ਤਾ ਸੋਹਾਗਣਿ ਜਾਣੀਐ ਗੁਰ ਸਬਦੁ ਬੀਚਾਰੇ ॥੩॥
ता सोहागणि जाणीऐ गुर सबदु बीचारे ॥३॥
केवल तभी वह (जीव स्त्री) सौभाग्यवती समझी जाती है यदि वह गुरु के शब्द का चिन्तन करती है॥ ३ ॥
ਕਿਰਤ ਕੀ ਬਾਂਧੀ ਸਭ ਫਿਰੈ ਦੇਖਹੁ ਬੀਚਾਰੀ ॥
किरत की बांधी सभ फिरै देखहु बीचारी ॥
(लेकिन हे भाई !) इसे क्या कहें ? यह बेचारी क्या कर सकती है ? अपने किए हुए कर्मों के कारण हरेक जीव-स्त्री भटक रही है।
ਏਸ ਨੋ ਕਿਆ ਆਖੀਐ ਕਿਆ ਕਰੇ ਵਿਚਾਰੀ ॥੪॥
एस नो किआ आखीऐ किआ करे विचारी ॥४॥
ऑखें खोलकर आप इस तरफ ध्यान दीजिए॥ ४॥
ਭਈ ਨਿਰਾਸੀ ਉਠਿ ਚਲੀ ਚਿਤ ਬੰਧਿ ਨ ਧੀਰਾ ॥
भई निरासी उठि चली चित बंधि न धीरा ॥
वह निराश होकर (दुनिया से) चली जाती है। उसके मन में कोई सहारा एवं धैर्य नहीं।
ਹਰਿ ਕੀ ਚਰਣੀ ਲਾਗਿ ਰਹੁ ਭਜੁ ਸਰਣਿ ਕਬੀਰਾ ॥੫॥੬॥੫੦॥
हरि की चरणी लागि रहु भजु सरणि कबीरा ॥५॥६॥५०॥
हे कबीर ! भगवान के चरणों से लगा रह और उसकी शरण का भजन कर ॥ ५॥ ६ ॥ ५० ॥
ਗਉੜੀ ॥
गउड़ी ॥
गउड़ी ॥
ਜੋਗੀ ਕਹਹਿ ਜੋਗੁ ਭਲ ਮੀਠਾ ਅਵਰੁ ਨ ਦੂਜਾ ਭਾਈ ॥
जोगी कहहि जोगु भल मीठा अवरु न दूजा भाई ॥
योगी कहता है-हे भाई ! योग (मार्ग) ही भला एवं मीठा है तथा अन्य कोई (उपयुक्त) नहीं।
ਰੁੰਡਿਤ ਮੁੰਡਿਤ ਏਕੈ ਸਬਦੀ ਏਇ ਕਹਹਿ ਸਿਧਿ ਪਾਈ ॥੧॥
रुंडित मुंडित एकै सबदी एइ कहहि सिधि पाई ॥१॥
कनफटे, संन्यासी एवं अवधूत- यही कहते हैं कि उन्होंने ही सिद्धि प्राप्त की है ॥१॥
ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਨੇ ਅੰਧਾ ॥
हरि बिनु भरमि भुलाने अंधा ॥
ज्ञानहीन इन्सान भगवान को विस्मृत करके दुविधा में फेंसे हुए हैं,
ਜਾ ਪਹਿ ਜਾਉ ਆਪੁ ਛੁਟਕਾਵਨਿ ਤੇ ਬਾਧੇ ਬਹੁ ਫੰਧਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जा पहि जाउ आपु छुटकावनि ते बाधे बहु फंधा ॥१॥ रहाउ ॥
इसलिए मैं जिनके पास अपने अहंत्व से मुक्ति कराने के लिए जाता हूँ, वे सभी स्वयं ही अहंत्व के अनेक बन्धनों में फँसे हुए हैं।॥ १॥ रहाउ ॥
ਜਹ ਤੇ ਉਪਜੀ ਤਹੀ ਸਮਾਨੀ ਇਹ ਬਿਧਿ ਬਿਸਰੀ ਤਬ ਹੀ ॥
जह ते उपजी तही समानी इह बिधि बिसरी तब ही ॥
जब मनुष्य इस प्रकार का अहंकार भूल जाता है तो आत्मा उसमें लीन हो जाती है, जहाँ यह उत्पन्न हुई थी।
ਪੰਡਿਤ ਗੁਣੀ ਸੂਰ ਹਮ ਦਾਤੇ ਏਹਿ ਕਹਹਿ ਬਡ ਹਮ ਹੀ ॥੨॥
पंडित गुणी सूर हम दाते एहि कहहि बड हम ही ॥२॥
पण्डित, गुणवान, शूरवीर एवं दानवीर-यही कहते हैं कि केवल हम ही महान हैं।॥ २॥
ਜਿਸਹਿ ਬੁਝਾਏ ਸੋਈ ਬੂਝੈ ਬਿਨੁ ਬੂਝੇ ਕਿਉ ਰਹੀਐ ॥
जिसहि बुझाए सोई बूझै बिनु बूझे किउ रहीऐ ॥
