Hindi Page 427

ਏ ਮਨ ਰੂੜ੍ਹ੍ਹੇ ਰੰਗੁਲੇ ਤੂੰ ਸਚਾ ਰੰਗੁ ਚੜਾਇ ॥
ए मन रूड़्हे रंगुले तूं सचा रंगु चड़ाइ ॥
हे मेरे सुन्दर, रंगीले मन ! तू सच्चा रंग अपने ऊपर चढ़ा।

ਰੂੜੀ ਬਾਣੀ ਜੇ ਰਪੈ ਨਾ ਇਹੁ ਰੰਗੁ ਲਹੈ ਨ ਜਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
रूड़ी बाणी जे रपै ना इहु रंगु लहै न जाइ ॥१॥ रहाउ ॥
यदि तुम सुन्दर गुरु-वाणी से रंग जाओ तो यह रंग कभी नहीं उतरेगा और न ही कहीं जाएगा ॥ १॥ रहाउ ॥

ਹਮ ਨੀਚ ਮੈਲੇ ਅਤਿ ਅਭਿਮਾਨੀ ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਵਿਕਾਰ ॥
हम नीच मैले अति अभिमानी दूजै भाइ विकार ॥
हम जीव नीच, मैले एवं अति अभिमानी हैं और द्वैतभाव के कारण विकारों में फँसे हुए हैं।

ਗੁਰਿ ਪਾਰਸਿ ਮਿਲਿਐ ਕੰਚਨੁ ਹੋਏ ਨਿਰਮਲ ਜੋਤਿ ਅਪਾਰ ॥੨॥
गुरि पारसि मिलिऐ कंचनु होए निरमल जोति अपार ॥२॥
गुरु पारस से मिलकर हम सोना बन जाते हैं और हमारे भीतर अपार प्रभु की निर्मल ज्योति उदित हो जाती है।॥ २॥

ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਕੋਇ ਨ ਰੰਗੀਐ ਗੁਰਿ ਮਿਲਿਐ ਰੰਗੁ ਚੜਾਉ ॥
बिनु गुर कोइ न रंगीऐ गुरि मिलिऐ रंगु चड़ाउ ॥
गुरु के बिना कोई भी मनुष्य प्रभु प्रेम में नहीं रंगा गया। गुरु से मिलकर प्रभु का रंग चढ़ता है।

ਗੁਰ ਕੈ ਭੈ ਭਾਇ ਜੋ ਰਤੇ ਸਿਫਤੀ ਸਚਿ ਸਮਾਉ ॥੩॥
गुर कै भै भाइ जो रते सिफती सचि समाउ ॥३॥
जो मनुष्य गुरु के भय एवं स्नेह में अनुरक्त है, वे प्रभु की कीर्ति द्वारा सत्य में समा जाते हैं।॥ ३॥

ਭੈ ਬਿਨੁ ਲਾਗਿ ਨ ਲਗਈ ਨਾ ਮਨੁ ਨਿਰਮਲੁ ਹੋਇ ॥
भै बिनु लागि न लगई ना मनु निरमलु होइ ॥
प्रभु भय के बिना प्रेम उत्पन्न नहीं होता और न ही मन निर्मल होता है।

ਬਿਨੁ ਭੈ ਕਰਮ ਕਮਾਵਣੇ ਝੂਠੇ ਠਾਉ ਨ ਕੋਇ ॥੪॥
बिनु भै करम कमावणे झूठे ठाउ न कोइ ॥४॥
भय के बिना कर्मकाण्ड करने झूठे हैं और प्राणी को कोई सुख का स्थान नहीं मिलता॥ ४॥

ਜਿਸ ਨੋ ਆਪੇ ਰੰਗੇ ਸੁ ਰਪਸੀ ਸਤਸੰਗਤਿ ਮਿਲਾਇ ॥
जिस नो आपे रंगे सु रपसी सतसंगति मिलाइ ॥
जिसे प्रभु स्वयं रंग देता है, वही असल में रंगा जाता है और वह सत्संगति में मिल जाता है।

