ਸਰਬ ਜੀਆ ਕਉ ਦੇਵਣਹਾਰਾ ॥
सरब जीआ कउ देवणहारा ॥
परमेश्वर समस्त प्राणियों को देने वाला है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਰਾ ॥
गुर परसादी नदरि निहारा ॥
गुरु की कृपा से उसने हमें दया की नज़र से देख लिया है।
ਜਲ ਥਲ ਮਹੀਅਲ ਸਭਿ ਤ੍ਰਿਪਤਾਣੇ ਸਾਧੂ ਚਰਨ ਪਖਾਲੀ ਜੀਉ ॥੩॥
जल थल महीअल सभि त्रिपताणे साधू चरन पखाली जीउ ॥३॥
सागर, धरती एवं गगन में रहने वाले समस्त प्राणी तृप्त हो गए हैं। मैं संत-गुरु के चरण धोता हूँ॥३॥
ਮਨ ਕੀ ਇਛ ਪੁਜਾਵਣਹਾਰਾ ॥
मन की इछ पुजावणहारा ॥
परमात्मा मन की इच्छा पूरी करने वाला है।
ਸਦਾ ਸਦਾ ਜਾਈ ਬਲਿਹਾਰਾ ॥
सदा सदा जाई बलिहारा ॥
मैं सदैव ही उस पर कुर्बान जाता हूँ।
ਨਾਨਕ ਦਾਨੁ ਕੀਆ ਦੁਖ ਭੰਜਨਿ ਰਤੇ ਰੰਗਿ ਰਸਾਲੀ ਜੀਉ ॥੪॥੩੨॥੩੯॥
नानक दानु कीआ दुख भंजनि रते रंगि रसाली जीउ ॥४॥३२॥३९॥
हे नानक ! दुख नाशक प्रभु ने मुझे यह दान दिया है कि मैं उसकी प्रीति में मग्न हो गया हूँ जो प्रसन्नता का घर है॥४॥३२॥३९॥
ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥
माझ महला ५ ॥
माझ महला ५ ॥
ਮਨੁ ਤਨੁ ਤੇਰਾ ਧਨੁ ਭੀ ਤੇਰਾ ॥
मनु तनु तेरा धनु भी तेरा ॥
भगवान ! मेरा मन एवं तन तेरा ही दिया हुआ है और धन भी तेरा ही दिया हुआ है।
ਤੂੰ ਠਾਕੁਰੁ ਸੁਆਮੀ ਪ੍ਰਭੁ ਮੇਰਾ ॥
तूं ठाकुरु सुआमी प्रभु मेरा ॥
हे ईश्वर ! तुम मेरे ठाकुर एवं स्वामी हो।
ਜੀਉ ਪਿੰਡੁ ਸਭੁ ਰਾਸਿ ਤੁਮਾਰੀ ਤੇਰਾ ਜੋਰੁ ਗੋਪਾਲਾ ਜੀਉ ॥੧॥
जीउ पिंडु सभु रासि तुमारी तेरा जोरु गोपाला जीउ ॥१॥
हे प्रभु ! मेरे प्राण एवं तन तेरी ही पूंजी है। हे गोपाल ! मेरी प्रभुता तुझ से ही है॥१॥
ਸਦਾ ਸਦਾ ਤੂੰਹੈ ਸੁਖਦਾਈ ॥
सदा सदा तूंहै सुखदाई ॥
हे परमेश्वर ! सर्वदा तुम सुख प्रदान करने वाले हो।
ਨਿਵਿ ਨਿਵਿ ਲਾਗਾ ਤੇਰੀ ਪਾਈ ॥
निवि निवि लागा तेरी पाई ॥
मैं नतमस्तक होकर तुझे ही नमन करता हूँ और तेरे चरण स्पर्श करता हूँ।
ਕਾਰ ਕਮਾਵਾ ਜੇ ਤੁਧੁ ਭਾਵਾ ਜਾ ਤੂੰ ਦੇਹਿ ਦਇਆਲਾ ਜੀਉ ॥੨॥
कार कमावा जे तुधु भावा जा तूं देहि दइआला जीउ ॥२॥
हे दयालु परमात्मा ! मैं वहीं कार्य करूँगा जो तू मुझे करने के लिए देगा और जो तुझे अच्छा लगे॥ २॥
ਪ੍ਰਭ ਤੁਮ ਤੇ ਲਹਣਾ ਤੂੰ ਮੇਰਾ ਗਹਣਾ ॥
प्रभ तुम ते लहणा तूं मेरा गहणा ॥
हे भगवान ! मैं सबकुछ तुझ से ही लेता हूँ और तुम ही मेरे आभूषण हो।
ਜੋ ਤੂੰ ਦੇਹਿ ਸੋਈ ਸੁਖੁ ਸਹਣਾ ॥
जो तूं देहि सोई सुखु सहणा ॥
हे अकालपुरुष ! जो कुछ तुम मुझे दुःख-सुख देते हो, मैं उसको सुख समझकर सहता हूँ।
ਜਿਥੈ ਰਖਹਿ ਬੈਕੁੰਠੁ ਤਿਥਾਈ ਤੂੰ ਸਭਨਾ ਕੇ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲਾ ਜੀਉ ॥੩॥
जिथै रखहि बैकुंठु तिथाई तूं सभना के प्रतिपाला जीउ ॥३॥
