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ਨਾਨਕ ਆਪੇ ਵੇਖੈ ਆਪੇ ਸਚਿ ਲਾਏ ॥੪॥੭॥
नानक आपे वेखै आपे सचि लाए ॥४॥७॥
हे नानक ! वह स्वयं सबको देखता रहता है और स्वयं ही मनुष्य को सत्य-नाम में लगाता है॥४॥७॥

ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੩ ॥
धनासरी महला ३ ॥
धनासरी महला ३ ॥

ਨਾਵੈ ਕੀ ਕੀਮਤਿ ਮਿਤਿ ਕਹੀ ਨ ਜਾਇ ॥
नावै की कीमति मिति कही न जाइ ॥
परमात्मा के नाम का मूल्य एवं विस्तार व्यक्त नहीं किया जा सकता।

ਸੇ ਜਨ ਧੰਨੁ ਜਿਨ ਇਕ ਨਾਮਿ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥
से जन धंनु जिन इक नामि लिव लाइ ॥
वे भक्तजन बड़े खुशनसीब हैं, जिन्होंने एक नाम में अपनी सुरति लगाई है।

ਗੁਰਮਤਿ ਸਾਚੀ ਸਾਚਾ ਵੀਚਾਰੁ ॥
गुरमति साची साचा वीचारु ॥
गुरु की मति सत्य है और उसका ज्ञान भी सत्य है।

ਆਪੇ ਬਖਸੇ ਦੇ ਵੀਚਾਰੁ ॥੧॥
आपे बखसे दे वीचारु ॥१॥
मनुष्य को ज्ञान प्रदान करके वह स्वयं ही उसे क्षमा कर देता है ॥१॥

ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਅਚਰਜੁ ਪ੍ਰਭੁ ਆਪਿ ਸੁਣਾਏ ॥
हरि नामु अचरजु प्रभु आपि सुणाए ॥
हरि-नाम एक अदभुत अनहद ध्वनि है और प्रभु स्वयं ही जीवों को यह नाम सुनाता है।

ਕਲੀ ਕਾਲ ਵਿਚਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਾਏ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
कली काल विचि गुरमुखि पाए ॥१॥ रहाउ ॥
कलियुग के समय में कोई गुरुमुख ही यह नाम प्राप्त करता है॥१॥ रहाउ॥

ਹਮ ਮੂਰਖ ਮੂਰਖ ਮਨ ਮਾਹਿ ॥
हम मूरख मूरख मन माहि ॥
हम (जीव) मूर्ख हैं और मूर्खता ही हमारे मन में विद्यमान है।

ਹਉਮੈ ਵਿਚਿ ਸਭ ਕਾਰ ਕਮਾਹਿ ॥
हउमै विचि सभ कार कमाहि ॥
हम सभी कार्य अहंकार में ही करते हैं लेकिन

ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਹੰਉਮੈ ਜਾਇ ॥
गुर परसादी हंउमै जाइ ॥
गुरु की कृपा से ही मन से अहंकार दूर होता है।

ਆਪੇ ਬਖਸੇ ਲਏ ਮਿਲਾਇ ॥੨॥
आपे बखसे लए मिलाइ ॥२॥
वह प्रभु स्वयं ही क्षमा करके जीव को अपने साथ मिला लेता है ॥२॥

ਬਿਖਿਆ ਕਾ ਧਨੁ ਬਹੁਤੁ ਅਭਿਮਾਨੁ ॥
बिखिआ का धनु बहुतु अभिमानु ॥
विषय-विकारों का धन मनुष्य के मन में बहुत अभिमान पैदा कर देता है,

ਅਹੰਕਾਰਿ ਡੂਬੈ ਨ ਪਾਵੈ ਮਾਨੁ ॥
अहंकारि डूबै न पावै मानु ॥
जिसके परिणामस्वरूप वह अहंकार में डूब जाता है और दरगाह में सम्मान प्राप्त नहीं करता।

ਆਪੁ ਛੋਡਿ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਹੋਈ ॥
आपु छोडि सदा सुखु होई ॥
लेकिन अपने आत्माभिमान को छोड़कर वह सदैव सुखी रहता है।

ਗੁਰਮਤਿ ਸਾਲਾਹੀ ਸਚੁ ਸੋਈ ॥੩॥
गुरमति सालाही सचु सोई ॥३॥
गुरु के उपदेश द्वारा मनुष्य सत्य का ही स्तुतिगान करता है ॥३॥

