ਸੋਈ ਅਜਾਣੁ ਕਹੈ ਮੈ ਜਾਨਾ ਜਾਨਣਹਾਰੁ ਨ ਛਾਨਾ ਰੇ ॥
सोई अजाणु कहै मै जाना जानणहारु न छाना रे ॥
वह मूर्ख है जो कहता है कि मैं जानता हूँ। जानने वाला छिपा हुआ नहीं रहता।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਗੁਰਿ ਅਮਿਉ ਪੀਆਇਆ ਰਸਕਿ ਰਸਕਿ ਬਿਗਸਾਨਾ ਰੇ ॥੪॥੫॥੪੪॥
कहु नानक गुरि अमिउ पीआइआ रसकि रसकि बिगसाना रे ॥४॥५॥४४॥
हे नानक ! गुरु ने मुझे अमृतरस पिलवाया है। प्रभु के प्रेम-रस में भीगकर अब मैं आनंदित हो गया हूँ॥ ४॥ ५॥ ४४॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
आसा महला ५ ॥
ਬੰਧਨ ਕਾਟਿ ਬਿਸਾਰੇ ਅਉਗਨ ਅਪਨਾ ਬਿਰਦੁ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਰਿਆ ॥
बंधन काटि बिसारे अउगन अपना बिरदु सम्हारिआ ॥
परमात्मा ने मेरे (माया संबंधी) बन्धन काट दिए हैं, मेरे अवगुण भुला दिए हैं और इस प्रकार अपने विरद् की पालना की है।
ਹੋਏ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਮਾਤ ਪਿਤ ਨਿਆਈ ਬਾਰਿਕ ਜਿਉ ਪ੍ਰਤਿਪਾਰਿਆ ॥੧॥
होए क्रिपाल मात पित निआई बारिक जिउ प्रतिपारिआ ॥१॥
वह माता-पिता की भाँति मुझ पर कृपालु हुए हैं और उन्होंने अपनी संतान की भाँति मेरा पालन-पोषण किया है॥ १॥
ਗੁਰਸਿਖ ਰਾਖੇ ਗੁਰ ਗੋਪਾਲਿ ॥
गुरसिख राखे गुर गोपालि ॥
गुरु-परमेश्वर ने अपने सिक्खों की रक्षा की है और
ਕਾਢਿ ਲੀਏ ਮਹਾ ਭਵਜਲ ਤੇ ਅਪਨੀ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਲਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
काढि लीए महा भवजल ते अपनी नदरि निहालि ॥१॥ रहाउ ॥
अपनी दया-दृष्टि से देखकर उन्हें विषम संसार-सागर में से बाहर निकाल लिया है॥ १॥ रहाउ॥
ਜਾ ਕੈ ਸਿਮਰਣਿ ਜਮ ਤੇ ਛੁਟੀਐ ਹਲਤਿ ਪਲਤਿ ਸੁਖੁ ਪਾਈਐ ॥
जा कै सिमरणि जम ते छुटीऐ हलति पलति सुखु पाईऐ ॥
जिस परमात्मा का सुमिरन करने से हमें मृत्यु से मुक्ति मिल जाती है और लोक-परलोक में सुख मिलता है,”
ਸਾਸਿ ਗਿਰਾਸਿ ਜਪਹੁ ਜਪੁ ਰਸਨਾ ਨੀਤ ਨੀਤ ਗੁਣ ਗਾਈਐ ॥੨॥
सासि गिरासि जपहु जपु रसना नीत नीत गुण गाईऐ ॥२॥
हे भाई ! प्रत्येक सांस एवं ग्रास द्वारा प्रभु नाम का रसना से जाप जपते रहना चाहिए और नित्य ही उसका गुणगान करना चाहिए॥ २॥
