ਨਾ ਮਨੀਆਰੁ ਨ ਚੂੜੀਆ ਨਾ ਸੇ ਵੰਗੁੜੀਆਹਾ ॥
ना मनीआरु न चूड़ीआ ना से वंगुड़ीआहा ॥
तेरे पास न तो चूड़ियाँ पहनाने वाला मनिहार है, न ही सोने की चूड़ियाँ हैं और न ही कांच की चूड़ियाँ हैं।
ਜੋ ਸਹ ਕੰਠਿ ਨ ਲਗੀਆ ਜਲਨੁ ਸਿ ਬਾਹੜੀਆਹਾ ॥
जो सह कंठि न लगीआ जलनु सि बाहड़ीआहा ॥
जो बाँहें पति-प्रभु के गले के साथ नहीं लगती, वे बांहें जलन में जल जाती हैं।
ਸਭਿ ਸਹੀਆ ਸਹੁ ਰਾਵਣਿ ਗਈਆ ਹਉ ਦਾਧੀ ਕੈ ਦਰਿ ਜਾਵਾ ॥
सभि सहीआ सहु रावणि गईआ हउ दाधी कै दरि जावा ॥
मेरी सभी सखियाँ अपने पति-प्रभु के साथ आनंद करने के लिए गई हैं किन्तु मैं तुच्छ बदनसीब किसके द्वार पर जाऊँ ?
ਅੰਮਾਲੀ ਹਉ ਖਰੀ ਸੁਚਜੀ ਤੈ ਸਹ ਏਕਿ ਨ ਭਾਵਾ ॥
अमाली हउ खरी सुचजी तै सह एकि न भावा ॥
हे मेरी सखी ! अपनी तरफ से तो मैं बहुत ही शुभ आचरण वाली हूँ किन्तु मेरे उस पति-परमेश्वर को मेरा एक भी शुभ कर्म भला नहीं लगता।
ਮਾਠਿ ਗੁੰਦਾਈਂ ਪਟੀਆ ਭਰੀਐ ਮਾਗ ਸੰਧੂਰੇ ॥
माठि गुंदाईं पटीआ भरीऐ माग संधूरे ॥
अपने बालों को संवारकर मैं चोटियाँ करती हूँ और अपनी माँग में सिंदूर भर लेती हूँ।
ਅਗੈ ਗਈ ਨ ਮੰਨੀਆ ਮਰਉ ਵਿਸੂਰਿ ਵਿਸੂਰੇ ॥
अगै गई न मंनीआ मरउ विसूरि विसूरे ॥
परन्तु जब मैं अपने पति-परमेश्वर के समक्ष जाती हूँ तो स्वीकार नहीं होती और अत्यंत शोक में मर जाती हूँ।
ਮੈ ਰੋਵੰਦੀ ਸਭੁ ਜਗੁ ਰੁਨਾ ਰੁੰਨੜੇ ਵਣਹੁ ਪੰਖੇਰੂ ॥
मै रोवंदी सभु जगु रुना रुंनड़े वणहु पंखेरू ॥
मैं पीड़ित होकर विलाप करती हूँ तो सारी दुनिया भी रोती है और मेरे साथ वन के पक्षी भी विलाप करते हैं।
ਇਕੁ ਨ ਰੁਨਾ ਮੇਰੇ ਤਨ ਕਾ ਬਿਰਹਾ ਜਿਨਿ ਹਉ ਪਿਰਹੁ ਵਿਛੋੜੀ ॥
इकु न रुना मेरे तन का बिरहा जिनि हउ पिरहु विछोड़ी ॥
परन्तु एक मेरे तन की जुदा हुई आत्मा ही विलाप नहीं करती, जिसने मुझे मेरे प्रियतम से जुदा कर दिया है।
ਸੁਪਨੈ ਆਇਆ ਭੀ ਗਇਆ ਮੈ ਜਲੁ ਭਰਿਆ ਰੋਇ ॥
सुपनै आइआ भी गइआ मै जलु भरिआ रोइ ॥
वह मेरे स्वप्न में मेरे पास आया भी और फिर चला गया, जिसके विरह के दु:ख में मैं अश्रु भर कर रोई।
