ਹਉ ਬਨਜਾਰੋ ਰਾਮ ਕੋ ਸਹਜ ਕਰਉ ਬੵਾਪਾਰੁ ॥
हउ बनजारो राम को सहज करउ ब्यापारु ॥
मैं राम का व्यापारी हूँ और सहज ही ज्ञान का व्यापार करता हूँ।
ਮੈ ਰਾਮ ਨਾਮ ਧਨੁ ਲਾਦਿਆ ਬਿਖੁ ਲਾਦੀ ਸੰਸਾਰਿ ॥੨॥
मै राम नाम धनु लादिआ बिखु लादी संसारि ॥२॥
मैंने राम के नाम का पदार्थ लादा है परन्तु संसार ने माया-रूपी विष का व्यापार किया है ॥ २ ॥
ਉਰਵਾਰ ਪਾਰ ਕੇ ਦਾਨੀਆ ਲਿਖਿ ਲੇਹੁ ਆਲ ਪਤਾਲੁ ॥
उरवार पार के दानीआ लिखि लेहु आल पतालु ॥
प्राणियों के लोक–परलोक के सभी कर्म जानने वाले हे चित्रगुप्त ! मेरे बारे में जो तुम्हारा मन करे लिख लेना अर्थात् यमराज के पास उपस्थित करने हेतु मेरे कार्यों में तुम्हें कुछ भी नहीं मिलेगा,
ਮੋਹਿ ਜਮ ਡੰਡੁ ਨ ਲਾਗਈ ਤਜੀਲੇ ਸਰਬ ਜੰਜਾਲ ॥੩॥
मोहि जम डंडु न लागई तजीले सरब जंजाल ॥३॥
क्योंकि ईश्वर की दया से मैंने समस्त जंजाल छोड़ दिए हुए हैं, इसलिए मुझे यम का दण्ड नहीं मिलेगा ॥ ३ll
ਜੈਸਾ ਰੰਗੁ ਕਸੁੰਭ ਕਾ ਤੈਸਾ ਇਹੁ ਸੰਸਾਰੁ ॥
जैसा रंगु कसु्मभ का तैसा इहु संसारु ॥
हे चमार रविदास ! कहो-जैसे जैसे मैं प्रभु-नाम का व्यापार कर रहा हूँ, मेरी आस्था हो रही है कि यह दुनिया ऐसे है जैसे कुसुंभड़े का रंग
ਮੇਰੇ ਰਮਈਏ ਰੰਗੁ ਮਜੀਠ ਕਾ ਕਹੁ ਰਵਿਦਾਸ ਚਮਾਰ ॥੪॥੧॥
मेरे रमईए रंगु मजीठ का कहु रविदास चमार ॥४॥१॥
और मेरे प्रियतम प्रभु का नाम रंग इस तरह है जिस तरह मजीठ का रंग॥ ४॥ १ ॥
ਗਉੜੀ ਪੂਰਬੀ ਰਵਿਦਾਸ ਜੀਉ
गउड़ी पूरबी रविदास जीउ
गउड़ी पूरबी रविदास जीउ
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਕੂਪੁ ਭਰਿਓ ਜੈਸੇ ਦਾਦਿਰਾ ਕਛੁ ਦੇਸੁ ਬਿਦੇਸੁ ਨ ਬੂਝ ॥
कूपु भरिओ जैसे दादिरा कछु देसु बिदेसु न बूझ ॥
जैसे जल से भरे कुएँ के मेंढक को अपने देश एवं परदेस का कुछ भी पता नहीं होता,”
ਐਸੇ ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਬਿਖਿਆ ਬਿਮੋਹਿਆ ਕਛੁ ਆਰਾ ਪਾਰੁ ਨ ਸੂਝ ॥੧॥
ऐसे मेरा मनु बिखिआ बिमोहिआ कछु आरा पारु न सूझ ॥१॥
वैसे ही मेरा मन माया (के कुएँ) में इतनी बुरी तरह फैसा हुआ है कि इस लोक-परलोक की कुछ भी सूक्ष नहीं ॥१॥
ਸਗਲ ਭਵਨ ਕੇ ਨਾਇਕਾ ਇਕੁ ਛਿਨੁ ਦਰਸੁ ਦਿਖਾਇ ਜੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सगल भवन के नाइका इकु छिनु दरसु दिखाइ जी ॥१॥ रहाउ ॥
हे समस्त लोकों के मालिक ! मुझे एक क्षण भर के लिए ही दर्शन दीजिए॥ १॥ रहाउ॥
ਮਲਿਨ ਭਈ ਮਤਿ ਮਾਧਵਾ ਤੇਰੀ ਗਤਿ ਲਖੀ ਨ ਜਾਇ ॥
मलिन भई मति माधवा तेरी गति लखी न जाइ ॥
हे माधव ! मेरी बुद्धि (विकारों से) मैली हो गई है और मुझे तेरी गति की समझ नहीं आती!
