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ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੧ ॥
आसा महला १ ॥
आसा महला १ ॥

ਕਾਇਆ ਬ੍ਰਹਮਾ ਮਨੁ ਹੈ ਧੋਤੀ ॥
काइआ ब्रहमा मनु है धोती ॥
यह मानव शरीर ही पूजनीय ब्राह्मण है और मन इस ब्राह्मण की धोती है,”

ਗਿਆਨੁ ਜਨੇਊ ਧਿਆਨੁ ਕੁਸਪਾਤੀ ॥
गिआनु जनेऊ धिआनु कुसपाती ॥
ब्रह्म-ज्ञान इसका जनेऊ है और प्रभु का ध्यान इसकी कुशा है।

ਹਰਿ ਨਾਮਾ ਜਸੁ ਜਾਚਉ ਨਾਉ ॥
हरि नामा जसु जाचउ नाउ ॥
तीर्थों पर स्नान की जगह मैं हरि का नाम एवं यश ही माँगता हूँ।

ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਬ੍ਰਹਮਿ ਸਮਾਉ ॥੧॥
गुर परसादी ब्रहमि समाउ ॥१॥
गुरुं की दया से मैं प्रभु में विलीन हो जाऊँगा ॥ १॥

ਪਾਂਡੇ ਐਸਾ ਬ੍ਰਹਮ ਬੀਚਾਰੁ ॥
पांडे ऐसा ब्रहम बीचारु ॥
हे पण्डित ! इस तरह ब्रह्म का विचार कर की

ਨਾਮੇ ਸੁਚਿ ਨਾਮੋ ਪੜਉ ਨਾਮੇ ਚਜੁ ਆਚਾਰੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
नामे सुचि नामो पड़उ नामे चजु आचारु ॥१॥ रहाउ ॥
उसका नाम तेरी पवित्रता, नाम तेरी बड़ाई तथा तेरी बुद्धिमता एवं जीवन-आचरण हो।॥ १॥ रहाउ॥

ਬਾਹਰਿ ਜਨੇਊ ਜਿਚਰੁ ਜੋਤਿ ਹੈ ਨਾਲਿ ॥
बाहरि जनेऊ जिचरु जोति है नालि ॥
बाहरी जनेऊ तब तक रहता है, जब तक प्रभु-ज्योति तेरे भीतर विद्यमान है।

ਧੋਤੀ ਟਿਕਾ ਨਾਮੁ ਸਮਾਲਿ ॥
धोती टिका नामु समालि ॥
प्रभु का नाम-सिमरन किया कर, क्योंकि नाम ही तेरी धोती एवं तिलक है।

ਐਥੈ ਓਥੈ ਨਿਬਹੀ ਨਾਲਿ ॥
ऐथै ओथै निबही नालि ॥
यही लोक-परलोक में सहायक होगा।

ਵਿਣੁ ਨਾਵੈ ਹੋਰਿ ਕਰਮ ਨ ਭਾਲਿ ॥੨॥
विणु नावै होरि करम न भालि ॥२॥
नाम के अलावा दूसरे कर्मो की खोज मत कर ॥ २॥

ਪੂਜਾ ਪ੍ਰੇਮ ਮਾਇਆ ਪਰਜਾਲਿ ॥
पूजा प्रेम माइआ परजालि ॥
प्रेम से भगवान की पूजा कर तथा माया की तृष्णा को जला दे।

ਏਕੋ ਵੇਖਹੁ ਅਵਰੁ ਨ ਭਾਲਿ ॥
एको वेखहु अवरु न भालि ॥
केवल एक ईश्वर को हर जगह देख तथा किसी अन्य की तलाश मत कर।

ਚੀਨੑੈ ਤਤੁ ਗਗਨ ਦਸ ਦੁਆਰ ॥
चीन्है ततु गगन दस दुआर ॥
दसम द्वार के आकाश पर तू यथार्थ को देख