ਆਪੇ ਸਾਜੇ ਕਰਤਾ ਸੋਇ ॥
आपे साजे करता सोइ ॥
वह कर्ता-परमेश्वर स्वयं ही सबका रचयिता है एवं

ਤਿਸੁ ਬਿਨੁ ਦੂਜਾ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਇ ॥
तिसु बिनु दूजा अवरु न कोइ ॥
उसके सिवाय विश्व में दूसरा कोई बड़ा नहीं।

ਜਿਸੁ ਸਚਿ ਲਾਏ ਸੋਈ ਲਾਗੈ ॥
जिसु सचि लाए सोई लागै ॥
जिसे प्रभु स्वयं सत्य-नाम में लगाता है, वही व्यक्ति सत्य-नाम में लगता है।

ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਆਗੈ ॥੪॥੮॥
नानक नामि सदा सुखु आगै ॥४॥८॥
हे नानक ! नाम द्वारा प्राणी आगे परलोक में सदैव सुखी रहता है।॥४॥८॥

ਰਾਗੁ ਧਨਾਸਿਰੀ ਮਹਲਾ ੩ ਘਰੁ ੪
रागु धनासिरी महला ३ घरु ४
रागु धनासिरी महला ३ घरु ४

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।

ਹਮ ਭੀਖਕ ਭੇਖਾਰੀ ਤੇਰੇ ਤੂ ਨਿਜ ਪਤਿ ਹੈ ਦਾਤਾ ॥
हम भीखक भेखारी तेरे तू निज पति है दाता ॥
हे ईश्वर ! मैं तेरे दरबार पर भिक्षा माँगने वाला भिखारी हूँ और तू खुद ही अपना स्वामी है और सबको देने वाला है।

ਹੋਹੁ ਦੈਆਲ ਨਾਮੁ ਦੇਹੁ ਮੰਗਤ ਜਨ ਕੰਉ ਸਦਾ ਰਹਉ ਰੰਗਿ ਰਾਤਾ ॥੧॥
होहु दैआल नामु देहु मंगत जन कंउ सदा रहउ रंगि राता ॥१॥
हे सर्वेश्वर ! मुझ पर दयालु हो जाओ और मुझ भिक्षुक को अपना नाम प्रदान कीजिए ताकि मैं सदैव ही तेरे प्रेम-रंग में मग्न रहूँ॥१॥

ਹੰਉ ਬਲਿਹਾਰੈ ਜਾਉ ਸਾਚੇ ਤੇਰੇ ਨਾਮ ਵਿਟਹੁ ॥
हंउ बलिहारै जाउ साचे तेरे नाम विटहु ॥
हे सच्चे परमेश्वर ! मैं तेरे नाम पर कुर्बान जाता हूँ।

ਕਰਣ ਕਾਰਣ ਸਭਨਾ ਕਾ ਏਕੋ ਅਵਰੁ ਨ ਦੂਜਾ ਕੋਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
करण कारण सभना का एको अवरु न दूजा कोई ॥१॥ रहाउ ॥
एक तू ही इस जगत, माया एवं सब जीवों को पैदा करने वाला है और तेरे सिवाय दूसरा कोई सर्वशक्तिमान नहीं है ॥१॥ रहाउ ॥

ਬਹੁਤੇ ਫੇਰ ਪਏ ਕਿਰਪਨ ਕਉ ਅਬ ਕਿਛੁ ਕਿਰਪਾ ਕੀਜੈ ॥
बहुते फेर पए किरपन कउ अब किछु किरपा कीजै ॥
हे परमपिता ! मुझ कृपण को जन्म-मरण के बहुत चक्र पड़ चुके हैं, अब मुझ पर कुछ कृपा करो।

ਹੋਹੁ ਦਇਆਲ ਦਰਸਨੁ ਦੇਹੁ ਅਪੁਨਾ ਐਸੀ ਬਖਸ ਕਰੀਜੈ ॥੨॥
होहु दइआल दरसनु देहु अपुना ऐसी बखस करीजै ॥२॥
मुझ पर दयालु हो जाओ एवं मुझे अपने दर्शन दीजिए, मुझ पर केवल ऐसी मेहर प्रदान करो ॥ २॥

ਭਨਤਿ ਨਾਨਕ ਭਰਮ ਪਟ ਖੂਲ੍ਹ੍ਹੇ ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਜਾਨਿਆ ॥
भनति नानक भरम पट खूल्हे गुर परसादी जानिआ ॥
नानक का कथन है कि भ्रम के किवाड़ (परदे) खुल गए हैं और गुरु की कृपा से सत्य को जान लिया है।

