HINDI PAGE 22

ਚਾਰੇ ਅਗਨਿ ਨਿਵਾਰਿ ਮਰੁ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਰਿ ਜਲੁ ਪਾਇ ॥
चारे अगनि निवारि मरु गुरमुखि हरि जलु पाइ ॥
गुरमुख जीव हरि-नाम रुपी जल डाल कर चहु- अग्नि (हिंसा, मोह, क्रोध, लोभ) बुझा देता है

ਅੰਤਰਿ ਕਮਲੁ ਪ੍ਰਗਾਸਿਆ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਭਰਿਆ ਅਘਾਇ ॥
अंतरि कमलु प्रगासिआ अम्रितु भरिआ अघाइ ॥
उसका ह्रदय कमल की भांति खिल उठता है, क्योंकि उनके हृदय में नाम-अमृत भरा हुआ है।

ਨਾਨਕ ਸਤਗੁਰੁ ਮੀਤੁ ਕਰਿ ਸਚੁ ਪਾਵਹਿ ਦਰਗਹ ਜਾਇ ॥੪॥੨੦॥
नानक सतगुरु मीतु करि सचु पावहि दरगह जाइ ॥४॥२०॥ 
गुरु जी कथन करते हैं कि हे जीव ! तू सतगुरु को अपना मित्र बना, जिनकी कृपा से तुम परलोक मैं सुख प्राप्त करोगे ॥ ४ ॥ २०॥

ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ੧ ॥
सिरीरागु महला १ ॥  
सिरीरागु महला १ ॥  

ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਪਹੁ ਪਿਆਰਿਆ ਗੁਰਮਤਿ ਲੇ ਹਰਿ ਬੋਲਿ ॥
हरि हरि जपहु पिआरिआ गुरमति ले हरि बोलि ॥  
हे प्रिय जीव ! हरि–नाम का जाप करो तथा गुरु उपदेश द्वारा प्रभु का नाम-सुमिरन करो।

ਮਨੁ ਸਚ ਕਸਵਟੀ ਲਾਈਐ ਤੁਲੀਐ ਪੂਰੈ ਤੋਲਿ ॥
मनु सच कसवटी लाईऐ तुलीऐ पूरै तोलि ॥
मन को सत्य की कसौटी पर कस कर परमात्मा की यथार्थ तुला पर तोला जाता है।

ਕੀਮਤਿ ਕਿਨੈ ਨ ਪਾਈਐ ਰਿਦ ਮਾਣਕ ਮੋਲਿ ਅਮੋਲਿ ॥੧॥
कीमति किनै न पाईऐ रिद माणक मोलि अमोलि ॥१॥
उस मन की कीमत कही नहीं डाली जा सकती, क्योंकि वह माणिक्य की भाँति शुद्ध है और वह मूल्य से अमूल्य है॥ १॥

ਭਾਈ ਰੇ ਹਰਿ ਹੀਰਾ ਗੁਰ ਮਾਹਿ ॥
भाई रे हरि हीरा गुर माहि ॥ 
हे भाई ! हरि रूपी हीरा गुरु के हृदय में ही देखा जा सकता है।

ਸਤਸੰਗਤਿ ਸਤਗੁਰੁ ਪਾਈਐ ਅਹਿਨਿਸਿ ਸਬਦਿ ਸਲਾਹਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सतसंगति सतगुरु पाईऐ अहिनिसि सबदि सलाहि ॥१॥ रहाउ ॥
उस हीरे को सत्संगति में तथा दिन-रात प्रभु के यशोगान से प्राप्त किया जाता है॥ १॥ रहाउ॥

ਸਚੁ ਵਖਰੁ ਧਨੁ ਰਾਸਿ ਲੈ ਪਾਈਐ ਗੁਰ ਪਰਗਾਸਿ ॥
सचु वखरु धनु रासि लै पाईऐ गुर परगासि ॥ 
हे जिज्ञासु ! श्रद्धा रूपी पूंजी लेकर गुरु के ज्ञान-प्रकाश में सत्य सौदा करो।

