ੴ ਸਤਿ ਨਾਮੁ ਕਰਤਾ ਪੁਰਖੁ ਨਿਰਭਉ ਨਿਰਵੈਰੁ ਅਕਾਲ ਮੂਰਤਿ ਅਜੂਨੀ ਸੈਭੰ ਗੁਰਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सति नामु करता पुरखु निरभउ निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं गुरप्रसादि ॥
परमेश्वर एक है, उसका नाम सत्य है, वह समूची सृष्टि-मानव जाति को बनाने वाला है, वह सर्वशक्तिमान है, वह निडर है, उसकी किसी से शत्रुता नहीं अर्थात् प्रेम की मूर्ति है), वह कालातीत, वह जन्म-मरण से रहित है, वह स्वतः प्रकाशमान हुआ है और गुरु-कृपा से लब्धि होती है।
ਰਾਗੁ ਵਡਹੰਸੁ ਮਹਲਾ ੧ ਘਰੁ ੧ ॥
रागु वडहंसु महला १ घरु १ ॥
रागु वडहंसु महला १ घरु १ ॥
ਅਮਲੀ ਅਮਲੁ ਨ ਅੰਬੜੈ ਮਛੀ ਨੀਰੁ ਨ ਹੋਇ ॥
अमली अमलु न अ्मबड़ै मछी नीरु न होइ ॥
यदि अमली (नशेड़ी) व्यक्ति को अमल (नशा) न मिले और मछली को जल न मिले तो उन्हें कुछ भी अच्छा नहीं लगता।
ਜੋ ਰਤੇ ਸਹਿ ਆਪਣੈ ਤਿਨ ਭਾਵੈ ਸਭੁ ਕੋਇ ॥੧॥
जो रते सहि आपणै तिन भावै सभु कोइ ॥१॥
लेकिन जो लोग अपने मालिक के प्रेम-रंग में रंगे हुए हैं, उन्हें सब कुछ अच्छा ही लगता है।॥१॥
ਹਉ ਵਾਰੀ ਵੰਞਾ ਖੰਨੀਐ ਵੰਞਾ ਤਉ ਸਾਹਿਬ ਕੇ ਨਾਵੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हउ वारी वंञा खंनीऐ वंञा तउ साहिब के नावै ॥१॥ रहाउ ॥
हे मेरे मालिक ! मैं तेरे नाम पर बलिहारी जाता हूँ, तेरे नाम पर टुकड़े-टुकड़े होता हूँ॥ १॥ रहाउ॥
ਸਾਹਿਬੁ ਸਫਲਿਓ ਰੁਖੜਾ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਜਾ ਕਾ ਨਾਉ ॥
साहिबु सफलिओ रुखड़ा अम्रितु जा का नाउ ॥
मेरा मालिक-परमेश्वर एक फलदायक पेड़ है, जिसका फल नाम रूपी अमृत है।
ਜਿਨ ਪੀਆ ਤੇ ਤ੍ਰਿਪਤ ਭਏ ਹਉ ਤਿਨ ਬਲਿਹਾਰੈ ਜਾਉ ॥੨॥
जिन पीआ ते त्रिपत भए हउ तिन बलिहारै जाउ ॥२॥
जिन्होंने नामामृत का पान किया है, वे तृप्त हो चुके हैं और मैं उन पर बलिहारी जाता हूँ ॥२॥
ਮੈ ਕੀ ਨਦਰਿ ਨ ਆਵਹੀ ਵਸਹਿ ਹਭੀਆਂ ਨਾਲਿ ॥
मै की नदरि न आवही वसहि हभीआं नालि ॥
तुम चाहे सभी प्राणियों के साथ निवास करते रहते हो किन्तु तुम मुझे नजर नहीं आते।
