Hindi Page 699

ਹਰਿ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਪਾ ਧਾਰਿ ਗੁਰ ਮੇਲਹੁ ਗੁਰਿ ਮਿਲਿਐ ਹਰਿ ਓੁਮਾਹਾ ਰਾਮ ॥੩॥
हरि हरि क्रिपा धारि गुर मेलहु गुरि मिलिऐ हरि ओमाहा राम ॥३॥
हे हरि ! कृपा करके मुझे गुरु से मिला दो, क्योंकि गुरु से मिलकर ही तेरे प्रति उमंग पैदा होती है।॥ ३॥

ਕਰਿ ਕੀਰਤਿ ਜਸੁ ਅਗਮ ਅਥਾਹਾ ॥
करि कीरति जसु अगम अथाहा ॥
उस अगम्य एवं अनंत प्रभु का कीर्ति-गान करो,”

ਖਿਨੁ ਖਿਨੁ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਗਾਵਾਹਾ ॥
खिनु खिनु राम नामु गावाहा ॥
क्षण-क्षण राम-नाम का स्तुतिगान करो।

ਮੋ ਕਉ ਧਾਰਿ ਕ੍ਰਿਪਾ ਮਿਲੀਐ ਗੁਰ ਦਾਤੇ ਹਰਿ ਨਾਨਕ ਭਗਤਿ ਓੁਮਾਹਾ ਰਾਮ ॥੪॥੨॥੮॥
मो कउ धारि क्रिपा मिलीऐ गुर दाते हरि नानक भगति ओमाहा राम ॥४॥२॥८॥
हे मेरे दाता गुरु ! कृपा करके मुझे दर्शन दीजिए, चूंकि नानक को तो भगवान की भक्ति की तीव्र लालसा लगी हुई है ॥४॥२॥८॥

ਜੈਤਸਰੀ ਮਃ ੪ ॥
जैतसरी मः ४ ॥
जैतसरी मः ४ ॥

ਰਸਿ ਰਸਿ ਰਾਮੁ ਰਸਾਲੁ ਸਲਾਹਾ ॥
रसि रसि रामु रसालु सलाहा ॥
मैं प्रेमपूर्वक रसों के घर राम का स्तुतिगान करता हूँ।

ਮਨੁ ਰਾਮ ਨਾਮਿ ਭੀਨਾ ਲੈ ਲਾਹਾ ॥
मनु राम नामि भीना लै लाहा ॥
मेरा मन राम के नाम से प्रसन्न हो गया है और नाम का लाभ प्राप्त कर रहा है।

ਖਿਨੁ ਖਿਨੁ ਭਗਤਿ ਕਰਹ ਦਿਨੁ ਰਾਤੀ ਗੁਰਮਤਿ ਭਗਤਿ ਓੁਮਾਹਾ ਰਾਮ ॥੧॥
खिनु खिनु भगति करह दिनु राती गुरमति भगति ओमाहा राम ॥१॥
मैं दिन-रात प्रत्येक क्षण भक्ति करता हूँ और गुरु के उपदेश द्वारा मेरे मन में भक्ति की उमंग उत्पन्न होती है ॥१॥

ਹਰਿ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗੋਵਿੰਦ ਜਪਾਹਾ ॥
हरि हरि गुण गोविंद जपाहा ॥
मैं भगवान का गुणगान करता हूँ, गोविन्द का जाप जपता रहता हूँ।

ਮਨੁ ਤਨੁ ਜੀਤਿ ਸਬਦੁ ਲੈ ਲਾਹਾ ॥
मनु तनु जीति सबदु लै लाहा ॥
अपने मन एवं तन पर विजय प्राप्त करके शब्द-गुरु का लाभ प्राप्त किया है।