ਕਰਹੁ ਕ੍ਰਿਪਾ ਭ੍ਰਮੁ ਚੂਕਈ ਮੈ ਸੁਮਤਿ ਦੇਹੁ ਸਮਝਾਇ ॥੨॥
करहु क्रिपा भ्रमु चूकई मै सुमति देहु समझाइ ॥२॥
मुझ पर दया करो चूंकेि मेरी दुविधा नाश हो जाए और मुझे सुमति प्रदान करो ॥ २॥
ਜੋਗੀਸਰ ਪਾਵਹਿ ਨਹੀ ਤੁਅ ਗੁਣ ਕਥਨੁ ਅਪਾਰ ॥
जोगीसर पावहि नही तुअ गुण कथनु अपार ॥
हे प्रभु ! महान योगी भी तेरे अनन्त गुणों का रहस्य नहीं पा सकते (पर)
ਪ੍ਰੇਮ ਭਗਤਿ ਕੈ ਕਾਰਣੈ ਕਹੁ ਰਵਿਦਾਸ ਚਮਾਰ ॥੩॥੧॥
प्रेम भगति कै कारणै कहु रविदास चमार ॥३॥१॥
हे रविदास चमार ! तू ईश्वर की महिमा-स्तुति कर, चूकिं तुझे प्रेम-भक्ति की देन मिल जाए ॥ ३॥ १ ॥
ਗਉੜੀ ਬੈਰਾਗਣਿ
गउड़ी बैरागणि
गउड़ी बैरागणि
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਸਤਜੁਗਿ ਸਤੁ ਤੇਤਾ ਜਗੀ ਦੁਆਪਰਿ ਪੂਜਾਚਾਰ ॥
सतजुगि सतु तेता जगी दुआपरि पूजाचार ॥
सतियुग में सत्य (दान-पुण्य इत्यादि) प्रधान था, त्रेता युग यज्ञों में लीन रहा, द्वापर में देवीदेवताओं की पूजा प्रधान कर्म था,
ਤੀਨੌ ਜੁਗ ਤੀਨੌ ਦਿੜੇ ਕਲਿ ਕੇਵਲ ਨਾਮ ਅਧਾਰ ॥੧॥
तीनौ जुग तीनौ दिड़े कलि केवल नाम अधार ॥१॥
तीनों युग इन तीन कर्मो-धर्मो पर बल देते हैं और कलियुग में केवल नाम का ही सहारा है। १॥
ਪਾਰੁ ਕੈਸੇ ਪਾਇਬੋ ਰੇ ॥
पारु कैसे पाइबो रे ॥
मैं किस तरह (संसार सागर से) पार होऊँगा ?
ਮੋ ਸਉ ਕੋਊ ਨ ਕਹੈ ਸਮਝਾਇ ॥
मो सउ कोऊ न कहै समझाइ ॥
मुझे कोई इस तरह कहता और निश्चित नहीं करवाता,
ਜਾ ਤੇ ਆਵਾ ਗਵਨੁ ਬਿਲਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जा ते आवा गवनु बिलाइ ॥१॥ रहाउ ॥
जिससे मेरा जन्म-मरण का चक्र मिट जाए॥ १॥ रहाउ ॥
ਬਹੁ ਬਿਧਿ ਧਰਮ ਨਿਰੂਪੀਐ ਕਰਤਾ ਦੀਸੈ ਸਭ ਲੋਇ ॥
बहु बिधि धरम निरूपीऐ करता दीसै सभ लोइ ॥
धर्म के अनेकों स्वरूप वर्णन किए जाते हैं और सारा संसार उन पर अनुसरण करता दिखाई देता है।
ਕਵਨ ਕਰਮ ਤੇ ਛੂਟੀਐ ਜਿਹ ਸਾਧੇ ਸਭ ਸਿਧਿ ਹੋਇ ॥੨॥
कवन करम ते छूटीऐ जिह साधे सभ सिधि होइ ॥२॥
वह कौन-से कर्म हैं, जिन से मुझे मोक्ष प्राप्त हो जाए और जिनकी साधना से मुझे सिद्धि प्राप्त हो जाए॥ २॥
ਕਰਮ ਅਕਰਮ ਬੀਚਾਰੀਐ ਸੰਕਾ ਸੁਨਿ ਬੇਦ ਪੁਰਾਨ ॥
करम अकरम बीचारीऐ संका सुनि बेद पुरान ॥
यदि वेदों एवं पुराणों को सुन कर पाप-पुण्य का निर्णय किया जाए तो शंका पैदा हो जाती है।
ਸੰਸਾ ਸਦ ਹਿਰਦੈ ਬਸੈ ਕਉਨੁ ਹਿਰੈ ਅਭਿਮਾਨੁ ॥੩॥
संसा सद हिरदै बसै कउनु हिरै अभिमानु ॥३॥
