Hindi Page 342

ਬੰਦਕ ਹੋਇ ਬੰਧ ਸੁਧਿ ਲਹੈ ॥੨੯॥
बंदक होइ बंध सुधि लहै ॥२९॥
वह (प्रभु के द्वार का) स्तुति करने वाला (माया-मोह के) बन्धनों का रहस्य पा लेता है॥२९॥

ਭਭਾ ਭੇਦਹਿ ਭੇਦ ਮਿਲਾਵਾ ॥
भभा भेदहि भेद मिलावा ॥
भ-दुविधा को भेदने (दूर करने) से मनुष्य का प्रभु से मिलन हो जाता है।

ਅਬ ਭਉ ਭਾਨਿ ਭਰੋਸਉ ਆਵਾ ॥
अब भउ भानि भरोसउ आवा ॥
भय को नाश करके अब मेरी ईश्वर में श्रद्धा बन गई है।

ਜੋ ਬਾਹਰਿ ਸੋ ਭੀਤਰਿ ਜਾਨਿਆ ॥
जो बाहरि सो भीतरि जानिआ ॥
जिसे मैं अपने आप से बाहर ख्याल करता था, उसे अब मैं अपने भीतर समझता हूँ।

ਭਇਆ ਭੇਦੁ ਭੂਪਤਿ ਪਹਿਚਾਨਿਆ ॥੩੦॥
भइआ भेदु भूपति पहिचानिआ ॥३०॥
जब मुझे इस भेद का ज्ञान हुआ तो मैंने जगत् के मालिक को पहचान लिया ॥ ३०॥

ਮਮਾ ਮੂਲ ਗਹਿਆ ਮਨੁ ਮਾਨੈ ॥
ममा मूल गहिआ मनु मानै ॥
म-यदि सृष्टि के मूल परमात्मा को अपने मन में बसा लिया जाए तो

ਮਰਮੀ ਹੋਇ ਸੁ ਮਨ ਕਉ ਜਾਨੈ ॥
मरमी होइ सु मन कउ जानै ॥
मन कुमार्गगामी होने से बच जाता है।

ਮਤ ਕੋਈ ਮਨ ਮਿਲਤਾ ਬਿਲਮਾਵੈ ॥
मत कोई मन मिलता बिलमावै ॥
जो जीव यह रहस्य पा लेता है, वह मन को समझ लेता है। (इसलिए) कोई भी मनुष्य अपनी आत्मा को प्रभु के साथ सम्मिलित करने में देरी न करे।

ਮਗਨ ਭਇਆ ਤੇ ਸੋ ਸਚੁ ਪਾਵੈ ॥੩੧॥
मगन भइआ ते सो सचु पावै ॥३१॥
जो मनुष्य सत्यस्वरूप परमात्मा को पा लेते हैं, वे प्रसन्नता में भीग जाते हैं।॥ ३१॥

ਮਮਾ ਮਨ ਸਿਉ ਕਾਜੁ ਹੈ ਮਨ ਸਾਧੇ ਸਿਧਿ ਹੋਇ ॥
ममा मन सिउ काजु है मन साधे सिधि होइ ॥
जीवात्मा का काम अपने मन के साथ है। जो मन को वश में करता है, वह मनोरथ की सफलता पा लेता है।

ਮਨ ਹੀ ਮਨ ਸਿਉ ਕਹੈ ਕਬੀਰਾ ਮਨ ਸਾ ਮਿਲਿਆ ਨ ਕੋਇ ॥੩੨॥
मन ही मन सिउ कहै कबीरा मन सा मिलिआ न कोइ ॥३२॥
कबीर जी कहते हैं-मेरा आदान-प्रदान केवल अपने मन से है। मुझे मन जैसा दूसरा कोई नहीं मिला ॥ ३२ ॥

ਇਹੁ ਮਨੁ ਸਕਤੀ ਇਹੁ ਮਨੁ ਸੀਉ ॥
इहु मनु सकती इहु मनु सीउ ॥
यह मन शक्ति है। यह मन शिव है।

ਇਹੁ ਮਨੁ ਪੰਚ ਤਤ ਕੋ ਜੀਉ ॥
इहु मनु पंच तत को जीउ ॥
यह मन शरीर के पाँच तत्वों के प्राण हैं।