ਗੁਰਮਤਿ ਪੰਚ ਦੂਤ ਵਸਿ ਆਵਹਿ ਮਨਿ ਤਨਿ ਹਰਿ ਓਮਾਹਾ ਰਾਮ ॥੨॥
गुरमति पंच दूत वसि आवहि मनि तनि हरि ओमाहा राम ॥२॥
गुरु की शिक्षा द्वारा कामादिक शत्रु नियन्त्रण में आ गए हैं और मन एवं तन में भगवान की भक्ति का चाव उत्पन्न होता रहता है॥ २॥

ਨਾਮੁ ਰਤਨੁ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜਪਾਹਾ ॥
नामु रतनु हरि नामु जपाहा ॥
नाम अमूल्य रत्न है, अंतः हरि-नाम का जाप करो।

ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਇ ਸਦਾ ਲੈ ਲਾਹਾ ॥
हरि गुण गाइ सदा लै लाहा ॥
भगवान का स्तुतिगान कर सदैव ही लाभ प्राप्त करो।

ਦੀਨ ਦਇਆਲ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰਿ ਮਾਧੋ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਓੁਮਾਹਾ ਰਾਮ ॥੩॥
दीन दइआल क्रिपा करि माधो हरि हरि नामु ओमाहा राम ॥३॥
हे दीनदयालु परमेश्वर ! मुझ पर कृपा करो और मेरे मन में नाम की लालसा उत्पन्न कर ॥ ३॥

ਜਪਿ ਜਗਦੀਸੁ ਜਪਉ ਮਨ ਮਾਹਾ ॥
जपि जगदीसु जपउ मन माहा ॥
अपने मन में जगदीश्वर का जाप जपता रहूँ।

ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਗੰਨਾਥੁ ਜਗਿ ਲਾਹਾ ॥
हरि हरि जगंनाथु जगि लाहा ॥
इस जगत में जगन्नाथ हरि-नाम ही लाभप्रद है।

ਧਨੁ ਧਨੁ ਵਡੇ ਠਾਕੁਰ ਪ੍ਰਭ ਮੇਰੇ ਜਪਿ ਨਾਨਕ ਭਗਤਿ ਓਮਾਹਾ ਰਾਮ ॥੪॥੩॥੯॥
धनु धनु वडे ठाकुर प्रभ मेरे जपि नानक भगति ओमाहा राम ॥४॥३॥९॥
नानक का कथन है कि हे मेरे ठाकुर प्रभु ! तू बड़ा धन्य-धन्य है, क्योंकि तेरा नाम जपकर ही भक्ति करने का चाव उत्पन्न होता है। ॥४॥३॥९॥

ਜੈਤਸਰੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥
जैतसरी महला ४ ॥
जैतसरी महला ४ ॥

ਆਪੇ ਜੋਗੀ ਜੁਗਤਿ ਜੁਗਾਹਾ ॥
आपे जोगी जुगति जुगाहा ॥
ईश्वर स्वयं ही योगी है और स्वयं ही समस्त युगों में योग की युक्ति है।

ਆਪੇ ਨਿਰਭਉ ਤਾੜੀ ਲਾਹਾ ॥
आपे निरभउ ताड़ी लाहा ॥
वह स्वयं ही निर्भीक होकर समाधि लगाता है।

ਆਪੇ ਹੀ ਆਪਿ ਆਪਿ ਵਰਤੈ ਆਪੇ ਨਾਮਿ ਓੁਮਾਹਾ ਰਾਮ ॥੧॥
आपे ही आपि आपि वरतै आपे नामि ओमाहा राम ॥१॥
वह स्वयं ही सर्वव्यापक हो रहा है और मनुष्य को स्वयं ही नाम-सिमरन की उमंग प्रदान करता है॥ १॥

ਆਪੇ ਦੀਪ ਲੋਅ ਦੀਪਾਹਾ ॥
आपे दीप लोअ दीपाहा ॥
वह स्वयं ही दीप, प्रकाश एवं प्रकाश करने वाला है।

