Hindi Page 555

ਜਿ ਤੁਧ ਨੋ ਸਾਲਾਹੇ ਸੁ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਪਾਵੈ ਜਿਸ ਨੋ ਕਿਰਪਾ ਨਿਰੰਜਨ ਕੇਰੀ ॥
जि तुध नो सालाहे सु सभु किछु पावै जिस नो किरपा निरंजन केरी ॥
हे निरंजन परमेश्वर ! जो भी तेरी महिमा-स्तुति करता है एवं जिस पर तू कृपा के घर में आता है, वह सब कुछ प्राप्त कर लेता है।

ਸੋਈ ਸਾਹੁ ਸਚਾ ਵਣਜਾਰਾ ਜਿਨਿ ਵਖਰੁ ਲਦਿਆ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਨੁ ਤੇਰੀ ॥
सोई साहु सचा वणजारा जिनि वखरु लदिआ हरि नामु धनु तेरी ॥
हे भगवान! वास्तव में वही साहूकार और सत्य का व्यापारी है, जो तेरे नाम-धन का सौदा लाद लेता है।

ਸਭਿ ਤਿਸੈ ਨੋ ਸਾਲਾਹਿਹੁ ਸੰਤਹੁ ਜਿਨਿ ਦੂਜੇ ਭਾਵ ਕੀ ਮਾਰਿ ਵਿਡਾਰੀ ਢੇਰੀ ॥੧੬॥
सभि तिसै नो सालाहिहु संतहु जिनि दूजे भाव की मारि विडारी ढेरी ॥१६॥
हे संतजनो ! उस परमात्मा का स्तुतिगान करो, जिसने द्वैतभावना की ढ़ेरी को ध्वस्त कर दिया है ॥१६॥

ਸਲੋਕ ॥
सलोक ॥
श्लोक ॥

ਕਬੀਰਾ ਮਰਤਾ ਮਰਤਾ ਜਗੁ ਮੁਆ ਮਰਿ ਭਿ ਨ ਜਾਨੈ ਕੋਇ ॥
कबीरा मरता मरता जगु मुआ मरि भि न जानै कोइ ॥
हे कबीर ! यह जगत मरता मरता मर गया है किन्तु असल में कोई भी इंसान मरने का तरीका नहीं जानता।

ਐਸੀ ਮਰਨੀ ਜੋ ਮਰੈ ਬਹੁਰਿ ਨ ਮਰਨਾ ਹੋਇ ॥੧॥
ऐसी मरनी जो मरै बहुरि न मरना होइ ॥१॥
जो जीव ऐसी वास्तव मृत्यु मरता है, वह बार-बार नहीं मरता ॥ ५॥

ਮਃ ੩ ॥
मः ३ ॥
महला ३॥

ਕਿਆ ਜਾਣਾ ਕਿਵ ਮਰਹਗੇ ਕੈਸਾ ਮਰਣਾ ਹੋਇ ॥
किआ जाणा किव मरहगे कैसा मरणा होइ ॥
हमें यह ज्ञान भी नहीं है कि हम किस प्रकार मरेंगे ? हमारी किस प्रकार की मृत्यु होगी?

ਜੇ ਕਰਿ ਸਾਹਿਬੁ ਮਨਹੁ ਨ ਵੀਸਰੈ ਤਾ ਸਹਿਲਾ ਮਰਣਾ ਹੋਇ ॥
जे करि साहिबु मनहु न वीसरै ता सहिला मरणा होइ ॥
यदि मालिक हृदय से विस्मृत न हो तो हमारी मृत्यु सुगम होगी।

ਮਰਣੈ ਤੇ ਜਗਤੁ ਡਰੈ ਜੀਵਿਆ ਲੋੜੈ ਸਭੁ ਕੋਇ ॥
मरणै ते जगतु डरै जीविआ लोड़ै सभु कोइ ॥
सारी दुनिया मरने से डरती है और हरेक जीव जीने की ही आशा करता है।

ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਜੀਵਤੁ ਮਰੈ ਹੁਕਮੈ ਬੂਝੈ ਸੋਇ ॥
गुर परसादी जीवतु मरै हुकमै बूझै सोइ ॥
गुरु की कृपा से जो व्यक्ति जीवित ही प्राण त्याग देता है, वह परमात्मा के हुक्म को बूझता है।

ਨਾਨਕ ਐਸੀ ਮਰਨੀ ਜੋ ਮਰੈ ਤਾ ਸਦ ਜੀਵਣੁ ਹੋਇ ॥੨॥
नानक ऐसी मरनी जो मरै ता सद जीवणु होइ ॥२॥
हे नानक ! जो व्यक्ति ऐसी मृत्यु मरता है, तो वह सर्वकाल ही जीवित रहता है।

ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी।

ਜਾ ਆਪਿ ਕ੍ਰਿਪਾਲੁ ਹੋਵੈ ਹਰਿ ਸੁਆਮੀ ਤਾ ਆਪਣਾਂ ਨਾਉ ਹਰਿ ਆਪਿ ਜਪਾਵੈ ॥
जा आपि क्रिपालु होवै हरि सुआमी ता आपणां नाउ हरि आपि जपावै ॥
जब हरि स्वामी आप कृपालु हो जाता है तो वह स्वयं ही अपना नाम प्राणियों से जपाता रहता है।

ਆਪੇ ਸਤਿਗੁਰੁ ਮੇਲਿ ਸੁਖੁ ਦੇਵੈ ਆਪਣਾਂ ਸੇਵਕੁ ਆਪਿ ਹਰਿ ਭਾਵੈ ॥
आपे सतिगुरु मेलि सुखु देवै आपणां सेवकु आपि हरि भावै ॥
हरि आप ही सतिगुरु से मिलाप करवाकर सुख प्रदान करता है और अपना सेवक उसे आप ही अच्छा लगता है।

ਆਪਣਿਆ ਸੇਵਕਾ ਕੀ ਆਪਿ ਪੈਜ ਰਖੈ ਆਪਣਿਆ ਭਗਤਾ ਕੀ ਪੈਰੀ ਪਾਵੈ ॥
आपणिआ सेवका की आपि पैज रखै आपणिआ भगता की पैरी पावै ॥
वह आप ही अपने सेवको की लाज प्रतिष्ठा रखता है और जीवों को अपने भक्तों के चरण-आश्रय में डाल देता है।

ਧਰਮ ਰਾਇ ਹੈ ਹਰਿ ਕਾ ਕੀਆ ਹਰਿ ਜਨ ਸੇਵਕ ਨੇੜਿ ਨ ਆਵੈ ॥
धरम राइ है हरि का कीआ हरि जन सेवक नेड़ि न आवै ॥
धर्मराज जो हरि-परमेश्वर ने बनाया हुआ है, यह (यमराज) भी हरि के भक्तों व् सेवकों के निकट नहीं आता।

ਜੋ ਹਰਿ ਕਾ ਪਿਆਰਾ ਸੋ ਸਭਨਾ ਕਾ ਪਿਆਰਾ ਹੋਰ ਕੇਤੀ ਝਖਿ ਝਖਿ ਆਵੈ ਜਾਵੈ ॥੧੭॥
जो हरि का पिआरा सो सभना का पिआरा होर केती झखि झखि आवै जावै ॥१७॥
जो हरि का प्यारा है, वह सब लोगों का प्यारा है, अन्य कितने ही जीव व्यर्थ ही दुनिया में जन्मते-मरते रहते हैं। १७॥

ਸਲੋਕ ਮਃ ੩ ॥
सलोक मः ३ ॥
श्लोक महला ३।

ਰਾਮੁ ਰਾਮੁ ਕਰਤਾ ਸਭੁ ਜਗੁ ਫਿਰੈ ਰਾਮੁ ਨ ਪਾਇਆ ਜਾਇ ॥
रामु रामु करता सभु जगु फिरै रामु न पाइआ जाइ ॥
सारी दुनिया राम-राम पुकारती रहती है किन्तु राम ऐसे प्राप्त नहीं होता।

ਅਗਮੁ ਅਗੋਚਰੁ ਅਤਿ ਵਡਾ ਅਤੁਲੁ ਨ ਤੁਲਿਆ ਜਾਇ ॥
अगमु अगोचरु अति वडा अतुलु न तुलिआ जाइ ॥
वह अगम्य, अगोचर, बहुत महान एवं अतुलनीय है और उसके गुणों की तुलना नहीं की जा सकती।

ਕੀਮਤਿ ਕਿਨੈ ਨ ਪਾਈਆ ਕਿਤੈ ਨ ਲਇਆ ਜਾਇ ॥
कीमति किनै न पाईआ कितै न लइआ जाइ ॥
उसका मूल्यांकन भी नहीं किया जा सकता और किसी मूल्य से भी वह खरीदा नहीं जा सकता।

ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਭੇਦਿਆ ਇਨ ਬਿਧਿ ਵਸਿਆ ਮਨਿ ਆਇ ॥
गुर कै सबदि भेदिआ इन बिधि वसिआ मनि आइ ॥
केवल गुरु के शब्द द्वारा उसका भेद पाया जा सकता है, इस विधि से वह आकर जीव के मन में निवास कर लेता है।

ਨਾਨਕ ਆਪਿ ਅਮੇਉ ਹੈ ਗੁਰ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਰਹਿਆ ਸਮਾਇ ॥
नानक आपि अमेउ है गुर किरपा ते रहिआ समाइ ॥
हे नानक ! राम अपरिमित है और गुरु की कृपा से चित्त में समाया रहता है।

ਆਪੇ ਮਿਲਿਆ ਮਿਲਿ ਰਹਿਆ ਆਪੇ ਮਿਲਿਆ ਆਇ ॥੧॥
आपे मिलिआ मिलि रहिआ आपे मिलिआ आइ ॥१॥
वह आप ही आकर मनुष्य को मिलता है और मिलकर मिला रहता है। १॥