ਇਹੁ ਮਨੁ ਲੇ ਜਉ ਉਨਮਨਿ ਰਹੈ ॥
इहु मनु ले जउ उनमनि रहै ॥
अपने मन को वश में करके जब मनुष्य परम-प्रसन्नता की अवस्था में विचरता है

ਤਉ ਤੀਨਿ ਲੋਕ ਕੀ ਬਾਤੈ ਕਹੈ ॥੩੩॥
तउ तीनि लोक की बातै कहै ॥३३॥
तो वह तीनों लोकों के रहस्य बता सकता है॥ ३३ ॥

ਯਯਾ ਜਉ ਜਾਨਹਿ ਤਉ ਦੁਰਮਤਿ ਹਨਿ ਕਰਿ ਬਸਿ ਕਾਇਆ ਗਾਉ ॥
यया जउ जानहि तउ दुरमति हनि करि बसि काइआ गाउ ॥
य-(हे भाई !) यदि तुम कुछ जानते हो तो अपनी दुर्बुद्धि का नाश कर दो और अपने शरीर रूपी गांव को वश में करो।

ਰਣਿ ਰੂਤਉ ਭਾਜੈ ਨਹੀ ਸੂਰਉ ਥਾਰਉ ਨਾਉ ॥੩੪॥
रणि रूतउ भाजै नही सूरउ थारउ नाउ ॥३४॥
यदि तू इस युद्ध में लगकर पराजित नहीं होवोगे तो ही तेरा नाम शूरवीर हो सकता है॥ ३४ ॥

ਰਾਰਾ ਰਸੁ ਨਿਰਸ ਕਰਿ ਜਾਨਿਆ ॥
रारा रसु निरस करि जानिआ ॥
र-जिस प्राणी ने माया के स्वाद को फीका-सा समझ लिया है,

ਹੋਇ ਨਿਰਸ ਸੁ ਰਸੁ ਪਹਿਚਾਨਿਆ ॥
होइ निरस सु रसु पहिचानिआ ॥
उसने भौतिक आस्वादनों से बचे रहकर वह आत्मिक आनंद प्राप्त कर लिया है।

ਇਹ ਰਸ ਛਾਡੇ ਉਹ ਰਸੁ ਆਵਾ ॥
इह रस छाडे उह रसु आवा ॥
जिसने यह लौकिक आस्वादन त्याग दिए हैं, उसे वह (ईश्वर के नाम का आनन्द) प्राप्त हो गया है,

ਉਹ ਰਸੁ ਪੀਆ ਇਹ ਰਸੁ ਨਹੀ ਭਾਵਾ ॥੩੫॥
उह रसु पीआ इह रसु नही भावा ॥३५॥
जिसने वह (नाम) रस पान किया है, उसे (यह माया वाला) आस्वादन अच्छा नहीं लगता ॥ ३५ ॥

ਲਲਾ ਐਸੇ ਲਿਵ ਮਨੁ ਲਾਵੈ ॥
लला ऐसे लिव मनु लावै ॥
ल-अपने मन में मनुष्य को प्रभु से ऐसा प्रेम लगाना चाहिए कि

ਅਨਤ ਨ ਜਾਇ ਪਰਮ ਸਚੁ ਪਾਵੈ ॥
अनत न जाइ परम सचु पावै ॥
वह किसी दूसरे के पास मत जाए और सत्य को प्राप्त करे और

ਅਰੁ ਜਉ ਤਹਾ ਪ੍ਰੇਮ ਲਿਵ ਲਾਵੈ ॥
अरु जउ तहा प्रेम लिव लावै ॥
यदि वहाँ, वह उसके लिए प्रेम एवं प्रीति उत्पन्न कर ले,

ਤਉ ਅਲਹ ਲਹੈ ਲਹਿ ਚਰਨ ਸਮਾਵੈ ॥੩੬॥
तउ अलह लहै लहि चरन समावै ॥३६॥
वह प्रभु को प्राप्त कर लेता है और प्राप्त करके उसके चरणों में लीन हो जाता है।॥ ३६ ॥

ਵਵਾ ਬਾਰ ਬਾਰ ਬਿਸਨ ਸਮ੍ਹਾਰਿ ॥
ववा बार बार बिसन सम्हारि ॥
व-बार-बार अपने प्रभु को स्मरण कर।