ਆਪੇ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸਮੁੰਦੁ ਮਥਾਹਾ ॥
आपे सतिगुरु समुंदु मथाहा ॥
वह स्वयं ही सतगुरु है और स्वयं समुद्र मंथन करने वाला है।

ਆਪੇ ਮਥਿ ਮਥਿ ਤਤੁ ਕਢਾਏ ਜਪਿ ਨਾਮੁ ਰਤਨੁ ਓੁਮਾਹਾ ਰਾਮ ॥੨॥
आपे मथि मथि ततु कढाए जपि नामु रतनु ओमाहा राम ॥२॥
वह स्वयं ही मंथन करके तत्व निकालता है और नाम-रत्न का जाप करने से मन में भक्ति करने का चाव उत्पन्न होता है॥ २ ॥

ਸਖੀ ਮਿਲਹੁ ਮਿਲਿ ਗੁਣ ਗਾਵਾਹਾ ॥
सखी मिलहु मिलि गुण गावाहा ॥
हे सत्संगी सखियों ! आओ, हम मिलकर भगवान का गुणगान करें।

ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਜਪਹੁ ਹਰਿ ਲਾਹਾ ॥
गुरमुखि नामु जपहु हरि लाहा ॥
गुरु के उन्मुख रहकर नाम का जाप करो और भगवान के नाम का लाभ प्राप्त करो।

ਹਰਿ ਹਰਿ ਭਗਤਿ ਦ੍ਰਿੜੀ ਮਨਿ ਭਾਈ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਓੁਮਾਹਾ ਰਾਮ ॥੩॥
हरि हरि भगति द्रिड़ी मनि भाई हरि हरि नामु ओमाहा राम ॥३॥
मैंने हरि की भक्ति अपने मन में दृढ़ कर ली है और यही मेरे मन को भा गई है। हरि का नाम-सिमरन करने से मन में उत्साह बना रहता है॥ ३॥

ਆਪੇ ਵਡ ਦਾਣਾ ਵਡ ਸਾਹਾ ॥
आपे वड दाणा वड साहा ॥
भगवान स्वयं ही बड़ा चतुर एवं महान् शाह है और

ਗੁਰਮੁਖਿ ਪੂੰਜੀ ਨਾਮੁ ਵਿਸਾਹਾ ॥
गुरमुखि पूंजी नामु विसाहा ॥
गुरु के सान्निध्य में रहकर ही नाम की पूंजी प्राप्त होती है।

ਹਰਿ ਹਰਿ ਦਾਤਿ ਕਰਹੁ ਪ੍ਰਭ ਭਾਵੈ ਗੁਣ ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਓੁਮਾਹਾ ਰਾਮ ॥੪॥੪॥੧੦॥
हरि हरि दाति करहु प्रभ भावै गुण नानक नामु ओमाहा राम ॥४॥४॥१०॥
नानक प्रार्थना करता है कि हे प्रभु ! कृपा करके मुझे नाम की देन प्रदान करो क्योंकि तेरे ही गुण मुझे भाते हैं और मेरे हृदय में नाम का उत्साह बना रहे ॥४॥४॥१०॥

ਜੈਤਸਰੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥
जैतसरी महला ४ ॥
जैतसरी महला ४ ॥

ਮਿਲਿ ਸਤਸੰਗਤਿ ਸੰਗਿ ਗੁਰਾਹਾ ॥
मिलि सतसंगति संगि गुराहा ॥
मैं सतसंगति में मिलकर गुरु की संगत करता हूँ

ਪੂੰਜੀ ਨਾਮੁ ਗੁਰਮੁਖਿ ਵੇਸਾਹਾ ॥
पूंजी नामु गुरमुखि वेसाहा ॥
नाम की पूंजी संचित करता हूँ।