ਭਗਤਿ ਪ੍ਰੇਮ ਪਰਮ ਪਦੁ ਪਾਇਆ ਸਾਧਸੰਗਿ ਦੁਖ ਨਾਠੇ ॥
भगति प्रेम परम पदु पाइआ साधसंगि दुख नाठे ॥
प्रभु की प्रेम-भक्ति से मुझे परम पद मिल गया है और साधु की संगति से दुख दूर हो गए हैं।
ਛਿਜੈ ਨ ਜਾਇ ਕਿਛੁ ਭਉ ਨ ਬਿਆਪੇ ਹਰਿ ਧਨੁ ਨਿਰਮਲੁ ਗਾਠੇ ॥੩॥
छिजै न जाइ किछु भउ न बिआपे हरि धनु निरमलु गाठे ॥३॥
मैंने निर्मल हरि नाम रूपी धन अपनी गांठ में बांध लिया है। इस हरि नाम रूपी धन का कभी नाश नहीं होता, न ही यह कहीं गुम होता है और न ही इसे चोर इत्यादि का डर होता है॥ ३॥
ਅੰਤਿ ਕਾਲ ਪ੍ਰਭ ਭਏ ਸਹਾਈ ਇਤ ਉਤ ਰਾਖਨਹਾਰੇ ॥
अंति काल प्रभ भए सहाई इत उत राखनहारे ॥
लोक-परलोक में रक्षा करने वाला प्रभु अन्तकाल तक सहायक होता है।
ਪ੍ਰਾਨ ਮੀਤ ਹੀਤ ਧਨੁ ਮੇਰੈ ਨਾਨਕ ਸਦ ਬਲਿਹਾਰੇ ॥੪॥੬॥੪੫॥
प्रान मीत हीत धनु मेरै नानक सद बलिहारे ॥४॥६॥४५॥
प्रभु ही मेरे प्राण, मित्र, शुभचिंतक एवं धन-दौलत है। हे नानक ! मैं सदा ही उस पर कुर्बान जाता हूँ॥ ४॥ ६॥ ४५॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
आसा महला ५ ॥
ਜਾ ਤੂੰ ਸਾਹਿਬੁ ਤਾ ਭਉ ਕੇਹਾ ਹਉ ਤੁਧੁ ਬਿਨੁ ਕਿਸੁ ਸਾਲਾਹੀ ॥
जा तूं साहिबु ता भउ केहा हउ तुधु बिनु किसु सालाही ॥
हे परमपिता ! जब तू मेरा मालिक है तो फिर मुझे डर कैसा ? तेरे अलावा मैं किसकी स्तुति करूँ?
ਏਕੁ ਤੂੰ ਤਾ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਹੈ ਮੈ ਤੁਧੁ ਬਿਨੁ ਦੂਜਾ ਨਾਹੀ ॥੧॥
एकु तूं ता सभु किछु है मै तुधु बिनु दूजा नाही ॥१॥
जब एक तू ही मेरा है, तो मेरे पास सब कुछ है तेरे सिवाय मेरा अन्य कोई नहीं॥ १॥
ਬਾਬਾ ਬਿਖੁ ਦੇਖਿਆ ਸੰਸਾਰੁ ॥
बाबा बिखु देखिआ संसारु ॥
हे बाबा ! मैंने देख लिया है कि यह संसार विष रूप है।
ਰਖਿਆ ਕਰਹੁ ਗੁਸਾਈ ਮੇਰੇ ਮੈ ਨਾਮੁ ਤੇਰਾ ਆਧਾਰੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
रखिआ करहु गुसाई मेरे मै नामु तेरा आधारु ॥१॥ रहाउ ॥
हे गुसाई ! मेरी रक्षा कीजिए, तेरा नाम ही मेरे जीवन का आधार है॥ १॥ रहाउ॥
ਜਾਣਹਿ ਬਿਰਥਾ ਸਭਾ ਮਨ ਕੀ ਹੋਰੁ ਕਿਸੁ ਪਹਿ ਆਖਿ ਸੁਣਾਈਐ ॥
जाणहि बिरथा सभा मन की होरु किसु पहि आखि सुणाईऐ ॥
हे नाथ ! तुम मेरे मन की हरेक अवस्था जानते हो। इसलिए, मैं किसके पास जाकर इसे कहूँ एवं सुनाऊँ ?”