ਹਰਿ ਮੁਖਿ ਪਾਠ ਪੜੈ ਬੀਚਾਰ ॥੩॥
हरि मुखि पाठ पड़ै बीचार ॥३॥
और अपने मुख से हरि का पाठ पढ़ और इसका चिन्तन कर ॥ ३॥

ਭੋਜਨੁ ਭਾਉ ਭਰਮੁ ਭਉ ਭਾਗੈ ॥
भोजनु भाउ भरमु भउ भागै ॥
प्रभु-प्रेम के भोजन से दुविधा एवं भय भाग जाते हैं।

ਪਾਹਰੂਅਰਾ ਛਬਿ ਚੋਰੁ ਨ ਲਾਗੈ ॥
पाहरूअरा छबि चोरु न लागै ॥
यदि दबदबे वाला संतरी पहरा दे रहा हो तो चोर रात को सेंध नहीं लगाते।

ਤਿਲਕੁ ਲਿਲਾਟਿ ਜਾਣੈ ਪ੍ਰਭੁ ਏਕੁ ॥
तिलकु लिलाटि जाणै प्रभु एकु ॥
एक प्रभु का ज्ञान ही माथे के ऊपर का तिलक है।

ਬੂਝੈ ਬ੍ਰਹਮੁ ਅੰਤਰਿ ਬਿਬੇਕੁ ॥੪॥
बूझै ब्रहमु अंतरि बिबेकु ॥४॥
अपने हृदय में मौजूद परमात्मा को पहचानना ही असल ज्ञान है। ४ ।

ਆਚਾਰੀ ਨਹੀ ਜੀਤਿਆ ਜਾਇ ॥
आचारी नही जीतिआ जाइ ॥
कर्मकाण्डों द्वारा ईश्वर जीता नहीं जा सकता।

ਪਾਠ ਪੜੈ ਨਹੀ ਕੀਮਤਿ ਪਾਇ ॥
पाठ पड़ै नही कीमति पाइ ॥
न ही धार्मिक ग्रंथों के अध्ययन द्वारा उसका मूल्यांकन किया जा सकता है।

ਅਸਟ ਦਸੀ ਚਹੁ ਭੇਦੁ ਨ ਪਾਇਆ ॥
असट दसी चहु भेदु न पाइआ ॥
अठारह पुराण एवं चार वेद (भी) उसके रहस्य को नहीं जानते।

ਨਾਨਕ ਸਤਿਗੁਰਿ ਬ੍ਰਹਮੁ ਦਿਖਾਇਆ ॥੫॥੨੦॥
नानक सतिगुरि ब्रहमु दिखाइआ ॥५॥२०॥
हे नानक ! सतिगुरु ने मुझे प्रभु दिखा दिया है ॥५॥१९॥

ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੧ ॥
आसा महला १ ॥
आसा महला १ ॥

ਸੇਵਕੁ ਦਾਸੁ ਭਗਤੁ ਜਨੁ ਸੋਈ ॥
सेवकु दासु भगतु जनु सोई ॥
असल में वही ठाकुर जी का सेवक, दास एवं भक्त है।

ਠਾਕੁਰ ਕਾ ਦਾਸੁ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹੋਈ ॥
ठाकुर का दासु गुरमुखि होई ॥
गुरमुख ही ठाकुर जी का दास होता है।

ਜਿਨਿ ਸਿਰਿ ਸਾਜੀ ਤਿਨਿ ਫੁਨਿ ਗੋਈ ॥
जिनि सिरि साजी तिनि फुनि गोई ॥
जिस प्रभु ने यह सृष्टि-रचना की है, वही अन्त में इसका नाश करता है।

ਤਿਸੁ ਬਿਨੁ ਦੂਜਾ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਈ ॥੧॥
तिसु बिनु दूजा अवरु न कोई ॥१॥
उसके अलावा अन्य कोई महान् नहीं ॥ १॥

ਸਾਚੁ ਨਾਮੁ ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਵੀਚਾਰਿ ॥
साचु नामु गुर सबदि वीचारि ॥
गुरु के शब्द द्वारा गुरुमुख सत्यनाम की आराधना करता है और

ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਾਚੇ ਸਾਚੈ ਦਰਬਾਰਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुरमुखि साचे साचै दरबारि ॥१॥ रहाउ ॥
सत्य के दरबार में वह सत्यवादी माना जाता है॥ १॥ रहाउ॥

ਸਚਾ ਅਰਜੁ ਸਚੀ ਅਰਦਾਸਿ ॥
सचा अरजु सची अरदासि ॥
भक्त की विनती एवं सच्ची अरदास को

ਮਹਲੀ ਖਸਮੁ ਸੁਣੇ ਸਾਬਾਸਿ ॥
महली खसमु सुणे साबासि ॥
सच्चा मालिक प्रभु अपने महल में बैठकर सुनता है और उसे शाबाश कहता है।

ਸਚੈ ਤਖਤਿ ਬੁਲਾਵੈ ਸੋਇ ॥
सचै तखति बुलावै सोइ ॥
वह उसे अपने सत्य के सिंहासन पर निमंत्रित करता है

ਦੇ ਵਡਿਆਈ ਕਰੇ ਸੁ ਹੋਇ ॥੨॥
दे वडिआई करे सु होइ ॥२॥
और उनको मान-सम्मान प्रदान करता है। जो कुछ वह करता है, वही होता है।॥ २॥

ਤੇਰਾ ਤਾਣੁ ਤੂਹੈ ਦੀਬਾਣੁ ॥
तेरा ताणु तूहै दीबाणु ॥
हे जग के रचयिता ! तू ही मेरा दरबार है और तू ही मेरी ताकत है।

ਗੁਰ ਕਾ ਸਬਦੁ ਸਚੁ ਨੀਸਾਣੁ ॥
गुर का सबदु सचु नीसाणु ॥
तेरे दरबार में जाने हेतु गुरु का शब्द ही मेरे पास सत्य का चिन्ह है।

ਮੰਨੇ ਹੁਕਮੁ ਸੁ ਪਰਗਟੁ ਜਾਇ ॥
मंने हुकमु सु परगटु जाइ ॥
जो मनुष्य प्रभु के हुक्म का पालन करता है, वह प्रत्यक्ष ही उसके पास चला जाता है।

ਸਚੁ ਨੀਸਾਣੈ ਠਾਕ ਨ ਪਾਇ ॥੩॥
सचु नीसाणै ठाक न पाइ ॥३॥
सत्य के चिन्ह कारण उसे बाधा नहीं आती ॥ ३ ॥

ਪੰਡਿਤ ਪੜਹਿ ਵਖਾਣਹਿ ਵੇਦੁ ॥
पंडित पड़हि वखाणहि वेदु ॥
पण्डित वेदों को पढ़ता एवं उनकी व्याख्या करता है।

ਅੰਤਰਿ ਵਸਤੁ ਨ ਜਾਣਹਿ ਭੇਦੁ ॥
अंतरि वसतु न जाणहि भेदु ॥
लेकिन वह अपने भीतर की उपयोगी वस्तु के रहस्य को नहीं समझता।

ਗੁਰ ਬਿਨੁ ਸੋਝੀ ਬੂਝ ਨ ਹੋਇ ॥
गुर बिनु सोझी बूझ न होइ ॥
गुरु के बिना इस बात का कोई ज्ञान नहीं होता

ਸਾਚਾ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਪ੍ਰਭੁ ਸੋਇ ॥੪॥
साचा रवि रहिआ प्रभु सोइ ॥४॥
कि वह सच्चा प्रभु हर जगह मौजूद है॥ ४॥

ਕਿਆ ਹਉ ਆਖਾ ਆਖਿ ਵਖਾਣੀ ॥
किआ हउ आखा आखि वखाणी ॥
मैं क्या कहूँ और क्या बखान करूं ?

