Hindi Page 459

ਚਰਣ ਕਮਲ ਸੰਗਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ਕਲਮਲ ਪਾਪ ਟਰੇ ॥
चरण कमल संगि प्रीति कलमल पाप टरे ॥
प्रभु के चरण-कमल के साथ प्रेम करने से बुराइयाँ एवं पाप नष्ट हो चुके हैं।

ਦੂਖ ਭੂਖ ਦਾਰਿਦ੍ਰ ਨਾਠੇ ਪ੍ਰਗਟੁ ਮਗੁ ਦਿਖਾਇਆ ॥
दूख भूख दारिद्र नाठे प्रगटु मगु दिखाइआ ॥
फिर दुःख, भूख एवं दारिद्रता भाग गए हैं और सन्मार्ग प्रत्यक्ष दिखाई दिया है।

ਮਿਲਿ ਸਾਧਸੰਗੇ ਨਾਮ ਰੰਗੇ ਮਨਿ ਲੋੜੀਦਾ ਪਾਇਆ ॥
मिलि साधसंगे नाम रंगे मनि लोड़ीदा पाइआ ॥
सत्संगति में सम्मिलित होकर प्रभु-नाम से रंग गया हूँ और मेरी मनोकामना पूरी हो गई है।

ਹਰਿ ਦੇਖਿ ਦਰਸਨੁ ਇਛ ਪੁੰਨੀ ਕੁਲ ਸੰਬੂਹਾ ਸਭਿ ਤਰੇ ॥
हरि देखि दरसनु इछ पुंनी कुल स्मबूहा सभि तरे ॥
हरि के दर्शन करके मेरी इच्छा पूरी हो गई है और समस्त वंशावलि भी पार हो गई है।

ਦਿਨਸੁ ਰੈਣਿ ਅਨੰਦ ਅਨਦਿਨੁ ਸਿਮਰੰਤ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਹਰੇ ॥੪॥੬॥੯॥
दिनसु रैणि अनंद अनदिनु सिमरंत नानक हरि हरे ॥४॥६॥९॥
हे नानक ! दिन-रात सदैव ही हरि-परमेश्वर का भजन करने से आनंद बना रहता है॥४॥६॥९॥

ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ਛੰਤ ਘਰੁ ੭
आसा महला ५ छंत घरु ७
आसा महला ५ छंत घरु ७

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।

ਸਲੋਕੁ ॥
सलोकु ॥
श्लोक॥

ਸੁਭ ਚਿੰਤਨ ਗੋਬਿੰਦ ਰਮਣ ਨਿਰਮਲ ਸਾਧੂ ਸੰਗ ॥
सुभ चिंतन गोबिंद रमण निरमल साधू संग ॥
मैं शुभ चिंतन करता रहूँ, गोविंद का नाम याद करता रहूँ और साधु की निर्मल संगति करता रहूँ।

ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਨ ਵਿਸਰਉ ਇਕ ਘੜੀ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਭਗਵੰਤ ॥੧॥
नानक नामु न विसरउ इक घड़ी करि किरपा भगवंत ॥१॥
नानक की प्रार्थना है कि हे भगवान ! मुझ पर ऐसी कृपा करो कि मैं एक क्षण भर के लिए भी तेरा नाम न भूलूं।॥ १॥

ਛੰਤ ॥
छंत ॥
छंद॥

ਭਿੰਨੀ ਰੈਨੜੀਐ ਚਾਮਕਨਿ ਤਾਰੇ ॥
भिंनी रैनड़ीऐ चामकनि तारे ॥
जब ओस से भीगी हुई रात्रि में तारे चमकते हैं

ਜਾਗਹਿ ਸੰਤ ਜਨਾ ਮੇਰੇ ਰਾਮ ਪਿਆਰੇ ॥
जागहि संत जना मेरे राम पिआरे ॥
तो मेरे राम के प्यारे संतजन इस सुहावनी रात्रि को जागते रहते हैं।

ਰਾਮ ਪਿਆਰੇ ਸਦਾ ਜਾਗਹਿ ਨਾਮੁ ਸਿਮਰਹਿ ਅਨਦਿਨੋ ॥
राम पिआरे सदा जागहि नामु सिमरहि अनदिनो ॥
वे राम के प्यारे संतजन सदैव ही जागते हैं और नित्य ही नाम को याद करते रहते हैं।

ਚਰਣ ਕਮਲ ਧਿਆਨੁ ਹਿਰਦੈ ਪ੍ਰਭ ਬਿਸਰੁ ਨਾਹੀ ਇਕੁ ਖਿਨੋ ॥
चरण कमल धिआनु हिरदै प्रभ बिसरु नाही इकु खिनो ॥
वे अपने हृदय में प्रभु के चरण-कमल का ध्यान करते हैं और एक क्षण भर के लिए भी उसे विस्मृत नहीं करते।