ਬਿਸਨ ਸੰਮ੍ਹਾਰਿ ਨ ਆਵੈ ਹਾਰਿ ॥
बिसन सम्हारि न आवै हारि ॥
प्रभु को स्मरण करने से तुझे जीवन रूपी बाजी में पराजित नहीं होना पड़ेगा।

ਬਲਿ ਬਲਿ ਜੇ ਬਿਸਨਤਨਾ ਜਸੁ ਗਾਵੈ ॥
बलि बलि जे बिसनतना जसु गावै ॥
मैं उन भक्तजनों पर तन-मन से न्यौछावर हूँ जो प्रभु का यश गाते हैं।

ਵਿਸਨ ਮਿਲੇ ਸਭ ਹੀ ਸਚੁ ਪਾਵੈ ॥੩੭॥
विसन मिले सभ ही सचु पावै ॥३७॥
प्रभु को मिलने से सत्य प्राप्त होता है॥ ३७॥

ਵਾਵਾ ਵਾਹੀ ਜਾਨੀਐ ਵਾ ਜਾਨੇ ਇਹੁ ਹੋਇ ॥
वावा वाही जानीऐ वा जाने इहु होइ ॥
व-(हे भाई !) उस परमेश्वर के साथ जान-पहचान करनी चाहिए। उसे अनुभव करने से यह जीव उस जैसा ही हो जाता है।

ਇਹੁ ਅਰੁ ਓਹੁ ਜਬ ਮਿਲੈ ਤਬ ਮਿਲਤ ਨ ਜਾਨੈ ਕੋਇ ॥੩੮॥
इहु अरु ओहु जब मिलै तब मिलत न जानै कोइ ॥३८॥
जब यह जीव एवं वह प्रभु एकरूप हो जाते हैं तो इस मिलन को कोई नहीं समझ सकता ॥ ३८ ॥

ਸਸਾ ਸੋ ਨੀਕਾ ਕਰਿ ਸੋਧਹੁ ॥
ससा सो नीका करि सोधहु ॥
स-उस मन को पूर्णतया साध लो।

ਘਟ ਪਰਚਾ ਕੀ ਬਾਤ ਨਿਰੋਧਹੁ ॥
घट परचा की बात निरोधहु ॥
अपने आपको हरेक बात से रोको, जो मन को बहकाती है।

ਘਟ ਪਰਚੈ ਜਉ ਉਪਜੈ ਭਾਉ ॥
घट परचै जउ उपजै भाउ ॥
जब प्रभु का प्रेम उत्पन्न हो जाता है तो मन प्रसन्न हो जाता है।

ਪੂਰਿ ਰਹਿਆ ਤਹ ਤ੍ਰਿਭਵਣ ਰਾਉ ॥੩੯॥
पूरि रहिआ तह त्रिभवण राउ ॥३९॥
वह तीन लोकों का राजा हर जगह मौजूद है॥३९॥

ਖਖਾ ਖੋਜਿ ਪਰੈ ਜਉ ਕੋਈ ॥
खखा खोजि परै जउ कोई ॥
ख-यदि कोई मनुष्य प्रभु की खोज में लग जाए

ਜੋ ਖੋਜੈ ਸੋ ਬਹੁਰਿ ਨ ਹੋਈ ॥
जो खोजै सो बहुरि न होई ॥
और उसे खोज कर पा लेता है तो वह दोबारा जन्मता-मरता नहीं।

ਖੋਜ ਬੂਝਿ ਜਉ ਕਰੈ ਬੀਚਾਰਾ ॥
खोज बूझि जउ करै बीचारा ॥
जब मनुष्य प्रभु को खोजता, समझता एवं उसका चिन्तन करता है तो

ਤਉ ਭਵਜਲ ਤਰਤ ਨ ਲਾਵੈ ਬਾਰਾ ॥੪੦॥
तउ भवजल तरत न लावै बारा ॥४०॥
उसे भयानक संसार-सागर से पार होते देरी नहीं लगती॥ ४०॥

ਸਸਾ ਸੋ ਸਹ ਸੇਜ ਸਵਾਰੈ ॥
ससा सो सह सेज सवारै ॥
स-जिस जीव-स्त्री की सेज को कंत – प्रभु सुशोभित करता है,