ਮਃ ੩ ॥
मः ३ ॥
महला ३ ॥

ਏ ਮਨ ਇਹੁ ਧਨੁ ਨਾਮੁ ਹੈ ਜਿਤੁ ਸਦਾ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਹੋਇ ॥
ए मन इहु धनु नामु है जितु सदा सदा सुखु होइ ॥
हे मन ! यह परमात्मा का नाम ऐसा धन है, जिससे सर्वदा सुख ही उपलब्ध होता है।

ਤੋਟਾ ਮੂਲਿ ਨ ਆਵਈ ਲਾਹਾ ਸਦ ਹੀ ਹੋਇ ॥
तोटा मूलि न आवई लाहा सद ही होइ ॥
इससे कदापि न्यूनता नहीं आती और मनुष्य को हमेशा लाभ ही मिलता है।

ਖਾਧੈ ਖਰਚਿਐ ਤੋਟਿ ਨ ਆਵਈ ਸਦਾ ਸਦਾ ਓਹੁ ਦੇਇ ॥
खाधै खरचिऐ तोटि न आवई सदा सदा ओहु देइ ॥
इसे खाने एवं खर्च करने से न्यूनता नहीं आती, क्योकि परमात्मा सर्वदा ही देता रहता है।

ਸਹਸਾ ਮੂਲਿ ਨ ਹੋਵਈ ਹਾਣਤ ਕਦੇ ਨ ਹੋਇ ॥
सहसा मूलि न होवई हाणत कदे न होइ ॥
मनुष्य को बिल्कुल ही उसकी चिंता नहीं होती और कदापि हानि भी नहीं होती।

ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਾਈਐ ਜਾ ਕਉ ਨਦਰਿ ਕਰੇਇ ॥੨॥
नानक गुरमुखि पाईऐ जा कउ नदरि करेइ ॥२॥
हे नानक ! जिस पर परमात्मा कृपा-दृष्टि धारण करता है, उसे गुरु के माध्यम से नाम-धन प्राप्त हो जाता है।॥२॥

ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी ॥

ਆਪੇ ਸਭ ਘਟ ਅੰਦਰੇ ਆਪੇ ਹੀ ਬਾਹਰਿ ॥
आपे सभ घट अंदरे आपे ही बाहरि ॥
परमात्मा स्वयं ही सभी के हृदय में मौजूद है और बाहर भी जग में स्वयं ही मौजूद है।

ਆਪੇ ਗੁਪਤੁ ਵਰਤਦਾ ਆਪੇ ਹੀ ਜਾਹਰਿ ॥
आपे गुपतु वरतदा आपे ही जाहरि ॥
वह आप ही गुप्त रूप में विचरन करता है और आप ही सबके अन्तर्मन में प्रत्यक्ष है।

ਜੁਗ ਛਤੀਹ ਗੁਬਾਰੁ ਕਰਿ ਵਰਤਿਆ ਸੁੰਨਾਹਰਿ ॥
जुग छतीह गुबारु करि वरतिआ सुंनाहरि ॥
उस करतार ने स्वयं ही छतीस युगों तक घोर अन्धकार किया और शून्यावस्था में निवास करता रहा।

ਓਥੈ ਵੇਦ ਪੁਰਾਨ ਨ ਸਾਸਤਾ ਆਪੇ ਹਰਿ ਨਰਹਰਿ ॥
ओथै वेद पुरान न सासता आपे हरि नरहरि ॥
वहाँ तब वेद, पुराण एवं शास्त्र इत्यादि नहीं थे तथा लोगों का राजा परमेश्वर आप ही था।

ਬੈਠਾ ਤਾੜੀ ਲਾਇ ਆਪਿ ਸਭ ਦੂ ਹੀ ਬਾਹਰਿ ॥
बैठा ताड़ी लाइ आपि सभ दू ही बाहरि ॥
सभी से तटस्थ होकर वह आप ही शून्य-समाधि लगाकर बैठा था।

ਆਪਣੀ ਮਿਤਿ ਆਪਿ ਜਾਣਦਾ ਆਪੇ ਹੀ ਗਉਹਰੁ ॥੧੮॥
आपणी मिति आपि जाणदा आपे ही गउहरु ॥१८॥
अपनी विस्तार सीमा वह स्वयं ही जानता है और आप ही गहरा समुद्र है ॥१८॥

ਸਲੋਕ ਮਃ ੩ ॥
सलोक मः ३ ॥
श्लोक महला ३॥

ਹਉਮੈ ਵਿਚਿ ਜਗਤੁ ਮੁਆ ਮਰਦੋ ਮਰਦਾ ਜਾਇ ॥
हउमै विचि जगतु मुआ मरदो मरदा जाइ ॥
समूचा विश्व अहंकार में मरा हुआ है और बार-बार मृत्यु को ही प्राप्त होता जा रहा है।

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