Hindi Page 393

ਜਿਸੁ ਭੇਟਤ ਲਾਗੈ ਪ੍ਰਭ ਰੰਗੁ ॥੧॥
जिसु भेटत लागै प्रभ रंगु ॥१॥
जिसके मिलन से प्रभु से प्रेम हो जाता है॥ १॥

ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਓਇ ਆਨੰਦ ਪਾਵੈ ॥
गुर प्रसादि ओइ आनंद पावै ॥
गुरु की कृपा से वह सुख पा लेता है।

ਜਿਸੁ ਸਿਮਰਤ ਮਨਿ ਹੋਇ ਪ੍ਰਗਾਸਾ ਤਾ ਕੀ ਗਤਿ ਮਿਤਿ ਕਹਨੁ ਨ ਜਾਵੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जिसु सिमरत मनि होइ प्रगासा ता की गति मिति कहनु न जावै ॥१॥ रहाउ ॥
जिसका सिमरन करने से मन में प्रकाश हो जाता है, उसकी गति एवं अनुमान वर्णन नहीं किए जा सकते॥ १॥ रहाउ ॥

ਵਰਤ ਨੇਮ ਮਜਨ ਤਿਸੁ ਪੂਜਾ ॥
वरत नेम मजन तिसु पूजा ॥
उसकी पूजा करने से व्रत, नियम, तीर्थ-स्नान,”

ਬੇਦ ਪੁਰਾਨ ਤਿਨਿ ਸਿੰਮ੍ਰਿਤਿ ਸੁਨੀਜਾ ॥
बेद पुरान तिनि सिम्रिति सुनीजा ॥
वेदों, पुराणों एवं स्मृतियों के सुनने का भी फल मिल जाता है।

ਮਹਾ ਪੁਨੀਤ ਜਾ ਕਾ ਨਿਰਮਲ ਥਾਨੁ ॥
महा पुनीत जा का निरमल थानु ॥
उसका हृदय रूपी स्थान भी महापवित्र एवं निर्मल हो जाता है

ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਜਾ ਕੈ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ॥੨॥
साधसंगति जा कै हरि हरि नामु ॥२॥
जो व्यक्ति साधु की संगति करता है, उसके हृदय में परमात्मा का हरि-नाम बस जाता है ॥ २ ॥

ਪ੍ਰਗਟਿਓ ਸੋ ਜਨੁ ਸਗਲੇ ਭਵਨ ॥
प्रगटिओ सो जनु सगले भवन ॥
ऐसा भक्तजन सारे विश्व में लोकप्रिय हो जाता है।

ਪਤਿਤ ਪੁਨੀਤ ਤਾ ਕੀ ਪਗ ਰੇਨ ॥
पतित पुनीत ता की पग रेन ॥
उसकी चरण-धूलि से पापी भी पवित्र हो जाते हैं।

ਜਾ ਕਉ ਭੇਟਿਓ ਹਰਿ ਹਰਿ ਰਾਇ ॥
जा कउ भेटिओ हरि हरि राइ ॥
जिस मनुष्य को हरि-परमेश्वर बादशाह मिल गया है,”

ਤਾ ਕੀ ਗਤਿ ਮਿਤਿ ਕਥਨੁ ਨ ਜਾਇ ॥੩॥
ता की गति मिति कथनु न जाइ ॥३॥
उसकी गति एवं महत्ता वर्णन नहीं किए जा सकते॥ ३॥

ਆਠ ਪਹਰ ਕਰ ਜੋੜਿ ਧਿਆਵਉ ॥
आठ पहर कर जोड़ि धिआवउ ॥
मैं निशदिन हाथ जोड़कर प्रभु का ध्यान करता हूँ और

ਉਨ ਸਾਧਾ ਕਾ ਦਰਸਨੁ ਪਾਵਉ ॥
उन साधा का दरसनु पावउ ॥
उन संतों के दर्शन प्राप्त करता हूँ।

ਮੋਹਿ ਗਰੀਬ ਕਉ ਲੇਹੁ ਰਲਾਇ ॥
मोहि गरीब कउ लेहु रलाइ ॥
हे प्रभु ! मुझ गरीब को अपने साथ मिला लीजिए।

ਨਾਨਕ ਆਇ ਪਏ ਸਰਣਾਇ ॥੪॥੩੮॥੮੯॥
नानक आइ पए सरणाइ ॥४॥३८॥८९॥
नानक ने आकर तेरी शरण ले ली ॥४॥३८॥८९॥

ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
आसा महला ५ ॥

ਆਠ ਪਹਰ ਉਦਕ ਇਸਨਾਨੀ ॥
आठ पहर उदक इसनानी ॥
हे पण्डित जी ! तुम तो अपने शालग्राम को किसी-किसी समय ही स्नान कराते हो लेकिन हमारा शालग्राम आठों प्रहर ही जल में स्नान करने वाला है,”

ਸਦ ਹੀ ਭੋਗੁ ਲਗਾਇ ਸੁਗਿਆਨੀ ॥
सद ही भोगु लगाइ सुगिआनी ॥
मन को लुभाने वाला ज्ञानी हरि-शालग्राम सदैव भोग लगाता रहता है।

