ਜਿਚਰੁ ਵਿਚਿ ਦੰਮੁ ਹੈ ਤਿਚਰੁ ਨ ਚੇਤਈ ਕਿ ਕਰੇਗੁ ਅਗੈ ਜਾਇ ॥
जिचरु विचि दमु है तिचरु न चेतई कि करेगु अगै जाइ ॥
जब तक शरीर में प्राण होते हैं, तब तक मनुष्य परमात्मा का नाम याद नहीं करता।
ਗਿਆਨੀ ਹੋਇ ਸੁ ਚੇਤੰਨੁ ਹੋਇ ਅਗਿਆਨੀ ਅੰਧੁ ਕਮਾਇ ॥
गिआनी होइ सु चेतंनु होइ अगिआनी अंधु कमाइ ॥
फिर आगे परलोक में पहुँच कर क्या करेगा ? जो व्यक्ति ज्ञानवान है, वह चेतन होता है लेकिन अज्ञानी व्यक्ति अन्धे कर्मों में ही क्रियाशील रहता है।
ਨਾਨਕ ਏਥੈ ਕਮਾਵੈ ਸੋ ਮਿਲੈ ਅਗੈ ਪਾਏ ਜਾਇ ॥੧॥
नानक एथै कमावै सो मिलै अगै पाए जाइ ॥१॥
हे नानक ! इहलोक में मनुष्य जो भी कर्म करता है, वही मिलता है तथा परलोक में जाकर वही प्राप्त होता है ॥१॥
ਮਃ ੩ ॥
मः ३ ॥
मः ३ ॥
ਧੁਰਿ ਖਸਮੈ ਕਾ ਹੁਕਮੁ ਪਇਆ ਵਿਣੁ ਸਤਿਗੁਰ ਚੇਤਿਆ ਨ ਜਾਇ ॥
धुरि खसमै का हुकमु पइआ विणु सतिगुर चेतिआ न जाइ ॥
आदि से ही परमात्मा का अटल हुक्म है कि सच्चे गुरु के बिना उसका नाम-सुमिरन नहीं हो सकता।
ਸਤਿਗੁਰਿ ਮਿਲਿਐ ਅੰਤਰਿ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਸਦਾ ਰਹਿਆ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥
सतिगुरि मिलिऐ अंतरि रवि रहिआ सदा रहिआ लिव लाइ ॥
सच्चा गुरु मिल जाए तो मनुष्य अपने मन में ही परमात्मा को व्यापक अनुभव करता है और हमेशा ही उसकी सुरति में समाया रहता है।
ਦਮਿ ਦਮਿ ਸਦਾ ਸਮਾਲਦਾ ਦੰਮੁ ਨ ਬਿਰਥਾ ਜਾਇ ॥
दमि दमि सदा समालदा दमु न बिरथा जाइ ॥
स-श्वास से सर्वदा वह उसे याद करता है और उसका कोई भी श्वास व्यर्थ नहीं जाता।
ਜਨਮ ਮਰਨ ਕਾ ਭਉ ਗਇਆ ਜੀਵਨ ਪਦਵੀ ਪਾਇ ॥
जनम मरन का भउ गइआ जीवन पदवी पाइ ॥
भगवान का नाम याद करने से उसका जीवन-मृत्यु का आतंक नाश हो जाता है और वह अटल जीवन पदवी प्राप्त कर लेता है।
ਨਾਨਕ ਇਹੁ ਮਰਤਬਾ ਤਿਸ ਨੋ ਦੇਇ ਜਿਸ ਨੋ ਕਿਰਪਾ ਕਰੇ ਰਜਾਇ ॥੨॥
नानक इहु मरतबा तिस नो देइ जिस नो किरपा करे रजाइ ॥२॥
हे नानक ! परमात्मा यह अमर पदवी उसे ही प्रदान करता है, जिसे अपनी रज़ा से कृपा धारण करता है ॥२॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी ॥
ਆਪੇ ਦਾਨਾਂ ਬੀਨਿਆ ਆਪੇ ਪਰਧਾਨਾਂ ॥
आपे दानां बीनिआ आपे परधानां ॥
परमात्मा आप ही सर्वज्ञाता, त्रिकालदर्शी और आप ही प्रधान है।
ਆਪੇ ਰੂਪ ਦਿਖਾਲਦਾ ਆਪੇ ਲਾਇ ਧਿਆਨਾਂ ॥
आपे रूप दिखालदा आपे लाइ धिआनां ॥
वह आप ही अपने रूप का दर्शन करवाता है और आप ही मनुष्य को ध्यान-मनन में लगा देता है।
ਆਪੇ ਮੋਨੀ ਵਰਤਦਾ ਆਪੇ ਕਥੈ ਗਿਆਨਾਂ ॥
आपे मोनी वरतदा आपे कथै गिआनां ॥
वह आप ही मौनावस्था में विचरन करता है और आप ही ब्रह्म-ज्ञान का कथन करता है।
ਕਉੜਾ ਕਿਸੈ ਨ ਲਗਈ ਸਭਨਾ ਹੀ ਭਾਨਾ ॥
कउड़ा किसै न लगई सभना ही भाना ॥
वह किसी को कड़वा नहीं लगता और सभी को भला लगता है।
