ਤਿਸ ਕਾ ਨਾਮੁ ਸਤਿ ਰਾਮਦਾਸੁ ॥
तिस का नामु सति रामदासु ॥
उसका नाम सत्य ही रामदास है।
ਆਤਮ ਰਾਮੁ ਤਿਸੁ ਨਦਰੀ ਆਇਆ ॥
आतम रामु तिसु नदरी आइआ ॥
उसे अपने अन्तर में ही राम दिखाई दे गया है।
ਦਾਸ ਦਸੰਤਣ ਭਾਇ ਤਿਨਿ ਪਾਇਆ ॥
दास दसंतण भाइ तिनि पाइआ ॥
सेवकों का सेवक होने के स्वभाव से उसने ईश्वर को पाया है।
ਸਦਾ ਨਿਕਟਿ ਨਿਕਟਿ ਹਰਿ ਜਾਨੁ ॥
सदा निकटि निकटि हरि जानु ॥
जो हमेशा ही भगवान को अपने निकट समझता है,
ਸੋ ਦਾਸੁ ਦਰਗਹ ਪਰਵਾਨੁ ॥
सो दासु दरगह परवानु ॥
वह सेवक प्रभु के दरबार में स्वीकार होता है।
ਅਪੁਨੇ ਦਾਸ ਕਉ ਆਪਿ ਕਿਰਪਾ ਕਰੈ ॥
अपुने दास कउ आपि किरपा करै ॥
ईश्वर अपने सेवक पर स्वयं कृपा-दृष्टि करता है
ਤਿਸੁ ਦਾਸ ਕਉ ਸਭ ਸੋਝੀ ਪਰੈ ॥
तिसु दास कउ सभ सोझी परै ॥
और उस सेवक को समूचा ज्ञान हो जाता है।
ਸਗਲ ਸੰਗਿ ਆਤਮ ਉਦਾਸੁ ॥
सगल संगि आतम उदासु ॥
समूचे परिवार में (रहता हुआ भी) वह मन से निर्लिप्त रहता है,
ਐਸੀ ਜੁਗਤਿ ਨਾਨਕ ਰਾਮਦਾਸੁ ॥੬॥
ऐसी जुगति नानक रामदासु ॥६॥
हे नानक ! ऐसी जीवन-युक्ति वाला रामदास होता है॥ ६॥
ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਆਗਿਆ ਆਤਮ ਹਿਤਾਵੈ ॥
प्रभ की आगिआ आतम हितावै ॥
जो प्रभु की आज्ञा को सच्चे मन से मानता है,
ਜੀਵਨ ਮੁਕਤਿ ਸੋਊ ਕਹਾਵੈ ॥
जीवन मुकति सोऊ कहावै ॥
वही जीवन मुक्त कहलाता है।
ਤੈਸਾ ਹਰਖੁ ਤੈਸਾ ਉਸੁ ਸੋਗੁ ॥
तैसा हरखु तैसा उसु सोगु ॥
उसके लिए सुख एवं दुःख एक समान होते हैं।
ਸਦਾ ਅਨੰਦੁ ਤਹ ਨਹੀ ਬਿਓਗੁ ॥
सदा अनंदु तह नही बिओगु ॥
उसे हमेशा ही आनंद मिलता है और कोई वियोग नहीं होता।
ਤੈਸਾ ਸੁਵਰਨੁ ਤੈਸੀ ਉਸੁ ਮਾਟੀ ॥
तैसा सुवरनु तैसी उसु माटी ॥
सोना तथा मिट्टी भी उस पुरुष के लिए एक समान हैं,
ਤੈਸਾ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਤੈਸੀ ਬਿਖੁ ਖਾਟੀ ॥
तैसा अम्रितु तैसी बिखु खाटी ॥
उसके लिए अमृत एवं खट्टा विष भी एक समान है।
ਤੈਸਾ ਮਾਨੁ ਤੈਸਾ ਅਭਿਮਾਨੁ ॥
