ਆਪਣੈ ਹਥਿ ਵਡਿਆਈਆ ਦੇ ਨਾਮੇ ਲਾਏ ॥
आपणै हथि वडिआईआ दे नामे लाए ॥
सब उपलब्धियाँ भगवान के हाथ हैं, वह स्वयं ही (सम्मान) देकर अपने नाम के साथ मिला लेता है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਮਨਿ ਵਸਿਆ ਵਡਿਆਈ ਪਾਏ ॥੮॥੪॥੨੬॥
नानक नामु निधानु मनि वसिआ वडिआई पाए ॥८॥४॥२६॥
हे नानक ! जिसके मन में नाम-निधान बस जाता है, वह जग में कीर्ति ही प्राप्त करता है॥ ८ ॥ ४॥ २६ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੩ ॥
आसा महला ३ ॥
आसा महला ३ ॥
ਸੁਣਿ ਮਨ ਮੰਨਿ ਵਸਾਇ ਤੂੰ ਆਪੇ ਆਇ ਮਿਲੈ ਮੇਰੇ ਭਾਈ ॥
सुणि मन मंनि वसाइ तूं आपे आइ मिलै मेरे भाई ॥
हे मेरे मन ! तू (गुरु से) परमात्मा का नाम सुनकर उसे अपने अन्तर में बसा। हे मेरे भाई ! वह परमात्मा आप ही आकर मिल जाता है।
ਅਨਦਿਨੁ ਸਚੀ ਭਗਤਿ ਕਰਿ ਸਚੈ ਚਿਤੁ ਲਾਈ ॥੧॥
अनदिनु सची भगति करि सचै चितु लाई ॥१॥
सच्चे में अपना चित्त लगाकर हर रोज सच्ची भक्ति करो॥ १॥
ਏਕੋ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇ ਤੂੰ ਸੁਖੁ ਪਾਵਹਿ ਮੇਰੇ ਭਾਈ ॥
एको नामु धिआइ तूं सुखु पावहि मेरे भाई ॥
हे मेरे भाई ! एक नाम का ध्यान करो, तुझे आत्मिक सुख प्राप्त होगा।
ਹਉਮੈ ਦੂਜਾ ਦੂਰਿ ਕਰਿ ਵਡੀ ਵਡਿਆਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हउमै दूजा दूरि करि वडी वडिआई ॥१॥ रहाउ ॥
अपना अहंकार एवं द्वैतवाद को दूर कर दे, इससे तेरी मान-प्रतिष्ठा बहुत बढ़ेगी॥ १॥ रहाउ॥
ਇਸੁ ਭਗਤੀ ਨੋ ਸੁਰਿ ਨਰ ਮੁਨਿ ਜਨ ਲੋਚਦੇ ਵਿਣੁ ਸਤਿਗੁਰ ਪਾਈ ਨ ਜਾਇ ॥
इसु भगती नो सुरि नर मुनि जन लोचदे विणु सतिगुर पाई न जाइ ॥
हे भाई ! इस भक्ति को पाने के लिए देवता, मनुष्य एवं मुनि जन भी जिज्ञासा रखते हैं परन्तु सच्चे गुरु के बिना यह प्राप्त नहीं होती।
ਪੰਡਿਤ ਪੜਦੇ ਜੋਤਿਕੀ ਤਿਨ ਬੂਝ ਨ ਪਾਇ ॥੨॥
पंडित पड़दे जोतिकी तिन बूझ न पाइ ॥२॥
पण्डित एवं ज्योतिषी धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करते रहे परन्तु उन्हें भी प्रभु-भक्ति का ज्ञान नहीं मिला।॥ २॥
ਆਪੈ ਥੈ ਸਭੁ ਰਖਿਓਨੁ ਕਿਛੁ ਕਹਣੁ ਨ ਜਾਈ ॥
आपै थै सभु रखिओनु किछु कहणु न जाई ॥
भगवान ने सब कुछ अपने वश में रखा हुआ है, अन्य कुछ कहा नहीं जा सकता।