ਉਸਤਤਿ ਬਰਨਿ ਨ ਸਕੀਐ ਸਦ ਸਦ ਕੁਰਬਾਨਾ ॥੧੯॥
उसतति बरनि न सकीऐ सद सद कुरबाना ॥१९॥
उसकी महिमा-स्तुति वर्णन नहीं की जा सकती और मैं उस पर सर्वदा कुर्बान जाता हूँ ॥१६॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੧ ॥
सलोक मः १ ॥
श्लोक महला १॥
ਕਲੀ ਅੰਦਰਿ ਨਾਨਕਾ ਜਿੰਨਾਂ ਦਾ ਅਉਤਾਰੁ ॥
कली अंदरि नानका जिंनां दा अउतारु ॥
कलियुग में (नाम विहीन इन्सान) धरती में भूत-पिशाच ही पैदा हुए हैं।
ਪੁਤੁ ਜਿਨੂਰਾ ਧੀਅ ਜਿੰਨੂਰੀ ਜੋਰੂ ਜਿੰਨਾ ਦਾ ਸਿਕਦਾਰੁ ॥੧॥
पुतु जिनूरा धीअ जिंनूरी जोरू जिंना दा सिकदारु ॥१॥
पुत्र प्रेत है, पुत्री चुड़ैल और जोरू (पत्नी) इन प्रेत-चुडैलों की मालकिन है॥ १॥
ਮਃ ੧ ॥
मः १ ॥
महला १॥
ਹਿੰਦੂ ਮੂਲੇ ਭੂਲੇ ਅਖੁਟੀ ਜਾਂਹੀ ॥
हिंदू मूले भूले अखुटी जांही ॥
हिन्दुओं ने तो मूल रूप से परमात्मा को विस्मृत ही कर दिया है और कुमार्गगामी होते जा रहे हैं।
ਨਾਰਦਿ ਕਹਿਆ ਸਿ ਪੂਜ ਕਰਾਂਹੀ ॥
नारदि कहिआ सि पूज करांही ॥
जैसे नारद मुनि ने कथन किया है वैसे ही मूर्ति-पूजा कर रहे हैं।
ਅੰਧੇ ਗੁੰਗੇ ਅੰਧ ਅੰਧਾਰੁ ॥
अंधे गुंगे अंध अंधारु ॥
वे अन्धे, गूंगे एवं अन्धों के भी महा अंधे अन्धकार में अंधे हो चुके हैं।
ਪਾਥਰੁ ਲੇ ਪੂਜਹਿ ਮੁਗਧ ਗਵਾਰ ॥
पाथरु ले पूजहि मुगध गवार ॥
वे मूर्ख तथा गंवार पत्थरों की मूर्तियां लेकर उनकी पूजा करते हैं।
ਓਹਿ ਜਾ ਆਪਿ ਡੁਬੇ ਤੁਮ ਕਹਾ ਤਰਣਹਾਰੁ ॥੨॥
ओहि जा आपि डुबे तुम कहा तरणहारु ॥२॥
वे पत्थर जब स्वयं ही डूब जाते हैं, वे तुझे कैसे भवसागर से पार करवा सकते हैं ? ॥२॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी ॥
ਸਭੁ ਕਿਹੁ ਤੇਰੈ ਵਸਿ ਹੈ ਤੂ ਸਚਾ ਸਾਹੁ ॥
सभु किहु तेरै वसि है तू सचा साहु ॥
हे मालिक ! सब कुछ तेरे वश में है और तू ही एक सच्चा साहूकार है।
ਭਗਤ ਰਤੇ ਰੰਗਿ ਏਕ ਕੈ ਪੂਰਾ ਵੇਸਾਹੁ ॥
भगत रते रंगि एक कै पूरा वेसाहु ॥
तेरे भक्तजन केवल तेरी ही प्रेमा-भक्ति में रंगे हुए हैं और एक तुझ पर ही उनकी पूर्ण आस्था है।
ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਭੋਜਨੁ ਨਾਮੁ ਹਰਿ ਰਜਿ ਰਜਿ ਜਨ ਖਾਹੁ ॥
अम्रितु भोजनु नामु हरि रजि रजि जन खाहु ॥
हरिनामामृत ही उनका भोजन है, जिसे पेट भर-भर कर भक्तजन खाते रहते हैं।
ਸਭਿ ਪਦਾਰਥ ਪਾਈਅਨਿ ਸਿਮਰਣੁ ਸਚੁ ਲਾਹੁ ॥
सभि पदारथ पाईअनि सिमरणु सचु लाहु ॥
परमात्मा का सिमरन ही सच्चा लाभ है, जिससे सभी पदार्थ प्राप्त हो जाते हैं।
ਸੰਤ ਪਿਆਰੇ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਅਗਮ ਅਗਾਹੁ ॥੨੦॥
संत पिआरे पारब्रहम नानक हरि अगम अगाहु ॥२०॥
नानक का कथन है कि जो हरि अगम्य एवं अनन्त है, उस परब्रह्म-प्रभु को संतजन ही प्रिय लगते हैं।॥२०॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੩ ॥
