ਭੈ ਭ੍ਰਮ ਬਿਨਸਿ ਗਏ ਖਿਨ ਮਾਹਿ ॥
भै भ्रम बिनसि गए खिन माहि ॥
पल में उनके भ्रम-भय नष्ट हो जाते हैं,
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਵਸਿਆ ਮਨਿ ਆਇ ॥੧॥
पारब्रहमु वसिआ मनि आइ ॥१॥
क्योंकि परब्रह्म मन में आ बसता है॥१॥
ਰਾਮ ਰਾਮ ਸੰਤ ਸਦਾ ਸਹਾਇ ॥
राम राम संत सदा सहाइ ॥
ईश्वर संतों का सदा सहायक है,
ਘਰਿ ਬਾਹਰਿ ਨਾਲੇ ਪਰਮੇਸਰੁ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਪੂਰਨ ਸਭ ਠਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
घरि बाहरि नाले परमेसरु रवि रहिआ पूरन सभ ठाइ ॥१॥ रहाउ ॥
घर-बाहर सब में पूर्ण रूप से परमेश्वर ही व्याप्त है॥१॥ रहाउ॥
ਧਨੁ ਮਾਲੁ ਜੋਬਨੁ ਜੁਗਤਿ ਗੋਪਾਲ ॥
धनु मालु जोबनु जुगति गोपाल ॥
मेरा धन, माल, यौवन एवं जीवन-युक्ति सब परमात्मा ही है और
ਜੀਅ ਪ੍ਰਾਣ ਨਿਤ ਸੁਖ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲ ॥
जीअ प्राण नित सुख प्रतिपाल ॥
मेरे जीवन-प्राणों का नित्य पालन पोषण करता है।
ਅਪਨੇ ਦਾਸ ਕਉ ਦੇ ਰਾਖੈ ਹਾਥ ॥
अपने दास कउ दे राखै हाथ ॥
वह अपने दास की हाथ देकर रक्षा करता है और
ਨਿਮਖ ਨ ਛੋਡੈ ਸਦ ਹੀ ਸਾਥ ॥੨॥
निमख न छोडै सद ही साथ ॥२॥
पल भर भी साथ नहीं छोड़ता, सदैव साथ रहता है।॥२॥
ਹਰਿ ਸਾ ਪ੍ਰੀਤਮੁ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਇ ॥
हरि सा प्रीतमु अवरु न कोइ ॥
ईश्वर-सा प्रियतम दूसरा कोई नहीं,
ਸਾਰਿ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਲੇ ਸਾਚਾ ਸੋਇ ॥
सारि सम्हाले साचा सोइ ॥
वह सच्चा प्रभु ही हमारा ध्यान रखता है।
ਮਾਤ ਪਿਤਾ ਸੁਤ ਬੰਧੁ ਨਰਾਇਣੁ ॥
मात पिता सुत बंधु नराइणु ॥
माता-पिता, पुत्र एवं बंधु परमात्मा ही है,
ਆਦਿ ਜੁਗਾਦਿ ਭਗਤ ਗੁਣ ਗਾਇਣੁ ॥੩॥
आदि जुगादि भगत गुण गाइणु ॥३॥
युग-युगांतर से भक्त उसके ही गुण गा रहे हैं।॥३॥
ਤਿਸ ਕੀ ਧਰ ਪ੍ਰਭ ਕਾ ਮਨਿ ਜੋਰੁ ॥
तिस की धर प्रभ का मनि जोरु ॥
हमें उसका ही आसरा है और हमारे मन को प्रभु का ही बल है,
ਏਕ ਬਿਨਾ ਦੂਜਾ ਨਹੀ ਹੋਰੁ ॥
एक बिना दूजा नही होरु ॥
उस एक के सिवा दूसरा अन्य कोई नहीं।
ਨਾਨਕ ਕੈ ਮਨਿ ਇਹੁ ਪੁਰਖਾਰਥੁ ॥
नानक कै मनि इहु पुरखारथु ॥
नानक के मन में यही बल-शक्ति है कि
ਪ੍ਰਭੂ ਹਮਾਰਾ ਸਾਰੇ ਸੁਆਰਥੁ ॥੪॥੩੮॥੫੧॥
प्रभू हमारा सारे सुआरथु ॥४॥३८॥५१॥
प्रभु हमारे सब कार्य संवारेगा॥ ४॥ ३८॥ ५१॥
ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੫ ॥
भैरउ महला ५ ॥
भैरउ महला ५॥
ਭੈ ਕਉ ਭਉ ਪੜਿਆ ਸਿਮਰਤ ਹਰਿ ਨਾਮ ॥
भै कउ भउ पड़िआ सिमरत हरि नाम ॥