ਤੂੰ ਆਪੇ ਜਾਣਹਿ ਸਰਬ ਵਿਡਾਣੀ ॥
तूं आपे जाणहि सरब विडाणी ॥
हे सर्वकला सम्पूर्ण परमात्मा ! तुम स्वयं ही सबकुछ जानते हो।

ਨਾਨਕ ਏਕੋ ਦਰੁ ਦੀਬਾਣੁ ॥
नानक एको दरु दीबाणु ॥
हे नानक ! न्यायकर्ता प्रभु का दरबार ही सबका सहारा है।

ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਾਚੁ ਤਹਾ ਗੁਦਰਾਣੁ ॥੫॥੨੧॥
गुरमुखि साचु तहा गुदराणु ॥५॥२१॥
वहाँ सत्य द्वार में ही गुरुमुखों का बसेरा है॥ ५॥ २१॥

ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੧ ॥
आसा महला १ ॥
आसा महला १ ॥

ਕਾਚੀ ਗਾਗਰਿ ਦੇਹ ਦੁਹੇਲੀ ਉਪਜੈ ਬਿਨਸੈ ਦੁਖੁ ਪਾਈ ॥
काची गागरि देह दुहेली उपजै बिनसै दुखु पाई ॥
यह शरीर कच्ची गागर की तरह है और यह हमेशा ही दुखी रहती है। यह पैदा होती है, नाश हो जाती है और बहुत कष्ट सहन करती है।

ਇਹੁ ਜਗੁ ਸਾਗਰੁ ਦੁਤਰੁ ਕਿਉ ਤਰੀਐ ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਗੁਰ ਪਾਰਿ ਨ ਪਾਈ ॥੧॥
इहु जगु सागरु दुतरु किउ तरीऐ बिनु हरि गुर पारि न पाई ॥१॥
यह भयानक संसार सागर किस तरह पार किया जा सकता है? गुरु-परमेश्वर के बिना यह पार नहीं किया जा सकता ॥ १॥

ਤੁਝ ਬਿਨੁ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਈ ਮੇਰੇ ਪਿਆਰੇ ਤੁਝ ਬਿਨੁ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਇ ਹਰੇ ॥
तुझ बिनु अवरु न कोई मेरे पिआरे तुझ बिनु अवरु न कोइ हरे ॥
हे मेरे प्रियतम प्रभु ! मैं बार-बार यही कहता हूँ कि तेरे अलावा मेरा अन्य कोई नहीं है।

ਸਰਬੀ ਰੰਗੀ ਰੂਪੀ ਤੂੰਹੈ ਤਿਸੁ ਬਖਸੇ ਜਿਸੁ ਨਦਰਿ ਕਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सरबी रंगी रूपी तूंहै तिसु बखसे जिसु नदरि करे ॥१॥ रहाउ ॥
सभी रंग-रूपों में तुम ही विद्यमान हो। प्रभु उसे क्षमा कर देता है, जिस पर वह स्वयं दयादृष्टि करता है॥ १॥ रहाउ॥

ਸਾਸੁ ਬੁਰੀ ਘਰਿ ਵਾਸੁ ਨ ਦੇਵੈ ਪਿਰ ਸਿਉ ਮਿਲਣ ਨ ਦੇਇ ਬੁਰੀ ॥
सासु बुरी घरि वासु न देवै पिर सिउ मिलण न देइ बुरी ॥
(माया रूपी) मेरी सास बहुत बुरी है। वह मुझे अन्तर्मन रूपी घर में रहने नहीं देती। दुष्टा सास मुझे अपने प्रियतम प्रभु से मिलने नहीं देती।

ਸਖੀ ਸਾਜਨੀ ਕੇ ਹਉ ਚਰਨ ਸਰੇਵਉ ਹਰਿ ਗੁਰ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਨਦਰਿ ਧਰੀ ॥੨॥
सखी साजनी के हउ चरन सरेवउ हरि गुर किरपा ते नदरि धरी ॥२॥
मैं सखियों एवं सहेलियों के चरणों की सेवा करती हूँ। क्योंकि उनकी सत्संगति में गुरु की दया से हरि ने मेरी तरफ कृपापूर्वक देखा है॥ २॥

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