ਵਿਣੁ ਨਾਵੈ ਸਭੁ ਜਗੁ ਬਉਰਾਇਆ ਨਾਮੁ ਮਿਲੈ ਸੁਖੁ ਪਾਈਐ ॥੨॥
विणु नावै सभु जगु बउराइआ नामु मिलै सुखु पाईऐ ॥२॥
नाम के बिना समूचा जगत बावला हो गया है। यदि प्रभु नाम मिल जाए तो यह सुख पाता है॥ २॥
ਕਿਆ ਕਹੀਐ ਕਿਸੁ ਆਖਿ ਸੁਣਾਈਐ ਜਿ ਕਹਣਾ ਸੁ ਪ੍ਰਭ ਜੀ ਪਾਸਿ ॥
किआ कहीऐ किसु आखि सुणाईऐ जि कहणा सु प्रभ जी पासि ॥
मैं क्या कहूँ? मैं अपनी अवस्था किसे बताऊँ ? जो कुछ मैं कहना चाहता हूँ, वह मैं अपने प्रभु जी के पास कहता हूँ।
ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਕੀਤਾ ਤੇਰਾ ਵਰਤੈ ਸਦਾ ਸਦਾ ਤੇਰੀ ਆਸ ॥੩॥
सभु किछु कीता तेरा वरतै सदा सदा तेरी आस ॥३॥
हे मालिक ! जो कुछ तुमने किया है, जगत में सब कुछ तेरा किया ही हो रहा है। मुझे सदैव ही तेरी आशा है॥ ३॥
ਜੇ ਦੇਹਿ ਵਡਿਆਈ ਤਾ ਤੇਰੀ ਵਡਿਆਈ ਇਤ ਉਤ ਤੁਝਹਿ ਧਿਆਉ ॥
जे देहि वडिआई ता तेरी वडिआई इत उत तुझहि धिआउ ॥
यदि तुम मान-प्रतिष्ठा प्रदान करते हो तो यह तेरी मान-प्रतिष्ठा है। लोक-परलोक में मैं तुझे ही याद करता हूँ।
ਨਾਨਕ ਕੇ ਪ੍ਰਭ ਸਦਾ ਸੁਖਦਾਤੇ ਮੈ ਤਾਣੁ ਤੇਰਾ ਇਕੁ ਨਾਉ ॥੪॥੭॥੪੬॥
नानक के प्रभ सदा सुखदाते मै ताणु तेरा इकु नाउ ॥४॥७॥४६॥
नानक का प्रभु सदैव ही सुखदाता है। मेरा बल एक तेरा ही नाम है॥ ४॥ ७॥ ४६ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
आसा महला ५ ॥
ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਨਾਮੁ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਾਰਾ ਠਾਕੁਰ ਏਹੁ ਮਹਾ ਰਸੁ ਜਨਹਿ ਪੀਓ ॥
अम्रितु नामु तुम्हारा ठाकुर एहु महा रसु जनहि पीओ ॥
हे मेरे ठाकुर ! तेरा नाम अमृत है और यह महा रस तेरे सेवक ने पान किया है।
ਜਨਮ ਜਨਮ ਚੂਕੇ ਭੈ ਭਾਰੇ ਦੁਰਤੁ ਬਿਨਾਸਿਓ ਭਰਮੁ ਬੀਓ ॥੧॥
जनम जनम चूके भै भारे दुरतु बिनासिओ भरमु बीओ ॥१॥
मेरे जन्म-जन्मांतरों के पापों का भयानक बोझ नाश हो गया है और छैतवाद की दुविधा भी चली गई है॥ १॥
ਦਰਸਨੁ ਪੇਖਤ ਮੈ ਜੀਓ ॥
दरसनु पेखत मै जीओ ॥
हे मालिक ! तेरे दर्शन करके मैं जीवित रहता हूँ।
