ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਆਸਾ ਬਾਣੀ ਸ੍ਰੀ ਨਾਮਦੇਉ ਜੀ ਕੀ
आसा बाणी स्री नामदेउ जी की
आसा बाणी श्री नामदेउ जी की
ਏਕ ਅਨੇਕ ਬਿਆਪਕ ਪੂਰਕ ਜਤ ਦੇਖਉ ਤਤ ਸੋਈ ॥
एक अनेक बिआपक पूरक जत देखउ तत सोई ॥
एक ईश्वर ही अनेक रूपों में सर्वव्यापक है और जिधर भी दृष्टि जाती है, उधर ही प्रभु का प्रसार दिखाई देता है।
ਮਾਇਆ ਚਿਤ੍ਰ ਬਚਿਤ੍ਰ ਬਿਮੋਹਿਤ ਬਿਰਲਾ ਬੂਝੈ ਕੋਈ ॥੧॥
माइआ चित्र बचित्र बिमोहित बिरला बूझै कोई ॥१॥
सारी दुनिया को आकर्षित करने वाली माया का रूप बड़ा विचित्र है और इसे कोई विरला मनुष्य ही समझता है।
ਸਭੁ ਗੋਬਿੰਦੁ ਹੈ ਸਭੁ ਗੋਬਿੰਦੁ ਹੈ ਗੋਬਿੰਦ ਬਿਨੁ ਨਹੀ ਕੋਈ ॥
सभु गोबिंदु है सभु गोबिंदु है गोबिंद बिनु नही कोई ॥
जगत में सब कुछ गोविन्द ही गोविन्द है तथा गोबिन्द के बिना कुछ भी नहीं।
ਸੂਤੁ ਏਕੁ ਮਣਿ ਸਤ ਸਹੰਸ ਜੈਸੇ ਓਤਿ ਪੋਤਿ ਪ੍ਰਭੁ ਸੋਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सूतु एकु मणि सत सहंस जैसे ओति पोति प्रभु सोई ॥१॥ रहाउ ॥
एक सूत्र में जैसे सैंकड़ों एवं हजारों मणियाँ पिरोई होती हैं वैसे ही प्रभु ने संसार को ताने-बाने की तरह पिरोया हुआ है॥ १॥ रहाउ॥
ਜਲ ਤਰੰਗ ਅਰੁ ਫੇਨ ਬੁਦਬੁਦਾ ਜਲ ਤੇ ਭਿੰਨ ਨ ਹੋਈ ॥
जल तरंग अरु फेन बुदबुदा जल ते भिंन न होई ॥
जैसे जल तरंगें, झाग एवं बुलबुले जल से अलग नहीं होते
ਇਹੁ ਪਰਪੰਚੁ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਕੀ ਲੀਲਾ ਬਿਚਰਤ ਆਨ ਨ ਹੋਈ ॥੨॥
इहु परपंचु पारब्रहम की लीला बिचरत आन न होई ॥२॥
वैसे ही यह प्रपंच सारी सृष्टि परब्रह्म की एक लीला है। विचार करने पर मनुष्य इसे अलग नहीं पाता॥ २॥
ਮਿਥਿਆ ਭਰਮੁ ਅਰੁ ਸੁਪਨ ਮਨੋਰਥ ਸਤਿ ਪਦਾਰਥੁ ਜਾਨਿਆ ॥
मिथिआ भरमु अरु सुपन मनोरथ सति पदारथु जानिआ ॥
मिथ्या भ्रम एवं स्वप्न की वस्तुओं को मनुष्य सत्य पदार्थ समझता है।
ਸੁਕ੍ਰਿਤ ਮਨਸਾ ਗੁਰ ਉਪਦੇਸੀ ਜਾਗਤ ਹੀ ਮਨੁ ਮਾਨਿਆ ॥੩॥
सुक्रित मनसा गुर उपदेसी जागत ही मनु मानिआ ॥३॥
गुरु ने मुझे शुभ कर्म करने की मंशा धारण का उपदेश दिया है और मेरे जाग्रत मन ने इसे स्वीकार कर लिया है॥ ३॥
ਕਹਤ ਨਾਮਦੇਉ ਹਰਿ ਕੀ ਰਚਨਾ ਦੇਖਹੁ ਰਿਦੈ ਬੀਚਾਰੀ ॥
कहत नामदेउ हरि की रचना देखहु रिदै बीचारी ॥
नामदेव जी कहते हैं कि हे भाई ! अपने मन में विचार कर देख लो यह सारी जगत-रचना हरि की रची हुई है।
ਘਟ ਘਟ ਅੰਤਰਿ ਸਰਬ ਨਿਰੰਤਰਿ ਕੇਵਲ ਏਕ ਮੁਰਾਰੀ ॥੪॥੧॥
घट घट अंतरि सरब निरंतरि केवल एक मुरारी ॥४॥१॥
घट-घट में और सभी के भीतर केवल एक मुरारि प्रभु ही मौजूद है॥ ४॥ १॥
ਆਸਾ ॥
आसा ॥
