Hindi Page 423

ਤਾ ਕੇ ਰੂਪ ਨ ਜਾਹੀ ਲਖਣੇ ਕਿਆ ਕਰਿ ਆਖਿ ਵੀਚਾਰੀ ॥੨॥
ता के रूप न जाही लखणे किआ करि आखि वीचारी ॥२॥
उसके रूप जाने नहीं जा सकते, वर्णन करने एवं सोचने से मनुष्य क्या कर सकते हैं ? ॥ २॥

ਤੀਨਿ ਗੁਣਾ ਤੇਰੇ ਜੁਗ ਹੀ ਅੰਤਰਿ ਚਾਰੇ ਤੇਰੀਆ ਖਾਣੀ ॥
तीनि गुणा तेरे जुग ही अंतरि चारे तेरीआ खाणी ॥
हे स्वामी ! इस सृष्टि में तीन गुण (रजो, तमो, सतो) तेरे द्वारा उत्पादित हैं। सृष्टि रचना के चार स्रोत तेरे द्वारा ही निर्मित हैं।

ਕਰਮੁ ਹੋਵੈ ਤਾ ਪਰਮ ਪਦੁ ਪਾਈਐ ਕਥੇ ਅਕਥ ਕਹਾਣੀ ॥੩॥
करमु होवै ता परम पदु पाईऐ कथे अकथ कहाणी ॥३॥
यदि तुम दयालु हो जाओ तो ही मनुष्य परम पदवी प्राप्त करता है और तेरी अकथनीय कहानी को कथन करता है॥ ३॥

ਤੂੰ ਕਰਤਾ ਕੀਆ ਸਭੁ ਤੇਰਾ ਕਿਆ ਕੋ ਕਰੇ ਪਰਾਣੀ ॥
तूं करता कीआ सभु तेरा किआ को करे पराणी ॥
हे भगवान ! तू जग का रचयिता है। सब कुछ तेरा ही किया हुआ है, कोई प्राणी क्या कर सकता है?

ਜਾ ਕਉ ਨਦਰਿ ਕਰਹਿ ਤੂੰ ਅਪਣੀ ਸਾਈ ਸਚਿ ਸਮਾਣੀ ॥੪॥
जा कउ नदरि करहि तूं अपणी साई सचि समाणी ॥४॥
हे परमेश्वर ! जिस मनुष्य पर तू कृपादृष्टि करता है केवल वही सत्य में समा जाता है॥ ४॥

ਨਾਮੁ ਤੇਰਾ ਸਭੁ ਕੋਈ ਲੇਤੁ ਹੈ ਜੇਤੀ ਆਵਣ ਜਾਣੀ ॥
नामु तेरा सभु कोई लेतु है जेती आवण जाणी ॥
प्रत्येक जीव जो आता एवं जाता है अर्थात् जन्म-मरण के चक्र में पड़ा है, वह तेरे नाम का जाप करता है।

ਜਾ ਤੁਧੁ ਭਾਵੈ ਤਾ ਗੁਰਮੁਖਿ ਬੂਝੈ ਹੋਰ ਮਨਮੁਖਿ ਫਿਰੈ ਇਆਣੀ ॥੫॥
जा तुधु भावै ता गुरमुखि बूझै होर मनमुखि फिरै इआणी ॥५॥
यदि तुझे भला लगे तभी गुरुमुख तुझे समझता है। शेष स्वेच्छाचारी मूर्ख प्राणी भटकते ही रहते हैं।॥ ५॥

ਚਾਰੇ ਵੇਦ ਬ੍ਰਹਮੇ ਕਉ ਦੀਏ ਪੜਿ ਪੜਿ ਕਰੇ ਵੀਚਾਰੀ ॥
चारे वेद ब्रहमे कउ दीए पड़ि पड़ि करे वीचारी ॥
चारों वेद (भगवान ने) ब्रह्मा जी को दे दिए लेकिन वह पढ़ पढ़ कर विचार ही करता रहता है।