परमात्मा का नाम-स्मरण करने से भय भी डर गया है।
ਸਗਲ ਬਿਆਧਿ ਮਿਟੀ ਤ੍ਰਿਹੁ ਗੁਣ ਕੀ ਦਾਸ ਕੇ ਹੋਏ ਪੂਰਨ ਕਾਮ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सगल बिआधि मिटी त्रिहु गुण की दास के होए पूरन काम ॥१॥ रहाउ ॥
तीन गुणों की सब व्याधियाँ मिट गई हैं और दास के सब कार्य पूर्ण हो गए हैं।॥१॥ रहाउ॥
ਹਰਿ ਕੇ ਲੋਕ ਸਦਾ ਗੁਣ ਗਾਵਹਿ ਤਿਨ ਕਉ ਮਿਲਿਆ ਪੂਰਨ ਧਾਮ ॥
हरि के लोक सदा गुण गावहि तिन कउ मिलिआ पूरन धाम ॥
परमात्मा के भक्त सदा उसके गुण गाते हैं और उनको ही पूर्ण वैकुण्ठ धाम मिला है।
ਜਨ ਕਾ ਦਰਸੁ ਬਾਂਛੈ ਦਿਨ ਰਾਤੀ ਹੋਇ ਪੁਨੀਤ ਧਰਮ ਰਾਇ ਜਾਮ ॥੧॥
जन का दरसु बांछै दिन राती होइ पुनीत धरम राइ जाम ॥१॥
भक्तों का दर्शन तो यमराज भी दिन-रात चाहता है और पावन होता है।॥१॥
ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧ ਲੋਭ ਮਦ ਨਿੰਦਾ ਸਾਧਸੰਗਿ ਮਿਟਿਆ ਅਭਿਮਾਨ ॥
काम क्रोध लोभ मद निंदा साधसंगि मिटिआ अभिमान ॥
काम, क्रोध, लोभ, मद, निंदा एवं अभिमान साधु-संगत में मिट जाता है।
ਐਸੇ ਸੰਤ ਭੇਟਹਿ ਵਡਭਾਗੀ ਨਾਨਕ ਤਿਨ ਕੈ ਸਦ ਕੁਰਬਾਨ ॥੨॥੩੯॥੫੨॥
ऐसे संत भेटहि वडभागी नानक तिन कै सद कुरबान ॥२॥३९॥५२॥
ऐसे संत-पुरुषों से जिनकी भेंट होती है, वे भाग्यशाली हैं और नानक उन पर सदैव कुर्बान है॥२॥३९॥५२॥
ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੫ ॥
भैरउ महला ५ ॥
भैरउ महला ५॥
ਪੰਚ ਮਜਮੀ ਜੋ ਪੰਚਨ ਰਾਖੈ ॥
पंच मजमी जो पंचन राखै ॥
जो कामादिक पाँच विकारों को मन में धारण करता है, वही पंच मजमी होता है।
ਮਿਥਿਆ ਰਸਨਾ ਨਿਤ ਉਠਿ ਭਾਖੈ ॥
मिथिआ रसना नित उठि भाखै ॥
वह नित्य उठकर मुँह से झूठ बोलता है,
ਚਕ੍ਰ ਬਣਾਇ ਕਰੈ ਪਾਖੰਡ ॥
चक्र बणाइ करै पाखंड ॥
ललाट पर तिलक व चक्रादि पुजारी होने का ढोंग करता है,
ਝੁਰਿ ਝੁਰਿ ਪਚੈ ਜੈਸੇ ਤ੍ਰਿਅ ਰੰਡ ॥੧॥
झुरि झुरि पचै जैसे त्रिअ रंड ॥१॥
मगर विधवा औरत की तरह पछताता मर मिटता है॥१॥
ਹਰਿ ਕੇ ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਸਭ ਝੂਠੁ ॥
हरि के नाम बिना सभ झूठु ॥
प्रभु के नाम बिना सब झूठ ही झूठ है,
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਮੁਕਤਿ ਨ ਪਾਈਐ ਸਾਚੀ ਦਰਗਹਿ ਸਾਕਤ ਮੂਠੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
बिनु गुर पूरे मुकति न पाईऐ साची दरगहि साकत मूठु ॥१॥ रहाउ ॥
पूरे गुरु के बिना मुक्ति नसीब नहीं होती और मायावी जीव प्रभु-दरबार में लुट जाता है।॥१॥ रहाउ॥
ਸੋਈ ਕੁਚੀਲੁ ਕੁਦਰਤਿ ਨਹੀ ਜਾਨੈ ॥
सोई कुचीलु कुदरति नही जानै ॥
वह मलिन पुरुष ईश्वर की कुदरत को नहीं जानता।