आसा ॥
ਆਨੀਲੇ ਕੁੰਭ ਭਰਾਈਲੇ ਊਦਕ ਠਾਕੁਰ ਕਉ ਇਸਨਾਨੁ ਕਰਉ ॥
आनीले कु्मभ भराईले ऊदक ठाकुर कउ इसनानु करउ ॥
मैं घड़ा लाकर उसे जल से भरकर यदि ठाकुर जी को स्नान कराऊँ तो
ਬਇਆਲੀਸ ਲਖ ਜੀ ਜਲ ਮਹਿ ਹੋਤੇ ਬੀਠਲੁ ਭੈਲਾ ਕਾਇ ਕਰਉ ॥੧॥
बइआलीस लख जी जल महि होते बीठलु भैला काइ करउ ॥१॥
यह स्वीकृत नहीं क्योंकि बयालीस लाख जीव इस जल में रहते हैं, फिर विद्वल भगवान को उस जल से कैसे स्नान करवा सकता हूँ॥ १ ॥
ਜਤ੍ਰ ਜਾਉ ਤਤ ਬੀਠਲੁ ਭੈਲਾ ॥
जत्र जाउ तत बीठलु भैला ॥
जहाँ कहीं भी जाता हूँ, उधर ही विठ्ठल भगवान मौजूद है।
ਮਹਾ ਅਨੰਦ ਕਰੇ ਸਦ ਕੇਲਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
महा अनंद करे सद केला ॥१॥ रहाउ ॥
वह विठ्ठल महा आनंद में सदा लीला करता रहता है।॥ १॥ रहाउ ॥
ਆਨੀਲੇ ਫੂਲ ਪਰੋਈਲੇ ਮਾਲਾ ਠਾਕੁਰ ਕੀ ਹਉ ਪੂਜ ਕਰਉ ॥
आनीले फूल परोईले माला ठाकुर की हउ पूज करउ ॥
यदि मैं फूल लाकर उन्हें माला में पिरोकर ठाकुर जी की पूजा करूँ,
ਪਹਿਲੇ ਬਾਸੁ ਲਈ ਹੈ ਭਵਰਹ ਬੀਠਲ ਭੈਲਾ ਕਾਇ ਕਰਉ ॥੨॥
पहिले बासु लई है भवरह बीठल भैला काइ करउ ॥२॥
क्योंकि पहले उन फूलों से भंवरे ने सुगन्धि ले ली है और वे जूठे हो गए हैं फिर मैं कैसे विठ्ठल भगवान की पूजा कर सकता हूँ॥ २॥
ਆਨੀਲੇ ਦੂਧੁ ਰੀਧਾਈਲੇ ਖੀਰੰ ਠਾਕੁਰ ਕਉ ਨੈਵੇਦੁ ਕਰਉ ॥
आनीले दूधु रीधाईले खीरं ठाकुर कउ नैवेदु करउ ॥
दूध लाकर खीर बनाकर नैवेद्य कैसे अपने ठाकुर को भेंट करूँ ?
ਪਹਿਲੇ ਦੂਧੁ ਬਿਟਾਰਿਓ ਬਛਰੈ ਬੀਠਲੁ ਭੈਲਾ ਕਾਇ ਕਰਉ ॥੩॥
पहिले दूधु बिटारिओ बछरै बीठलु भैला काइ करउ ॥३॥
क्योंकि पहले बछड़े ने दूध को पीकर जूठा कर दिया है, इससे मैं बिठ्ठल को कैसे भोग लगा सकता हूँ॥ ३॥
ਈਭੈ ਬੀਠਲੁ ਊਭੈ ਬੀਠਲੁ ਬੀਠਲ ਬਿਨੁ ਸੰਸਾਰੁ ਨਹੀ ॥
ईभै बीठलु ऊभै बीठलु बीठल बिनु संसारु नही ॥
यहाँ भी विठ्ठल भगवान है, वहाँ भी विठ्ठल भगवान है। बिट्टल के बिना संसार का अस्तित्व नहीं।
ਥਾਨ ਥਨੰਤਰਿ ਨਾਮਾ ਪ੍ਰਣਵੈ ਪੂਰਿ ਰਹਿਓ ਤੂੰ ਸਰਬ ਮਹੀ ॥੪॥੨॥
थान थनंतरि नामा प्रणवै पूरि रहिओ तूं सरब मही ॥४॥२॥
नामदेव प्रार्थना करता है, हे विठ्ठल भगवान ! विश्व के कोने-कोने में हर जगह तू ही सब में बस रहा है॥ ४॥ २॥
ਆਸਾ ॥
आसा ॥
आसा ॥
ਮਨੁ ਮੇਰੋ ਗਜੁ ਜਿਹਬਾ ਮੇਰੀ ਕਾਤੀ ॥
मनु मेरो गजु जिहबा मेरी काती ॥
मेरा मन गज है और जिह्य मेरी कॅची है।
ਮਪਿ ਮਪਿ ਕਾਟਉ ਜਮ ਕੀ ਫਾਸੀ ॥੧॥
मपि मपि काटउ जम की फासी ॥१॥
मैं माप-माप कर कैंची से यम की फांसी को काट रहा हूँ॥ १॥
ਕਹਾ ਕਰਉ ਜਾਤੀ ਕਹ ਕਰਉ ਪਾਤੀ ॥
कहा करउ जाती कह करउ पाती ॥
मैं जाति-पाति को क्या करूँ ?