ਆਪੇ ਦੇਇ ਸੁ ਪਾਈਐ ਗੁਰਿ ਬੂਝ ਬੁਝਾਈ ॥੩॥
आपे देइ सु पाईऐ गुरि बूझ बुझाई ॥३॥
गुरुदेव ने मुझे यह सूझ प्रदान की है कि भगवान जो कुछ हमें देता है, उसे ही हम प्राप्त करते हैं।॥ ३॥
ਜੀਅ ਜੰਤ ਸਭਿ ਤਿਸ ਦੇ ਸਭਨਾ ਕਾ ਸੋਈ ॥
जीअ जंत सभि तिस दे सभना का सोई ॥
सब जीव-जन्तु भगवान के बनाए हुए हैं और वह सबका मालिक है।
ਮੰਦਾ ਕਿਸ ਨੋ ਆਖੀਐ ਜੇ ਦੂਜਾ ਹੋਈ ॥੪॥
मंदा किस नो आखीऐ जे दूजा होई ॥४॥
हम बुरा किसे कह सकते हैं यदि भगवान के अलावा कोई दूसरा जीवों में निवास करता हो।॥ ४॥
ਇਕੋ ਹੁਕਮੁ ਵਰਤਦਾ ਏਕਾ ਸਿਰਿ ਕਾਰਾ ॥
इको हुकमु वरतदा एका सिरि कारा ॥
भगवान का हुक्म ही इस सृष्टि में चल रहा है, प्रत्येक जीव को यही कार्य करना है जो उसकी ओर से उसके सिर पर लिखा गया है।
ਆਪਿ ਭਵਾਲੀ ਦਿਤੀਅਨੁ ਅੰਤਰਿ ਲੋਭੁ ਵਿਕਾਰਾ ॥੫॥
आपि भवाली दितीअनु अंतरि लोभु विकारा ॥५॥
उसने स्वयं ही जीवों को कुमार्गगामी किया हुआ है, इसलिए उनके अन्तर्मन में लोभ एवं विकार निवास करते हैं॥ ५॥
ਇਕ ਆਪੇ ਗੁਰਮੁਖਿ ਕੀਤਿਅਨੁ ਬੂਝਨਿ ਵੀਚਾਰਾ ॥
इक आपे गुरमुखि कीतिअनु बूझनि वीचारा ॥
भगवान ने कुछ मनुष्यों को गुरुमुख बना दिया है और वे ज्ञान समझते और विचार करते हैं।
ਭਗਤਿ ਭੀ ਓਨਾ ਨੋ ਬਖਸੀਅਨੁ ਅੰਤਰਿ ਭੰਡਾਰਾ ॥੬॥
भगति भी ओना नो बखसीअनु अंतरि भंडारा ॥६॥
वह अपनी भक्ति भी उन्हें प्रदान करता है, जिनके अन्तर्मन में नाम धन के भण्डार भरे हुए हैं।॥ ६॥
ਗਿਆਨੀਆ ਨੋ ਸਭੁ ਸਚੁ ਹੈ ਸਚੁ ਸੋਝੀ ਹੋਈ ॥
गिआनीआ नो सभु सचु है सचु सोझी होई ॥
ज्ञानी पुरुष भी सत्य को ही समझते हैं और उन्हें सत्य का बोध प्राप्त होता है।
ਓਇ ਭੁਲਾਏ ਕਿਸੈ ਦੇ ਨ ਭੁਲਨੑੀ ਸਚੁ ਜਾਣਨਿ ਸੋਈ ॥੭॥
ओइ भुलाए किसै दे न भुलन्ही सचु जाणनि सोई ॥७॥
वे केवल सत्यस्वरूप परमात्मा को ही जानते हैं और यदि कोई उन्हें कुमार्गगामी करना चाहे तो वे पथ-भ्रष्ट नहीं होते॥ ७॥
ਘਰ ਮਹਿ ਪੰਚ ਵਰਤਦੇ ਪੰਚੇ ਵੀਚਾਰੀ ॥
घर महि पंच वरतदे पंचे वीचारी ॥
उन ज्ञानी पुरुषों के अन्तर्मन में कामादिक पाँचों निवास करते हैं लेकिन पाँचों ही बुद्धिमता से पेश आते हैं।
ਨਾਨਕ ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਵਸਿ ਨ ਆਵਨੑੀ ਨਾਮਿ ਹਉਮੈ ਮਾਰੀ ॥੮॥੫॥੨੭॥