संशय हमेशा हृदय में रहता है। मेरे अभिमान को कौन दूर कर सकता है?॥ ३॥
ਬਾਹਰੁ ਉਦਕਿ ਪਖਾਰੀਐ ਘਟ ਭੀਤਰਿ ਬਿਬਿਧਿ ਬਿਕਾਰ ॥
बाहरु उदकि पखारीऐ घट भीतरि बिबिधि बिकार ॥
मनुष्य अपने शरीर का बाहरी भाग (तीर्थो के) जल से धो लेता है परन्तु उसके मन में अनेक विकार विद्यमान हैं
ਸੁਧ ਕਵਨ ਪਰ ਹੋਇਬੋ ਸੁਚ ਕੁੰਚਰ ਬਿਧਿ ਬਿਉਹਾਰ ॥੪॥
सुध कवन पर होइबो सुच कुंचर बिधि बिउहार ॥४॥
वह किस तरह शुद्ध होगा ? उसका शुद्धता को प्राप्त करने का तरीका हाथी के स्नान-कर्म जैसा है॥ ४॥
ਰਵਿ ਪ੍ਰਗਾਸ ਰਜਨੀ ਜਥਾ ਗਤਿ ਜਾਨਤ ਸਭ ਸੰਸਾਰ ॥
रवि प्रगास रजनी जथा गति जानत सभ संसार ॥
जैसे सारी दुनिया यह बात जानती है कि सूर्योदय होने पर रात का अँधेरा समाप्त हो जाता है।
ਪਾਰਸ ਮਾਨੋ ਤਾਬੋ ਛੁਏ ਕਨਕ ਹੋਤ ਨਹੀ ਬਾਰ ॥੫॥
पारस मानो ताबो छुए कनक होत नही बार ॥५॥
यह बात भी स्मरणीय है कि तांबे के पारस द्वारा स्पर्श किए जाने पर उसके सोना बनने में देर नहीं लगती ॥ ५॥
ਪਰਮ ਪਰਸ ਗੁਰੁ ਭੇਟੀਐ ਪੂਰਬ ਲਿਖਤ ਲਿਲਾਟ ॥
परम परस गुरु भेटीऐ पूरब लिखत लिलाट ॥
इसी तरह यदि पूर्वकालीन भाग्य जागें तो गुरु मिल जाता है, जो समस्त पारसों से सर्वोपरि पारस है।
ਉਨਮਨ ਮਨ ਮਨ ਹੀ ਮਿਲੇ ਛੁਟਕਤ ਬਜਰ ਕਪਾਟ ॥੬॥
उनमन मन मन ही मिले छुटकत बजर कपाट ॥६॥
गुरु की कृपा से मन में प्रभु से मिलने की लालसा उत्पन्न हो जाती है, वह अन्तरात्मा में ही प्रभु को मिल जाता है और मन के वज्र (वज) कपाट खुल जाते हैं।॥ ६ ॥
ਭਗਤਿ ਜੁਗਤਿ ਮਤਿ ਸਤਿ ਕਰੀ ਭ੍ਰਮ ਬੰਧਨ ਕਾਟਿ ਬਿਕਾਰ ॥
भगति जुगति मति सति करी भ्रम बंधन काटि बिकार ॥
जो मनुष्य प्रभु-भक्ति की युक्ति को अपने हृदय में दृढ़ करता है, उसके तमाम बन्धन एवं विकार मिट जाते हैं।
ਸੋਈ ਬਸਿ ਰਸਿ ਮਨ ਮਿਲੇ ਗੁਨ ਨਿਰਗੁਨ ਏਕ ਬਿਚਾਰ ॥੭॥
सोई बसि रसि मन मिले गुन निरगुन एक बिचार ॥७॥
वह अपने मन को रोकता है, प्रसन्नता पाता है और केवल उस प्रभु का चिंतन करता है जो माया के तीनों गुणों से परे है॥ ७ ॥
ਅਨਿਕ ਜਤਨ ਨਿਗ੍ਰਹ ਕੀਏ ਟਾਰੀ ਨ ਟਰੈ ਭ੍ਰਮ ਫਾਸ ॥
अनिक जतन निग्रह कीए टारी न टरै भ्रम फास ॥
मैंने अनेक यत्न करके देखे हैं परन्तु दूर हटाने से संदेह की फाँसी दूर नहीं हटाई जा सकती।
ਪ੍ਰੇਮ ਭਗਤਿ ਨਹੀ ਊਪਜੈ ਤਾ ਤੇ ਰਵਿਦਾਸ ਉਦਾਸ ॥੮॥੧॥
प्रेम भगति नही ऊपजै ता ते रविदास उदास ॥८॥१॥
कर्मकाण्ड के इन यत्नों से प्रभु की प्रेम-भक्ति मुझ से उत्पन्न नहीं हुई इसलिए रविदास उदास है ?॥ ८ ॥ १॥