ਆਇ ਨ ਸਕਾ ਤੁਝ ਕਨਿ ਪਿਆਰੇ ਭੇਜਿ ਨ ਸਕਾ ਕੋਇ ॥
आइ न सका तुझ कनि पिआरे भेजि न सका कोइ ॥
हे मेरे प्रियतम ! मैं तेरे पास नहीं आ सकती, न ही मैं किसी को भेज सकती हूँ।
ਆਉ ਸਭਾਗੀ ਨੀਦੜੀਏ ਮਤੁ ਸਹੁ ਦੇਖਾ ਸੋਇ ॥
आउ सभागी नीदड़ीए मतु सहु देखा सोइ ॥
हे मेरी भाग्यशालिनी निद्रा ! आओ, शायद मैं अपने उस स्वामी को पुनः स्वप्न में देख सकूं।
ਤੈ ਸਾਹਿਬ ਕੀ ਬਾਤ ਜਿ ਆਖੈ ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਕਿਆ ਦੀਜੈ ॥
तै साहिब की बात जि आखै कहु नानक किआ दीजै ॥
नानक का कथन है कि जो मुझे मेरे मालिक की बात सुनाएगा, उसे मैं क्या भेट दूँगा ?
ਸੀਸੁ ਵਢੇ ਕਰਿ ਬੈਸਣੁ ਦੀਜੈ ਵਿਣੁ ਸਿਰ ਸੇਵ ਕਰੀਜੈ ॥
सीसु वढे करि बैसणु दीजै विणु सिर सेव करीजै ॥
अपने सिर को काटकर मैं उसे बैठने हेतु आसन पेश करूँगा तथा सिर के बिना ही उसकी सेवा करूँगा।
ਕਿਉ ਨ ਮਰੀਜੈ ਜੀਅੜਾ ਨ ਦੀਜੈ ਜਾ ਸਹੁ ਭਇਆ ਵਿਡਾਣਾ ॥੧॥੩॥
किउ न मरीजै जीअड़ा न दीजै जा सहु भइआ विडाणा ॥१॥३॥
मैं क्यों नहीं प्राण त्याग देती और अपना जीवन क्यों नहीं देती, जबकि मेरा पति-परमेश्वर किसी दूसरे का हो चुका है ॥१॥३॥
ਵਡਹੰਸੁ ਮਹਲਾ ੩ ਘਰੁ ੧
वडहंसु महला ३ घरु १
वडहंसु महला ३ घरु १
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਮਨਿ ਮੈਲੈ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਮੈਲਾ ਤਨਿ ਧੋਤੈ ਮਨੁ ਹਛਾ ਨ ਹੋਇ ॥
मनि मैलै सभु किछु मैला तनि धोतै मनु हछा न होइ ॥
यदि जीव का मन मैला है तो सब कुछ मलिन है; शरीर को धोकर शुद्ध करने से मन निर्मल नहीं होता।
ਇਹ ਜਗਤੁ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਇਆ ਵਿਰਲਾ ਬੂਝੈ ਕੋਇ ॥੧॥
इह जगतु भरमि भुलाइआ विरला बूझै कोइ ॥१॥
यह दुनिया भ्रम में भूली हुई है किन्तु कोई विरला ही इस सत्य को बूझता है॥ १॥
ਜਪਿ ਮਨ ਮੇਰੇ ਤੂ ਏਕੋ ਨਾਮੁ ॥
जपि मन मेरे तू एको नामु ॥
हे मेरे मन ! तू एक परमेश्वर के नाम का जाप कर,