ਹਰਿ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਪਾ ਧਾਰਿ ਮਧੁਸੂਦਨ ਮਿਲਿ ਸਤਸੰਗਿ ਓੁਮਾਹਾ ਰਾਮ ॥੧॥
हरि हरि क्रिपा धारि मधुसूदन मिलि सतसंगि ओमाहा राम ॥१॥
हे मधुसूदन ! हे हरि ! मुझ पर कृपा करो ताकि सतसंगति में मिलकर मन में तेरी भक्ति करने के लिए तीव्र लालसा बनी रहे॥ १॥

ਹਰਿ ਗੁਣ ਬਾਣੀ ਸ੍ਰਵਣਿ ਸੁਣਾਹਾ ॥ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਸਤਿਗੁਰੂ ਮਿਲਾਹਾ ॥
हरि गुण बाणी स्रवणि सुणाहा ॥ करि किरपा सतिगुरू मिलाहा ॥
वाणी द्वारा अपने कानों से भगवान के गुण श्रवण करूँ हे परमेश्वर ! कृपा करके मुझे सतगुरु से मिला दो।

ਗੁਣ ਗਾਵਹ ਗੁਣ ਬੋਲਹ ਬਾਣੀ ਹਰਿ ਗੁਣ ਜਪਿ ਓੁਮਾਹਾ ਰਾਮ ॥੨॥
गुण गावह गुण बोलह बाणी हरि गुण जपि ओमाहा राम ॥२॥
मैं हरि का गुणगान करूँ, वाणी द्वारा तेरे गुण उच्चारण करूँ और हरि के गुण जपकर मेरे मन में तुझे मिलने के लिए उत्साह बना रहे ॥२॥

ਸਭਿ ਤੀਰਥ ਵਰਤ ਜਗ ਪੁੰਨ ਤੋੁਲਾਹਾ ॥
सभि तीरथ वरत जग पुंन तोलाहा ॥
मैंने समस्त तीर्थ, व्रत, यज्ञ एवं दान पुण्य के फलों को तोल लिया है।

ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮ ਨ ਪੁਜਹਿ ਪੁਜਾਹਾ ॥
हरि हरि नाम न पुजहि पुजाहा ॥
परन्तु यह सभी हरि-नाम सिमरण के बराबर नहीं पहुँचते।

ਹਰਿ ਹਰਿ ਅਤੁਲੁ ਤੋਲੁ ਅਤਿ ਭਾਰੀ ਗੁਰਮਤਿ ਜਪਿ ਓੁਮਾਹਾ ਰਾਮ ॥੩॥
हरि हरि अतुलु तोलु अति भारी गुरमति जपि ओमाहा राम ॥३॥
हरि का नाम अतुलनीय है, अत्यन्त महान् होने के कारण इसे तोला नहीं जा सकता, गुरु के उपदेश द्वारा ही हरि-नाम का जाप करने का उत्साह पैदा होता है॥ ३॥

ਸਭਿ ਕਰਮ ਧਰਮ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜਪਾਹਾ ॥
सभि करम धरम हरि नामु जपाहा ॥
जो हरि-नाम जपता है, उसे सभी धर्म-कर्मो का फल मिल जाता है,

ਕਿਲਵਿਖ ਮੈਲੁ ਪਾਪ ਧੋਵਾਹਾ ॥
किलविख मैलु पाप धोवाहा ॥
इससे किल्विष-पापों की सारी मैल धुल जाती है।

ਦੀਨ ਦਇਆਲ ਹੋਹੁ ਜਨ ਊਪਰਿ ਦੇਹੁ ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਓਮਾਹਾ ਰਾਮ ॥੪॥੫॥੧੧॥
दीन दइआल होहु जन ऊपरि देहु नानक नामु ओमाहा राम ॥४॥५॥११॥
नानक प्रार्थना करता है कि हे दीनदयालु ! अपने सेवक पर दयालु हो जाओ तथा मेरे हृदय में अपना नाम देकर उत्साह बनाए रखो ॥४॥५॥११॥

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