अगर, कपूर, इत्र इत्यादि सुगन्धियां एवं
ਮਾਇਆ ਮਗਨੁ ਪਰਮ ਪਦੁ ਦੂਰਿ ॥
माइआ मगनु परम पदु दूरि ॥
सांसारिक पदार्थों की मस्ती मनुष्य को परम पद से बहुत दूर ले जाती है।
ਨਾਮਿ ਬਿਸਾਰਿਐ ਸਭੁ ਕੂੜੋ ਕੂਰਿ ॥੨॥
नामि बिसारिऐ सभु कूड़ो कूरि ॥२॥
प्रभु नाम को विस्मृत करके वह तमाम झूठों का झूठा अर्थात् व्यर्थ हो जाता है॥ २॥
ਨੇਜੇ ਵਾਜੇ ਤਖਤਿ ਸਲਾਮੁ ॥
नेजे वाजे तखति सलामु ॥
नेजे, बैंड बाजे, राजसिंघासन एवं दूसरों से नमस्कारे
ਅਧਕੀ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਵਿਆਪੈ ਕਾਮੁ ॥
अधकी त्रिसना विआपै कामु ॥
लालसा को बढ़ाते हैं और प्राणी कामवासना में लीन हो जाता है।
ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਜਾਚੇ ਭਗਤਿ ਨ ਨਾਮੁ ॥੩॥
बिनु हरि जाचे भगति न नामु ॥३॥
भगवान के दर से मांगे बिना उसकी भक्ति एवं नाम प्राप्त नहीं होते ॥ ३॥
ਵਾਦਿ ਅਹੰਕਾਰਿ ਨਾਹੀ ਪ੍ਰਭ ਮੇਲਾ ॥
वादि अहंकारि नाही प्रभ मेला ॥
वाद-विवाद एवं अहंकार के कारण प्रभु से मिलन नहीं होता।
ਮਨੁ ਦੇ ਪਾਵਹਿ ਨਾਮੁ ਸੁਹੇਲਾ ॥
मनु दे पावहि नामु सुहेला ॥
अपने मन को प्रभु के समक्ष अर्पित करने से मनुष्य सुखदायक नाम को प्राप्त कर लेता है।
ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਅਗਿਆਨੁ ਦੁਹੇਲਾ ॥੪॥
दूजै भाइ अगिआनु दुहेला ॥४॥
अज्ञानता द्वारा प्राणी दूसरे की चाहत में उलझ जाता है, जो उसे बहुत दुखी कर देती है॥ ४ ॥
ਬਿਨੁ ਦਮ ਕੇ ਸਉਦਾ ਨਹੀ ਹਾਟ ॥
बिनु दम के सउदा नही हाट ॥
जैसे मूल्य बिना दुकान से सौदा प्राप्त नहीं किया जा सकता।
ਬਿਨੁ ਬੋਹਿਥ ਸਾਗਰ ਨਹੀ ਵਾਟ ॥
बिनु बोहिथ सागर नही वाट ॥
जैसे जहाज के बिना सागर की यात्रा नहीं की जा सकती।
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਸੇਵੇ ਘਾਟੇ ਘਾਟਿ ॥੫॥
बिनु गुर सेवे घाटे घाटि ॥५॥
वैसे ही गुरु की सेवा बिना आत्मिक पूंजी की दृष्टि से नुक्सान ही नुक्सान होता है॥ ५ ॥
ਤਿਸ ਕਉ ਵਾਹੁ ਵਾਹੁ ਜਿ ਵਾਟ ਦਿਖਾਵੈ ॥
तिस कउ वाहु वाहु जि वाट दिखावै ॥
“(हे भाई !) वह गुरु धन्य, धन्य है, जो सही जीवन मार्ग दिखाता है।
ਤਿਸ ਕਉ ਵਾਹੁ ਵਾਹੁ ਜਿ ਸਬਦੁ ਸੁਣਾਵੈ ॥
तिस कउ वाहु वाहु जि सबदु सुणावै ॥
वह गुरु धन्य, धन्य है, जो मुझे शब्द सुनाता है।
ਤਿਸ ਕਉ ਵਾਹੁ ਵਾਹੁ ਜਿ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਵੈ ॥੬॥
तिस कउ वाहु वाहु जि मेलि मिलावै ॥६॥
“(हे भाई !) धन्य, धन्य है उसको जो मुझे ईश्वर के मिलन में मिलाता है॥ ६॥
ਵਾਹੁ ਵਾਹੁ ਤਿਸ ਕਉ ਜਿਸ ਕਾ ਇਹੁ ਜੀਉ ॥
वाहु वाहु तिस कउ जिस का इहु जीउ ॥
धन्य, धन्य है उसको जिसका यह अमूल्य जीवन है।
ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਮਥਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪੀਉ ॥
गुर सबदी मथि अम्रितु पीउ ॥
गुरु के शब्द से नाम अमृत का जाप एवं पान कर।
ਨਾਮ ਵਡਾਈ ਤੁਧੁ ਭਾਣੈ ਦੀਉ ॥੭॥
नाम वडाई तुधु भाणै दीउ ॥७॥
हे प्रभु ! नाम की शोभा तेरी इच्छा द्वारा प्रदान होती है।॥ ७॥
ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਕਿਉ ਜੀਵਾ ਮਾਇ ॥
नाम बिना किउ जीवा माइ ॥
हे मेरी माता ! प्रभु नाम के बिना मैं किस तरह जीवित रह सकता हूँ।
ਅਨਦਿਨੁ ਜਪਤੁ ਰਹਉ ਤੇਰੀ ਸਰਣਾਇ ॥