ਬਿਰਥਾ ਕਾਹੂ ਛੋਡੈ ਨਾਹੀ ॥
बिरथा काहू छोडै नाही ॥
वह किसी के भी दुःख-दर्द को नहीं रहने देता।

ਬਹੁਰਿ ਬਹੁਰਿ ਤਿਸੁ ਲਾਗਹ ਪਾਈ ॥੧॥
बहुरि बहुरि तिसु लागह पाई ॥१॥
हम उस हरि शालग्राम के बार-बार चरण स्पर्श करते हैं। ॥१॥

ਸਾਲਗਿਰਾਮੁ ਹਮਾਰੈ ਸੇਵਾ ॥
सालगिरामु हमारै सेवा ॥
हमारे हृदय में प्रभु की सेवा ही शालग्राम की पूजा है।

ਪੂਜਾ ਅਰਚਾ ਬੰਦਨ ਦੇਵਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
पूजा अरचा बंदन देवा ॥१॥ रहाउ ॥
प्रभु का नाम-सुमिरन ही पूजा अर्चना एवं वन्दना है॥ १॥ रहाउ ॥

ਘੰਟਾ ਜਾ ਕਾ ਸੁਨੀਐ ਚਹੁ ਕੁੰਟ ॥
घंटा जा का सुनीऐ चहु कुंट ॥
मेरे शालग्राम हरि की इच्छा का घण्टा चारों दिशाओं सारे विश्व में सुनाई देता है।

ਆਸਨੁ ਜਾ ਕਾ ਸਦਾ ਬੈਕੁੰਠ ॥
आसनु जा का सदा बैकुंठ ॥
उसका आसन सदैव ही वैकुंठ में है।

ਜਾ ਕਾ ਚਵਰੁ ਸਭ ਊਪਰਿ ਝੂਲੈ ॥
जा का चवरु सभ ऊपरि झूलै ॥
उसका चंवर समस्त जीवों पर झूलता है और

ਤਾ ਕਾ ਧੂਪੁ ਸਦਾ ਪਰਫੁਲੈ ॥੨॥
ता का धूपु सदा परफुलै ॥२॥
जिसकी होम-सामग्री (धूप) सदैव महकती रहती है॥ २॥

ਘਟਿ ਘਟਿ ਸੰਪਟੁ ਹੈ ਰੇ ਜਾ ਕਾ ॥
घटि घटि स्मपटु है रे जा का ॥
हे पण्डित ! तू अपने शालग्राम को डिब्वे में रखता है लेकिन हमारे शालग्राम का डिब्बा प्रत्येक जीव का हृदय है।

ਅਭਗ ਸਭਾ ਸੰਗਿ ਹੈ ਸਾਧਾ ॥
अभग सभा संगि है साधा ॥
संतों की संगति उसकी अटल सभा है।

ਆਰਤੀ ਕੀਰਤਨੁ ਸਦਾ ਅਨੰਦ ॥
आरती कीरतनु सदा अनंद ॥
सदैव आनंद प्रदान करने वाला उसका कीर्तन ही उसकी आरती है।

ਮਹਿਮਾ ਸੁੰਦਰ ਸਦਾ ਬੇਅੰਤ ॥੩॥
महिमा सुंदर सदा बेअंत ॥३॥
उसकी महिमा बहुत सुन्दर एवं सदैव ही अनन्त है॥ ३॥

ਜਿਸਹਿ ਪਰਾਪਤਿ ਤਿਸ ਹੀ ਲਹਨਾ ॥
जिसहि परापति तिस ही लहना ॥
जिसकी किस्मत में उसकी प्राप्ति का लेख लिखा होता है केवल वही शालग्राम प्रभु को पाता है

ਸੰਤ ਚਰਨ ਓਹੁ ਆਇਓ ਸਰਨਾ ॥
संत चरन ओहु आइओ सरना ॥
वह मनुष्य संतों के चरणों की शरण में आता है ।

ਹਾਥਿ ਚੜਿਓ ਹਰਿ ਸਾਲਗਿਰਾਮੁ ॥
हाथि चड़िओ हरि सालगिरामु ॥
हरि शालग्राम मेरे हाथ में आ गया है अर्थात् मुझे मिल गया है।

ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਗੁਰਿ ਕੀਨੋ ਦਾਨੁ ॥੪॥੩੯॥੯੦॥
कहु नानक गुरि कीनो दानु ॥४॥३९॥९०॥
हे नानक ! गुरु ने मुझे यह दान किया है॥ ४॥ ३६ ॥ ६० ॥

ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ਪੰਚਪਦਾ ॥
आसा महला ५ पंचपदा ॥
आसा महला ५ पंचपदा ॥

ਜਿਹ ਪੈਡੈ ਲੂਟੀ ਪਨਿਹਾਰੀ ॥
जिह पैडै लूटी पनिहारी ॥
जिस पथ पर विषय-विकारों में फँसी हुई पनिहारी जीवन की पूँजी लुटा बैठी है,”