ਤਾ ਕਾ ਹੁਕਮੁ ਨ ਬੂਝੈ ਬਪੁੜਾ ਨਰਕਿ ਸੁਰਗਿ ਅਵਤਾਰੀ ॥੬॥
ता का हुकमु न बूझै बपुड़ा नरकि सुरगि अवतारी ॥६॥
प्रभु के हुक्म को बेचारा समझता ही नहीं और नरक-स्वर्ग में जन्म लेता है॥ ६॥

ਜੁਗਹ ਜੁਗਹ ਕੇ ਰਾਜੇ ਕੀਏ ਗਾਵਹਿ ਕਰਿ ਅਵਤਾਰੀ ॥
जुगह जुगह के राजे कीए गावहि करि अवतारी ॥
युग-युग में ईश्वर ने राम, कृष्ण इत्यादि राजा उत्पन्न किए जिन्हें लोग अवतार मान कर गुणस्तुति करते आ रहे हैं।

ਤਿਨ ਭੀ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਇਆ ਤਾ ਕਾ ਕਿਆ ਕਰਿ ਆਖਿ ਵੀਚਾਰੀ ॥੭॥
तिन भी अंतु न पाइआ ता का किआ करि आखि वीचारी ॥७॥
लेकिन वे भी उसका अन्त नहीं पा सके, फिर मैं क्या कहकर उसके गुणों का विचार कर सकता हूँ॥ ७ ॥

ਤੂੰ ਸਚਾ ਤੇਰਾ ਕੀਆ ਸਭੁ ਸਾਚਾ ਦੇਹਿ ਤ ਸਾਚੁ ਵਖਾਣੀ ॥
तूं सचा तेरा कीआ सभु साचा देहि त साचु वखाणी ॥
तू सदैव सत्य है और तेरा पैदा किया हुआ सब कुछ भी सत्य है। यदि तुम मुझे सत्य प्रदान करो, तभी मैं इसका वर्णन करूँगा।

ਜਾ ਕਉ ਸਚੁ ਬੁਝਾਵਹਿ ਅਪਣਾ ਸਹਜੇ ਨਾਮਿ ਸਮਾਣੀ ॥੮॥੧॥੨੩॥
जा कउ सचु बुझावहि अपणा सहजे नामि समाणी ॥८॥१॥२३॥
हे भगवान ! जिस मनुष्य को तुम अपने सत्य की सूझ प्रदान करते हो, वह सहज ही तेरे नाम में समा जाता है॥ ८॥ १॥ २३॥

ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੩ ॥
आसा महला ३ ॥
आसा महला ३ ॥

ਸਤਿਗੁਰ ਹਮਰਾ ਭਰਮੁ ਗਵਾਇਆ ॥
सतिगुर हमरा भरमु गवाइआ ॥
सच्चे गुरु ने मेरा भ्रम दूर कर दिया है;

ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਨਿਰੰਜਨੁ ਮੰਨਿ ਵਸਾਇਆ ॥
हरि नामु निरंजनु मंनि वसाइआ ॥
उसने हरि का निरंजन नाम मेरे मन में बसा दिया है।

ਸਬਦੁ ਚੀਨਿ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥੧॥
सबदु चीनि सदा सुखु पाइआ ॥१॥
शब्द की पहचान करने से मुझे सदैव सुख उपलब्ध हो गया है॥ १॥

ਸੁਣਿ ਮਨ ਮੇਰੇ ਤਤੁ ਗਿਆਨੁ ॥
सुणि मन मेरे ततु गिआनु ॥
हे मेरे मन ! तू तत्व ज्ञान को सुन।

ਦੇਵਣ ਵਾਲਾ ਸਭ ਬਿਧਿ ਜਾਣੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਾਈਐ ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
देवण वाला सभ बिधि जाणै गुरमुखि पाईऐ नामु निधानु ॥१॥ रहाउ ॥
देने वाला (परमात्मा) समस्त विधियाँ जानता है। गुरु की शरण में रहने से ही नाम का भण्डार प्राप्त होता है।॥ १॥ रहाउ॥

