Hindi Page 563

ਜਪਿ ਜੀਵਾ ਪ੍ਰਭ ਚਰਣ ਤੁਮਾਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जपि जीवा प्रभ चरण तुमारे ॥१॥ रहाउ ॥
तुम्हारे चरणों में जाप करता हुआ ही जीवित रहूँ ॥१॥ रहाउ॥

ਦਇਆਲ ਪੁਰਖ ਮੇਰੇ ਪ੍ਰਭ ਦਾਤੇ ॥
दइआल पुरख मेरे प्रभ दाते ॥
हे मेरे दाता प्रभु ! तू बड़ा दयालु एवं सर्वशक्तिमान है,

ਜਿਸਹਿ ਜਨਾਵਹੁ ਤਿਨਹਿ ਤੁਮ ਜਾਤੇ ॥੨॥
जिसहि जनावहु तिनहि तुम जाते ॥२॥
वही तुझे जानता है, जिसे तू सूझ प्रदान करता है ॥२॥

ਸਦਾ ਸਦਾ ਜਾਈ ਬਲਿਹਾਰੀ ॥
सदा सदा जाई बलिहारी ॥
मैं सदा-सर्वदा ही तुझ पर बलिहारी जाता हूँ और

ਇਤ ਉਤ ਦੇਖਉ ਓਟ ਤੁਮਾਰੀ ॥੩॥
इत उत देखउ ओट तुमारी ॥३॥
लोक-परलोक में तुम्हारी ही ओट देखता हूँ॥ ३॥

ਮੋਹਿ ਨਿਰਗੁਣ ਗੁਣੁ ਕਿਛੂ ਨ ਜਾਤਾ ॥
मोहि निरगुण गुणु किछू न जाता ॥
हे मालिक ! मैं गुणहीन हूँ और मैं तेरे किसी भी उपकार को नहीं जान सका।

ਨਾਨਕ ਸਾਧੂ ਦੇਖਿ ਮਨੁ ਰਾਤਾ ॥੪॥੩॥
नानक साधू देखि मनु राता ॥४॥३॥
नानक का कथन है कि साधु के दर्शन प्राप्त करके मेरा मन तेरे प्रेम-रंग में अनुरक्त हो गया है ॥४॥३॥

ਵਡਹੰਸੁ ਮਃ ੫ ॥
वडहंसु मः ५ ॥
वडहंसु महला ५ ॥

ਅੰਤਰਜਾਮੀ ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਪੂਰਾ ॥
अंतरजामी सो प्रभु पूरा ॥
वह सर्वशक्तिमान प्रभु बड़ा अंतर्यामी है।

ਦਾਨੁ ਦੇਇ ਸਾਧੂ ਕੀ ਧੂਰਾ ॥੧॥
दानु देइ साधू की धूरा ॥१॥
हे प्रभु ! मुझे साधुओं की चरण-धूलि का दान प्रदान करो॥ १॥

ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਪ੍ਰਭ ਦੀਨ ਦਇਆਲਾ ॥
करि किरपा प्रभ दीन दइआला ॥
हे दीनदयालु प्रभु ! मुझ पर कृपा करो।

ਤੇਰੀ ਓਟ ਪੂਰਨ ਗੋਪਾਲਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
तेरी ओट पूरन गोपाला ॥१॥ रहाउ ॥
हे सर्वज्ञ ! हे जगतपालक ! हमें तेरा ही आश्रय है॥ १॥ रहाउ ॥

ਜਲਿ ਥਲਿ ਮਹੀਅਲਿ ਰਹਿਆ ਭਰਪੂਰੇ ॥
जलि थलि महीअलि रहिआ भरपूरे ॥
परमात्मा जल, धरती एवं गगन में सर्वव्यापक है।