तैसा मानु तैसा अभिमानु ॥
उसके लिए मान एवं अभिमान भी एक समान है।
ਤੈਸਾ ਰੰਕੁ ਤੈਸਾ ਰਾਜਾਨੁ ॥
तैसा रंकु तैसा राजानु ॥
रंक तथा राजा भी उसकी नजर में बराबर हैं।
ਜੋ ਵਰਤਾਏ ਸਾਈ ਜੁਗਤਿ ॥
जो वरताए साई जुगति ॥
जो भगवान करता है, वही उसकी जीवन-युक्ति होती है।
ਨਾਨਕ ਓਹੁ ਪੁਰਖੁ ਕਹੀਐ ਜੀਵਨ ਮੁਕਤਿ ॥੭॥
नानक ओहु पुरखु कहीऐ जीवन मुकति ॥७॥
हे नानक ! वह पुरुष ही जीवन मुक्त कहा जाता है॥ ७ ॥
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਕੇ ਸਗਲੇ ਠਾਉ ॥
पारब्रहम के सगले ठाउ ॥
परमात्मा के ही समस्त स्थान हैं।
ਜਿਤੁ ਜਿਤੁ ਘਰਿ ਰਾਖੈ ਤੈਸਾ ਤਿਨ ਨਾਉ ॥
जितु जितु घरि राखै तैसा तिन नाउ ॥
जिस-जिस स्थान पर ईश्वर प्राणियों को रखता है, वैसा ही वह नाम धारण कर लेते हैं।
ਆਪੇ ਕਰਨ ਕਰਾਵਨ ਜੋਗੁ ॥
आपे करन करावन जोगु ॥
भगवान स्वयं ही सब कुछ करने और (प्राणियों से) करवाने में समर्थ है।
ਪ੍ਰਭ ਭਾਵੈ ਸੋਈ ਫੁਨਿ ਹੋਗੁ ॥
प्रभ भावै सोई फुनि होगु ॥
जो परमात्मा को भला लगता है, वही होता है
ਪਸਰਿਓ ਆਪਿ ਹੋਇ ਅਨਤ ਤਰੰਗ ॥
पसरिओ आपि होइ अनत तरंग ॥
परमात्मा ने अपने आपको अनन्त लहरों में मौजूद होकर फैलाया हुआ है।
ਲਖੇ ਨ ਜਾਹਿ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਕੇ ਰੰਗ ॥
लखे न जाहि पारब्रहम के रंग ॥
परमात्मा के कौतुक जाने नहीं जा सकते।
ਜੈਸੀ ਮਤਿ ਦੇਇ ਤੈਸਾ ਪਰਗਾਸ ॥
जैसी मति देइ तैसा परगास ॥
परमात्मा जैसी बुद्धि प्रदान करता है, वैसा ही प्रकाश होता है।
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਕਰਤਾ ਅਬਿਨਾਸ ॥
पारब्रहमु करता अबिनास ॥
सृष्टिकर्ता परमात्मा अनश्वर है।
ਸਦਾ ਸਦਾ ਸਦਾ ਦਇਆਲ ॥
सदा सदा सदा दइआल ॥
ईश्वर हमेशा ही दयालु है।
ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਨਾਨਕ ਭਏ ਨਿਹਾਲ ॥੮॥੯॥
सिमरि सिमरि नानक भए निहाल ॥८॥९॥
हे नानक ! उस परमात्मा का सिमरन करके कितने ही जीव कृतार्थ हो गए हैं। ८॥ ६॥