ਤਿਖਾ ਤਿਹਾਇਆ ਕਿਉ ਲਹੈ ਜਾ ਸਰ ਭੀਤਰਿ ਪਾਲਿ ॥੩॥
तिखा तिहाइआ किउ लहै जा सर भीतरि पालि ॥३॥
मुझ प्यासे की प्यारा कैसे बुझ सकती है, जबकि सरोवर और मेरे भीतर अहंकार रूपी दीवार है ॥३॥
ਨਾਨਕੁ ਤੇਰਾ ਬਾਣੀਆ ਤੂ ਸਾਹਿਬੁ ਮੈ ਰਾਸਿ ॥
नानकु तेरा बाणीआ तू साहिबु मै रासि ॥
हे सच्चे मालिक ! नानक तेरा व्यापारी है और तू मेरी पूँजी है।
ਮਨ ਤੇ ਧੋਖਾ ਤਾ ਲਹੈ ਜਾ ਸਿਫਤਿ ਕਰੀ ਅਰਦਾਸਿ ॥੪॥੧॥
मन ते धोखा ता लहै जा सिफति करी अरदासि ॥४॥१॥
हे प्रभु ! मेरे मन से धोखा तभी निवृत्त हो सकता है, जब तेरी महिमा-स्तुति एवं तेरे समक्ष प्रार्थना करता रहूँ ॥४॥१॥
ਵਡਹੰਸੁ ਮਹਲਾ ੧ ॥
वडहंसु महला १ ॥
वडहंसु महला १ ॥
ਗੁਣਵੰਤੀ ਸਹੁ ਰਾਵਿਆ ਨਿਰਗੁਣਿ ਕੂਕੇ ਕਾਇ ॥
गुणवंती सहु राविआ निरगुणि कूके काइ ॥
गुणवान जीवात्मा अपने पति-प्रभु के साथ आनंद प्राप्त करती है परन्तु निर्गुण जीवात्मा क्यों शोक कर रही है?
ਜੇ ਗੁਣਵੰਤੀ ਥੀ ਰਹੈ ਤਾ ਭੀ ਸਹੁ ਰਾਵਣ ਜਾਇ ॥੧॥
जे गुणवंती थी रहै ता भी सहु रावण जाइ ॥१॥
यदि वह गुणवान बन जाए तो वह भी अपने पति-प्रभु के साथ आनंद करेगी ॥१॥
ਮੇਰਾ ਕੰਤੁ ਰੀਸਾਲੂ ਕੀ ਧਨ ਅਵਰਾ ਰਾਵੇ ਜੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मेरा कंतु रीसालू की धन अवरा रावे जी ॥१॥ रहाउ ॥
मेरा पति-प्रभु प्रेम-रस का भण्डार है, फिर जीव-स्त्री क्यों किसी अन्य के साथ आनंद करे ? ॥१॥ रहाउ ॥
ਕਰਣੀ ਕਾਮਣ ਜੇ ਥੀਐ ਜੇ ਮਨੁ ਧਾਗਾ ਹੋਇ ॥
करणी कामण जे थीऐ जे मनु धागा होइ ॥
यदि जीव-स्त्री सदाचरण करे और अपने मन को धागा बना ले तो
ਮਾਣਕੁ ਮੁਲਿ ਨ ਪਾਈਐ ਲੀਜੈ ਚਿਤਿ ਪਰੋਇ ॥੨॥
माणकु मुलि न पाईऐ लीजै चिति परोइ ॥२॥
वह उसमें अपने पति-प्रभु के मन को हीरे की भाँति पिरो लेती है जो किसी भी मूल्य पर नहीं मिल सकता ॥२॥
ਰਾਹੁ ਦਸਾਈ ਨ ਜੁਲਾਂ ਆਖਾਂ ਅੰਮੜੀਆਸੁ ॥
राहु दसाई न जुलां आखां अमड़ीआसु ॥
मैं दूसरों से मार्ग पूछती हूँ परन्तु स्वयं उस पर नहीं चलती, फिर भी कहती हूँ कि मैं पहुँच गई हूँ।