ਸਤਗੁਰਿ ਦੀਆ ਮੋ ਕਉ ਏਹੁ ਨਿਧਾਨੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सतगुरि दीआ मो कउ एहु निधानु ॥१॥ रहाउ ॥
चूंकि सतिगुरु ने मुझे यही नाम-भण्डार दिया है ॥१॥ रहाउ॥
ਸਿਧਾ ਕੇ ਆਸਣ ਜੇ ਸਿਖੈ ਇੰਦ੍ਰੀ ਵਸਿ ਕਰਿ ਕਮਾਇ ॥
सिधा के आसण जे सिखै इंद्री वसि करि कमाइ ॥
यदि प्राणी सिद्ध महापुरुषों के आसन लगाना सीख ले तथा अपनी इन्द्रियों को काबू रखने का अभ्यास करे तो
ਮਨ ਕੀ ਮੈਲੁ ਨ ਉਤਰੈ ਹਉਮੈ ਮੈਲੁ ਨ ਜਾਇ ॥੨॥
मन की मैलु न उतरै हउमै मैलु न जाइ ॥२॥
भी मन की मैल दूर नहीं होती और न ही उसकी अहंकार रूपी मलिनता निवृत्त होती है ॥२॥
ਇਸੁ ਮਨ ਕਉ ਹੋਰੁ ਸੰਜਮੁ ਕੋ ਨਾਹੀ ਵਿਣੁ ਸਤਿਗੁਰ ਕੀ ਸਰਣਾਇ ॥
इसु मन कउ होरु संजमु को नाही विणु सतिगुर की सरणाइ ॥
सच्चे गुरु की शरण के बिना इस मन को किसी अन्य साधन द्वारा पावन नहीं किया जा सकता।
ਸਤਗੁਰਿ ਮਿਲਿਐ ਉਲਟੀ ਭਈ ਕਹਣਾ ਕਿਛੂ ਨ ਜਾਇ ॥੩॥
सतगुरि मिलिऐ उलटी भई कहणा किछू न जाइ ॥३॥
सतिगुरु से भेंट करने से मन का दृष्टिकोण बदल जाता है और कुछ कथन नहीं किया जा सकता ॥३॥
ਭਣਤਿ ਨਾਨਕੁ ਸਤਿਗੁਰ ਕਉ ਮਿਲਦੋ ਮਰੈ ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਫਿਰਿ ਜੀਵੈ ਕੋਇ ॥
भणति नानकु सतिगुर कउ मिलदो मरै गुर कै सबदि फिरि जीवै कोइ ॥
नानक का कथन है कि यदि कोई जीव सतिगुरु से भेंट करके सांसारिक विषय-विकारों से तटस्थ होकर मर जाए और गुरु के शब्द द्वारा फिर जीवित हो जाए तो
ਮਮਤਾ ਕੀ ਮਲੁ ਉਤਰੈ ਇਹੁ ਮਨੁ ਹਛਾ ਹੋਇ ॥੪॥੧॥
ममता की मलु उतरै इहु मनु हछा होइ ॥४॥१॥
उसकी सांसारिक मोह-ममता की मैल दूर हो जाती है और उसका यह मन निर्मल हो जाता है ॥४॥१॥
ਵਡਹੰਸੁ ਮਹਲਾ ੩ ॥
वडहंसु महला ३ ॥
वडहंसु महला ३ ॥
ਨਦਰੀ ਸਤਗੁਰੁ ਸੇਵੀਐ ਨਦਰੀ ਸੇਵਾ ਹੋਇ ॥
नदरी सतगुरु सेवीऐ नदरी सेवा होइ ॥
भगवान की कृपा-दृष्टि द्वारा ही सतगुरु की सेवा हो सकती है और उसकी करुणा से ही सेवा होती है।
ਨਦਰੀ ਇਹੁ ਮਨੁ ਵਸਿ ਆਵੈ ਨਦਰੀ ਮਨੁ ਨਿਰਮਲੁ ਹੋਇ ॥੧॥