नानक बिनु सतिगुर वसि न आवन्ही नामि हउमै मारी ॥८॥५॥२७॥
हे नानक ! सच्चे गुरु के बिना कामादिक पाँचों नियंत्रण में नहीं आते। नाम के माध्यम से अहंकार दूर हो जाता हैं ॥८॥५॥२७॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੩ ॥
आसा महला ३ ॥
आसा महला ३ ॥
ਘਰੈ ਅੰਦਰਿ ਸਭੁ ਵਥੁ ਹੈ ਬਾਹਰਿ ਕਿਛੁ ਨਾਹੀ ॥
घरै अंदरि सभु वथु है बाहरि किछु नाही ॥
हे भाई ! तेरे हृदय-घर में ही समस्त पदार्थ हैं, बाहर कुछ भी नहीं मिलता।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਪਾਈਐ ਅੰਤਰਿ ਕਪਟ ਖੁਲਾਹੀ ॥੧॥
गुर परसादी पाईऐ अंतरि कपट खुलाही ॥१॥
गुरु की कृपा से हरेक वस्तु प्राप्त हो जाती है और मन के किवाड़ खुल जाते हैं।॥ १॥
ਸਤਿਗੁਰ ਤੇ ਹਰਿ ਪਾਈਐ ਭਾਈ ॥
सतिगुर ते हरि पाईऐ भाई ॥
हे भाई ! सतिगुरु द्वारा ही भगवान प्राप्त होता है।
ਅੰਤਰਿ ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਹੈ ਪੂਰੈ ਸਤਿਗੁਰਿ ਦੀਆ ਦਿਖਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अंतरि नामु निधानु है पूरै सतिगुरि दीआ दिखाई ॥१॥ रहाउ ॥
मनुष्य के अन्तर्मन में नाम का भण्डार भरा हुआ है, पूर्ण सतिगुरु ने मुझे यह दिखा दिया है॥ १॥ रहाउ ॥
ਹਰਿ ਕਾ ਗਾਹਕੁ ਹੋਵੈ ਸੋ ਲਏ ਪਾਏ ਰਤਨੁ ਵੀਚਾਰਾ ॥
हरि का गाहकु होवै सो लए पाए रतनु वीचारा ॥
जो मनुष्य हरि के नाम का ग्राहक है, वह इसे प्राप्त कर लेता है। लेकिन यह अमूल्य नाम रत्न इन्सान सिमरन द्वारा प्राप्त करता है।
ਅੰਦਰੁ ਖੋਲੈ ਦਿਬ ਦਿਸਟਿ ਦੇਖੈ ਮੁਕਤਿ ਭੰਡਾਰਾ ॥੨॥
अंदरु खोलै दिब दिसटि देखै मुकति भंडारा ॥२॥
वह अपने अन्तर्मन को खोलता है और दिव्य-दृष्टि से मुक्ति के भण्डार को देखता है॥ २॥
ਅੰਦਰਿ ਮਹਲ ਅਨੇਕ ਹਹਿ ਜੀਉ ਕਰੇ ਵਸੇਰਾ ॥
अंदरि महल अनेक हहि जीउ करे वसेरा ॥
शरीर के भीतर अनेक महल हैं और आत्मा उनके भीतर बसेरा करती है।
ਮਨ ਚਿੰਦਿਆ ਫਲੁ ਪਾਇਸੀ ਫਿਰਿ ਹੋਇ ਨ ਫੇਰਾ ॥੩॥
मन चिंदिआ फलु पाइसी फिरि होइ न फेरा ॥३॥
वह अपना मनोवांछित फल प्राप्त कर लेता है और दोबारा जन्म-मरण के बन्धन में नहीं पड़ता॥ ३॥
ਪਾਰਖੀਆ ਵਥੁ ਸਮਾਲਿ ਲਈ ਗੁਰ ਸੋਝੀ ਹੋਈ ॥
पारखीआ वथु समालि लई गुर सोझी होई ॥