ਸੋਈ ਸਹੀ ਸੰਦੇਹ ਨਿਵਾਰੈ ॥
सोई सही संदेह निवारै ॥
वह अपने संदेह को दूर कर देती है।

ਅਲਪ ਸੁਖ ਛਾਡਿ ਪਰਮ ਸੁਖ ਪਾਵਾ ॥
अलप सुख छाडि परम सुख पावा ॥
तुच्छ सुख को त्याग कर वह परम सुख को पा लेती है।

ਤਬ ਇਹ ਤ੍ਰੀਅ ਓੁਹੁ ਕੰਤੁ ਕਹਾਵਾ ॥੪੧॥
तब इह त्रीअ ओहु कंतु कहावा ॥४१॥
तब यह पत्नी कही जाती है और वह इसका पति कहलाता है॥ ४१ ॥

ਹਾਹਾ ਹੋਤ ਹੋਇ ਨਹੀ ਜਾਨਾ ॥
हाहा होत होइ नही जाना ॥
ह-ईश्वर कण-कण में विद्यमान है परन्तु मनुष्य उसके अस्तित्व को नहीं जानता।

ਜਬ ਹੀ ਹੋਇ ਤਬਹਿ ਮਨੁ ਮਾਨਾ ॥
जब ही होइ तबहि मनु माना ॥
जब वह उसके अस्तित्व को अनुभव कर लेता है, तो उसकी आत्मा विश्वस्त हो जाती है।

ਹੈ ਤਉ ਸਹੀ ਲਖੈ ਜਉ ਕੋਈ ॥
है तउ सही लखै जउ कोई ॥
ईश्वर तो अवश्य है लेकिन इस विश्वास का लाभ तब ही होता है जब कोई प्राणी इस बात को समझ ले।

ਤਬ ਓਹੀ ਉਹੁ ਏਹੁ ਨ ਹੋਈ ॥੪੨॥
तब ओही उहु एहु न होई ॥४२॥
तब यह प्राणी उस प्रभु का रूप हो जाता है, यह अलग अस्तित्व वाला नहीं रह जाता॥ ४२॥

ਲਿੰਉ ਲਿੰਉ ਕਰਤ ਫਿਰੈ ਸਭੁ ਲੋਗੁ ॥
लिंउ लिंउ करत फिरै सभु लोगु ॥
समूचा संसार यही कहता फिरता है कि मैं (माया) सँभाल लूं, मैं (माया) एकत्रित कर लूं।

ਤਾ ਕਾਰਣਿ ਬਿਆਪੈ ਬਹੁ ਸੋਗੁ ॥
ता कारणि बिआपै बहु सोगु ॥
इस माया के कारण ही फिर प्राणी को बड़ी चिन्ता हो जाती है।

ਲਖਿਮੀ ਬਰ ਸਿਉ ਜਉ ਲਿਉ ਲਾਵੈ ॥
लखिमी बर सिउ जउ लिउ लावै ॥
परन्तु जब प्राणी लक्ष्मीपति प्रभु के साथ प्रीति लगाता है तो

ਸੋਗੁ ਮਿਟੈ ਸਭ ਹੀ ਸੁਖ ਪਾਵੈ ॥੪੩॥
सोगु मिटै सभ ही सुख पावै ॥४३॥
उसकी चिन्ता मिट जाती है और वह समस्त सुख प्राप्त कर लेता है॥ ४३॥

ਖਖਾ ਖਿਰਤ ਖਪਤ ਗਏ ਕੇਤੇ ॥
खखा खिरत खपत गए केते ॥
ख-अनेकों ही मनुष्य मरते-खपते नाश हो गए हैं।

ਖਿਰਤ ਖਪਤ ਅਜਹੂੰ ਨਹ ਚੇਤੇ ॥
खिरत खपत अजहूं नह चेते ॥
इस तरह मरते-खपते आवागमन में पड़ा हुआ मनुष्य अभी तक प्रभु को स्मरण नहीं करता।

ਅਬ ਜਗੁ ਜਾਨਿ ਜਉ ਮਨਾ ਰਹੈ ॥
अब जगु जानि जउ मना रहै ॥
अब यदि संसार के यथार्थ को समझकर मन प्रभु में टिक जाए तो

ਜਹ ਕਾ ਬਿਛੁਰਾ ਤਹ ਥਿਰੁ ਲਹੈ ॥੪੪॥
जह का बिछुरा तह थिरु लहै ॥४४॥
जिस प्रभु से यह जुदा हुआ है, उसमें इसे बसेरा मिल सकता है॥ ४४ ॥

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