ਜਿਉ ਅਗਨਿ ਮਰੈ ਜਲਿ ਪਾਇਐ ਤਿਉ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਦਾਸਨਿ ਦਾਸਿ ॥
जिउ अगनि मरै जलि पाइऐ तिउ त्रिसना दासनि दासि ॥  
जैसे जल डालने से अग्नि बुझ जाती है, वैसे तृष्णाग्नि गुरु-भक्ति रूपी जल से दासों की दास बन जाती है।

ਜਮ ਜੰਦਾਰੁ ਨ ਲਗਈ ਇਉ ਭਉਜਲੁ ਤਰੈ ਤਰਾਸਿ ॥੨॥
जम जंदारु न लगई इउ भउजलु तरै तरासि ॥२॥ 
इससे जीव यमों के दण्ड से बच जाता है और स्वयं भी भवसागर से पार हो जाता है तथा अन्य को भी पार होने में सहायता करता है॥ २॥

ਗੁਰਮੁਖਿ ਕੂੜੁ ਨ ਭਾਵਈ ਸਚਿ ਰਤੇ ਸਚ ਭਾਇ ॥
गुरमुखि कूड़ु न भावई सचि रते सच भाइ ॥ 
गुरु के उन्मुख जीवों को असत्य अच्छा नहीं लगता, वे प्रायः सत्य परमात्मा में लिप्त रहते हैं और सत्य ही उनको भाता है।

ਸਾਕਤ ਸਚੁ ਨ ਭਾਵਈ ਕੂੜੈ ਕੂੜੀ ਪਾਂਇ ॥
साकत सचु न भावई कूड़ै कूड़ी पांइ ॥
शक्ति उपासक (शाक्त) गुरु से विमुख जीव को सत्य नहीं भाता, असत्य की नीव भी असत्य ही होती है।

ਸਚਿ ਰਤੇ ਗੁਰਿ ਮੇਲਿਐ ਸਚੇ ਸਚਿ ਸਮਾਇ ॥੩॥
सचि रते गुरि मेलिऐ सचे सचि समाइ ॥३॥ 
पूर्ण गुरु से मिल कर जो सत्य नाम में रम रहे हैं, वे गुरमुख सत्य होकर सत्य स्वरूप परमात्मा में अभेद हो रहे हैं।॥ ३॥

ਮਨ ਮਹਿ ਮਾਣਕੁ ਲਾਲੁ ਨਾਮੁ ਰਤਨੁ ਪਦਾਰਥੁ ਹੀਰੁ ॥
मन महि माणकु लालु नामु रतनु पदारथु हीरु ॥
मन में माणिक्य, लाल, हीरे, रत्न के तुल्य हरि-नाम पदार्थ विद्यमान है।

ਸਚੁ ਵਖਰੁ ਧਨੁ ਨਾਮੁ ਹੈ ਘਟਿ ਘਟਿ ਗਹਿਰ ਗੰਭੀਰੁ ॥
सचु वखरु धनु नामु है घटि घटि गहिर ग्मभीरु ॥ 
वह गहन-गम्भीर प्रभु प्रत्येक हृदय में वास करता है, उसका नाम-धन ही सच्चा सौदा है।

ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਾਈਐ ਦਇਆ ਕਰੇ ਹਰਿ ਹੀਰੁ ॥੪॥੨੧॥
नानक गुरमुखि पाईऐ दइआ करे हरि हीरु ॥४॥२१॥ 
नानक जी कहते हैं कि हीरे की भाँति अमूल्य हरि यदि कृपा करे तो गुरु द्वारा ही नाम रूपी सच्चा सौदा प्राप्त किया जा सकता है॥४॥२१॥

ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ੧ ॥
सिरीरागु महला १ ॥
सिरीरागु महला १ ॥ 

ਭਰਮੇ ਭਾਹਿ ਨ ਵਿਝਵੈ ਜੇ ਭਵੈ ਦਿਸੰਤਰ ਦੇਸੁ ॥
भरमे भाहि न विझवै जे भवै दिसंतर देसु ॥ 
देश-देशान्तर का भ्रमण करने से भी भ्रमाग्नि शांत नहीं होती, चाहे कोई कितना भी भ्रमण क्यों न कर ले।