भगवान जिस व्यक्ति को स्वयं सूझ प्रदान करता है, वही समझता हैं तथा उसे समझे बिना जीवन ही व्यर्थ है।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਮਿਲੈ ਅੰਧੇਰਾ ਚੂਕੈ ਇਨ ਬਿਧਿ ਮਾਣਕੁ ਲਹੀਐ ॥੩॥
सतिगुरु मिलै अंधेरा चूकै इन बिधि माणकु लहीऐ ॥३॥
सतिगुरु को मिलने से अज्ञानता का अंधकार दूर हो जाता है। इस विधि से प्रभु नाम रूपी हीरा प्राप्त हो जाता है॥ ३ ॥
ਤਜਿ ਬਾਵੇ ਦਾਹਨੇ ਬਿਕਾਰਾ ਹਰਿ ਪਦੁ ਦ੍ਰਿੜੁ ਕਰਿ ਰਹੀਐ ॥
तजि बावे दाहने बिकारा हरि पदु द्रिड़ु करि रहीऐ ॥
अपने बाएँ हाथ एवं दाएँ के पापों को छोड़कर ईश्वर के चरण पकड़ कर रखने चाहिएँ।
ਕਹੁ ਕਬੀਰ ਗੂੰਗੈ ਗੁੜੁ ਖਾਇਆ ਪੂਛੇ ਤੇ ਕਿਆ ਕਹੀਐ ॥੪॥੭॥੫੧॥
कहु कबीर गूंगै गुड़ु खाइआ पूछे ते किआ कहीऐ ॥४॥७॥५१॥
हे कबीर ! यदि गूंगे आदमी ने गुड़ खाया हो तो पूछे जाने पर वह क्या कह सकता है॥ ४॥
ਰਾਗੁ ਗਉੜੀ ਪੂਰਬੀ ਕਬੀਰ ਜੀ ॥
रागु गउड़ी पूरबी कबीर जी ॥
रागु गउड़ी पूरबी कबीर जी ॥
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਜਹ ਕਛੁ ਅਹਾ ਤਹਾ ਕਿਛੁ ਨਾਹੀ ਪੰਚ ਤਤੁ ਤਹ ਨਾਹੀ ॥
जह कछु अहा तहा किछु नाही पंच ततु तह नाही ॥
जहाँ कुछ था, वहीं अब कुछ भी नहीं। पाँच तत्व भी वहाँ नहीं हैं।
ਇੜਾ ਪਿੰਗੁਲਾ ਸੁਖਮਨ ਬੰਦੇ ਏ ਅਵਗਨ ਕਤ ਜਾਹੀ ॥੧॥
इड़ा पिंगुला सुखमन बंदे ए अवगन कत जाही ॥१॥
हे मनुष्य ! इड़ा, पिंगला तथा सुषुम्ना नाड़ी अब ये किस तरह गिने जा सकते हैं।॥ १॥
ਤਾਗਾ ਤੂਟਾ ਗਗਨੁ ਬਿਨਸਿ ਗਇਆ ਤੇਰਾ ਬੋਲਤੁ ਕਹਾ ਸਮਾਈ ॥
तागा तूटा गगनु बिनसि गइआ तेरा बोलतु कहा समाई ॥
(मोह का) धागा टूट गया है और बुद्धि नाश हो गई है। तेरा वचन कहीं लुप्त हो गया है।
ਏਹ ਸੰਸਾ ਮੋ ਕਉ ਅਨਦਿਨੁ ਬਿਆਪੈ ਮੋ ਕਉ ਕੋ ਨ ਕਹੈ ਸਮਝਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
एह संसा मो कउ अनदिनु बिआपै मो कउ को न कहै समझाई ॥१॥ रहाउ ॥
यह दुविधा मुझे रात-दिन लगी रहती है। कोई मनुष्य इसे वर्णन करके मुझे समझा नहीं सकता ॥ १॥ रहाउ ॥
ਜਹ ਬਰਭੰਡੁ ਪਿੰਡੁ ਤਹ ਨਾਹੀ ਰਚਨਹਾਰੁ ਤਹ ਨਾਹੀ ॥
जह बरभंडु पिंडु तह नाही रचनहारु तह नाही ॥
जहाँ यह दुनिया है, शरीर वहाँ नहीं। इसका रचयिता भी वहाँ नहीं।
ਜੋੜਨਹਾਰੋ ਸਦਾ ਅਤੀਤਾ ਇਹ ਕਹੀਐ ਕਿਸੁ ਮਾਹੀ ॥੨॥
जोड़नहारो सदा अतीता इह कहीऐ किसु माही ॥२॥
जोड़ने वाला सदैव ही निर्लिप्त है। अब यह आत्मा किसके भीतर समाई हुई कही जा सकती है ? ॥ २॥
ਜੋੜੀ ਜੁੜੈ ਨ ਤੋੜੀ ਤੂਟੈ ਜਬ ਲਗੁ ਹੋਇ ਬਿਨਾਸੀ ॥
जोड़ी जुड़ै न तोड़ी तूटै जब लगु होइ बिनासी ॥