ਸੁਨਿ ਕਰਿ ਬਚਨ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਾਰੇ ਸਤਿਗੁਰ ਮਨੁ ਤਨੁ ਮੇਰਾ ਠਾਰੁ ਥੀਓ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सुनि करि बचन तुम्हारे सतिगुर मनु तनु मेरा ठारु थीओ ॥१॥ रहाउ ॥
हे मेरे सच्चे गुरु ! तेरे वचन सुनने से मेरा मन एवं तन शीतल हो गए हैं।॥ १॥ रहाउ॥
ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਰੀ ਕ੍ਰਿਪਾ ਤੇ ਭਇਓ ਸਾਧਸੰਗੁ ਏਹੁ ਕਾਜੁ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਆਪਿ ਕੀਓ ॥
तुम्हरी क्रिपा ते भइओ साधसंगु एहु काजु तुम्ह आपि कीओ ॥
हे परमेश्वर ! तेरी कृपा से मुझे साधसंगत मिली है और यह शुभ कार्य तूने स्वयं ही किया है।
ਦਿੜੁ ਕਰਿ ਚਰਣ ਗਹੇ ਪ੍ਰਭ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਰੇ ਸਹਜੇ ਬਿਖਿਆ ਭਈ ਖੀਓ ॥੨॥
दिड़ु करि चरण गहे प्रभ तुम्हरे सहजे बिखिआ भई खीओ ॥२॥
मैंने तेरे चरण कसकर पकड़ लिए हैं और माया का विष सहज ही दूर हो गया है॥ २॥
ਸੁਖ ਨਿਧਾਨ ਨਾਮੁ ਪ੍ਰਭ ਤੁਮਰਾ ਏਹੁ ਅਬਿਨਾਸੀ ਮੰਤ੍ਰੁ ਲੀਓ ॥
सुख निधान नामु प्रभ तुमरा एहु अबिनासी मंत्रु लीओ ॥
हे प्रभु! तेरा नाम सुखों का भण्डार है। यह अमर मंत्र मैंने गुरदेव से प्राप्त किया है।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਮੋਹਿ ਸਤਿਗੁਰਿ ਦੀਨਾ ਤਾਪੁ ਸੰਤਾਪੁ ਮੇਰਾ ਬੈਰੁ ਗੀਓ ॥੩॥
करि किरपा मोहि सतिगुरि दीना तापु संतापु मेरा बैरु गीओ ॥३॥
अपनी कृपा करके सतिगुरु ने मुझे यह (मंत्र) प्रदान किया है और मेरा ताप-संताप एवं शत्रु नाश हो गए हैं।॥ ३॥
ਧੰਨੁ ਸੁ ਮਾਣਸ ਦੇਹੀ ਪਾਈ ਜਿਤੁ ਪ੍ਰਭਿ ਅਪਨੈ ਮੇਲਿ ਲੀਓ ॥
धंनु सु माणस देही पाई जितु प्रभि अपनै मेलि लीओ ॥
यह मानव-शरीर जो मुझे मिला है वह धन्य है, क्योंकि इसकी बदौलत ही मेरे प्रभु ने मुझे अपने साथ मिला लिया है।
ਧੰਨੁ ਸੁ ਕਲਿਜੁਗੁ ਸਾਧਸੰਗਿ ਕੀਰਤਨੁ ਗਾਈਐ ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਅਧਾਰੁ ਹੀਓ ॥੪॥੮॥੪੭॥
धंनु सु कलिजुगु साधसंगि कीरतनु गाईऐ नानक नामु अधारु हीओ ॥४॥८॥४७॥
यह कलियुग का समय धन्य है जिसमें साधसंगत में प्रभु का भजन किया जाता है। हे नानक ! प्रभु का नाम ही मेरे हृदय का आधार है॥ ४ ॥ ८॥ ४७ ॥