ਸਲੋਕੁ ॥
सलोकु ॥
श्लोक ॥
ਉਸਤਤਿ ਕਰਹਿ ਅਨੇਕ ਜਨ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਰਾਵਾਰ ॥
उसतति करहि अनेक जन अंतु न पारावार ॥
बहुत सारे मनुष्य प्रभु की गुणस्तुति करते रहते हैं, परन्तु परमात्मा के गुणों का कोई ओर-छोर नहीं मिलता।
ਨਾਨਕ ਰਚਨਾ ਪ੍ਰਭਿ ਰਚੀ ਬਹੁ ਬਿਧਿ ਅਨਿਕ ਪ੍ਰਕਾਰ ॥੧॥
नानक रचना प्रभि रची बहु बिधि अनिक प्रकार ॥१॥
हे नानक ! परमात्मा ने जो यह सृष्टि-रचना की है, वह अनेक प्रकार की होने के कारण बहुत सारी विधियों से रची है॥ १॥
ਅਸਟਪਦੀ ॥
असटपदी ॥
अष्टपदी ॥
ਕਈ ਕੋਟਿ ਹੋਏ ਪੂਜਾਰੀ ॥
कई कोटि होए पूजारी ॥
कई करोड़ जीव उसकी पूजा करने वाले हुए हैं।
ਕਈ ਕੋਟਿ ਆਚਾਰ ਬਿਉਹਾਰੀ ॥
कई कोटि आचार बिउहारी ॥
कई करोड़ धार्मिक एवं सांसारिक आचरण-व्यवहार करने वाले हुए हैं।
ਕਈ ਕੋਟਿ ਭਏ ਤੀਰਥ ਵਾਸੀ ॥
कई कोटि भए तीरथ वासी ॥
कई करोड़ जीव तीर्थो के निवासी हुए हैं।
ਕਈ ਕੋਟਿ ਬਨ ਭ੍ਰਮਹਿ ਉਦਾਸੀ ॥
कई कोटि बन भ्रमहि उदासी ॥
कई करोड़ जीव वैरागी बनकर जंगलों में भटकते रहते हैं।
ਕਈ ਕੋਟਿ ਬੇਦ ਕੇ ਸ੍ਰੋਤੇ ॥
कई कोटि बेद के स्रोते ॥
कई करोड़ वेदों के श्रोता हैं।
ਕਈ ਕੋਟਿ ਤਪੀਸੁਰ ਹੋਤੇ ॥
कई कोटि तपीसुर होते ॥
कई करोड़ तपस्वी बने हुए हैं।
ਕਈ ਕੋਟਿ ਆਤਮ ਧਿਆਨੁ ਧਾਰਹਿ ॥
कई कोटि आतम धिआनु धारहि ॥
कई करोड़ अपनी आत्मा में प्रभु-ध्यान को धारण करने वाले हैं।
ਕਈ ਕੋਟਿ ਕਬਿ ਕਾਬਿ ਬੀਚਾਰਹਿ ॥
कई कोटि कबि काबि बीचारहि ॥
कई करोड़ कवि काव्य-रचनाओं द्वारा विचार करते हैं।
ਕਈ ਕੋਟਿ ਨਵਤਨ ਨਾਮ ਧਿਆਵਹਿ ॥
कई कोटि नवतन नाम धिआवहि ॥
कई करोड़ पुरुष नित्य नवीन नाम का ध्यान करते रहते हैं,
ਨਾਨਕ ਕਰਤੇ ਕਾ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਵਹਿ ॥੧॥
नानक करते का अंतु न पावहि ॥१॥
तो भी हे नानक ! उस परमात्मा का कोई भेद नहीं पा सकते॥ १॥
ਕਈ ਕੋਟਿ ਭਏ ਅਭਿਮਾਨੀ ॥
कई कोटि भए अभिमानी ॥
इस दुनिया में कई करोड़ (पुरुष) अभिमानी हैं।