हे भगवान ! जहाँ कहीं भी तुम मुझे रखते हो, वही मेरा स्वर्ग है। तुम सबकी रक्षा करने वाले हो ॥३॥
ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਨਾਨਕ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥
सिमरि सिमरि नानक सुखु पाइआ ॥
हे नानक ! उस परम पिता परमेश्वर की आराधना करने से मुझे सुख उपलब्ध हो गया है।
ਆਠ ਪਹਰ ਤੇਰੇ ਗੁਣ ਗਾਇਆ ॥
आठ पहर तेरे गुण गाइआ ॥
हे प्रभु ! दिन के आठों प्रहर तेरी महिमा गायन करता हूँ।
ਸਗਲ ਮਨੋਰਥ ਪੂਰਨ ਹੋਏ ਕਦੇ ਨ ਹੋਇ ਦੁਖਾਲਾ ਜੀਉ ॥੪॥੩੩॥੪੦॥
सगल मनोरथ पूरन होए कदे न होइ दुखाला जीउ ॥४॥३३॥४०॥
उसके हृदय के समस्त मनोरथ पूर्ण हो गए हैं और अब वह कभी भी दुखी नहीं होता ॥४॥३३॥४॥
ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥
माझ महला ५ ॥
माझ महला ५ ॥
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮਿ ਪ੍ਰਭਿ ਮੇਘੁ ਪਠਾਇਆ ॥
पारब्रहमि प्रभि मेघु पठाइआ ॥
पारब्रह्म प्रभु ने मेघ को वर्षा करने के लिए भेजा है।
ਜਲਿ ਥਲਿ ਮਹੀਅਲਿ ਦਹ ਦਿਸਿ ਵਰਸਾਇਆ ॥
जलि थलि महीअलि दह दिसि वरसाइआ ॥
मेघ ने सागर, धरती एवं आकाश दसों दिशाओं में वर्षा की है।
ਸਾਂਤਿ ਭਈ ਬੁਝੀ ਸਭ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਅਨਦੁ ਭਇਆ ਸਭ ਠਾਈ ਜੀਉ ॥੧॥
सांति भई बुझी सभ त्रिसना अनदु भइआ सभ ठाई जीउ ॥१॥
वर्षा से जीवों के अन्र्तमन में सुख-शांति हो गई है तथा उनकी सारी प्यास मिट गई है और समस्त स्थानों पर प्रसन्नता हो गई है॥१॥
ਸੁਖਦਾਤਾ ਦੁਖ ਭੰਜਨਹਾਰਾ ॥
सुखदाता दुख भंजनहारा ॥
हे भगवान ! तू सुख प्रदान करने वाला और दुःख नाश करने वाला है।
ਆਪੇ ਬਖਸਿ ਕਰੇ ਜੀਅ ਸਾਰਾ ॥
आपे बखसि करे जीअ सारा ॥
तू स्वयं ही समस्त प्राणियों को क्षमा करता है।
ਅਪਨੇ ਕੀਤੇ ਨੋ ਆਪਿ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲੇ ਪਇ ਪੈਰੀ ਤਿਸਹਿ ਮਨਾਈ ਜੀਉ ॥੨॥
अपने कीते नो आपि प्रतिपाले पइ पैरी तिसहि मनाई जीउ ॥२॥
अपनी सृष्टि का वह स्वयं ही पालन पोषण करता है। मैं उसके चरणों में नतमस्तक होकर उसे प्रसन्न करता हूँ॥२॥
ਜਾ ਕੀ ਸਰਣਿ ਪਇਆ ਗਤਿ ਪਾਈਐ ॥
जा की सरणि पइआ गति पाईऐ ॥
जिस भगवान की शरण लेने से मुक्ति प्राप्त होती है,
ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਈਐ ॥
सासि सासि हरि नामु धिआईऐ ॥
श्वास-श्वास से उस भगवान के नाम का ही ध्यान करना चाहिए।
ਤਿਸੁ ਬਿਨੁ ਹੋਰੁ ਨ ਦੂਜਾ ਠਾਕੁਰੁ ਸਭ ਤਿਸੈ ਕੀਆ ਜਾਈ ਜੀਉ ॥੩॥
तिसु बिनु होरु न दूजा ठाकुरु सभ तिसै कीआ जाई जीउ ॥३॥
उसके अलावा अन्य कोई दूसरा स्वामी नहीं। समस्त स्थान केवल उसी के हैं॥३॥
ਤੇਰਾ ਮਾਣੁ ਤਾਣੁ ਪ੍ਰਭ ਤੇਰਾ ॥
तेरा माणु ताणु प्रभ तेरा ॥