ਸਤਿਗੁਰ ਭੇਟੇ ਕੀ ਵਡਿਆਈ ॥
सतिगुर भेटे की वडिआई ॥
सतिगुरु से भेंट करने की यह बड़ाई है कि

ਜਿਨਿ ਮਮਤਾ ਅਗਨਿ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਬੁਝਾਈ ॥
जिनि ममता अगनि त्रिसना बुझाई ॥
उसने ममता एवं तृष्णाग्नि को बुझा दिया है और

ਸਹਜੇ ਮਾਤਾ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਈ ॥੨॥
सहजे माता हरि गुण गाई ॥२॥
मैं सहज अवस्था में रंगा हुआ हरि का गुणगान करता रहता हूँ॥ २॥

ਵਿਣੁ ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਕੋਇ ਨ ਜਾਣੀ ॥
विणु गुर पूरे कोइ न जाणी ॥
पूर्ण गुरु के बिना कोई भी जीव प्रभु को नहीं जानता।

ਮਾਇਆ ਮੋਹਿ ਦੂਜੈ ਲੋਭਾਣੀ ॥
माइआ मोहि दूजै लोभाणी ॥
क्योंकि मनुष्य माया-मोह एवं व्यर्थ के लोभ में फँसा हुआ है।

ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਮਿਲੈ ਹਰਿ ਬਾਣੀ ॥੩॥
गुरमुखि नामु मिलै हरि बाणी ॥३॥
गुरु के माध्यम से ही मनुष्य प्रभु का नाम एवं हरि की वाणी को पा लेता है॥ ३॥

ਗੁਰ ਸੇਵਾ ਤਪਾਂ ਸਿਰਿ ਤਪੁ ਸਾਰੁ ॥
गुर सेवा तपां सिरि तपु सारु ॥
गुरु की सेवा समस्त तपस्याओं की महान् तपस्या एवं सार है।

ਹਰਿ ਜੀਉ ਮਨਿ ਵਸੈ ਸਭ ਦੂਖ ਵਿਸਾਰਣਹਾਰੁ ॥
हरि जीउ मनि वसै सभ दूख विसारणहारु ॥
तब पूज्य परमेश्वर मनुष्य के मन में बस जाता है और वह सारे दुःख दर्द को भुलाने वाला है।

ਦਰਿ ਸਾਚੈ ਦੀਸੈ ਸਚਿਆਰੁ ॥੪॥
दरि साचै दीसै सचिआरु ॥४॥
वह सत्य के दरबार में सत्यवादी दिखाई देता है॥ ४॥

ਗੁਰ ਸੇਵਾ ਤੇ ਤ੍ਰਿਭਵਣ ਸੋਝੀ ਹੋਇ ॥
गुर सेवा ते त्रिभवण सोझी होइ ॥
गुरु की सेवा करने से मनुष्य को तीन लोकों की सूझ प्राप्त हो जाती है और

ਆਪੁ ਪਛਾਣਿ ਹਰਿ ਪਾਵੈ ਸੋਇ ॥
आपु पछाणि हरि पावै सोइ ॥
अपने आत्मस्वरूप को पहचान कर वह उस प्रभु को प्राप्त कर लेता है।

ਸਾਚੀ ਬਾਣੀ ਮਹਲੁ ਪਰਾਪਤਿ ਹੋਇ ॥੫॥
साची बाणी महलु परापति होइ ॥५॥
सच्ची गुरुवाणी के माध्यम से प्राणी प्रभु के महल को प्राप्त कर लेता है॥ ५॥

ਗੁਰ ਸੇਵਾ ਤੇ ਸਭ ਕੁਲ ਉਧਾਰੇ ॥
गुर सेवा ते सभ कुल उधारे ॥
गुरु की सेवा करने से मनुष्य अपनी कुल (वंश) का उद्धार कर लेता है और