ਸਾਚੀ ਲਿਵ ਲਾਗੀ ਹੈ ਭੀਤਰਿ ਸਤਿਗੁਰ ਸਿਉ ਮਨੁ ਮਾਨਿਆ ॥੩॥੧॥੯॥
साची लिव लागी है भीतरि सतिगुर सिउ मनु मानिआ ॥३॥१॥९॥
मेरे मन में प्रभु से सच्ची प्रीति लग गई है और मेरा मन गुरु के साथ संतुष्ट हो गया है ॥३॥१॥६॥

ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੪ ਘਰੁ ੧ ਚਉਪਦੇ
धनासरी महला ४ घरु १ चउपदे
धनासरी महला ४ घरु १ चउपदे

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।

ਜੋ ਹਰਿ ਸੇਵਹਿ ਸੰਤ ਭਗਤ ਤਿਨ ਕੇ ਸਭਿ ਪਾਪ ਨਿਵਾਰੀ ॥
जो हरि सेवहि संत भगत तिन के सभि पाप निवारी ॥
हे भगवान् ! जो सन्त एवं भक्तजन तेरी आराधना करते हैं, तू उनके सभी पाप दूर कर देता हैं।

ਹਮ ਊਪਰਿ ਕਿਰਪਾ ਕਰਿ ਸੁਆਮੀ ਰਖੁ ਸੰਗਤਿ ਤੁਮ ਜੁ ਪਿਆਰੀ ॥੧॥
हम ऊपरि किरपा करि सुआमी रखु संगति तुम जु पिआरी ॥१॥
हे मेरे स्वामी ! मुझ पर अपनी कृपा करो और मुझे उस सुसंगति में रखो, जो तुझे प्यारी लगती है ॥१॥

ਹਰਿ ਗੁਣ ਕਹਿ ਨ ਸਕਉ ਬਨਵਾਰੀ ॥
हरि गुण कहि न सकउ बनवारी ॥
हे परमात्मा ! मैं तेरी महिमा कथन नहीं कर सकता।

ਹਮ ਪਾਪੀ ਪਾਥਰ ਨੀਰਿ ਡੁਬਤ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਪਾਖਣ ਹਮ ਤਾਰੀ ॥ ਰਹਾਉ ॥
हम पापी पाथर नीरि डुबत करि किरपा पाखण हम तारी ॥ रहाउ ॥
हम पापी पत्थर की भांति जल में डूब रहे हैं, अपनी कृपा करके हम पापी पत्थरों का उद्धार कर दीजिए ॥ रहाउ ॥

ਜਨਮ ਜਨਮ ਕੇ ਲਾਗੇ ਬਿਖੁ ਮੋਰਚਾ ਲਗਿ ਸੰਗਤਿ ਸਾਧ ਸਵਾਰੀ ॥
जनम जनम के लागे बिखु मोरचा लगि संगति साध सवारी ॥
मैंने अपने मन को जन्म-जन्मांतरों की लगी हुई विष रूपी माया की जंग साधसंगत में सम्मिलित होकर यूं उतार दी है,

ਜਿਉ ਕੰਚਨੁ ਬੈਸੰਤਰਿ ਤਾਇਓ ਮਲੁ ਕਾਟੀ ਕਟਿਤ ਉਤਾਰੀ ॥੨॥
जिउ कंचनु बैसंतरि ताइओ मलु काटी कटित उतारी ॥२॥
जैसे स्वर्ण को अग्नि में तपा कर उसकी सारी मैल को काटा एवं काट कर उतार दिया जाता है।॥२॥

ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਪਨੁ ਜਪਉ ਦਿਨੁ ਰਾਤੀ ਜਪਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਉਰਿ ਧਾਰੀ ॥
हरि हरि जपनु जपउ दिनु राती जपि हरि हरि हरि उरि धारी ॥
मैं दिन-रात हरि-नाम का जाप जपता रहता हूँ और हरि-नाम जपकर हरि को अपने हृदय में बसाता हूँ।

ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਅਉਖਧੁ ਜਗਿ ਪੂਰਾ ਜਪਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਉਮੈ ਮਾਰੀ ॥੩॥
हरि हरि हरि अउखधु जगि पूरा जपि हरि हरि हउमै मारी ॥३॥
परमात्मा का ‘हरि-हरि’ नाम इस जगत में पूर्ण औषधि है और हरि-नाम का भजन करके मैंने अपने अहंकार को मार दिया है ॥३॥

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