ਧਨੁ ਧੰਨੁ ਗੁਰੂ ਗੁਰ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਨਾਨਕ ਮਨਿ ਆਸ ਪੁਜਾਏ ॥੪॥
धनु धंनु गुरू गुर सतिगुरु पूरा नानक मनि आस पुजाए ॥४॥
हे नानक ! मेरा पूर्ण गुरु-सतगुरु धन्य-धन्य है, जो मेरे मन की आशा पूरी करता है ॥४॥
ਗੁਰੁ ਸਜਣੁ ਮੇਰਾ ਮੇਲਿ ਹਰੇ ਜਿਤੁ ਮਿਲਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਵਾ ॥
गुरु सजणु मेरा मेलि हरे जितु मिलि हरि नामु धिआवा ॥
हे हरि ! मुझे मेरा सज्जन गुरु मिला दो, जिससे मिलकर मैं हरि-नाम का ध्यान करता रहूँ।
ਗੁਰ ਸਤਿਗੁਰ ਪਾਸਹੁ ਹਰਿ ਗੋਸਟਿ ਪੂਛਾਂ ਕਰਿ ਸਾਂਝੀ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਵਾਂ ॥
गुर सतिगुर पासहु हरि गोसटि पूछां करि सांझी हरि गुण गावां ॥
मैं गुरु-सतगुरु से हरि की गोष्टि-वार्ता पूछू और उससे सांझ डालकर हरि का गुणगान करूँ।
ਗੁਣ ਗਾਵਾ ਨਿਤ ਨਿਤ ਸਦ ਹਰਿ ਕੇ ਮਨੁ ਜੀਵੈ ਨਾਮੁ ਸੁਣਿ ਤੇਰਾ ॥
गुण गावा नित नित सद हरि के मनु जीवै नामु सुणि तेरा ॥
हे हरि ! मैं नित्य-नित्य सर्वदा ही तेरा गुणगान करता रहूँ और तेरा नाम सुनकर मेरा मन आध्यात्मिक रूप से जीवित है।
ਨਾਨਕ ਜਿਤੁ ਵੇਲਾ ਵਿਸਰੈ ਮੇਰਾ ਸੁਆਮੀ ਤਿਤੁ ਵੇਲੈ ਮਰਿ ਜਾਇ ਜੀਉ ਮੇਰਾ ॥੫॥
नानक जितु वेला विसरै मेरा सुआमी तितु वेलै मरि जाइ जीउ मेरा ॥५॥
हे नानक ! जिस समय मुझे मेरा स्वामी प्रभु विस्मृत हो जाता है, उस समय मेरी आत्मा मर जाती है।॥५॥
ਹਰਿ ਵੇਖਣ ਕਉ ਸਭੁ ਕੋਈ ਲੋਚੈ ਸੋ ਵੇਖੈ ਜਿਸੁ ਆਪਿ ਵਿਖਾਲੇ ॥
हरि वेखण कउ सभु कोई लोचै सो वेखै जिसु आपि विखाले ॥
हर कोई हरि-दर्शन की तीव्र लालसा करता है लेकिन हरि उसे ही अपने दर्शन देता है, जिसे वह अपने दर्शन स्वयं प्रदान करता है।
ਜਿਸ ਨੋ ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਮੇਰਾ ਪਿਆਰਾ ਸੋ ਹਰਿ ਹਰਿ ਸਦਾ ਸਮਾਲੇ ॥
जिस नो नदरि करे मेरा पिआरा सो हरि हरि सदा समाले ॥
मेरा प्रियतम जिस पर कृपा-दृष्टि करता है, वह सर्वदा ही परमेश्वर का सिमरन करता है।
ਸੋ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਸਦਾ ਸਦਾ ਸਮਾਲੇ ਜਿਸੁ ਸਤਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਮੇਰਾ ਮਿਲਿਆ ॥
सो हरि हरि नामु सदा सदा समाले जिसु सतगुरु पूरा मेरा मिलिआ ॥