ਰਾਮ ਕੋ ਨਾਮੁ ਜਪਉ ਦਿਨ ਰਾਤੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
राम को नामु जपउ दिन राती ॥१॥ रहाउ ॥
दिन-रात में तो राम नाम का ही जाप करता रहता हूँ॥ १॥ रहाउ॥
ਰਾਂਗਨਿ ਰਾਂਗਉ ਸੀਵਨਿ ਸੀਵਉ ॥
रांगनि रांगउ सीवनि सीवउ ॥
मैं प्रभु के रंग में अपने आपको रंगता हूँ एवं जीविका हेतु वस्त्रों की सिलाई भी करता रहता हूँ।
ਰਾਮ ਨਾਮ ਬਿਨੁ ਘਰੀਅ ਨ ਜੀਵਉ ॥੨॥
राम नाम बिनु घरीअ न जीवउ ॥२॥
राम नाम के बिना मैं एक घड़ी भर भी जीवित नहीं रह सकता॥ २॥
ਭਗਤਿ ਕਰਉ ਹਰਿ ਕੇ ਗੁਨ ਗਾਵਉ ॥
भगति करउ हरि के गुन गावउ ॥
मैं हरि की भक्ति करता हूँ तथा उसका ही गुणगान करता रहता हूँ।
ਆਠ ਪਹਰ ਅਪਨਾ ਖਸਮੁ ਧਿਆਵਉ ॥੩॥
आठ पहर अपना खसमु धिआवउ ॥३॥
आठ प्रहर मैं अपने मालिक को याद करता रहता हूँ॥ ३॥
ਸੁਇਨੇ ਕੀ ਸੂਈ ਰੁਪੇ ਕਾ ਧਾਗਾ ॥
सुइने की सूई रुपे का धागा ॥
मेरे पास सोने की सुई एवं चांदी का धागा है और
ਨਾਮੇ ਕਾ ਚਿਤੁ ਹਰਿ ਸਉ ਲਾਗਾ ॥੪॥੩॥
नामे का चितु हरि सउ लागा ॥४॥३॥
इस प्रकार नामदेव का चित्त हरि के साथ सिल गया है॥ ४॥ ३ ॥
ਆਸਾ ॥
आसा ॥
आसा ॥
ਸਾਪੁ ਕੁੰਚ ਛੋਡੈ ਬਿਖੁ ਨਹੀ ਛਾਡੈ ॥
सापु कुंच छोडै बिखु नही छाडै ॥
जैसे सॉप अपनी केंचुली तो छोड़ देता है परन्तु अपना विष नहीं छोड़ता।
ਉਦਕ ਮਾਹਿ ਜੈਸੇ ਬਗੁ ਧਿਆਨੁ ਮਾਡੈ ॥੧॥
उदक माहि जैसे बगु धिआनु माडै ॥१॥
जैसे मछलियाँ एवं मेंढक खाने के लिए जल में बगुला समाधि लगाता है। वैसे ही पाखण्डी लोग बाहर से दिखावा भक्तों वाला करते हैं मगर मन से खोटे ही होते हैं।॥ १॥
ਕਾਹੇ ਕਉ ਕੀਜੈ ਧਿਆਨੁ ਜਪੰਨਾ ॥
काहे कउ कीजै धिआनु जपंना ॥
हे भाई ! तुम क्यों ध्यान एवं जाप कर रहे हो ?
ਜਬ ਤੇ ਸੁਧੁ ਨਾਹੀ ਮਨੁ ਅਪਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जब ते सुधु नाही मनु अपना ॥१॥ रहाउ ॥
जबकि तेरा अपना मन ही शुद्ध नहीं (अर्थात् मन अशुद्ध होने पर ध्यान एवं जाप का कोई लाभ नहीं) ॥ १॥ रहाउ॥
ਸਿੰਘਚ ਭੋਜਨੁ ਜੋ ਨਰੁ ਜਾਨੈ ॥
सिंघच भोजनु जो नरु जानै ॥
जो पुरुष सिंह जैसे भोजन खाता है अर्थात् हिंसा एवं लूटमार करके खाता है,
ਐਸੇ ਹੀ ਠਗਦੇਉ ਬਖਾਨੈ ॥੨॥
ऐसे ही ठगदेउ बखानै ॥२॥
ऐसे पुरुष को दुनिया महा ठग कहती है॥ २॥
ਨਾਮੇ ਕੇ ਸੁਆਮੀ ਲਾਹਿ ਲੇ ਝਗਰਾ ॥
नामे के सुआमी लाहि ले झगरा ॥
नामदेव के स्वामी (प्रभु) ने सारा झगड़ा ही निपटा दिया है।