Hindi Page 1152

ਨਿੰਦਕ ਕਾ ਕਹਿਆ ਕੋਇ ਨ ਮਾਨੈ ॥
निंदक का कहिआ कोइ न मानै ॥
निंदक व्यक्ति का कहा कोई नहीं मानता और

ਨਿੰਦਕ ਝੂਠੁ ਬੋਲਿ ਪਛੁਤਾਨੇ ॥
निंदक झूठु बोलि पछुताने ॥
निंदक झूठ बोलकर पछताता है,

ਹਾਥ ਪਛੋਰਹਿ ਸਿਰੁ ਧਰਨਿ ਲਗਾਹਿ ॥
हाथ पछोरहि सिरु धरनि लगाहि ॥
वह हाथ पटकता, सिर धरती पर लगाता है मगर

ਨਿੰਦਕ ਕਉ ਦਈ ਛੋਡੈ ਨਾਹਿ ॥੨॥
निंदक कउ दई छोडै नाहि ॥२॥
निंदक को ईश्वर नहीं छोड़ता॥२॥

ਹਰਿ ਕਾ ਦਾਸੁ ਕਿਛੁ ਬੁਰਾ ਨ ਮਾਗੈ ॥
हरि का दासु किछु बुरा न मागै ॥
ईश्वर का उपासक किसी का बुरा नहीं चाहता,

ਨਿੰਦਕ ਕਉ ਲਾਗੈ ਦੁਖ ਸਾਂਗੈ ॥
निंदक कउ लागै दुख सांगै ॥
अतः निंदक को दुखों के तीर लगते हैं।

ਬਗੁਲੇ ਜਿਉ ਰਹਿਆ ਪੰਖ ਪਸਾਰਿ ॥
बगुले जिउ रहिआ पंख पसारि ॥
वह बगुले की मानिंद पंख पसारकर सफेदपोश बनता है किन्तु

ਮੁਖ ਤੇ ਬੋਲਿਆ ਤਾਂ ਕਢਿਆ ਬੀਚਾਰਿ ॥੩॥
मुख ते बोलिआ तां कढिआ बीचारि ॥३॥
जब मुँह से बोलता है तो विचार कर सज्जन पुरुष उसे सत्संग से बाहर निकाल देते हैं॥३॥

ਅੰਤਰਜਾਮੀ ਕਰਤਾ ਸੋਇ ॥
अंतरजामी करता सोइ ॥
ईश्वर अन्तर्यामी है,

ਹਰਿ ਜਨੁ ਕਰੈ ਸੁ ਨਿਹਚਲੁ ਹੋਇ ॥
हरि जनु करै सु निहचलु होइ ॥
भक्त जो कहता है, वह निश्चय होता है।

ਹਰਿ ਕਾ ਦਾਸੁ ਸਾਚਾ ਦਰਬਾਰਿ ॥ ਜਨ ਨਾਨਕ ਕਹਿਆ ਤਤੁ ਬੀਚਾਰਿ ॥੪॥੪੧॥੫੪॥
हरि का दासु साचा दरबारि ॥ जन नानक कहिआ ततु बीचारि ॥४॥४१॥५४॥
प्रभु का भक्त सच्चे दरबार में शोभा पाता है नानक यह बात तत्व (सार) विचार कर कहते हैं॥४॥ ४१॥ ५४॥

ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੫ ॥
भैरउ महला ५ ॥
भैरउ महला ५॥

ਦੁਇ ਕਰ ਜੋਰਿ ਕਰਉ ਅਰਦਾਸਿ ॥
दुइ कर जोरि करउ अरदासि ॥
मैं दोनों हाथ जोड़कर प्रार्थना करता हूँ कि

ਜੀਉ ਪਿੰਡੁ ਧਨੁ ਤਿਸ ਕੀ ਰਾਸਿ ॥
जीउ पिंडु धनु तिस की रासि ॥
यह प्राण, तन, धन इत्यादि सब ईश्वर की पूंजी है।

ਸੋਈ ਮੇਰਾ ਸੁਆਮੀ ਕਰਨੈਹਾਰੁ ॥
सोई मेरा सुआमी करनैहारु ॥
सब करनेवाला वही मेरा स्वामी है और

ਕੋਟਿ ਬਾਰ ਜਾਈ ਬਲਿਹਾਰ ॥੧॥
कोटि बार जाई बलिहार ॥१॥
करोड़ों बार उस पर कुर्बान जाता हूँ॥१॥