हे प्रभु ! मुझे तेरा ही मान एवं तेरा ही बल है।
ਤੂੰ ਸਚਾ ਸਾਹਿਬੁ ਗੁਣੀ ਗਹੇਰਾ ॥
तूं सचा साहिबु गुणी गहेरा ॥
तू ही मेरा सच्चा स्वामी एवं गुणों का सागर है।
ਨਾਨਕੁ ਦਾਸੁ ਕਹੈ ਬੇਨੰਤੀ ਆਠ ਪਹਰ ਤੁਧੁ ਧਿਆਈ ਜੀਉ ॥੪॥੩੪॥੪੧॥
नानकु दासु कहै बेनंती आठ पहर तुधु धिआई जीउ ॥४॥३४॥४१॥
दास नानक एक प्रार्थना करता है कि हे प्रभु! दिन के आठों प्रहर मैं तेरा ही ध्यान करता रहूँ॥४॥३४॥ ४१॥
ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥
माझ महला ५ ॥
माझ महला ५ ॥
ਸਭੇ ਸੁਖ ਭਏ ਪ੍ਰਭ ਤੁਠੇ ॥
सभे सुख भए प्रभ तुठे ॥
जब प्रभु प्रसन्न हो जाते हैं तो समस्त सुख उपलब्ध हो जाते हैं।
ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਕੇ ਚਰਣ ਮਨਿ ਵੁਠੇ ॥
गुर पूरे के चरण मनि वुठे ॥
फिर पूर्ण गुरु के चरण मन में निवास कर लेते हैं।
ਸਹਜ ਸਮਾਧਿ ਲਗੀ ਲਿਵ ਅੰਤਰਿ ਸੋ ਰਸੁ ਸੋਈ ਜਾਣੈ ਜੀਉ ॥੧॥
सहज समाधि लगी लिव अंतरि सो रसु सोई जाणै जीउ ॥१॥
जिसकी प्रभु की सुरति में सहज समाधि लग जाती है, वही व्यक्ति इस आनंद को जानता है ॥ १ ॥
ਅਗਮ ਅਗੋਚਰੁ ਸਾਹਿਬੁ ਮੇਰਾ ॥
अगम अगोचरु साहिबु मेरा ॥
मेरा परमेश्वर अगम्य एवं अगोचर है ।
ਘਟ ਘਟ ਅੰਤਰਿ ਵਰਤੈ ਨੇਰਾ ॥
घट घट अंतरि वरतै नेरा ॥
वह प्रत्येक हृदय मे निकट ही रहता है ।
ਸਦਾ ਅਲਿਪਤੁ ਜੀਆ ਕਾ ਦਾਤਾ ਕੋ ਵਿਰਲਾ ਆਪੁ ਪਛਾਣੈ ਜੀਉ ॥੨॥
सदा अलिपतु जीआ का दाता को विरला आपु पछाणै जीउ ॥२॥
वह सदैव निर्लेप है और जीवों का दाता है। कोई विरला पुरुष ही अपने स्वरूप को समझता है॥२॥
ਪ੍ਰਭ ਮਿਲਣੈ ਕੀ ਏਹ ਨੀਸਾਣੀ ॥
प्रभ मिलणै की एह नीसाणी ॥
रभु के मिलन का यही लक्षण है कि
ਮਨਿ ਇਕੋ ਸਚਾ ਹੁਕਮੁ ਪਛਾਣੀ ॥
मनि इको सचा हुकमु पछाणी ॥
मनुष्य अपने मन में एक सत्यस्वरूप परमात्मा के हुक्म की ही पहचान करता है ।
ਸਹਜਿ ਸੰਤੋਖਿ ਸਦਾ ਤ੍ਰਿਪਤਾਸੇ ਅਨਦੁ ਖਸਮ ਕੈ ਭਾਣੈ ਜੀਉ ॥੩॥
सहजि संतोखि सदा त्रिपतासे अनदु खसम कै भाणै जीउ ॥३॥
प्रभु की इच्छा अनुसार चलने वाले मनुष्य को सदैव सुख, संतोष, तृप्ति एवं हर्ष प्राप्त होता है ॥३॥
ਹਥੀ ਦਿਤੀ ਪ੍ਰਭਿ ਦੇਵਣਹਾਰੈ ॥
हथी दिती प्रभि देवणहारै ॥
दाता परमेश्वर ने मुझे अपना हाथ दिया है अर्थात् सहारा दिया है और
ਜਨਮ ਮਰਣ ਰੋਗ ਸਭਿ ਨਿਵਾਰੇ ॥
जनम मरण रोग सभि निवारे ॥
प्रभु ने जीवन-मृत्यु के समूह कष्ट दूर कर दिए हैं।
ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਕੀਏ ਪ੍ਰਭਿ ਅਪੁਨੇ ਹਰਿ ਕੀਰਤਨਿ ਰੰਗ ਮਾਣੇ ਜੀਉ ॥੪॥੩੫॥੪੨॥
नानक दास कीए प्रभि अपुने हरि कीरतनि रंग माणे जीउ ॥४॥३५॥४२॥
हे नानक ! जिनको परमात्मा ने अपना सेवक बना लिया है, वह प्रभु का यशोगान करने का आनंद प्राप्त करते हैं॥ ४ ॥ ३५ ॥ ४२ ॥