जिसे मेरा पूर्ण सतगुरु मिल जाता है, वह सर्वदा ही हरि-नाम की आराधना करता रहता है।
ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਜਨ ਹਰਿ ਇਕੇ ਹੋਏ ਹਰਿ ਜਪਿ ਹਰਿ ਸੇਤੀ ਰਲਿਆ ॥੬॥੧॥੩॥
नानक हरि जन हरि इके होए हरि जपि हरि सेती रलिआ ॥६॥१॥३॥
हे नानक ! हरि का सेवक एवं हरि एक ही रूप हो गए हैं।चूंकि हरि का जाप करने से हरि-सेवक भी हरि में ही समा गया है॥ ६ ॥ १॥ ३ ॥
ਵਡਹੰਸੁ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੧
वडहंसु महला ५ घरु १
वडहंसु महला ५ घरु १
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਅਤਿ ਊਚਾ ਤਾ ਕਾ ਦਰਬਾਰਾ ॥
अति ऊचा ता का दरबारा ॥
उस भगवान का दरबार अत्यंत ऊँचा है तथा
ਅੰਤੁ ਨਾਹੀ ਕਿਛੁ ਪਾਰਾਵਾਰਾ ॥
अंतु नाही किछु पारावारा ॥
उसका कोई अन्त अथवा कोई ओर-छोर नहीं।
ਕੋਟਿ ਕੋਟਿ ਕੋਟਿ ਲਖ ਧਾਵੈ ॥
कोटि कोटि कोटि लख धावै ॥
करोड़ों, करोड़ों, करोड़ों-लाखों ही जीव भागदौड़ करते हैं किन्तु
ਇਕੁ ਤਿਲੁ ਤਾ ਕਾ ਮਹਲੁ ਨ ਪਾਵੈ ॥੧॥
इकु तिलु ता का महलु न पावै ॥१॥
उसके यथार्थ निवास का भेद एक तिल मात्र भी नहीं पा सकते ॥१॥
ਸੁਹਾਵੀ ਕਉਣੁ ਸੁ ਵੇਲਾ ਜਿਤੁ ਪ੍ਰਭ ਮੇਲਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सुहावी कउणु सु वेला जितु प्रभ मेला ॥१॥ रहाउ ॥
वह कौन-सा समय शुभ सुहावना है, जब प्रभु से मिलन होता है॥ १॥ रहाउ ॥
ਲਾਖ ਭਗਤ ਜਾ ਕਉ ਆਰਾਧਹਿ ॥
लाख भगत जा कउ आराधहि ॥
जिस परमात्मा की लाखों ही भक्त आराधना करते हैं।
ਲਾਖ ਤਪੀਸਰ ਤਪੁ ਹੀ ਸਾਧਹਿ ॥
लाख तपीसर तपु ही साधहि ॥
लाखों ही तपस्वी उसकी तपस्या करते हैं।
ਲਾਖ ਜੋਗੀਸਰ ਕਰਤੇ ਜੋਗਾ ॥
लाख जोगीसर करते जोगा ॥
लाखों ही योगेश्वर योग-साधना करते हैं।
ਲਾਖ ਭੋਗੀਸਰ ਭੋਗਹਿ ਭੋਗਾ ॥੨॥
लाख भोगीसर भोगहि भोगा ॥२॥
लाखों ही भोगी उसके भोगों को भोगते रहते हैं।॥ २॥
ਘਟਿ ਘਟਿ ਵਸਹਿ ਜਾਣਹਿ ਥੋਰਾ ॥
घटि घटि वसहि जाणहि थोरा ॥
वह प्रत्येक हृदय में निवास करता है परन्तु बहुत थोड़े ही इसे जानते हैं।
ਹੈ ਕੋਈ ਸਾਜਣੁ ਪਰਦਾ ਤੋਰਾ ॥
है कोई साजणु परदा तोरा ॥
क्या कोई ऐसा सज्जन है, जो प्रभु और हमारे बीच बनी हुई झूठ की दीवार को तोड़ दे ?