ਨਿਕਟਿ ਵਸੈ ਨਾਹੀ ਪ੍ਰਭੁ ਦੂਰੇ ॥੨॥
निकटि वसै नाही प्रभु दूरे ॥२॥
वह हमारे निकट ही निवास करता है और कहीं दूर नहीं है॥ २॥

ਜਿਸ ਨੋ ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਸੋ ਧਿਆਏ ॥
जिस नो नदरि करे सो धिआए ॥
जिस पर वह कृपा-दृष्टि करता है, वही उसका ध्यान करता है और

ਆਠ ਪਹਰ ਹਰਿ ਕੇ ਗੁਣ ਗਾਏ ॥੩॥
आठ पहर हरि के गुण गाए ॥३॥
आठ प्रहर हरि का गुणगान करता रहता है॥ ३॥

ਜੀਅ ਜੰਤ ਸਗਲੇ ਪ੍ਰਤਿਪਾਰੇ ॥
जीअ जंत सगले प्रतिपारे ॥
वह सभी जीव-जन्तुओं का पालन-पोषण करता है और

ਸਰਨਿ ਪਰਿਓ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਦੁਆਰੇ ॥੪॥੪॥
सरनि परिओ नानक हरि दुआरे ॥४॥४॥
नानक ने तो हरि के द्वार की शरण ली है ॥४॥४॥

ਵਡਹੰਸੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
वडहंसु महला ५ ॥
वडहंसु महला ५ ॥

ਤੂ ਵਡ ਦਾਤਾ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ॥
तू वड दाता अंतरजामी ॥
तू महान् दाता एवं अन्तर्यामी है।

ਸਭ ਮਹਿ ਰਵਿਆ ਪੂਰਨ ਪ੍ਰਭ ਸੁਆਮੀ ॥੧॥
सभ महि रविआ पूरन प्रभ सुआमी ॥१॥
हे मालिक प्रभु ! तू सर्वशक्तिमान है और सबमें समाया हुआ है॥ १॥

ਮੇਰੇ ਪ੍ਰਭ ਪ੍ਰੀਤਮ ਨਾਮੁ ਅਧਾਰਾ ॥
मेरे प्रभ प्रीतम नामु अधारा ॥
हे मेरे प्रियतम प्रभु ! तुम्हारे नाम का ही मुझे सहारा है और

ਹਉ ਸੁਣਿ ਸੁਣਿ ਜੀਵਾ ਨਾਮੁ ਤੁਮਾਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हउ सुणि सुणि जीवा नामु तुमारा ॥१॥ रहाउ ॥
मैं तेरा नाम सुन-सुनकर ही जीवित रहता हूँ॥ १॥ रहाउ॥

ਤੇਰੀ ਸਰਣਿ ਸਤਿਗੁਰ ਮੇਰੇ ਪੂਰੇ ॥
तेरी सरणि सतिगुर मेरे पूरे ॥
हे मेरे पूर्ण सतगुरु ! मैं तेरी शरण में हूँ।

ਮਨੁ ਨਿਰਮਲੁ ਹੋਇ ਸੰਤਾ ਧੂਰੇ ॥੨॥
मनु निरमलु होइ संता धूरे ॥२॥
संतों की चरण-धूलि से मन निर्मल हो जाता है।॥ २॥

ਚਰਨ ਕਮਲ ਹਿਰਦੈ ਉਰਿ ਧਾਰੇ ॥
चरन कमल हिरदै उरि धारे ॥
हे परमेश्वर ! अपने हृदय में तेरे सुन्दर चरण-कमलों को ही मैंने बसाया हुआ है और

ਤੇਰੇ ਦਰਸਨ ਕਉ ਜਾਈ ਬਲਿਹਾਰੇ ॥੩॥
तेरे दरसन कउ जाई बलिहारे ॥३॥
तेरे दर्शन पर मैं बलिहारी जाता हूँ॥ ३॥

ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਤੇਰੇ ਗੁਣ ਗਾਵਾ ॥
करि किरपा तेरे गुण गावा ॥
मुझ पर अपनी कृपा करो चूंकि मैं तेरा ही गुणगान करता रहूँ।

ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਜਪਤ ਸੁਖੁ ਪਾਵਾ ॥੪॥੫॥
नानक नामु जपत सुखु पावा ॥४॥५॥
हे नानक ! मैं परमात्मा के नाम का भजन करने से ही सुख प्राप्त करता हूँ॥ ४॥ ५ ॥

ਵਡਹੰਸੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
वडहंसु महला ५ ॥
वडहंसु महला ५ ॥

ਸਾਧਸੰਗਿ ਹਰਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪੀਜੈ ॥
साधसंगि हरि अम्रितु पीजै ॥
संतों की सभा में रहकर हरिनामामृत का पान करना चाहिए।

ਨਾ ਜੀਉ ਮਰੈ ਨ ਕਬਹੂ ਛੀਜੈ ॥੧॥
ना जीउ मरै न कबहू छीजै ॥१॥
इसके फलस्वरूप जीवात्मा न कभी मरती है और न ही इसका कभी नाश होता है॥ १॥

ਵਡਭਾਗੀ ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਪਾਈਐ ॥
वडभागी गुरु पूरा पाईऐ ॥
बड़े भाग्य से ही पूर्ण गुरु की प्राप्ति होती है और

ਗੁਰ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਪ੍ਰਭੂ ਧਿਆਈਐ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुर किरपा ते प्रभू धिआईऐ ॥१॥ रहाउ ॥
गुरु की कृपा से ही प्रभु का ध्यान किया जाता है॥ १॥ रहाउ॥

ਰਤਨ ਜਵਾਹਰ ਹਰਿ ਮਾਣਕ ਲਾਲਾ ॥
रतन जवाहर हरि माणक लाला ॥
हरि का नाम ही रत्न, जवाहर, माणिक एवं मोती है।

ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਪ੍ਰਭ ਭਏ ਨਿਹਾਲਾ ॥੨॥
सिमरि सिमरि प्रभ भए निहाला ॥२॥
प्रभु का सिमरन करने से मैं कृतार्थ हो गया हूँ॥ २॥

ਜਤ ਕਤ ਪੇਖਉ ਸਾਧੂ ਸਰਣਾ ॥
जत कत पेखउ साधू सरणा ॥
जहाँ-कहीं भी मैं देखता हूँ साधु के अतिरिक्त कोई शरण-स्थल नजर नहीं आता।

ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਇ ਨਿਰਮਲ ਮਨੁ ਕਰਣਾ ॥੩॥
हरि गुण गाइ निरमल मनु करणा ॥३॥
हरि का गुणगान करने से मन निर्मल हो जाता है॥ ३॥

ਘਟ ਘਟ ਅੰਤਰਿ ਮੇਰਾ ਸੁਆਮੀ ਵੂਠਾ ॥
घट घट अंतरि मेरा सुआमी वूठा ॥
सभी के हृदय में मेरा मालिक प्रभु ही निवास कर रहा है।

ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਪਾਇਆ ਪ੍ਰਭੁ ਤੂਠਾ ॥੪॥੬॥
नानक नामु पाइआ प्रभु तूठा ॥४॥६॥
हे नानक ! जब परमात्मा प्रसन्न होता है तो ही जीव को नाम की देन मिलती है ॥४॥६॥

ਵਡਹੰਸੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
वडहंसु महला ५ ॥
वडहंसु महला ५ ॥

ਵਿਸਰੁ ਨਾਹੀ ਪ੍ਰਭ ਦੀਨ ਦਇਆਲਾ ॥
विसरु नाही प्रभ दीन दइआला ॥
हे दीनदयाल प्रभु ! सदा मेरी याद में रहो और मुझे कदापि न भूलो।