ਸਾਧੂ ਧੂਰਿ ਪੁਨੀਤ ਕਰੀ ॥
साधू धूरि पुनीत करी ॥
साधु की चरण-रज ने मुझे पावन कर दिया है,

ਮਨ ਕੇ ਬਿਕਾਰ ਮਿਟਹਿ ਪ੍ਰਭ ਸਿਮਰਤ ਜਨਮ ਜਨਮ ਕੀ ਮੈਲੁ ਹਰੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मन के बिकार मिटहि प्रभ सिमरत जनम जनम की मैलु हरी ॥१॥ रहाउ ॥
प्रभु-स्मरण से मन के विकार मिट गए हैं और जन्म-जन्म की मैल दूर हो गई है॥१॥ रहाउ॥

ਜਾ ਕੈ ਗ੍ਰਿਹ ਮਹਿ ਸਗਲ ਨਿਧਾਨ ॥
जा कै ग्रिह महि सगल निधान ॥
जिसके घर में सब सुखों के भण्डार हैं,

ਜਾ ਕੀ ਸੇਵਾ ਪਾਈਐ ਮਾਨੁ ॥
जा की सेवा पाईऐ मानु ॥
जिसकी सेवा से मान-सम्मान प्राप्त होता है,

ਸਗਲ ਮਨੋਰਥ ਪੂਰਨਹਾਰ ॥
सगल मनोरथ पूरनहार ॥
सब कामनाओं को पूरा करने वाला वह परमात्मा ही

ਜੀਅ ਪ੍ਰਾਨ ਭਗਤਨ ਆਧਾਰ ॥੨॥
जीअ प्रान भगतन आधार ॥२॥
भक्तों के जीवन एवं प्राणों का आसरा है॥२॥

ਘਟ ਘਟ ਅੰਤਰਿ ਸਗਲ ਪ੍ਰਗਾਸ ॥
घट घट अंतरि सगल प्रगास ॥
वह सबके अन्तर्मन में प्रकाश करता है,

ਜਪਿ ਜਪਿ ਜੀਵਹਿ ਭਗਤ ਗੁਣਤਾਸ ॥
जपि जपि जीवहि भगत गुणतास ॥
उस गुणों के भण्डार परमेश्वर का नाम जप-जपकर ही भक्त जीते हैं।

ਜਾ ਕੀ ਸੇਵ ਨ ਬਿਰਥੀ ਜਾਇ ॥
जा की सेव न बिरथी जाइ ॥
उसकी सेवा कर्भी व्यर्थ नहीं जाती,

ਮਨ ਤਨ ਅੰਤਰਿ ਏਕੁ ਧਿਆਇ ॥੩॥
मन तन अंतरि एकु धिआइ ॥३॥
अतः मन-तन में एक ईश्वर का ही ध्यान करो॥३॥

ਗੁਰ ਉਪਦੇਸਿ ਦਇਆ ਸੰਤੋਖੁ ॥
गुर उपदेसि दइआ संतोखु ॥
गुरु के उपदेश से दया, संतोष इत्यादि शुभ गुणों की प्राप्ति होती है,

ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਨਿਰਮਲੁ ਇਹੁ ਥੋਕੁ ॥
नामु निधानु निरमलु इहु थोकु ॥
हरिनाम का भण्डार अत्यंत पावन है।

ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਲੀਜੈ ਲੜਿ ਲਾਇ ॥
करि किरपा लीजै लड़ि लाइ ॥
नानक की विनती है कि हे परमात्मा ! कृपा करके अपनी शरण में ले लो,

ਚਰਨ ਕਮਲ ਨਾਨਕ ਨਿਤ ਧਿਆਇ ॥੪॥੪੨॥੫੫॥
चरन कमल नानक नित धिआइ ॥४॥४२॥५५॥
नित्य तेरे चरणों का ध्यान करता रहूँ॥४॥ ४२॥ ५५॥

ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੫ ॥
भैरउ महला ५ ॥
भैरउ महला ५॥

ਸਤਿਗੁਰ ਅਪੁਨੇ ਸੁਨੀ ਅਰਦਾਸਿ ॥
सतिगुर अपुने सुनी अरदासि ॥
सतगुरु ने हमारी प्रार्थना सुती तो