ਕਰਉ ਜਤਨ ਜੇ ਹੋਇ ਮਿਹਰਵਾਨਾ ॥
करउ जतन जे होइ मिहरवाना ॥
मैं कोई ऐसा प्रयास करता हूँ कि वह परमात्मा हम पर मेहरबान हो जाए और
ਤਾ ਕਉ ਦੇਈ ਜੀਉ ਕੁਰਬਾਨਾ ॥੩॥
ता कउ देई जीउ कुरबाना ॥३॥
फिर मैं उस पर अपना जीवन न्योछावर कर दूँ॥ ३ ॥
ਫਿਰਤ ਫਿਰਤ ਸੰਤਨ ਪਹਿ ਆਇਆ ॥
फिरत फिरत संतन पहि आइआ ॥
प्रभु-खोज में भटकता-भटकता मैं संतों के पास आया हूँ और
ਦੂਖ ਭ੍ਰਮੁ ਹਮਾਰਾ ਸਗਲ ਮਿਟਾਇਆ ॥
दूख भ्रमु हमारा सगल मिटाइआ ॥
उन्होंने मेरे सभी दुःख एवं भ्रम मिटा दिए हैं।
ਮਹਲਿ ਬੁਲਾਇਆ ਪ੍ਰਭ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਭੂੰਚਾ ॥
महलि बुलाइआ प्रभ अम्रितु भूंचा ॥
नामामृत का पान करने के लिए प्रभु ने मुझे अपने चरणाश्रय में बुलाया है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭੁ ਮੇਰਾ ਊਚਾ ॥੪॥੧॥
कहु नानक प्रभु मेरा ऊचा ॥४॥१॥
हे नानक ! मेरा प्रभु सबसे बड़ा एवं सर्वोपरि है॥ ४॥ १॥
ਵਡਹੰਸੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
वडहंसु महला ५ ॥
वडहंसु महला ५॥
ਧਨੁ ਸੁ ਵੇਲਾ ਜਿਤੁ ਦਰਸਨੁ ਕਰਣਾ ॥
धनु सु वेला जितु दरसनु करणा ॥
वह समय बड़ा शुभ एवं धन्य है, जब परमात्मा के दर्शन प्राप्त होते हैं।
ਹਉ ਬਲਿਹਾਰੀ ਸਤਿਗੁਰ ਚਰਣਾ ॥੧॥
हउ बलिहारी सतिगुर चरणा ॥१॥
मैं अपने सतिगुरु के चरणों पर बलिहारी जाता हूँ॥ १॥
ਜੀਅ ਕੇ ਦਾਤੇ ਪ੍ਰੀਤਮ ਪ੍ਰਭ ਮੇਰੇ ॥
जीअ के दाते प्रीतम प्रभ मेरे ॥
हे मेरे प्रियतम प्रभु ! तुम हम सभी के प्राणदाता हो।
ਮਨੁ ਜੀਵੈ ਪ੍ਰਭ ਨਾਮੁ ਚਿਤੇਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मनु जीवै प्रभ नामु चितेरे ॥१॥ रहाउ ॥
मेरा मन तो प्रभु का नाम-स्मरण करने से ही जीवित है॥ १॥ रहाउ॥
ਸਚੁ ਮੰਤ੍ਰੁ ਤੁਮਾਰਾ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਬਾਣੀ ॥
सचु मंत्रु तुमारा अम्रित बाणी ॥
हे सर्वेश्वर ! तुम्हारा नाम-मंत्र ही सत्य है और तुम्हारी वाणी अमृत है।
ਸੀਤਲ ਪੁਰਖ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਸੁਜਾਣੀ ॥੨॥
सीतल पुरख द्रिसटि सुजाणी ॥२॥
तू शीतल शान्ति देने वाला है और तेरी दृष्टि त्रिकालदर्शी है ॥२॥
ਸਚੁ ਹੁਕਮੁ ਤੁਮਾਰਾ ਤਖਤਿ ਨਿਵਾਸੀ ॥
सचु हुकमु तुमारा तखति निवासी ॥
तुम्हारा हुक्म सत्य है और तुम ही सिंहासन पर विराजमान होने वाले हो।
ਆਇ ਨ ਜਾਵੈ ਮੇਰਾ ਪ੍ਰਭੁ ਅਬਿਨਾਸੀ ॥੩॥
आइ न जावै मेरा प्रभु अबिनासी ॥३॥
मेरा प्रभु अमर है और वह जन्म-मरण के चक्र में नहीं आता ॥३॥
ਤੁਮ ਮਿਹਰਵਾਨ ਦਾਸ ਹਮ ਦੀਨਾ ॥
तुम मिहरवान दास हम दीना ॥
तुम हमारे मेहरबान मालिक हो और हम तेरे दीन सेवक हैं।
ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬੁ ਭਰਪੁਰਿ ਲੀਣਾ ॥੪॥੨॥
नानक साहिबु भरपुरि लीणा ॥४॥२॥
हे नानक ! सबका मालिक प्रभु सर्वव्यापक है॥ ४॥ २॥
ਵਡਹੰਸੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
वडहंसु महला ५ ॥
वडहंसु महला ५ ॥
ਤੂ ਬੇਅੰਤੁ ਕੋ ਵਿਰਲਾ ਜਾਣੈ ॥
तू बेअंतु को विरला जाणै ॥
हे हरि ! तू बेअंत है और कोई विरला ही इस रहस्य को जानता है।
ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਕੋ ਸਬਦਿ ਪਛਾਣੈ ॥੧॥
गुर प्रसादि को सबदि पछाणै ॥१॥
गुरु की कृपा से कोई विरला ही शब्द की पहचान करता है॥ १॥
ਸੇਵਕ ਕੀ ਅਰਦਾਸਿ ਪਿਆਰੇ ॥
सेवक की अरदासि पिआरे ॥
हे प्रियतम ! तेरे सेवक की यही विनम्र प्रार्थना है कि