ਅੰਤਰਿ ਮੈਲੁ ਨ ਉਤਰੈ ਧ੍ਰਿਗੁ ਜੀਵਣੁ ਧ੍ਰਿਗੁ ਵੇਸੁ ॥
अंतरि मैलु न उतरै ध्रिगु जीवणु ध्रिगु वेसु ॥ 
अंतर्मन से मैल दूर नहीं होती, ऐसे जीवन को धिक्कार है, ऐसे भेष को भी धिक्कार है।

ਹੋਰੁ ਕਿਤੈ ਭਗਤਿ ਨ ਹੋਵਈ ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਕੇ ਉਪਦੇਸ ॥੧॥
होरु कितै भगति न होवई बिनु सतिगुर के उपदेस ॥१॥
सतिगुरु के उपदेश बिना किसी भी प्रकार से प्रभु की भक्ति नहीं हो सकती ॥ १॥

ਮਨ ਰੇ ਗੁਰਮੁਖਿ ਅਗਨਿ ਨਿਵਾਰਿ ॥
मन रे गुरमुखि अगनि निवारि ॥ 
हे प्रिय मन ! गुरु के मुँह से निकलने वाले उपदेश द्वारा नाम जल लेकर तृष्णाग्नि को बुझा ले।

ਗੁਰ ਕਾ ਕਹਿਆ ਮਨਿ ਵਸੈ ਹਉਮੈ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਮਾਰਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुर का कहिआ मनि वसै हउमै त्रिसना मारि ॥१॥ रहाउ ॥ 
यदि गुरु-उपदेश मन में बस जाए तो अहंकार व तृष्णग्नि जैसे सभी विकार नष्ट हो जाते हैं। १॥ रहाउ ॥

ਮਨੁ ਮਾਣਕੁ ਨਿਰਮੋਲੁ ਹੈ ਰਾਮ ਨਾਮਿ ਪਤਿ ਪਾਇ ॥
मनु माणकु निरमोलु है राम नामि पति पाइ ॥ 
परमात्मा के नाम में लिवलीन होकर यह मन अमूल्य माणिक्य बन जाता है, और प्रतिष्ठित होता है।

ਮਿਲਿ ਸਤਸੰਗਤਿ ਹਰਿ ਪਾਈਐ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਰਿ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥
मिलि सतसंगति हरि पाईऐ गुरमुखि हरि लिव लाइ ॥ 
लेकिन परमात्मा का नाम सत्संगति करने से ही प्राप्त होता है, गुरु की शरण पड़ने से ही परमात्मा के चरणों में सुरति लगती है।

ਆਪੁ ਗਇਆ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਮਿਲਿ ਸਲਲੈ ਸਲਲ ਸਮਾਇ ॥੨॥
आपु गइआ सुखु पाइआ मिलि सललै सलल समाइ ॥२॥
अहंकार दूर होने से सुख प्राप्त होता है। तब जीवात्मा परमात्मा में उसी प्रकार विलीन हो जाती है, जैसे जल में जल मिल जाता है॥ २॥

ਜਿਨਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਨ ਚੇਤਿਓ ਸੁ ਅਉਗੁਣਿ ਆਵੈ ਜਾਇ ॥
जिनि हरि हरि नामु न चेतिओ सु अउगुणि आवै जाइ ॥ 
जिस ने हरि-हरि नाम का सुमिरन नहीं किया, वह अपने अवगुणों के फलस्वरूप आवागमन के चक्र में ही पड़ा रहता है।

ਜਿਸੁ ਸਤਗੁਰੁ ਪੁਰਖੁ ਨ ਭੇਟਿਓ ਸੁ ਭਉਜਲਿ ਪਚੈ ਪਚਾਇ ॥
जिसु सतगुरु पुरखु न भेटिओ सु भउजलि पचै पचाइ ॥  
जिस ने सतिगुरु महापुरुषों के साथ भेंट नहीं की, वे भवसागर में स्वयं भी दुखों के साथ खपता है और अन्य जीवों को भी खपाता है।