ਤੈ ਸਹ ਨਾਲਿ ਅਕੂਅਣਾ ਕਿਉ ਥੀਵੈ ਘਰ ਵਾਸੁ ॥੩॥
तै सह नालि अकूअणा किउ थीवै घर वासु ॥३॥
हे पति-परमेश्वर ! तेरे साथ तो वार्तालाप भी नहीं करती; फिर तेरे घर में मुझे कैसे निवास प्राप्त होगा।॥ ३॥
ਨਾਨਕ ਏਕੀ ਬਾਹਰਾ ਦੂਜਾ ਨਾਹੀ ਕੋਇ ॥
नानक एकी बाहरा दूजा नाही कोइ ॥
हे नानक ! एक परमेश्वर के अलावा दूसरा कोई नहीं।
ਤੈ ਸਹ ਲਗੀ ਜੇ ਰਹੈ ਭੀ ਸਹੁ ਰਾਵੈ ਸੋਇ ॥੪॥੨॥
तै सह लगी जे रहै भी सहु रावै सोइ ॥४॥२॥
यदि जीवात्मा अपने पति-परमेश्वर के साथ अनुरक्त रहे तो वह तेरे संग आनंद प्राप्त करेगी ॥४॥२॥
ਵਡਹੰਸੁ ਮਹਲਾ ੧ ਘਰੁ ੨ ॥
वडहंसु महला १ घरु २ ॥
वडहंसु महला १ घरु २ ॥
ਮੋਰੀ ਰੁਣ ਝੁਣ ਲਾਇਆ ਭੈਣੇ ਸਾਵਣੁ ਆਇਆ ॥
मोरी रुण झुण लाइआ भैणे सावणु आइआ ॥
हे मेरी बहन ! सावन का महीना आया है, सावन की काली घटा देख कर मोर खुश होकर मधुर बोल गा रहे हैं।
ਤੇਰੇ ਮੁੰਧ ਕਟਾਰੇ ਜੇਵਡਾ ਤਿਨਿ ਲੋਭੀ ਲੋਭ ਲੁਭਾਇਆ ॥
तेरे मुंध कटारे जेवडा तिनि लोभी लोभ लुभाइआ ॥
हे प्रिय ! तेरे कटार जैसे नयन रस्सी की भाँति फंसाने वाले हैं, जिन्होंने मेरे लोभी मन को मुग्ध कर लिया है।
ਤੇਰੇ ਦਰਸਨ ਵਿਟਹੁ ਖੰਨੀਐ ਵੰਞਾ ਤੇਰੇ ਨਾਮ ਵਿਟਹੁ ਕੁਰਬਾਣੋ ॥
तेरे दरसन विटहु खंनीऐ वंञा तेरे नाम विटहु कुरबाणो ॥
हे स्वामी ! तेरे दर्शन हेतु मैं टुकड़े-टुकड़े हो जाऊँ एवं तेरे नाम पर मैं सर्वदा न्यौछावर हूँ।
ਜਾ ਤੂ ਤਾ ਮੈ ਮਾਣੁ ਕੀਆ ਹੈ ਤੁਧੁ ਬਿਨੁ ਕੇਹਾ ਮੇਰਾ ਮਾਣੋ ॥
जा तू ता मै माणु कीआ है तुधु बिनु केहा मेरा माणो ॥
अब जब तू मेरा है तो मैं तुझ पर ही गर्व करती हूँ, तेरे अतिरिक्त मेरा कैसा गर्व है?
ਚੂੜਾ ਭੰਨੁ ਪਲੰਘ ਸਿਉ ਮੁੰਧੇ ਸਣੁ ਬਾਹੀ ਸਣੁ ਬਾਹਾ ॥
चूड़ा भंनु पलंघ सिउ मुंधे सणु बाही सणु बाहा ॥
हे मुग्धा नारी ! अपने पहने हुए चूड़े को पलंग सहित तोड़ दे,
ਏਤੇ ਵੇਸ ਕਰੇਦੀਏ ਮੁੰਧੇ ਸਹੁ ਰਾਤੋ ਅਵਰਾਹਾ ॥
एते वेस करेदीए मुंधे सहु रातो अवराहा ॥
हे मुग्धा नारी ! तेरे इतने हार-श्रृंगार करने के बावजूद भी तेरा पति-प्रभु किसी दूसरे की प्रीति में रंगा हुआ है।