ਤਜਿ ਮਾਨੁ ਮੋਹੁ ਬਿਕਾਰੁ ਮਨ ਕਾ ਕਲਮਲਾ ਦੁਖ ਜਾਰੇ ॥
तजि मानु मोहु बिकारु मन का कलमला दुख जारे ॥
वे मन का अहंकार, मोह, विकार इत्यादि बुराइयों को त्याग कर दु:खों को नाश कर देते हैं।

ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਸਦਾ ਜਾਗਹਿ ਹਰਿ ਦਾਸ ਸੰਤ ਪਿਆਰੇ ॥੧॥
बिनवंति नानक सदा जागहि हरि दास संत पिआरे ॥१॥
नानक वन्दना करता है कि हरि के दास प्यारे संतजन सदैव ही जागते रहते हैं॥ १ ॥

ਮੇਰੀ ਸੇਜੜੀਐ ਆਡੰਬਰੁ ਬਣਿਆ ॥
मेरी सेजड़ीऐ आड्मबरु बणिआ ॥
मेरे मन के सेज की भव्य सजावट हो गई है।

ਮਨਿ ਅਨਦੁ ਭਇਆ ਪ੍ਰਭੁ ਆਵਤ ਸੁਣਿਆ ॥
मनि अनदु भइआ प्रभु आवत सुणिआ ॥
जब से मैंने सुना है कि मेरा प्रभु आ रहा है तो मेरे मन में आनंद उत्पन्न हो गया है।

ਪ੍ਰਭ ਮਿਲੇ ਸੁਆਮੀ ਸੁਖਹ ਗਾਮੀ ਚਾਵ ਮੰਗਲ ਰਸ ਭਰੇ ॥
प्रभ मिले सुआमी सुखह गामी चाव मंगल रस भरे ॥
स्वामी प्रभु को मिलकर मैं सुखी हो गई हूँ और चाव, मंगल के रस से भर गई हूँ।

ਅੰਗ ਸੰਗਿ ਲਾਗੇ ਦੂਖ ਭਾਗੇ ਪ੍ਰਾਣ ਮਨ ਤਨ ਸਭਿ ਹਰੇ ॥
अंग संगि लागे दूख भागे प्राण मन तन सभि हरे ॥
प्रभु मेरे अंग-संग लग गया है, जिससे दुःख भाग गए हैं और मेरा मन-तन फूल की तरह खिल गया है।

ਮਨ ਇਛ ਪਾਈ ਪ੍ਰਭ ਧਿਆਈ ਸੰਜੋਗੁ ਸਾਹਾ ਸੁਭ ਗਣਿਆ ॥
मन इछ पाई प्रभ धिआई संजोगु साहा सुभ गणिआ ॥
प्रभु का ध्यान करने से मेरी मनोकामना पूरी हो गई है, मैं अपने विवाह संयोग के समय को शुभ मानती हूँ।

ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਮਿਲੇ ਸ੍ਰੀਧਰ ਸਗਲ ਆਨੰਦ ਰਸੁ ਬਣਿਆ ॥੨॥
बिनवंति नानक मिले स्रीधर सगल आनंद रसु बणिआ ॥२॥
नानक वन्दना करता है कि श्रीधर प्रभु से मिलकर मुझे समस्त खुशियों का रस प्राप्त हो गया है॥ २॥

ਮਿਲਿ ਸਖੀਆ ਪੁਛਹਿ ਕਹੁ ਕੰਤ ਨੀਸਾਣੀ ॥
मिलि सखीआ पुछहि कहु कंत नीसाणी ॥
मेरी सखियाँ मुझसे मिलकर पूछती हैं कि हमें अपने प्रियतम-पति की कोई निशानी बताओ।

ਰਸਿ ਪ੍ਰੇਮ ਭਰੀ ਕਛੁ ਬੋਲਿ ਨ ਜਾਣੀ ॥
रसि प्रेम भरी कछु बोलि न जाणी ॥
उसके प्रेम के रस से मैं इतनी भर गई थी कि मैं कुछ भी कह न सकी।

ਗੁਣ ਗੂੜ ਗੁਪਤ ਅਪਾਰ ਕਰਤੇ ਨਿਗਮ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਵਹੇ ॥
गुण गूड़ गुपत अपार करते निगम अंतु न पावहे ॥
जगत-रचयिता प्रभु के गुण गहन, गुप्त एवं अपार हैं और वेद भी उसका अन्त नहीं पा सकते।

ਭਗਤਿ ਭਾਇ ਧਿਆਇ ਸੁਆਮੀ ਸਦਾ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਵਹੇ ॥
भगति भाइ धिआइ सुआमी सदा हरि गुण गावहे ॥
मैं भक्ति-भाव से ज्ञान से पूर्ण होने के कारण मैं अपने प्रभु को अच्छी लगने लग गई हूँ।

ਸਗਲ ਗੁਣ ਸੁਗਿਆਨ ਪੂਰਨ ਆਪਣੇ ਪ੍ਰਭ ਭਾਣੀ ॥
सगल गुण सुगिआन पूरन आपणे प्रभ भाणी ॥
सभी गुणों और आध्यात्मिक ज्ञान से भरी हुई , मैं अपने भगवान को प्रसन्न हो गई हूँ।

ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਰੰਗਿ ਰਾਤੀ ਪ੍ਰੇਮ ਸਹਜਿ ਸਮਾਣੀ ॥੩॥
बिनवंति नानक रंगि राती प्रेम सहजि समाणी ॥३॥
नानक विनती करता है कि वह प्रभु के प्रेम रंग में रंगी हुई है और सहज ही उसमें समा गई है॥ ३॥

ਸੁਖ ਸੋਹਿਲੜੇ ਹਰਿ ਗਾਵਣ ਲਾਗੇ ॥
सुख सोहिलड़े हरि गावण लागे ॥
जब मैं भगवान की खुशी के गीत गाने लग गया तो

ਸਾਜਨ ਸਰਸਿਅੜੇ ਦੁਖ ਦੁਸਮਨ ਭਾਗੇ ॥
साजन सरसिअड़े दुख दुसमन भागे ॥
मेरे सज्जन-सत्य, संतोष, दया एवं धर्म इत्यादि प्रसन्न हो गए मेरे दुश्मन-काम, क्रोध, लोभ, मोह इत्यादि दुःख भाग गए।

ਸੁਖ ਸਹਜ ਸਰਸੇ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਰਹਸੇ ਪ੍ਰਭਿ ਆਪਿ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰੀਆ ॥
सुख सहज सरसे हरि नामि रहसे प्रभि आपि किरपा धारीआ ॥
मेरी खुशी एवं सुख बढ़ गए, मैं प्रभु के नाम में आनंद प्राप्त करने लगा क्योंकि भगवान ने स्वयं मुझ पर कृपा की है।

ਹਰਿ ਚਰਣ ਲਾਗੇ ਸਦਾ ਜਾਗੇ ਮਿਲੇ ਪ੍ਰਭ ਬਨਵਾਰੀਆ ॥
हरि चरण लागे सदा जागे मिले प्रभ बनवारीआ ॥
मैं हरि के सुन्दर चरणों से जुड़ गया हूँ और सदा सावधान रहने के कारण मैं बनवारी प्रभु से मिल गया हूँ।

ਸੁਭ ਦਿਵਸ ਆਏ ਸਹਜਿ ਪਾਏ ਸਗਲ ਨਿਧਿ ਪ੍ਰਭ ਪਾਗੇ ॥
सुभ दिवस आए सहजि पाए सगल निधि प्रभ पागे ॥
अब शुभ दिन आ गए हैं और मैंने सहज सुख प्राप्त कर लिया है। प्रभु के चरणों की सेवा करने से मुझे निधियाँ मिल गई हैं।

ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਸਰਣਿ ਸੁਆਮੀ ਸਦਾ ਹਰਿ ਜਨ ਤਾਗੇ ॥੪॥੧॥੧੦॥
बिनवंति नानक सरणि सुआमी सदा हरि जन तागे ॥४॥१॥१०॥
नानक प्रार्थना करता है कि हे जगत के स्वामी ! भक्तजन सदैव ही तेरी शरण चाहते हैं॥ ४ ॥ १ ॥ १० ॥

ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
आसा महला ५ ॥

ਉਠਿ ਵੰਞੁ ਵਟਾਊੜਿਆ ਤੈ ਕਿਆ ਚਿਰੁ ਲਾਇਆ ॥
उठि वंञु वटाऊड़िआ तै किआ चिरु लाइआ ॥
हे पथिक ! उठ और यहाँ से चल दे, तू देरी क्यों कर रहा है ?

ਮੁਹਲਤਿ ਪੁੰਨੜੀਆ ਕਿਤੁ ਕੂੜਿ ਲੋਭਾਇਆ ॥
मुहलति पुंनड़ीआ कितु कूड़ि लोभाइआ ॥
तेरे जीवन का नियत समय पूरा हो गया है, फिर तुम झूठे लोभ में क्यों फंसे हुए हो ?”

ਕੂੜੇ ਲੁਭਾਇਆ ਧੋਹੁ ਮਾਇਆ ਕਰਹਿ ਪਾਪ ਅਮਿਤਿਆ ॥
कूड़े लुभाइआ धोहु माइआ करहि पाप अमितिआ ॥
झूठे लोभ में फँस कर तुम माया के छल के कारण असंख्य पाप करते जा रहे हो।

ਤਨੁ ਭਸਮ ਢੇਰੀ ਜਮਹਿ ਹੇਰੀ ਕਾਲਿ ਬਪੁੜੈ ਜਿਤਿਆ ॥
तनु भसम ढेरी जमहि हेरी कालि बपुड़ै जितिआ ॥
यह तन तो भस्म की ढेरी है जिस पर यम ने दृष्टि कर ली है तथा काल ने बेचारे प्राणी को जीत लिया है।

error: Content is protected !!