ਇਹੁ ਮਾਣਕੁ ਜੀਉ ਨਿਰਮੋਲੁ ਹੈ ਇਉ ਕਉਡੀ ਬਦਲੈ ਜਾਇ ॥੩॥
इहु माणकु जीउ निरमोलु है इउ कउडी बदलै जाइ ॥३॥
यह अमूल्य रत्नों के समान मानव जन्म यूं ही कौड़ी के बदले व्यर्थ चला जाता है॥ ३॥

ਜਿੰਨਾ ਸਤਗੁਰੁ ਰਸਿ ਮਿਲੈ ਸੇ ਪੂਰੇ ਪੁਰਖ ਸੁਜਾਣ ॥
जिंना सतगुरु रसि मिलै से पूरे पुरख सुजाण ॥ 
जिन को सतिगुरु जी प्रसन्न होकर मिले हैं, वे पुरुष पूर्ण ज्ञानी हैं।

ਗੁਰ ਮਿਲਿ ਭਉਜਲੁ ਲੰਘੀਐ ਦਰਗਹ ਪਤਿ ਪਰਵਾਣੁ ॥
गुर मिलि भउजलु लंघीऐ दरगह पति परवाणु ॥ 
गुरु से मिल कर ही भवसागर पार किया जा सकता है तथा परलोक में सम्मान प्राप्त होता है।

ਨਾਨਕ ਤੇ ਮੁਖ ਉਜਲੇ ਧੁਨਿ ਉਪਜੈ ਸਬਦੁ ਨੀਸਾਣੁ ॥੪॥੨੨॥
नानक ते मुख उजले धुनि उपजै सबदु नीसाणु ॥४॥२२॥ 
नानक जी कथन करते हैं कि उनके मुख उज्ज्वल होते हैं जिन के मुख से नाम-ध्वनि उत्पन्न हो रही हो और जो गुरु के उपदेश का प्रतीक हैं॥४॥२२॥

ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ੧ ॥
सिरीरागु महला १ ॥ 
सिरीरागु महला १ ॥ 

ਵਣਜੁ ਕਰਹੁ ਵਣਜਾਰਿਹੋ ਵਖਰੁ ਲੇਹੁ ਸਮਾਲਿ ॥
वणजु करहु वणजारिहो वखरु लेहु समालि ॥
हे जीव रूपी व्यापारियों! नाम रूपी व्यापार करो और सौदा सम्भाल कर रख लो।

ਤੈਸੀ ਵਸਤੁ ਵਿਸਾਹੀਐ ਜੈਸੀ ਨਿਬਹੈ ਨਾਲਿ ॥
तैसी वसतु विसाहीऐ जैसी निबहै नालि ॥
गुरु-उपदेशानुसार ऐसी वस्तु का क्रय करो जो सदा तुम्हारे साथ रहे।

ਅਗੈ ਸਾਹੁ ਸੁਜਾਣੁ ਹੈ ਲੈਸੀ ਵਸਤੁ ਸਮਾਲਿ ॥੧॥
अगै साहु सुजाणु है लैसी वसतु समालि ॥१॥
आगे परलोक में परमात्मा रूपी सौदागर बहुत सूझवान बैठा है, वह तुम्हारी वस्तु की सम्भाल कर लेगा। अर्थात्-तुम्हारे सौदे को वह जांच-परख कर ही ग्रहण करेगा ॥१॥

ਭਾਈ ਰੇ ਰਾਮੁ ਕਹਹੁ ਚਿਤੁ ਲਾਇ ॥
भाई रे रामु कहहु चितु लाइ ॥ 
हे भाई ! एकाग्रचित होकर राम-नाम जपो।

ਹਰਿ ਜਸੁ ਵਖਰੁ ਲੈ ਚਲਹੁ ਸਹੁ ਦੇਖੈ ਪਤੀਆਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि जसु वखरु लै चलहु सहु देखै पतीआइ ॥१॥ रहाउ ॥ 
इस संसार में जो श्वास रूपी पूंजी लेकर आए हो, इससे हरि यश का सौदा खरीद कर ले चलो, जिसे देख कर पति-परमात्मा प्रसंन होगा ॥ १॥ रहाउ॥

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