सलोक मः ३ ॥
श्लोक महला ३॥
ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਹੁਕਮੇ ਆਵਦਾ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਹੁਕਮੇ ਜਾਇ ॥
सभु किछु हुकमे आवदा सभु किछु हुकमे जाइ ॥
सब कुछ परमात्मा के हुक्म अनुसार ही आता है और उसके हुक्म में ही सब कुछ चला जाता है।
ਜੇ ਕੋ ਮੂਰਖੁ ਆਪਹੁ ਜਾਣੈ ਅੰਧਾ ਅੰਧੁ ਕਮਾਇ ॥
जे को मूरखु आपहु जाणै अंधा अंधु कमाइ ॥
यदि कोई मूर्ख अपने आपको ही करने वाला जानता है तो वह अन्धा ही है और अंधे कर्म ही कर रहा है।
ਨਾਨਕ ਹੁਕਮੁ ਕੋ ਗੁਰਮੁਖਿ ਬੁਝੈ ਜਿਸ ਨੋ ਕਿਰਪਾ ਕਰੇ ਰਜਾਇ ॥੧॥
नानक हुकमु को गुरमुखि बुझै जिस नो किरपा करे रजाइ ॥१॥
हे नानक ! कोई विरला गुरुमुख ही परमात्मा के हुक्म को समझता है, जिस पर वह अपनी रज़ा से कृपा करता है ॥१॥
ਮਃ ੩ ॥
मः ३ ॥
महला ३॥
ਸੋ ਜੋਗੀ ਜੁਗਤਿ ਸੋ ਪਾਏ ਜਿਸ ਨੋ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਪਰਾਪਤਿ ਹੋਇ ॥
सो जोगी जुगति सो पाए जिस नो गुरमुखि नामु परापति होइ ॥
जिसे गुरु के माध्यम से परमात्मा का नाम प्राप्त हुआ है, वही असल में योगी है और उसे ही सच्ची योग युक्ति प्राप्त होती है।
ਤਿਸੁ ਜੋਗੀ ਕੀ ਨਗਰੀ ਸਭੁ ਕੋ ਵਸੈ ਭੇਖੀ ਜੋਗੁ ਨ ਹੋਇ ॥
तिसु जोगी की नगरी सभु को वसै भेखी जोगु न होइ ॥
उस योगी के देहि रूपी नगर में सर्व प्रकार के गुण निवास करते हैं किन्तु योगी का वेष धारण करने से सच्चा योग प्राप्त नहीं होता।
ਨਾਨਕ ਐਸਾ ਵਿਰਲਾ ਕੋ ਜੋਗੀ ਜਿਸੁ ਘਟਿ ਪਰਗਟੁ ਹੋਇ ॥੨॥
नानक ऐसा विरला को जोगी जिसु घटि परगटु होइ ॥२॥
हे नानक ! ऐसा विरला ही कोई योगी है, जिसके अन्तर्मन में परमात्मा प्रगट होता है ॥२॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी।
ਆਪੇ ਜੰਤ ਉਪਾਇਅਨੁ ਆਪੇ ਆਧਾਰੁ ॥
आपे जंत उपाइअनु आपे आधारु ॥
भगवान ने खुद ही जीव उत्पन्न किए हैं और खुद ही उन सबका आधार है।
ਆਪੇ ਸੂਖਮੁ ਭਾਲੀਐ ਆਪੇ ਪਾਸਾਰੁ ॥
आपे सूखमु भालीऐ आपे पासारु ॥
वह आप ही सूक्ष्म रूप में दिखाई देता है और आप ही उसका विश्व में प्रसार नजर आता है।
ਆਪਿ ਇਕਾਤੀ ਹੋਇ ਰਹੈ ਆਪੇ ਵਡ ਪਰਵਾਰੁ ॥
आपि इकाती होइ रहै आपे वड परवारु ॥
वह आप ही अकेला विचरन करता रहता है और आप ही दुनिया रूपी बड़े कुटुंब वाला है।
ਨਾਨਕੁ ਮੰਗੈ ਦਾਨੁ ਹਰਿ ਸੰਤਾ ਰੇਨਾਰੁ ॥
नानकु मंगै दानु हरि संता रेनारु ॥
नानक तो परमात्मा के संतों की चरण-धूलि का ही दान माँगता है।
ਹੋਰੁ ਦਾਤਾਰੁ ਨ ਸੁਝਈ ਤੂ ਦੇਵਣਹਾਰੁ ॥੨੧॥੧॥ ਸੁਧੁ ॥
होरु दातारु न सुझई तू देवणहारु ॥२१॥१॥ सुधु ॥
हे परमेश्वर ! तू ही जीवों को देने वाला है और तेरे सिवाय मुझे अन्य कोई भी दाता नजर नहीं आता ॥२१॥१॥ शुद्ध ॥