ਕਈ ਕੋਟਿ ਅੰਧ ਅਗਿਆਨੀ ॥
कई कोटि अंध अगिआनी ॥
कई करोड़ (पुरुष) अन्धे अज्ञानी हैं।
ਕਈ ਕੋਟਿ ਕਿਰਪਨ ਕਠੋਰ ॥
कई कोटि किरपन कठोर ॥
कई करोड़ (पुरुष) पत्थर दिल व् कंजूस हैं।
ਕਈ ਕੋਟਿ ਅਭਿਗ ਆਤਮ ਨਿਕੋਰ ॥
कई कोटि अभिग आतम निकोर ॥
कई करोड़ (मनुष्य) शुष्क एवं संवेदनहीन हैं।
ਕਈ ਕੋਟਿ ਪਰ ਦਰਬ ਕਉ ਹਿਰਹਿ ॥
कई कोटि पर दरब कउ हिरहि ॥
कई करोड़ (मनुष्य) दूसरों का धन चुराते हैं।
ਕਈ ਕੋਟਿ ਪਰ ਦੂਖਨਾ ਕਰਹਿ ॥
कई कोटि पर दूखना करहि ॥
कई करोड़ (मनुष्य) दूसरों की निन्दा करते हैं।
ਕਈ ਕੋਟਿ ਮਾਇਆ ਸ੍ਰਮ ਮਾਹਿ ॥
कई कोटि माइआ स्रम माहि ॥
कई करोड़ (पुरुष) धन संग्रह करने हेतु श्रम में लगे हैं।
ਕਈ ਕੋਟਿ ਪਰਦੇਸ ਭ੍ਰਮਾਹਿ ॥
कई कोटि परदेस भ्रमाहि ॥
कई करोड़ दूसरे देशों में भटक रहे हैं।
ਜਿਤੁ ਜਿਤੁ ਲਾਵਹੁ ਤਿਤੁ ਤਿਤੁ ਲਗਨਾ ॥
जितु जितु लावहु तितु तितु लगना ॥
हे प्रभु ! जहाँ कहीं तुम जीवों को (काम में) लगाते हो, वहाँ-वहाँ वे लग जाते हैं।
ਨਾਨਕ ਕਰਤੇ ਕੀ ਜਾਨੈ ਕਰਤਾ ਰਚਨਾ ॥੨॥
नानक करते की जानै करता रचना ॥२॥
हे नानक ! कर्ता-प्रभु की सृष्टि रचना (का भेद) कर्ता-प्रभु ही जानता है॥ २ ॥
ਕਈ ਕੋਟਿ ਸਿਧ ਜਤੀ ਜੋਗੀ ॥
कई कोटि सिध जती जोगी ॥
दुनिया में कई करोड़ सिद्ध, ब्रह्मचारी एवं योगी हैं।
ਕਈ ਕੋਟਿ ਰਾਜੇ ਰਸ ਭੋਗੀ ॥
कई कोटि राजे रस भोगी ॥
कई करोड़ रस भोगने वाले राजा हैं।
ਕਈ ਕੋਟਿ ਪੰਖੀ ਸਰਪ ਉਪਾਏ ॥
कई कोटि पंखी सरप उपाए ॥
कई करोड़ पक्षी एवं साँप परमात्मा ने पैदा किए हैं,
ਕਈ ਕੋਟਿ ਪਾਥਰ ਬਿਰਖ ਨਿਪਜਾਏ ॥
कई कोटि पाथर बिरख निपजाए ॥
कई करोड़ पत्थर एवं वृक्ष उगाए गए हैं।
ਕਈ ਕੋਟਿ ਪਵਣ ਪਾਣੀ ਬੈਸੰਤਰ ॥
कई कोटि पवण पाणी बैसंतर ॥
कई करोड़ हवाएँ, जल एवं अग्नियां हैं।
ਕਈ ਕੋਟਿ ਦੇਸ ਭੂ ਮੰਡਲ ॥
कई कोटि देस भू मंडल ॥
कई करोड़ देश एवं भूमण्डल हैं।
ਕਈ ਕੋਟਿ ਸਸੀਅਰ ਸੂਰ ਨਖੵਤ੍ਰ ॥
कई कोटि ससीअर सूर नख्यत्र ॥
कई करोड़ चन्द्रमा, सूर्य एवं तारे हैं।