अनदिनु जपतु रहउ तेरी सरणाइ ॥
हे प्रभु ! रात-दिन मैं नाम-स्मरण करता हूँ और तेरी शरणागत रहता हूँ।
ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਪਤਿ ਪਾਇ ॥੮॥੧੨॥
नानक नामि रते पति पाइ ॥८॥१२॥
हे नानक ! प्रभु नाम में मग्न होने से मनुष्य मान-सम्मान प्राप्त कर लेता है॥ ८ ॥ १२ ॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
गउड़ी महला १ ॥
गउड़ी महला १ ॥
ਹਉਮੈ ਕਰਤ ਭੇਖੀ ਨਹੀ ਜਾਨਿਆ ॥
हउमै करत भेखी नही जानिआ ॥
अहंकार में प्रवृत्त होने से मनुष्य ईश्वर को नहीं जानता, चाहे वह कोई धार्मिक वेष धारण कर ले।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਭਗਤਿ ਵਿਰਲੇ ਮਨੁ ਮਾਨਿਆ ॥੧॥
गुरमुखि भगति विरले मनु मानिआ ॥१॥
कोई विरला पुरुष ही है, जिसका मन गुरु के आश्रय द्वारा प्रभु की भक्ति करने से तृप्त हुआ है॥ १॥
ਹਉ ਹਉ ਕਰਤ ਨਹੀ ਸਚੁ ਪਾਈਐ ॥
हउ हउ करत नही सचु पाईऐ ॥
अहंत्व (मैं, मेरी) की करनी से सत्य (ईश्वर) प्राप्त नहीं होता।
ਹਉਮੈ ਜਾਇ ਪਰਮ ਪਦੁ ਪਾਈਐ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हउमै जाइ परम पदु पाईऐ ॥१॥ रहाउ ॥
जब मनुष्य का अहंकार निवृत्त हो जाता है तो उसे परम पद प्राप्त हो जाता है। १॥ रहाउ॥
ਹਉਮੈ ਕਰਿ ਰਾਜੇ ਬਹੁ ਧਾਵਹਿ ॥
हउमै करि राजे बहु धावहि ॥
राजा (अपनी शक्ति का) बहुत अहंकार करते हैं और इसलिए दूसरे राज्यों पर आक्रमण करते हैं।
ਹਉਮੈ ਖਪਹਿ ਜਨਮਿ ਮਰਿ ਆਵਹਿ ॥੨॥
हउमै खपहि जनमि मरि आवहि ॥२॥
अहंकारवश वे बर्बाद हो जाते हैं और परिणामस्वरूप जन्म-मरण के चक्र में पड़कर पुनः (संसार में) उत्पन्न होते हैं।॥ २॥
ਹਉਮੈ ਨਿਵਰੈ ਗੁਰ ਸਬਦੁ ਵੀਚਾਰੈ ॥
हउमै निवरै गुर सबदु वीचारै ॥
गुरु के शब्द का चिन्तन करने से (मनुष्य का) अहंकार निवृत्त हो जाता है।
ਚੰਚਲ ਮਤਿ ਤਿਆਗੈ ਪੰਚ ਸੰਘਾਰੈ ॥੩॥
चंचल मति तिआगै पंच संघारै ॥३॥
ऐसा व्यक्ति अपने चंचल मन पर अंकुश लगाता है और पाँच (कामादिक) विकारों का संहार करता है॥ ३॥
ਅੰਤਰਿ ਸਾਚੁ ਸਹਜ ਘਰਿ ਆਵਹਿ ॥
अंतरि साचु सहज घरि आवहि ॥
जिस व्यक्ति के हृदय में सत्य नाम विद्यमान है, वह सहज घर में पहुँच जाता है।
ਰਾਜਨੁ ਜਾਣਿ ਪਰਮ ਗਤਿ ਪਾਵਹਿ ॥੪॥
राजनु जाणि परम गति पावहि ॥४॥
प्रभु पातशाह को समझकर वह परमगति प्राप्त कर लेता है॥ ४॥
ਸਚੁ ਕਰਣੀ ਗੁਰੁ ਭਰਮੁ ਚੁਕਾਵੈ ॥
सचु करणी गुरु भरमु चुकावै ॥
गुरु जी उसकी दुविधा दूर कर देते हैं, जिसके कर्म शुभ (सच्चे) हैं।
ਨਿਰਭਉ ਕੈ ਘਰਿ ਤਾੜੀ ਲਾਵੈ ॥੫॥
निरभउ कै घरि ताड़ी लावै ॥५॥
वह निर्भय ईश्वर के चरणों में अपनी वृति लगाता है॥ ५ ॥
ਹਉ ਹਉ ਕਰਿ ਮਰਣਾ ਕਿਆ ਪਾਵੈ ॥
हउ हउ करि मरणा किआ पावै ॥
जो (मैं, मैं) अभिमान एवं घमण्ड करता हुआ प्राण त्याग देता है, वह क्या कर्म करता है ?
ਪੂਰਾ ਗੁਰੁ ਭੇਟੇ ਸੋ ਝਗਰੁ ਚੁਕਾਵੈ ॥੬॥
पूरा गुरु भेटे सो झगरु चुकावै ॥६॥
लेकिन जो पूर्ण गुरु से मिलता है, वह अपने तमाम वाद-विवाद मिटा लेता है॥ ६॥
ਜੇਤੀ ਹੈ ਤੇਤੀ ਕਿਹੁ ਨਾਹੀ ॥
जेती है तेती किहु नाही ॥
जो कुछ भी है, वह वास्तव में कुछ भी नहीं।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਗਿਆਨ ਭੇਟਿ ਗੁਣ ਗਾਹੀ ॥੭
गुरमुखि गिआन भेटि गुण गाही ॥७॥
गुरमुख ज्ञान प्राप्त करके ईश्वर की गुणस्तुति करते रहते हैं॥ ७॥