परख करने वाले लोग गुरु से नाम रूपी वस्तु प्राप्त करते हैं और उन्हें नाम रूपी वस्तु की सूझ गुरु से हुई है।
ਨਾਮੁ ਪਦਾਰਥੁ ਅਮੁਲੁ ਸਾ ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਾਵੈ ਕੋਈ ॥੪॥
नामु पदारथु अमुलु सा गुरमुखि पावै कोई ॥४॥
नाम-पदार्थ बड़ा अनमोल है, गुरु के माध्यम से कोई विरला पुरुष ही इसे पाता है॥ ४॥
ਬਾਹਰੁ ਭਾਲੇ ਸੁ ਕਿਆ ਲਹੈ ਵਥੁ ਘਰੈ ਅੰਦਰਿ ਭਾਈ ॥
बाहरु भाले सु किआ लहै वथु घरै अंदरि भाई ॥
हे मेरे भाई ! जो बाहर ढूंढता है, उसे क्या मिल सकता है? क्योंकि नाम-भण्डार मनुष्य के हृदय-घर में ही है।
ਭਰਮੇ ਭੂਲਾ ਸਭੁ ਜਗੁ ਫਿਰੈ ਮਨਮੁਖਿ ਪਤਿ ਗਵਾਈ ॥੫॥
भरमे भूला सभु जगु फिरै मनमुखि पति गवाई ॥५॥
सारा जगत भ्रम में कुमार्गगामी हुआ भटकता है। स्वेच्छाचारी मनुष्य अपना मान-सम्मान गंवा लेते हैं।॥ ५॥
ਘਰੁ ਦਰੁ ਛੋਡੇ ਆਪਣਾ ਪਰ ਘਰਿ ਝੂਠਾ ਜਾਈ ॥
घरु दरु छोडे आपणा पर घरि झूठा जाई ॥
झूठा मनुष्य अपना घर-द्वार छोड़कर पराए घर में जाता है।
ਚੋਰੈ ਵਾਂਗੂ ਪਕੜੀਐ ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਚੋਟਾ ਖਾਈ ॥੬॥
चोरै वांगू पकड़ीऐ बिनु नावै चोटा खाई ॥६॥
जहाँ वह चोर की भाँति पकड़ लिया जाता है और प्रभु-नाम के बिना वह चोटें खाता है॥ ६॥
ਜਿਨੑੀ ਘਰੁ ਜਾਤਾ ਆਪਣਾ ਸੇ ਸੁਖੀਏ ਭਾਈ ॥
जिन्ही घरु जाता आपणा से सुखीए भाई ॥
हे मेरे भाई ! जो मनुष्य अपने हृदय घर को समझता है, वह सुखी जीवन व्यतीत करता है।
ਅੰਤਰਿ ਬ੍ਰਹਮੁ ਪਛਾਣਿਆ ਗੁਰ ਕੀ ਵਡਿਆਈ ॥੭॥
अंतरि ब्रहमु पछाणिआ गुर की वडिआई ॥७॥
गुरु की महानता से वह अपने अन्तर्मन में ब्रह्म को पहचान लेता है॥ ७ ॥
ਆਪੇ ਦਾਨੁ ਕਰੇ ਕਿਸੁ ਆਖੀਐ ਆਪੇ ਦੇਇ ਬੁਝਾਈ ॥
आपे दानु करे किसु आखीऐ आपे देइ बुझाई ॥
भगवान स्वयं ही नाम दान करता है और स्वयं ही सूझ प्रदान करता है। फिर उसके अलावा मैं किसके समक्ष विनती करूँ ? यह सूझ प्रभु स्वयं ही देता है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇ ਤੂੰ ਦਰਿ ਸਚੈ ਸੋਭਾ ਪਾਈ ॥੮॥੬॥੨੮॥
नानक नामु धिआइ तूं दरि सचै सोभा पाई ॥८॥६॥२८॥
हे नानक ! तू नाम का ध्यान कर, इस तरह तुझे सत्य के दरबार में शोभा प्राप्त होगी॥ ८॥ ६॥ २८ ॥