ਪੂਰੇ ਗੁਰ ਤੇ ਸਤਸੰਗਤਿ ਊਪਜੈ ਸਹਜੇ ਸਚਿ ਸੁਭਾਇ ॥੫॥
पूरे गुर ते सतसंगति ऊपजै सहजे सचि सुभाइ ॥५॥
पूर्ण गुरु द्वारा ही सत्संगति प्राप्त होती है और मनुष्य सहज ही सत्य से मिल जाता है॥ ५॥

ਬਿਨੁ ਸੰਗਤੀ ਸਭਿ ਐਸੇ ਰਹਹਿ ਜੈਸੇ ਪਸੁ ਢੋਰ ॥
बिनु संगती सभि ऐसे रहहि जैसे पसु ढोर ॥
सत्संगति के बिना मनुष्य ऐसे हैं जैसे पशु ढोर इत्यादि रहते हैं।

ਜਿਨੑਿ ਕੀਤੇ ਤਿਸੈ ਨ ਜਾਣਨੑੀ ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਸਭਿ ਚੋਰ ॥੬॥
जिन्हि कीते तिसै न जाणन्ही बिनु नावै सभि चोर ॥६॥
जिस परमात्मा ने उन्हें पैदा किया है, वे उसे नहीं जानते, नाम के बिना सभी प्रभु के चोर हैं। ६॥

ਇਕਿ ਗੁਣ ਵਿਹਾਝਹਿ ਅਉਗਣ ਵਿਕਣਹਿ ਗੁਰ ਕੈ ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਇ ॥
इकि गुण विहाझहि अउगण विकणहि गुर कै सहजि सुभाइ ॥
गुरु के प्रदान किए हुए सहज-स्वभाव से ही कई मनुष्य गुणों को खरीदते एवं अवगुणों को बेचते हैं।

ਗੁਰ ਸੇਵਾ ਤੇ ਨਾਉ ਪਾਇਆ ਵੁਠਾ ਅੰਦਰਿ ਆਇ ॥੭॥
गुर सेवा ते नाउ पाइआ वुठा अंदरि आइ ॥७॥
गुरु की श्रद्धापूर्वक सेवा करने से ही नाम प्राप्त होता है और प्रभु आकर हृदय में आ बसता है॥ ७॥

ਸਭਨਾ ਕਾ ਦਾਤਾ ਏਕੁ ਹੈ ਸਿਰਿ ਧੰਧੈ ਲਾਇ ॥
सभना का दाता एकु है सिरि धंधै लाइ ॥
एक ईश्वर ही सारी सृष्टि का दाता है, वह हरेक जीव को कामकाज में लगाता है।

ਨਾਨਕ ਨਾਮੇ ਲਾਇ ਸਵਾਰਿਅਨੁ ਸਬਦੇ ਲਏ ਮਿਲਾਇ ॥੮॥੯॥੩੧॥
नानक नामे लाइ सवारिअनु सबदे लए मिलाइ ॥८॥९॥३१॥
हे नानक ! प्रभु अपने नाम के साथ लगाकर मनुष्य का जीवन संवार देता है और गुरु के शब्द द्वारा उसे अपने साथ मिला लेता है॥ ८॥ ६॥ ३१॥

ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੩ ॥
आसा महला ३ ॥
आसा महला ३ ॥

ਸਭ ਨਾਵੈ ਨੋ ਲੋਚਦੀ ਜਿਸੁ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰੇ ਸੋ ਪਾਏ ॥
सभ नावै नो लोचदी जिसु क्रिपा करे सो पाए ॥
सारी ही दुनिया नाम की अभिलाषा करती है परन्तु जिस पर भगवान कृपा करता है, उसे ही नाम प्राप्त होता है।

ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਸਭੁ ਦੁਖੁ ਹੈ ਸੁਖੁ ਤਿਸੁ ਜਿਸੁ ਮੰਨਿ ਵਸਾਏ ॥੧॥
बिनु नावै सभु दुखु है सुखु तिसु जिसु मंनि वसाए ॥१॥
प्रभु-नाम के बिना सभी दु:खी हैं। लेकिन सुखी वही है, जिसके मन में प्रभु अपना नाम बसा देता है॥ १॥

ਤੂੰ ਬੇਅੰਤੁ ਦਇਆਲੁ ਹੈ ਤੇਰੀ ਸਰਣਾਈ ॥
तूं बेअंतु दइआलु है तेरी सरणाई ॥
हे ईश्वर ! तू बेअंत एवं दयालु है, मैं तेरी शरण में आया हूँ।

ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਤੇ ਪਾਈਐ ਨਾਮੇ ਵਡਿਆਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुर पूरे ते पाईऐ नामे वडिआई ॥१॥ रहाउ ॥
पूर्ण गुरु के माध्यम से ही प्रभु-नाम की शोभा मिलती है॥ १॥ रहाउ॥

ਅੰਤਰਿ ਬਾਹਰਿ ਏਕੁ ਹੈ ਬਹੁ ਬਿਧਿ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਉਪਾਈ ॥
अंतरि बाहरि एकु है बहु बिधि स्रिसटि उपाई ॥
सब जीवों के भीतर एवं बाहर एक ईश्वर ही विद्यमान है, जिसने अनेक विधियों की सृष्टि उत्पन्न की है।

ਹੁਕਮੇ ਕਾਰ ਕਰਾਇਦਾ ਦੂਜਾ ਕਿਸੁ ਕਹੀਐ ਭਾਈ ॥੨॥
हुकमे कार कराइदा दूजा किसु कहीऐ भाई ॥२॥
हे भाई ! अपने हुक्म अनुसार वह मनुष्य से कार्य करवाता है, दूसरा कौन है जिसका वर्णन किया जाए॥ २॥

ਬੁਝਣਾ ਅਬੁਝਣਾ ਤੁਧੁ ਕੀਆ ਇਹ ਤੇਰੀ ਸਿਰਿ ਕਾਰ ॥
बुझणा अबुझणा तुधु कीआ इह तेरी सिरि कार ॥
हे भगवान ! ज्ञान एवं अज्ञान तेरी रचना है, यह तेरा ही काम है।

ਇਕਨੑਾ ਬਖਸਿਹਿ ਮੇਲਿ ਲੈਹਿ ਇਕਿ ਦਰਗਹ ਮਾਰਿ ਕਢੇ ਕੂੜਿਆਰ ॥੩॥
इकन्हा बखसिहि मेलि लैहि इकि दरगह मारि कढे कूड़िआर ॥३॥
हे ईश्वर ! कईयों को तुम क्षमादान करके अपने साथ मिला लेते हो और कई झूठों को तुम मार-पीट कर अपने दरबार से बाहर निकाल देते हो।॥ ३॥

ਇਕਿ ਧੁਰਿ ਪਵਿਤ ਪਾਵਨ ਹਹਿ ਤੁਧੁ ਨਾਮੇ ਲਾਏ ॥
इकि धुरि पवित पावन हहि तुधु नामे लाए ॥
कई धुर (आदि) से ही पवित्र एवं पावन हैं, उनको तुमने अपने नाम स्मरण में लगाया हुआ है।

ਗੁਰ ਸੇਵਾ ਤੇ ਸੁਖੁ ਊਪਜੈ ਸਚੈ ਸਬਦਿ ਬੁਝਾਏ ॥੪॥
गुर सेवा ते सुखु ऊपजै सचै सबदि बुझाए ॥४॥
गुरु की सेवा से ही सुख उत्पन्न होता है और सत्य नाम द्वारा मनुष्य प्रभु को समझ लेता है। ॥४॥

ਇਕਿ ਕੁਚਲ ਕੁਚੀਲ ਵਿਖਲੀ ਪਤੇ ਨਾਵਹੁ ਆਪਿ ਖੁਆਏ ॥
इकि कुचल कुचील विखली पते नावहु आपि खुआए ॥
कई कुटिल चाल वाले, मलिन एवं चरित्रहीन जीव हैं, उन्हें भगवान ने स्वयं अपने नाम से विहीन किया हुआ है।