ਨਿਰਮਲ ਨਾਮੁ ਰਖੈ ਉਰਿ ਧਾਰੇ ॥
निरमल नामु रखै उरि धारे ॥
निर्मल नाम को अपने हृदय में बसा कर रखता है।

ਸਾਚੀ ਸੋਭਾ ਸਾਚਿ ਦੁਆਰੇ ॥੬॥
साची सोभा साचि दुआरे ॥६॥
सत्य के दरबार में वह सत्य की शोभा से शोभायमान होता है॥ ६॥

ਸੇ ਵਡਭਾਗੀ ਜਿ ਗੁਰਿ ਸੇਵਾ ਲਾਏ ॥
से वडभागी जि गुरि सेवा लाए ॥
वे पुरुष बड़े भाग्यशाली हैं, जिन्हें गुरु अपनी सेवा में लगाता है।

ਅਨਦਿਨੁ ਭਗਤਿ ਸਚੁ ਨਾਮੁ ਦ੍ਰਿੜਾਏ ॥
अनदिनु भगति सचु नामु द्रिड़ाए ॥
वे दिन-रात प्रभु-भक्ति में प्रवृत्त रहते हैं और सत्य नाम को बसाकर रखते हैं।

ਨਾਮੇ ਉਧਰੇ ਕੁਲ ਸਬਾਏ ॥੭॥
नामे उधरे कुल सबाए ॥७॥
प्रभु-नाम के माध्यम से समूचे कुल का उद्धार हो जाता है॥ ७॥

ਨਾਨਕੁ ਸਾਚੁ ਕਹੈ ਵੀਚਾਰੁ ॥
नानकु साचु कहै वीचारु ॥
नानक सत्य का विचार कहता है कि

ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਰਖਹੁ ਉਰਿ ਧਾਰਿ ॥
हरि का नामु रखहु उरि धारि ॥
भगवान का नाम अपने हृदय में बसाकर रख।

ਹਰਿ ਭਗਤੀ ਰਾਤੇ ਮੋਖ ਦੁਆਰੁ ॥੮॥੨॥੨੪॥
हरि भगती राते मोख दुआरु ॥८॥२॥२४॥
हरि की भक्ति में मग्न होने से मोक्ष द्वार प्राप्त हो जाता है॥ ८ ॥ २॥ २४॥

ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੩ ॥
आसा महला ३ ॥
आसा महला ३ ॥

ਆਸਾ ਆਸ ਕਰੇ ਸਭੁ ਕੋਈ ॥
आसा आस करे सभु कोई ॥
हर कोई इन्सान आशा एवं इच्छा ही करता रहता है लेकिन

ਹੁਕਮੈ ਬੂਝੈ ਨਿਰਾਸਾ ਹੋਈ ॥
हुकमै बूझै निरासा होई ॥
जो प्रभु के हुक्म को बूझ लेता है, वह इच्छा रहित हो जाता है।

ਆਸਾ ਵਿਚਿ ਸੁਤੇ ਕਈ ਲੋਈ ॥
आसा विचि सुते कई लोई ॥
बहुत सारे लोग आशा में सोए हुए हैं।

ਸੋ ਜਾਗੈ ਜਾਗਾਵੈ ਸੋਈ ॥੧॥
सो जागै जागावै सोई ॥१॥
वही प्राणी जागता है, जिसे प्रभु स्वयं जगाता है॥ १॥

ਸਤਿਗੁਰਿ ਨਾਮੁ ਬੁਝਾਇਆ ਵਿਣੁ ਨਾਵੈ ਭੁਖ ਨ ਜਾਈ ॥
सतिगुरि नामु बुझाइआ विणु नावै भुख न जाई ॥
सतिगुरु ने नाम का भेद बताया है। नाम के बिना भूख दूर नहीं होती।

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