ਤੇਰੀ ਸਰਣਿ ਪੂਰਨ ਕਿਰਪਾਲਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
तेरी सरणि पूरन किरपाला ॥१॥ रहाउ ॥
हे पूर्ण कृपालु ! मैं तो तेरी शरण में ही आया हूँ॥ १॥ रहाउ॥

ਜਹ ਚਿਤਿ ਆਵਹਿ ਸੋ ਥਾਨੁ ਸੁਹਾਵਾ ॥
जह चिति आवहि सो थानु सुहावा ॥
हे प्रभु ! जहाँ कहीं भी तुम याद आते हो, वह स्थान सुहावना हो जाता है।

ਜਿਤੁ ਵੇਲਾ ਵਿਸਰਹਿ ਤਾ ਲਾਗੈ ਹਾਵਾ ॥੧॥
जितु वेला विसरहि ता लागै हावा ॥१॥
जिस समय भी मैं तुझे भुला देता हूँ तो दुःखी होकर मुझे पछतावा होता है ॥ १॥

ਤੇਰੇ ਜੀਅ ਤੂ ਸਦ ਹੀ ਸਾਥੀ ॥
तेरे जीअ तू सद ही साथी ॥
ये सभी जीव तेरे ही हैं और तुम उनके सर्वदा ही साथी हो।

ਸੰਸਾਰ ਸਾਗਰ ਤੇ ਕਢੁ ਦੇ ਹਾਥੀ ॥੨॥
संसार सागर ते कढु दे हाथी ॥२॥
अपना हाथ देकर हमें भयानक संसार-सागर से बाहर निकाल दो ॥ २॥

ਆਵਣੁ ਜਾਣਾ ਤੁਮ ਹੀ ਕੀਆ ॥
आवणु जाणा तुम ही कीआ ॥
यह जीवन-मृत्यु का बन्धन तुम्हारे द्वारा ही बनाया हुआ है।

ਜਿਸੁ ਤੂ ਰਾਖਹਿ ਤਿਸੁ ਦੂਖੁ ਨ ਥੀਆ ॥੩॥
जिसु तू राखहि तिसु दूखु न थीआ ॥३॥
जिसकी तू स्वयं रक्षा करता है, उसे कोई दु:ख प्रभावित नहीं करता॥ ३ ॥

ਤੂ ਏਕੋ ਸਾਹਿਬੁ ਅਵਰੁ ਨ ਹੋਰਿ ॥
तू एको साहिबु अवरु न होरि ॥
एक तू ही सबका मालिक है और (इस विश्व में) दूसरा कोई भी नहीं है,”

ਬਿਨਉ ਕਰੈ ਨਾਨਕੁ ਕਰ ਜੋਰਿ ॥੪॥੭॥
बिनउ करै नानकु कर जोरि ॥४॥७॥
तेरे समक्ष नानक हाथ जोड़कर यही प्रार्थना करता है ॥४॥७॥

ਵਡਹੰਸੁ ਮਃ ੫ ॥
वडहंसु मः ५ ॥
वडहंसु मः ५ ॥

ਤੂ ਜਾਣਾਇਹਿ ਤਾ ਕੋਈ ਜਾਣੈ ॥
तू जाणाइहि ता कोई जाणै ॥
हे पूज्य परमेश्वर ! जब तू ज्ञान प्रदान करता है तो ही कोई तुझे समझता है और

ਤੇਰਾ ਦੀਆ ਨਾਮੁ ਵਖਾਣੈ ॥੧॥
तेरा दीआ नामु वखाणै ॥१॥
फिर वह तेरे प्रदान किए हुए नाम का जाप करता है॥ १॥

ਤੂ ਅਚਰਜੁ ਕੁਦਰਤਿ ਤੇਰੀ ਬਿਸਮਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
तू अचरजु कुदरति तेरी बिसमा ॥१॥ रहाउ ॥
तू अद्भुत है और तेरी कुदरत भी आश्चर्यजनक है॥ १॥ रहाउ॥

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