ਨਾ ਓਨ ਸਿਧਿ ਨ ਬੁਧਿ ਹੈ ਨ ਸੰਜਮੀ ਫਿਰਹਿ ਉਤਵਤਾਏ ॥੫॥
ना ओन सिधि न बुधि है न संजमी फिरहि उतवताए ॥५॥
उनके पास न सिद्धि है, न सुबुद्धि है, न ही वह संयमी हैं। वह डावांडोल होकर भटकते रहते हैं।॥५॥

ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਜਿਸੁ ਆਪਣੀ ਤਿਸ ਨੋ ਭਾਵਨੀ ਲਾਏ ॥
नदरि करे जिसु आपणी तिस नो भावनी लाए ॥
जिस पर ईश्वर अपनी कृपा-दृष्टि करता है, उसके भीतर नाम की श्रद्धा एवं आस्था उत्पन्न हो जाती है।

ਸਤੁ ਸੰਤੋਖੁ ਇਹ ਸੰਜਮੀ ਮਨੁ ਨਿਰਮਲੁ ਸਬਦੁ ਸੁਣਾਏ ॥੬॥
सतु संतोखु इह संजमी मनु निरमलु सबदु सुणाए ॥६॥
ऐसा मनुष्य निर्मल शब्द को सुनकर सत्यवादी, संतोषी एवं संयमी बन जाता है। ॥६॥

ਲੇਖਾ ਪੜਿ ਨ ਪਹੂਚੀਐ ਕਥਿ ਕਹਣੈ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਇ ॥
लेखा पड़ि न पहूचीऐ कथि कहणै अंतु न पाइ ॥
प्रभु का लेखा-जोखा पढ़ने से मनुष्य उसके निष्कर्ष तक नहीं पहुँच सकता। कथन एवं वर्णन द्वारा उसका अन्त नहीं मिलता।

ਗੁਰ ਤੇ ਕੀਮਤਿ ਪਾਈਐ ਸਚਿ ਸਬਦਿ ਸੋਝੀ ਪਾਇ ॥੭॥
गुर ते कीमति पाईऐ सचि सबदि सोझी पाइ ॥७॥
गुरु के माध्यम से प्रभु की कद्र का पता लगता है और सच्चे शब्द द्वारा उसकी सूझ प्राप्त होती है। ॥७॥

ਇਹੁ ਮਨੁ ਦੇਹੀ ਸੋਧਿ ਤੂੰ ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਵੀਚਾਰਿ ॥
इहु मनु देही सोधि तूं गुर सबदि वीचारि ॥
हे भाई ! गुरु के शब्द द्वारा तू अपने इस मन एवं शरीर का शोधन कर ले।

ਨਾਨਕ ਇਸੁ ਦੇਹੀ ਵਿਚਿ ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਹੈ ਪਾਈਐ ਗੁਰ ਕੈ ਹੇਤਿ ਅਪਾਰਿ ॥੮॥੧੦॥੩੨॥
नानक इसु देही विचि नामु निधानु है पाईऐ गुर कै हेति अपारि ॥८॥१०॥३२॥
हे नानक ! इस शरीर के भीतर नाम का खजाना विद्यमान है, जो गुरु की अपार कृपा द्वारा ही प्राप्त होता है। ॥८॥१०॥ ३२॥

ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੩ ॥
आसा महला ३ ॥
आसा महला ३ ॥

ਸਚਿ ਰਤੀਆ ਸੋਹਾਗਣੀ ਜਿਨਾ ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਸੀਗਾਰਿ ॥
सचि रतीआ सोहागणी जिना गुर कै सबदि सीगारि ॥
जिन सुहागिनों ने गुरु के शब्द द्वारा अपने जीवन का श्रृंगार किया हुआ है, वे सत्य में लीन रहती हैं।

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