ਸੋ ਮਾਰਗੁ ਸੰਤਨ ਦੂਰਾਰੀ ॥੧॥
सो मारगु संतन दूरारी ॥१॥
वह मार्ग संतजनों से दूर है॥ १॥

ਸਤਿਗੁਰ ਪੂਰੈ ਸਾਚੁ ਕਹਿਆ ॥
सतिगुर पूरै साचु कहिआ ॥
पूर्ण सतिगुरु ने सत्य कहा है।

ਨਾਮ ਤੇਰੇ ਕੀ ਮੁਕਤੇ ਬੀਥੀ ਜਮ ਕਾ ਮਾਰਗੁ ਦੂਰਿ ਰਹਿਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
नाम तेरे की मुकते बीथी जम का मारगु दूरि रहिआ ॥१॥ रहाउ ॥
हे प्रभु ! तेरा नाम मोक्ष का मार्ग है और यमदूतों का मार्ग इससे बहुत दूर रह जाता है॥ १॥ रहाउ॥

ਜਹ ਲਾਲਚ ਜਾਗਾਤੀ ਘਾਟ ॥
जह लालच जागाती घाट ॥
जहाँ पर लालची कर लेने वालों का घाट है,”

ਦੂਰਿ ਰਹੀ ਉਹ ਜਨ ਤੇ ਬਾਟ ॥੨॥
दूरि रही उह जन ते बाट ॥२॥
वह पथ भक्तजनों से दूर रह जाता है।॥ २॥

ਜਹ ਆਵਟੇ ਬਹੁਤ ਘਨ ਸਾਥ ॥
जह आवटे बहुत घन साथ ॥
जिस जीवन सफर में अनेकों ही काफिले पीड़ित होते रहते हैं,”

ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਕੇ ਸੰਗੀ ਸਾਧ ॥੩॥
पारब्रहम के संगी साध ॥३॥
उस सफर में साधजन परब्रह्म के सत्संगी बने रहते हैं।॥ ३॥

ਚਿਤ੍ਰ ਗੁਪਤੁ ਸਭ ਲਿਖਤੇ ਲੇਖਾ ॥
चित्र गुपतु सभ लिखते लेखा ॥
चित्रगुप्त समस्त जीवों के कर्मों का लेखा-जोखा लिखते रहते हैं परन्तु

ਭਗਤ ਜਨਾ ਕਉ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਨ ਪੇਖਾ ॥੪॥
भगत जना कउ द्रिसटि न पेखा ॥४॥
भक्तजनों की तरफ दृष्टि उठाकर भी नहीं देखते॥ ४॥

ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਜਿਸੁ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ॥
कहु नानक जिसु सतिगुरु पूरा ॥
हे नानक ! जिसका सतिगुरु पूर्ण है,”

ਵਾਜੇ ਤਾ ਕੈ ਅਨਹਦ ਤੂਰਾ ॥੫॥੪੦॥੯੧॥
वाजे ता कै अनहद तूरा ॥५॥४०॥९१॥
उसके लिए भगवान के गुणानुवाद के निरन्तर बाजे बजते रहते हैं॥ ५॥ ४० ॥ ६१ ॥

ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ਦੁਪਦਾ ੧ ॥
आसा महला ५ दुपदा १ ॥
आसा महला ५ दुपदा १ ॥

ਸਾਧੂ ਸੰਗਿ ਸਿਖਾਇਓ ਨਾਮੁ ॥
साधू संगि सिखाइओ नामु ॥
साधु की संगति ने मुझे भगवान का नाम-सिमरन सिखा दिया है,”

ਸਰਬ ਮਨੋਰਥ ਪੂਰਨ ਕਾਮ ॥
सरब मनोरथ पूरन काम ॥
जिसके फलस्वरूप सारे मनोरथ एवं कार्य पूरे हो गए हैं।

ਬੁਝਿ ਗਈ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਹਰਿ ਜਸਹਿ ਅਘਾਨੇ ॥
बुझि गई त्रिसना हरि जसहि अघाने ॥
हरि यश गाने से मेरी तृष्णा बुझ गई है और मैं तृप्त हो गया हूँ।

ਜਪਿ ਜਪਿ ਜੀਵਾ ਸਾਰਿਗਪਾਨੇ ॥੧॥
जपि जपि जीवा सारिगपाने ॥१॥
सारिंगपानि भगवान का नाम जप-जपकर मैं आत्मिक जीवन जीता हूँ॥ १॥

ਕਰਨ ਕਰਾਵਨ ਸਰਨਿ ਪਰਿਆ ॥
करन करावन सरनि परिआ ॥
सबकुछ करने एवं करवाने में समर्थ प्रभु की मैंने शरण ली है।

ਗੁਰ ਪਰਸਾਦਿ ਸਹਜ ਘਰੁ ਪਾਇਆ ਮਿਟਿਆ ਅੰਧੇਰਾ ਚੰਦੁ ਚੜਿਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुर परसादि सहज घरु पाइआ मिटिआ अंधेरा चंदु चड़िआ ॥१॥ रहाउ ॥
गुरु की कृपा से मुझे सहज घर मिल गया है, अन्धकार दूर हो गया है और ज्ञान का चन्द्रमा उदय हो गया है॥ १॥ रहाउ॥

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