नदरी इहु मनु वसि आवै नदरी मनु निरमलु होइ ॥१॥
उसकी करुणा-दृष्टि से यह मन वश में आता है और उसकी कृपा-दृष्टि से ही मन पावन होता है ॥१॥
ਮੇਰੇ ਮਨ ਚੇਤਿ ਸਚਾ ਸੋਇ ॥
मेरे मन चेति सचा सोइ ॥
हे मेरे मन ! हमेशा ही सच्चे प्रभु को याद करते रहो।
ਏਕੋ ਚੇਤਹਿ ਤਾ ਸੁਖੁ ਪਾਵਹਿ ਫਿਰਿ ਦੂਖੁ ਨ ਮੂਲੇ ਹੋਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
एको चेतहि ता सुखु पावहि फिरि दूखु न मूले होइ ॥१॥ रहाउ ॥
यदि तू एक परमेश्वर का नाम-स्मरण करेगा तो तुझे सुख की उपलब्धि होगी और तुझे फिर कदापि दुःख नहीं होगा ॥ १॥ रहाउ॥
ਨਦਰੀ ਮਰਿ ਕੈ ਜੀਵੀਐ ਨਦਰੀ ਸਬਦੁ ਵਸੈ ਮਨਿ ਆਇ ॥
नदरी मरि कै जीवीऐ नदरी सबदु वसै मनि आइ ॥
भगवान की कृपा-दृष्टि से ही प्राणी मोहमाया से तटस्थ होकर मर कर पुनः जीवित हो जाता है और उसकी कृपादृष्टि से ही प्रभु-शब्द आकर मन में निवास कर लेता है।
ਨਦਰੀ ਹੁਕਮੁ ਬੁਝੀਐ ਹੁਕਮੇ ਰਹੈ ਸਮਾਇ ॥੨॥
नदरी हुकमु बुझीऐ हुकमे रहै समाइ ॥२॥
उसकी कृपा-दृष्टि द्वारा उसका हुक्म समझा जाता है और जीव उसके हुक्म में समाया रहता है।॥२॥
ਜਿਨਿ ਜਿਹਵਾ ਹਰਿ ਰਸੁ ਨ ਚਖਿਓ ਸਾ ਜਿਹਵਾ ਜਲਿ ਜਾਉ ॥
जिनि जिहवा हरि रसु न चखिओ सा जिहवा जलि जाउ ॥
जिस जिह्म ने हरि-रस को नहीं चखा, वह जल जानी चाहिए।
ਅਨ ਰਸ ਸਾਦੇ ਲਗਿ ਰਹੀ ਦੁਖੁ ਪਾਇਆ ਦੂਜੈ ਭਾਇ ॥੩॥
अन रस सादे लगि रही दुखु पाइआ दूजै भाइ ॥३॥
यह दूसरे रसों के स्वाद में लगी हुई है और द्वैतभाव में फँसकर दुःख प्राप्त करती है॥ ३॥
ਸਭਨਾ ਨਦਰਿ ਏਕ ਹੈ ਆਪੇ ਫਰਕੁ ਕਰੇਇ ॥
सभना नदरि एक है आपे फरकु करेइ ॥
एक ईश्वर की सभी जीवों पर कृपा-दृष्टि एक समान ही है परन्तु कोई नेक बन जाता है और कोई बुरा बन जाता है, यह अन्तर भी प्रभु स्वयं ही बनाता है।
ਨਾਨਕ ਸਤਗੁਰਿ ਮਿਲਿਐ ਫਲੁ ਪਾਇਆ ਨਾਮੁ ਵਡਾਈ ਦੇਇ ॥੪॥੨॥
नानक सतगुरि मिलिऐ फलु पाइआ नामु वडाई देइ ॥४॥२॥
हे नानक ! सतगुरु को मिलने से ही फल प्राप्त होता है और जीव को गुरु द्वारा नाम से ही प्रशंसा प्राप्त होती है ॥४॥२॥