ਕਾਰਜੁ ਆਇਆ ਸਗਲਾ ਰਾਸਿ ॥
कारजु आइआ सगला रासि ॥
सब कार्य सफल सम्पन्न हो गए।

ਮਨ ਤਨ ਅੰਤਰਿ ਪ੍ਰਭੂ ਧਿਆਇਆ ॥
मन तन अंतरि प्रभू धिआइआ ॥
मन-तन में केवल प्रभु का ही ध्यान किया,

ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਡਰੁ ਸਗਲ ਚੁਕਾਇਆ ॥੧॥
गुर पूरे डरु सगल चुकाइआ ॥१॥
पूर्ण गुरु ने हमारा सारा डर दूर कर दिया है।॥१॥

ਸਭ ਤੇ ਵਡ ਸਮਰਥ ਗੁਰਦੇਵ ॥
सभ ते वड समरथ गुरदेव ॥
हमारा गुरुदेव सबसे बड़ा है,

ਸਭਿ ਸੁਖ ਪਾਈ ਤਿਸ ਕੀ ਸੇਵ ॥ ਰਹਾਉ ॥
सभि सुख पाई तिस की सेव ॥ रहाउ ॥
सब करने में पूर्ण समर्थ है और उसकी सेवा से सभी सुख प्राप्त हुए हैं।॥ रहाउ॥

ਜਾ ਕਾ ਕੀਆ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਹੋਇ ॥
जा का कीआ सभु किछु होइ ॥
जिसका किया सबकुछ होता है,

ਤਿਸ ਕਾ ਅਮਰੁ ਨ ਮੇਟੈ ਕੋਇ ॥
तिस का अमरु न मेटै कोइ ॥
उसके हुक्म को कोई नहीं टाल सकता।

ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਪਰਮੇਸਰੁ ਅਨੂਪੁ ॥
पारब्रहमु परमेसरु अनूपु ॥
वह परब्रह्म-परमेश्वर अनुपम है,

ਸਫਲ ਮੂਰਤਿ ਗੁਰੁ ਤਿਸ ਕਾ ਰੂਪੁ ॥੨॥
सफल मूरति गुरु तिस का रूपु ॥२॥
उसका दर्शन फलदायक है और गुरु उसका ही रूप है॥२॥

ਜਾ ਕੈ ਅੰਤਰਿ ਬਸੈ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ॥
जा कै अंतरि बसै हरि नामु ॥
जिसके मन में परमात्मा का नाम बसता है,

ਜੋ ਜੋ ਪੇਖੈ ਸੁ ਬ੍ਰਹਮ ਗਿਆਨੁ ॥
जो जो पेखै सु ब्रहम गिआनु ॥
जो जो देखता है, उसमें ब्रह्म-ज्ञान ही पाता है।

ਬੀਸ ਬਿਸੁਏ ਜਾ ਕੈ ਮਨਿ ਪਰਗਾਸੁ ॥
बीस बिसुए जा कै मनि परगासु ॥
जिसके मन में शत-प्रतिशत पूर्ण प्रकाश होता है,

ਤਿਸੁ ਜਨ ਕੈ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਕਾ ਨਿਵਾਸੁ ॥੩॥
तिसु जन कै पारब्रहम का निवासु ॥३॥
उस व्यक्ति के अन्तर में परब्रह्म का निवास होता है।॥३॥

ਤਿਸੁ ਗੁਰ ਕਉ ਸਦ ਕਰੀ ਨਮਸਕਾਰ ॥
तिसु गुर कउ सद करी नमसकार ॥
उस गुरु को सदैव नमन करता हूँ,

ਤਿਸੁ ਗੁਰ ਕਉ ਸਦ ਜਾਉ ਬਲਿਹਾਰ ॥
तिसु गुर कउ सद जाउ बलिहार ॥
उस पर सदैव कुर्बान जाता हूँ।

ਸਤਿਗੁਰ ਕੇ ਚਰਨ ਧੋਇ ਧੋਇ ਪੀਵਾ ॥
सतिगुर के चरन धोइ धोइ पीवा ॥
हे नानक ! सच्चे गुरु के चरण तो धो-धोकर पीता हूँ और

ਗੁਰ ਨਾਨਕ ਜਪਿ ਜਪਿ ਸਦ ਜੀਵਾ ॥੪॥੪੩॥੫੬॥
गुर नानक जपि जपि सद जीवा ॥४॥४३॥५६॥
गुरु का जाप कर करके जी रहा हूँ॥४॥ ४३॥ ५६॥

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