मिलाने से मनुष्य तत्वों को मिला नहीं सकता। जब तक शरीर का नाश न हो, वह अलग करने से इनको अलग नहीं कर सकता।
ਕਾ ਕੋ ਠਾਕੁਰੁ ਕਾ ਕੋ ਸੇਵਕੁ ਕੋ ਕਾਹੂ ਕੈ ਜਾਸੀ ॥੩॥
का को ठाकुरु का को सेवकु को काहू कै जासी ॥३॥
आत्मा किंसकी मालिक है और किंसकी सेविका ? यह कहाँ एवं किसके पास जा सकती है ? ॥ ३॥
ਕਹੁ ਕਬੀਰ ਲਿਵ ਲਾਗਿ ਰਹੀ ਹੈ ਜਹਾ ਬਸੇ ਦਿਨ ਰਾਤੀ ॥
कहु कबीर लिव लागि रही है जहा बसे दिन राती ॥
हे कबीर ! मेरी वृत्ति वहाँ लगी रहती है, जहाँ दिन-रात प्रभु निवास करता है।
ਉਆ ਕਾ ਮਰਮੁ ਓਹੀ ਪਰੁ ਜਾਨੈ ਓਹੁ ਤਉ ਸਦਾ ਅਬਿਨਾਸੀ ॥੪॥੧॥੫੨॥
उआ का मरमु ओही परु जानै ओहु तउ सदा अबिनासी ॥४॥१॥५२॥
उसका रहस्य वह स्वयं ही जानता है और वह अमर, शाश्वत और अविनाशी है ॥४॥१॥५२॥
ਗਉੜੀ ॥
गउड़ी ॥
गउड़ी ॥
ਸੁਰਤਿ ਸਿਮ੍ਰਿਤਿ ਦੁਇ ਕੰਨੀ ਮੁੰਦਾ ਪਰਮਿਤਿ ਬਾਹਰਿ ਖਿੰਥਾ ॥
सुरति सिम्रिति दुइ कंनी मुंदा परमिति बाहरि खिंथा ॥
भगवान के चरणों में वृत्ति जोड़नी और नाम-सिमरन दोनों ही (मानों) मेरे कानों की दो मुद्राएँ हैं और भगवान का यथार्थ ज्ञान-यह मैंने अपने तन पर गुदड़ी ली हुई है।
ਸੁੰਨ ਗੁਫਾ ਮਹਿ ਆਸਣੁ ਬੈਸਣੁ ਕਲਪ ਬਿਬਰਜਿਤ ਪੰਥਾ ॥੧॥
सुंन गुफा महि आसणु बैसणु कलप बिबरजित पंथा ॥१॥
ध्यान अवस्था रूपी गुफा में मैं आसन लगाकर विराजमान हूँ और कल्पना का विवर्जित मेरा योग-मार्ग है॥ १॥
ਮੇਰੇ ਰਾਜਨ ਮੈ ਬੈਰਾਗੀ ਜੋਗੀ ॥
मेरे राजन मै बैरागी जोगी ॥
हे मेरे राजन ! मैं ईश्वर की प्रीति से रंगा हुआ योगी हूँ।
ਮਰਤ ਨ ਸੋਗ ਬਿਓਗੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मरत न सोग बिओगी ॥१॥ रहाउ ॥
“(इसलिए) मुझे मृत्यु, शोक एवं वियोग स्पर्श नहीं कर सकते हैं।॥ १॥ रहाउ॥
ਖੰਡ ਬ੍ਰਹਮੰਡ ਮਹਿ ਸਿੰਙੀ ਮੇਰਾ ਬਟੂਆ ਸਭੁ ਜਗੁ ਭਸਮਾਧਾਰੀ ॥
खंड ब्रहमंड महि सिंङी मेरा बटूआ सभु जगु भसमाधारी ॥
समूचे ब्रह्माण्ड में (भगवान के अस्तित्व का सबको सन्देश देना) यह, मानों मैं बाजा बजा रहा हूँ। सारी दुनिया को क्षणभंगुर समझना यह मेरा भस्म डालने वाला थैला है।
ਤਾੜੀ ਲਾਗੀ ਤ੍ਰਿਪਲੁ ਪਲਟੀਐ ਛੂਟੈ ਹੋਇ ਪਸਾਰੀ ॥੨॥
ताड़ी लागी त्रिपलु पलटीऐ छूटै होइ पसारी ॥२॥
तीन गुणों वाली माया से मुक्ति एवं संसार से मोक्ष मेरा समाधि लगाना है॥ २॥
ਮਨੁ ਪਵਨੁ ਦੁਇ ਤੂੰਬਾ ਕਰੀ ਹੈ ਜੁਗ ਜੁਗ ਸਾਰਦ ਸਾਜੀ ॥
मनु पवनु दुइ तू्मबा करी है जुग जुग सारद साजी ॥
अपने हृदय एवं श्वास को मैंने वीणा के दो तुंबे बनाया है और सभी युगों में विद्यमान प्रभु को मैंने इसकी डण्डी बनाया है।