ਲੀਪਿਐ ਥਾਇ ਨ ਸੁਚਿ ਹਰਿ ਮਾਨੈ ॥
लीपिऐ थाइ न सुचि हरि मानै ॥
स्थान की लीपा-पोती करने पर भी ईश्वर इसे पावन-स्थल नहीं मानता।
ਅੰਤਰੁ ਮੈਲਾ ਬਾਹਰੁ ਨਿਤ ਧੋਵੈ ॥
अंतरु मैला बाहरु नित धोवै ॥
जिसका अन्तर्मन मैला है और बाहर से शरीर को रोज़ धोता है,
ਸਾਚੀ ਦਰਗਹਿ ਅਪਨੀ ਪਤਿ ਖੋਵੈ ॥੨॥
साची दरगहि अपनी पति खोवै ॥२॥
वह सच्चे दरबार में अपनी इज्जत खो देता है॥ २॥
ਮਾਇਆ ਕਾਰਣਿ ਕਰੈ ਉਪਾਉ ॥
माइआ कारणि करै उपाउ ॥
वह धन-दौलत के लिए अनेक उपाय करता है और
ਕਬਹਿ ਨ ਘਾਲੈ ਸੀਧਾ ਪਾਉ ॥
कबहि न घालै सीधा पाउ ॥
कभी सीधा पांव नहीं रखता अपितु बुरे काम ही करता है।
ਜਿਨਿ ਕੀਆ ਤਿਸੁ ਚੀਤਿ ਨ ਆਣੈ ॥
जिनि कीआ तिसु चीति न आणै ॥
जिसने बनाया है, उसे याद नहीं करता और
ਕੂੜੀ ਕੂੜੀ ਮੁਖਹੁ ਵਖਾਣੈ ॥੩॥
कूड़ी कूड़ी मुखहु वखाणै ॥३॥
मुँह से सदा झूठ ही बोलता रहता है॥३॥
ਜਿਸ ਨੋ ਕਰਮੁ ਕਰੇ ਕਰਤਾਰੁ ॥
जिस नो करमु करे करतारु ॥
जिस पर ईश्वर कृपा करता है,
ਸਾਧਸੰਗਿ ਹੋਇ ਤਿਸੁ ਬਿਉਹਾਰੁ ॥
साधसंगि होइ तिसु बिउहारु ॥
उसका व्यवहार साधु पुरुषों के संग हो जाता है।
ਹਰਿ ਨਾਮ ਭਗਤਿ ਸਿਉ ਲਾਗਾ ਰੰਗੁ ॥
हरि नाम भगति सिउ लागा रंगु ॥
गुरु नानक का फुरमान है कि जिसका हरि-नाम भक्ति से रंग लग जाता है,
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਤਿਸੁ ਜਨ ਨਹੀ ਭੰਗੁ ॥੪॥੪੦॥੫੩॥
कहु नानक तिसु जन नही भंगु ॥४॥४०॥५३॥
उस व्यक्ति को कोई मुश्किल पेश नहीं आती॥४॥ ४०॥ ५३॥
ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੫ ॥
भैरउ महला ५ ॥
भैरउ महला ५॥
ਨਿੰਦਕ ਕਉ ਫਿਟਕੇ ਸੰਸਾਰੁ ॥
निंदक कउ फिटके संसारु ॥
निंदक मनुष्य को समूचा संसार ही धिक्कारता एवं छि: छि: करता है,
ਨਿੰਦਕ ਕਾ ਝੂਠਾ ਬਿਉਹਾਰੁ ॥
निंदक का झूठा बिउहारु ॥
निंदक का व्यवहार झूठा ही होता है और
ਨਿੰਦਕ ਕਾ ਮੈਲਾ ਆਚਾਰੁ ॥
निंदक का मैला आचारु ॥
उसका आचरण भी मैला होता है।
ਦਾਸ ਅਪੁਨੇ ਕਉ ਰਾਖਨਹਾਰੁ ॥੧॥
दास अपुने कउ राखनहारु ॥१॥
मगर भगवान अपने दास को इस (निंदा) से बचाकर रखता है॥१॥
ਨਿੰਦਕੁ ਮੁਆ ਨਿੰਦਕ ਕੈ ਨਾਲਿ ॥
निंदकु मुआ निंदक कै नालि ॥
निंदक मनुष्य निंदकों के संग रहकर मर जाता है।
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਪਰਮੇਸਰਿ ਜਨ ਰਾਖੇ ਨਿੰਦਕ ਕੈ ਸਿਰਿ ਕੜਕਿਓ ਕਾਲੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
पारब्रहम परमेसरि जन राखे निंदक कै सिरि कड़किओ कालु ॥१॥ रहाउ ॥
परब्रह्म परमेश्वर अपने भक्तों की रक्षा करता है और निंदक के सिर पर काल कड़कता है॥१॥ रहाउ॥